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Tuesday, October 31, 2023

श्री राम जन्मभूमि मंदिर विवाद: संपूर्ण घटनाक्रम पर एक नजर

1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिन्दू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। मुगल बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी, जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। मुगल बादशाह बाबर के के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी का निमार्ण कराया था।

1853: हिन्दुओं का आरोप है कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिन्दुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी

1885 : मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी।

1934 : अयोध्या में एक बार फिर दंगे हुए और मस्जिद के कुछ हिस्सों को नुकसान भी पहुंचाया गया। बाद में राज्य सरकार के खर्च पर मस्जिद में सुधार कर दिया गया।

1949: विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गई।

1950: रामालला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल  विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।

1950: परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।

1959: निर्मोही अखाड़ा ने जमीन अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।

1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।

1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्म स्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

1 फरवरी 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के लिए हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।
विरोध में बाबरी एक्शन कमेटी का गठन।
 
1989: भाजपा का वीएचपी को औपचारिक समर्थन जुलाई में भगवान " रामलला विराजमान" नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल।
1989: राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद या नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

14 अगस्त 1989 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

सितंबर,1990: लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। सांप्रदायिक दंगे हुए । नवंबर में आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लिया।

अक्टूबर,1991: कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में लिया।

6 दिसंबर 1992: हजारों में की संख्या में कर सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। एक अस्थायी राम मंदिर का निर्माण किया..!
16 दिसंबर 1992:  मस्जिद की तोड़ फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन।

3 अप्रैल 1993: विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने 'अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून' पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। इनमें इस्माइल फारूकी की याचिका भी शामिल। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।

 24 अक्टूबर 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।

जनवरी 2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में एक अयोध्या विभाग शुरू किया जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए दोनो पक्षों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।

मार्च -अगस्त,2003:  13 मार्च को  न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा, अधिग्रहित स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले।

 जुलाई ,2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी 

30 सितम्बर 2010 : उच्चतम न्यायालय ने 2:1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।

9 मई 2011: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।

21 मार्च 2017: सीजेआई जेएस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।

7 अगस्त 2017 : उच्चतम न्यायालय ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जिसने 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।

8 फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की।

20 जुलाई 2018 : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।

27 सितम्बर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इनकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नई पीठ द्वारा किए जाने की बात कहीं।

29 अक्टूबर 2018: उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेंगी।

24 दिसम्बर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने सभी मामलों पर चार जनवरी 2019 को सुनवाई करने का फैसला किया।

4 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी।

8 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने की। इसमें न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे।

10 जनवरी 2019 : न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नई पीठ के समक्ष तय की।

25 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर शामिल थे।

29 जनवरी 2019 : केंद्र ने विवादित स्थल के आसपास 67 एकड़ अधिग्रहीत भूमि मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। 26 फरवरी 

2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा। 

8 मार्च 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएम आई कलीफुल्ला बनाए गए।

9 अप्रैल 2019: निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केन्द्र की याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।

10 मई 2019: मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 15 अगस्त तक की समय सीमा बढ़ाई।

11 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने 'मध्यस्थता की प्रगति' पर रिपोर्ट मांगी।

18 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिए कहा।

1 अगस्त 2019 : मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई। 2 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया।

6 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की। 4 अक्टूबर 2019: अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवम्बर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा।

16 अक्टूबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।

19 नवम्बर 2109: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन राम लला को दी, जमीन का कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए एक मुनासिब स्थान पर पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया।

स्रोत: राष्ट्रीय सहारा अखबार, बीबीसी हिंदी, पीटीआई आदि

Sunday, October 29, 2023

इजराइल की कार्रवाई से भारत में बैठे इस्लामिक कट्टरपंथियों का होता चरित्र उजागर

बहुत भसड़ मचा हुआ है देश में । एक अलग ही स्तर का बकइती हो रहा है। क्या फर्क पड़ता है हमे फिलिस्तीन में लोग मरे या जिए? रही बात समर्थन की तो हमारा समर्थन उसी को जो इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहा है। हमने लाखो लोगो की जान गवां दी है इस तथाकथित जिहादी आतंकवाद से। फिर भी कुछ लोगो को कीड़ी काट रही है। भारत में बैठा लिबरल गैंग ऐसे रोना रो रहा है मानो ये युद्ध भारत की भूमि पर लड़ा जा रहा है और भारत के लोग मारे जा रहे है। हद है मतलब भारत जबरदस्ती का इसमें क्या उखाड़ने जाय? 

