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Friday, July 10, 2020

वारदात होने जाने पर छाती पीटते हुए हम और आप विधवा विलाप करने लग जाते हैं

लेखक :- कृष्णकांत उपाध्याय , रिसर्च स्कॉलर(शिक्षा शास्त्र),  काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय

        (तस्वीर - रिपब्लिक भारत)
विकास दूबे एनकाउंटर में मारा गया। वह पुलिस से भागने की कोशिश कर रहा था और पुलिस पर फायरिंग भी की जिससे जवाबी कार्रवाई में मारा गया। जो की सबको पहले से ही पता था कि ऐसा ही कुछ होगा और हुआ भी वैसा ही। पर अब कुछ लोग कह रहे हैं कि विकास दूबे को इसलिए मारा गया है ताकि वो बता न सके की उसकी कौन मदद कर रहा था। अरे भाई आप भी जानते हो कि कौन मदद करता है इन जैसे अपराधियों की। आज विकास दूबे जैसे अपराधियों की खादी और खाकी में पैठ कोई नई बात नहीं है। हर बड़े अपराधी को राजनीति संरक्षण प्राप्त है और हर अपराधी को को बढ़ाने में राजनीति को मदद करने वाले हम और आप हैं। सब कुछ सारा खेल हमारे सामने खेला जाता है फिर भी हम आंखों पर पट्टी बांध  कर उनको बढ़ावा देने में सहायता करते हैं और वारदात होने जाने पर छाती पीटते हुए हम और आप विधवा विलाप करने लग जाते हैं। फूलन देवी जैसी डकैत को पहली बार जब कोई नेता अपनी पार्टी का टिकट देकर चुनाव में भेजता है तो हम और आप ही उसको जीताकर संसद सदस्य बनने में सहायता करते हैं, पूर्वांचल में बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी, धन्नजय सिंह, बिहार में शहाबुद्दीन इन सबको खादी और खाकी दोनों का संरक्षण प्राप्त है। हम सब लोग जानते हैं कि उनको संरक्षण देने वाले कौन हैं फिर भी हम लोग उनके समर्थक में आवाज लगाते हैं और चुनाव में उनका झंडा बुलंद करते हैं तो विकास दूबे को जिंदा पकड़कर पूछताछ करके ऐसा क्या पता चलता जो हमें और आपको पता नहीं है और खादी और खाकी के चेहरे सामने आ भी जाते तो हम और आप क्या कर लेते वो फिर प्रशासन की आंखों में आंखें डाल बात करते अदालतों में मामले लंबित होते और फिर आकर हमसे आपसे वोट मांगते और हम और आप वोट देकर उनको माननीय बनाते जो अपने खिलाफ सारे मामले रफा दफा करवा लेते। इस देश में तब तक कुछ भी बदलने वाला नहीं है जब तक हम उनको बढ़ावा देते रहेंगे इसलिए ये विकास दूबे को मारकर खादी और खाकी को बचाया गया है ये विधवा विलाप फिजूल है....

अगर आप सोच रहे हैं कि विकास दूबे को अदालत से सजा मिलनी चाहिए थी तो आपको बता दूं कि अदालत ने उसे एक मर्डर केस में उम्र कैद की सजा दी थी और वह 8 पुलिस जवानों को शहीद करने वाली वारदात जमानत पर बाहर आकर की थी। वो लोग बड़े मासूम हैं जो सोचते हैं कि विकास दुबे को अदालत के ज़रिए सज़ा दिलाई जा सकती थी। ऐसा ही होता तो कृष्णानंद राय के हत्यारे संसद और विधानसभा में नहीं बैठे होते। मऊ दंगों के समय खुली जीप में कौन बंदूक़ लहराते हुए घूम रहा था सबने देखा है। राजू पाल के हत्यारे को ज़मानत पाने से रोकने के लिए पुलिस को तरह-तरह की तिकड़म नहीं करनी पड़ती। जज को गवाह चाहिए होते हैं। गवाह भी जानते हैं कि कल इन्हीं गुंडों की पार्टियाँ भी सत्ता में आ सकती हैं। जब अदालत भी जानती है कि विकास दूबे जैसे अपराधियों पर किस तरह के केस हैं तो अदालत इन जैसों को जमानत ही क्यों देती है क्या अदालत यह नहीं जानती कि ये अपराधी सुधर नहीं सकते हैं चाहे कुछ भी हो जाए फिर क्यों अदालत समाज के इन दुश्मनों को बाहर खुलेआम वारदातों को बढ़ाने के लिए जमानत दे देती है...
आखिर क्यों????
पर इतना ही कहूंगा कि विकास दुबे का जिस तरीक़े से सफाया हुआ वही एकमात्र तरीका था।।

2 comments:

  1. कुछ लोग इस एनकाउंटर को जातिवाद का रंग देने में लगे हुए है उनका भी ढंग से इलाज होना चाहिए।

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  2. बहुत बढ़िया हुआ की इस कमिने का एनकाउंटर हो गया..

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