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Thursday, June 25, 2020

“नेपोटिज्म - परिवारवाद - वंशवाद, तीनों शब्द एक ही है पर मौजूद हर जगह है...”

लेखक का नाम कृष्णकांत उपाध्याय, रिसर्च स्कॉलर (शिक्षाशास्त्र) महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय

“नेपोटिज्म - परिवारवाद - वंशवाद,  तीनों शब्द एक ही है पर मौजूद हर जगह है...”

जब से सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या की खबर सामने आई है तब से देश में उनके फैन्स को झंकझोर कर रख दिया है और उन्होंने सोशल मीडिया पर बालीवुड के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बालीवुड में मौजूद वंशवाद के खिलाफ देश के लोगों ने खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। बालीवुड में मौजूद वंशवाद के जनक के रूप में धर्मा प्रोडक्शन के मालिक करण जौहर को जाना जाता है और करण जौहर बालीवुड में मौजूद वंशवाद के जनक हैं भी। करण जौहर ने बालीवुड में एक के बाद एक अभिनेता अभिनेत्री को लांच किया जिनका परिवार पहले से ही बालीवुड में मौजूद है चाहे वो वरुण धवन हो या आलिया भट्ट जैसे बड़े डायरेक्टर के बेटे बेटी। हाल ही में करण जौहर ने अपने बैनर तले अभिनेता चंकी पांडे की बेटी अन्नया पांडे को लांच किया। अन्नया पांडे ने अपनी फिल्म की “स्टूडेंट आफ द ईयर 2” की प्रमोशन करते वक्त कहा था कि उन्होंने भी बहुत स्ट्रगल किया है तब जाकर वह यहां पहुंची हैं तब सोशल मीडिया ने इस पर बहुत मजाक बनाया। ऐसा नहीं है कि बालीवुड में केवल करण जौहर ही वंशवाद के अग्रणी हैं ऐसे बहुत लोग हैं जो वंशवाद की वजह से ही आज बालीवुड में एक मुकाम हासिल कर पाए हैं। आलिया भट्ट, सोनम कपूर, रणबीर कपूर, अर्जुन कपूर, अरबाज खान, सोहेल खान, करीना कपूर, करिश्मा कपूर, सलमान खान, आमिर खान, फरहान अख्तर, वरूण धवन, रणवीर सिंह, परिनीति चोपड़ा, ऐसे बहुत लम्बी लिस्ट है जिसे यहां लिख पाना संभव नहीं है। पर क्या ये परिवारवाद, वंशवाद केवल और केवल बालीवुड में ही मौजूद है!
जी नहीं ऐसा नहीं है कि वंशवाद केवल बालीवुड में ही मौजूद है वंशवाद, परिवारवाद, भाई भतीजावाद हर जगह मौजूद है। भारत का इतिहास वंशवाद परिवारवाद से भरा हुआ है। चाहे वो बालीवुड, राजनीति या कोई भी क्षेत्र हो हर जगह आपको परिवारवाद वंशवाद देखने को मिल जाएगा। राजनीति में तो सभी जगह आपको परिवारवाद वंशवाद का नजारा देखने को मिल जाएगा। क्या कांग्रेस, क्या भाजपा, क्या अन्य पार्टियां सभी का वही हाल है । हर जगह आपको परिवारवाद वंशवाद की झलक देखने को मिला जाएगा। कांग्रेस तो उपर से लेकर नीचे तक परिवारवाद से ही चली आ रही है । नेहरू जी से लेकर राहुल गांधी, प्रियांका वाड्रा तक का सफर परिवारवाद से ही चलता आ रहा हैै। यही परिवारवाद आपको दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और सरकार में मौजूद भाजपा में भी देख सकते हैं । जी हां आप भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा समय में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के विधायक पुत्र पंकज सिंह, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र और मौजूदा समय में मंत्री अनुराग ठाकुर, ऐसे कई लोग हैं भाजपा में भी जो वंशवाद से ही आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन बात केवल दो पार्टियों की नहीं है देश में हर राज्य में परिवारवाद, वंशवाद भरा हुआ है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार, बिहार में लालू प्रसाद यादव का परिवार, कर्नाटक में देवगौंड़ा का परिवार, महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा की सरकार केवल इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि बाला साहेब ठाकरे के पौत्र और उद्धव ठाकरे अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। ऐसे देश के हर राज्य में परिवारवाद वंशवाद सत्ता के साथ मिलकर सुख भोग रहा है। ऐसे ही पत्रकारिता में भी परिवारवाद शामिल है, राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष परिवारवाद की सीढ़ी चढ़ कर ही मौजूदा समय में यहां तक पहुंचें हैं।
हमारे देश में परिवारवाद तो खून में शामिल है। हम सब को पता है कि कोई भी व्यक्ति अगर किसी अच्छी जगह नौकरी कर रहा है तो वो पहले ये सोचता है कि वो अपने घर, रिश्ते में से किसी सदस्य को अपने या अपने परिचय द्वारा नौकरी दिला दे चाहे वो सदस्य योग्य हो या नहीं। यही से शुरू हो जाता है परिवारवाद, वंशवाद। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि केवल एक जगह या दो जगह पर ही परिवारवाद और वंशवाद पनप रहा है और फल फूल रहा है। सच तो यह है कि परिवारवाद, वंशवाद कि जड़ें हमारे समाज में बहुत गहराई तक जम चुकी हैं जिसको शायद ही कोई हटा या मिटा सकता है।
 देश में हर जगह हर क्षेत्र में नेपोटिज्म मौजूद है बस उसका स्वरुप अलग अलग है कहीं जातिगत नेपोटिज्म, कहीं समुदाय नेपोटिज्म, कहीं धर्म नेपोटिज्म व्यापत है, जाति धर्म समुदाय के नाम पर किया जाने वाला भेदभाव भी नेपोटिज्म का हिस्सा है और यह नेपोटिज्म देश के हर नागरिक के अंदर मौजूद है। अतः देश के हर नागरिक को पहले अंदर पनप रहे नेपोटिज्म ( परिवारवाद ) को खत्म करना होगा तभी हम बालीवुड, राजनीति या कोई भी क्षेत्र में व्याप्त परिवारवाद को खत्म कर सकते हैं तथा उनका विरोध कर सकते हैं। क्योंकि कहा गया है “हम सुधरें तो जग सुधरें”
जब तक समाज नहीं सुधरेगा तब तक सुशांत सिंह राजपूत जैसे प्रतिभावान आत्महत्या करते रहेंगे और उस आत्महत्या का जिम्मेदार समाज का हर व्यक्ति होगा और आप इसको नकार नहीं सकते हैं।



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