आज का युवा कहा जा रहा है देखने वाली बात है। बिना जानकारी के बात करना एक ट्रेंड सा बन बन गया है युवाओं के बीच में जो बहुत ही हानिकारक है। पढ़ने लिखने की उम्र में ये तथाकित एजेंडे का शिकार हो रहे है और हर विचार को लेकर अपनी गलत अवधारणा बनाते हुए दिख जाएंगे जिसका जीता जागता उदाहरण है सोशल मीडिया। आप देखेंगे तो ये लोग किसी मुद्दे को लेके आपस में बहस करते है तो गाली देने पे उतारू हो जाते है और एक दूसरे का खानदान, जाति धर्म , आदि सब देखने लग जाते है। कोई कहता है मेरी ये विचारधारा है तो कोई कहता मुझे इस विचारधारा ने प्रभावित किया ये सही है फलाना ढिमका सब होता है भले कुछ ना जानते हो इन सबके बारे में इसके बावजूद भी एक दूसरे से भिड़ जाते है। क्या ये तथाकथित विचारधारा इनका पेट भरता है? या इनके कॉलेज की फीस भरता है और इनका खर्चा चलाता है? जी नहीं, इनमें से कुछ होता नहीं है दरअसल बात ये है कि ये पढ़ने के उम्र में इतना इन सबमें लीन हो जाते है कि तथाकथित विचारधारा वाले संगठन इन्हें बरगला देते है सोशल मीडिया के माध्यम गलत और उलूल जुलुल जानकारी देकर, इनके बीच अनेक भ्रांतिया पैदा कर देते है जो युवा सतर्क नहीं रहा इनके चंगुल में आसानी से फस जाता है। इसमें युवाओं कि भी कोई गलती नहीं है एक तथ्य तो ये भी है कि घर का माहौल कैसा है? देखा जाए तो बहुत कुछ इसपर निर्भर करता है। विचारधारा आजकल जाति को लेकर बन रही है और इसी पर एजेंडा चलाया जा जाता है जो कोई भी इसका समर्थन करता है वो स्वयं पैरो पर कुल्हाड़ी मारने का काम करता है । सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहां ये सब खेल बिना रोक टोक के चलता है। अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों पर ध्यान दे ताकि बाद में ना कहे कि हमारा बच्चा साफ सुथरा है इसे भड़काया गया है!
हद तो तब हो जाती है जब कोई आतंकी या नक्सली मारा जाता है सुरक्षा बलों द्वारा उसे ये तथाकथित विचारधारा संगठन (सक्रिय हो जाता है) कहता है कि " ये भटके हुए नौजवान है" इनका साथ देने के लिए कुछ तथाकथित नेता - परेता और पत्रकार दिख जाते है जिनका काम है देश का माहौल खराब करना। देखा जाए तो भारत में अराजकता बहुत फैल रहा है तमाम युवा इस अराजकता का शिकार हो रहे है। उम्मीद है सरकार इसमें कुछ ठोस कदम उठाने का कार्य करेगी और सोशल मीडिया को इन सबके लिए फटकार के साथ साथ कुछ सख्त कानून भी बनाए।
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