कोई लड़े मरे कटे क्या ही फर्क पड़ता है।शक्तिशाली लोगो के साथ रहकर ही शक्ति हासिल होती है। तब जाकर कही महाशक्ति की स्थापना होती है। औरतों और बच्चों का आड़ लेकर कायराना हमला करने वाले खुद पीड़ित बताने में लगे रहते है। तीन जादुई शब्दो का खेला बहुत खतरनाक होता है इनका। आज के समय में कोई कमजोर नही है अगर किसी के घर में घुसकर में कोई उत्पात तो मचाएगा तो कूटा ही जायेगा..! खुद को इस्लाम का हिमायती बताने वाले इतने सारे इस्लामिक राष्ट्र क्यों नहीं कोई इन फिलिस्तीनियों को शरण दे दे रहा है.. ? बात साफ है जो इन्हे जो शरण देगा ये उसी की कब्र खोदने में लग जाएंगे..इनका इतिहास रहा है गद्दारी का और गद्दारों को शरण नही दिया जाता है बल्कि निर्वासित किया जाता है। बात वही है न इस्लाम का नेता है बनना है तो सब इनके लिए बोल दे रहे है..! हमास एक आतंकी संगठन है जिसे तुर्की के राष्ट्रपति ने मुक्ति सेना का नाम दे दिया हैं हा वही तुर्की जो भारत के खिलाफ भी जहर उलगता रहता है समय समय पर । भारत में बैठे कुछ दो कौड़ी के लोगो का अलग ही मातम मच रहा है । ठोके हमास वाले जा रहे है दर्द इनको हो रहा है। छपटाहट देखी जा सकती है खुलेआम रोना मचा हुआ है। 

इजराइल में रह रही भारतीय महिला सौम्य संतोष की इसी फिलिस्तीन हमास के आतंकी हमले में मृत्यु हो गई थी 2 साल पहले इसपर कोई नही बोला था। बोलेंगे कैसे? शांतिप्रिय समुदाय वाले जो ठहरे! देखने वाली बात है जैसा 2 साल पहले हुआ था उससे ज्यादा खतरनाक हमला हुआ है इजराइल पर जिसकी उम्मीद किसी ने नही की थी। इस्लामीक कट्टरपंथियो का भड़काऊ भाषण देख सकते है इन्हे अपने देश से प्यार नही है। ये जिस देश में रहते हैं वहा बस इस्लामिक राज कायम करना चाहतें है। इन्हे बस अपना मजहब दिखता है और कुछ नही। वरना भारत में रहने वाले मुस्लिमो से क्या मतलब की इजराइल फिलिस्तीन में क्या कर रहा है? 

ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड का कमांडर सुलेमानी को अमेरिकी सेना ने मार गिराया था इसको भी लेकर भारत के कारगिल में जुलूस निकाला जाता है, अमेरिका के खिलाफ नारेबाजी होती है। इतना ही नही 2012 में आतंकी रोहिंग्याओ को लेकर गंध मचा था भारत में । एक तस्वीर सबने देखी होंगी जिसमे कुछ जिहादी वीरों की अमर जवान ज्योति को मारकर तोड़ रहे है, फिर कहते है आप हमारे देशभक्ति पर सक कर रहे है। इसका क्या अर्थ निकाला जाय ? अगर कल को किसी मुस्लिम राष्ट्र से भारत का युद्ध हो गया तो  भारत में रह रहे तथाकथित मुसलमान क्या भारत के साथ रहेंगे? 

अरे नही मतलब भारत माता की जय नही बोलेंगे वंदेमातरम से तकलीफ है इनको क्या तकलीफ है भाई पूछ दो तो बोलेंगे संविधान में ऐसा नही लिखा है.. तो अरे मिया तो भारत का संविधान तो ये भी नही कहता है की सड़को पर उतर कर "फिलिस्तीन जिंदाबाद" के नारे लगाओ...! बात साफ है गजवा ए हिंद का खतरनाक इरादा लेकर चलते है ये तथाकथित घृणित मानसिकता वाले पंचर पुत्र जिनका सफाया होना बहुत जरूरी है। बाकी आतंकवाद के विरुद्ध भारत और इजराइल एक दूसरे का समर्थन करते है और करते रहेंगे।

Monday, October 9, 2023

इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे

फिल्मों और मीडिया वालो को पैसे देकर अपने बारे में जो नैरेटिव फैलाए या बनाए है कई सालो से दुनियां के कुछ तथाकथित उच्च स्तर के खुफिया विभाग वाले उसी को लोग सच मान बैठें है। देखा जाय तो इनके असफल ऑपरेशन को भी फिल्मों में एक सफल ऑपरेशन बताकर उसपर पर्दा डालने की कोशिश की गई है। मीडिया में बढ़ा चढ़ा कर ऐसे प्रस्तुत किया जाता है की दुनिया के किसी भी कोने में कोई व्यक्ति पेड़ के पीछे खड़ा होकर चाट पकौड़ी खा रहा हो या मूत रहा हो, ये सब देख लेते है।खासकर भारत में ऐसे सुनी सुनाई कहानियों को लोग हवा देने लग जाते है, ये मिथक जोर शोर से कथक करता हुआ नजर आता भी है। अरे ये दुनिया के सबसे ताकतवर लोगो में से एक है इनसे कोई नहीं उलझ सकता है, ये अदृश्य है...! चीजे इससे भी ज्यादा पेचीदा है वास्तव में देखा जाय तो।

हमारे देश में देखा जाय कुछ भी बड़ा हमला हो जाय कही तो लोग इंटेलिजेंस फेलियर बोलना शुरु कर देते है की साहब खूफिया एजेंसियां सो रही है। अपने देश के इंटेलिजेंस पर सवाल खड़ा करने वाले उन तथाकथित उच्च स्तर की एजेंसियों से तुलना करने लग जाते है बिना कुछ जाने और समझे।
जबकि हमारी खुफिया एजेंसियों की जानकारी एकदम सटीक रहती हैं। ना कोई दिखावा रहता है ना कोई प्रदर्शन। परदे के पीछे रहकर वो अपना काम बखूबी निभाते है ,बात ये ही रहती है उसपर अमल कितना किया जा रहा है? बहुत बारी देखा गया है की जब इनकी रिपोर्ट को सरकारों द्वारा न मानने पर देश को खामियाजा भुगतना पड़ा है। चीन की नाक के नीचे रक्तविहीन तख्तापलट कर सिक्किम का भारत के राज्य के तौर पर विलय करवाने का काम हो या उससे पहले पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश की स्थापना करना हो ये सब बिना एक मजबूत खुफिया विभाग के संभव नही था। दुश्मन देश की सेना में शामिल होकर उनसे सलामी ठोकवाना हमारे ही देश के खुफिया विभाग वाले कर सकते है। किसी को कानों कान खबर नहीं लगती है , बात साफ है हम जो चाहते है , दिखाते है सिर्फ़ उतना ही दुनिया भर के लोग देख और समझ पाते है। 

अब कुछ बोलेंगे की इतनी ही खुफिया विभाग मजबूत थी तो देश के प्रधामंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कैसे हो गई?
तो बात बता दू जो सुनने में आता है एक दम साफ तरीके से की इन्हे आगाह किया गया था की सुरक्षा कर्मियों को बदल ले ,इन्हे सुझाव दिया गया था जिसको इन्होंने ने नही माना फिर वही हुआ जिसका डर था..! जिन्होंने हत्या की कौन जानता था की राष्ट्र की सुरक्षा का शपथ लेने वाले राष्ट्र अध्यक्ष के लिए भक्षक बन जाएंगे। जान बचाने वाले जानी दुश्मन बन साबित होंगे लेकिन हमारे खुफिया /सुरक्षा एजेंसियों को भनक लग गई थी अब इनकी रिपोर्ट को नही माने कोई तो इसमें इनका क्या फेलियर? यही हाल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी का था वो रैली में गए थे जहां जाने से मना किया गया था उन्हे खुफिया विभाग वालो द्वारा लेकिन नही माने और कल के अखबार में एक दुखद समाचार छप गया था।सब चीज से खिलवाड़ कर लेना चाहिए लेकिन इंटेलिजेंस रिपोर्ट से बिलकुल भी नहीं।सुनने में तो ये भी आता है कारगिल के समय में भी इनके रिपोर्ट को दरकिनार किया गया था।तब सरकार शांति समझौता करने में व्यस्थ थी। नतीजा क्या हुआ सबने देखा ये कोई बताने वाली बात नही है।

 2014 के बाद से जब से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जी को बनाया गया है तब से आप देख सकते है की हमारा खुफिया विभाग कितना बेहतरीन कार्य रहा हैं। कश्मीर में आतंकवाद से लेकर पुरे देश में फैले नक्सलवाद का कमर टूट चुका है। खुफिया विभाग मजूबती के साथ सक्रिय क्या हुई देश विरोधी ताकते अपने आप निष्क्रिय गई। वरना पशुपति से तिरुपति तिरुपति तक खून खराबा होता था और लाल आतंक जाल फैला हुआ था। बात वही है न फैसले लेने की मजूबत राजनीतिक इच्छाशक्ति जिसका समर्थन पाकर खुफिया विभाग वालो ने आतंकवाद की कब्र खोद के रख दी है। पहले इनकी रिपोर्ट पर कारवाई उतनी नही होती थी जितना की अब हो रहा हैं। जैसे इंदिरा जी के समय एक्शन लिया जाता था बिलकुल वैसे ही कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। पठानकोट एयर बेस पर हमला हो , उड़ी हो या पुलवामा हमला इन सभी इस्लामिक जिहादी हमलों का मुहतोड़ जवाब दिया गया है शुरु में लोग यहां भी इंटेलिजेंस फेलियर बोलते थे लेकिन गुरु सब जानते है चूक कहा हुई थी.. 370 हटने के बाद जो कुटाई हुई है आतंकियों की वो देखने लायक है..! कई महीनों से कश्मीर एक दम शांत है कुछ घटनाओं को छोड़ दे तो। परेशान तो भारत के खुफिया एजेंसियों की हिटलिस्ट में शामिल आतंकी है जिन्हे कोई अज्ञात आकर ठिकाने लगा दे रहा है। कनाडा हो या पाकिस्तान इन अज्ञातो को घंटा फर्क पड़ता है उनका काम है ठोकना ठोक रहे है।

लश्कर के जिहादी हो या खालिस्तानी सबके स्थान विशेष में गोलियां ठोककर ये अज्ञात गायब हो जा रहे हैं। आतंकी सरगना Let हाफिज सईद के लौंडे को उठाकर चलती कार में अगले दिन ठोक दिए सब बाकी सब तो रॉ की साजिश है पाकियों की भाषा में ,पिछले साल कंधार हाईजैक में शामिल आतंकी ठोक गया था। एक तरह से देखा जाय तो वध हो रहा है वध वो भी चुन चुनकर हो रहा है अज्ञात लोगो द्वारा कभी दो पहिया वाहन तो कभी कार से। अमेरिका में सुना हु ये एक्सीडेंट होता है देश विरोधियों का..! बात वही है हमारे यहां हमले करके आनंद लेने वालो को ये नहीं पता की जब हम मुस्कुराते है तो तांडव होता है। इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे।ना जाने कौन है ये अज्ञात जो कर रहे है आतंकियों पर घात, उतार रहे है मौत के घाट नही वध कर रहे है वध। अदृश्य ताकतों को सलाम पर्दे के पीछे रहकर करते शत्रुओं का काम तमाम।

 बाकी धर्मो रक्षति रक्षितः🔥

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