लेखक:- कृष्णकांत उपाध्याय
कांग्रेस इस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। लेकिन यह पुरानी पार्टी अब जर्जर हो चुकी है और ढहने लगी है क्योंकि समय रहते इस पार्टी को मरम्मत नहीं किया गया। शायद इसीलिए अब इस पार्टी के नेता इस पुरानी पार्टी में रहने से डरने लगे हैं और सब इसे छोड़कर जाने लगे हैं। वैसे तो इस पार्टी से अलग जिसने भी राह चुनी वो संघर्ष किया और उस संघर्ष की आग में तपकर सोना हो गया चाहे वो ममता बनर्जी हों या शरद पवार जैसे कद्दावर नेता। ममता बनर्जी कांग्रेस से अलग होकर ही तृणमूल कांग्रेस पार्टी बनाई और आज पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज हैं। इसी तरह शरद पवार ने भी कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाई संघर्ष किया और महाराष्ट्र की राजनीति में “मराठा छत्रप” बनकर उभरे और कांग्रेस को उनके इशारों पर चलने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन इन जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के चले जाने से कांग्रेस बिखरी नहीं थी लेकिन अब बिखर रही है और इस पार्टी के मठाधीश इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि इससे कुछ नहीं होगा लेकिन वो शायद यह भूल गए कि ये नब्बे का दशक नहीं है उस समय की तरह आज केवल टीवी और अख़बारों का दौर नहीं है। अब समय बदल चुका है टीवी अखबारों से आगे सोशल मीडिया, इंटरनेट ना जाने कितने माध्यम से आज के मतदाता जुड़े हुए हैं। लेकिन ये बात कांग्रेस और उसके आलाकमान समझ नहीं पा रहे हैं। शायद इसीलिए वो ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, अशोक तंवर, दिपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा आदि जैसे जमीनी स्तर पर काम करने वाले युवा नेताओं की पीढ़ी से दूरी बना ली है और यही दूरी आज कांग्रेस को ढहा रही है। कांग्रेस के युवा नेता उपेक्षित हो रहे हैं और अपना नया ठिकाना तलाश रहे हैं इस कड़ी में वो कांग्रेस को छोड़कर जा रहे हैं। इस लिस्ट में सबसे पहला नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम आता है। भारतीय राजनीति में सिंधिया परिवार को कौन नहीं जानता। इसी परिवार की मुखिया राजमाता विजया राजे सिंधिया बीजेपी की संस्थापक सदस्य रहीं उनके बाद उनके पुत्र माधवराव सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे और इनके ही पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता, सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे लेकिन 2019 के चुनाव में हार जाने के बाद कांग्रेस में उनको उपेक्षित कर दिया। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस की तरफ से जिम्मेदारी सौंपी गई कि कांग्रेस के वनवास को खत्म करें और उन्होंने अपनी काबिलियत साबित करते हुए मध्य प्रदेश में कांग्रेस को ना केवल मजबूती से खड़ा किया बल्कि कांग्रेस को सत्ता में ले आए पर अब बारी थी कांग्रेस पार्टी की कि उनको इस मेहनत का इनाम दिया जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं उनकी मेहनत का इनाम गांधी परिवार के करीबी और भरोसेमंद कमलनाथ को मिला और ज्योतिरादित्य सिंधिया हासियें पर चले गए। लेकिन जमीनी नेता अपनी जमीन बचाने के लिए हमेशा हाथ पैर मारता है। सिंधिया ने खुद का किला ढहता देख पार्टी बदल ली और मध्य प्रदेश की कांग्रेस की सरकार गिर गई। सरकार गिराना बड़ी बात नहीं है पर सिंधिया जैसा कांग्रेस ने अपना भविष्य खो दिया। वही हाल राजस्थान में राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट के साथ हुआ। मेहनत पांच साल सचिन पायलट ने किया और मेहनत का फल गांधी परिवार के करीबी अशोक गहलोत को मिला। हालांकि राजस्थान में सरकार बच गई है पर कितने दिनों तक बची रहेगी ये कहना कठिन है। लेकिन सरकार से ज्यादा नुकसान कांग्रेस के भविष्य को हुआ है सचिन पायलट जैसे नेता का यूं पार्टी छोड़कर चले जाना दुर्भाग्य ही है और इस दुर्भाग्य से निपटने की बजाय कांग्रेस पार्टी सचिन पायलट को एहसान गिना रही है कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें कम उम्र में सांसद, केन्द्रीय मंत्री, उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बना दिया लेकिन कांग्रेस पार्टी और सुरजेवाला ये भूल गए कि सचिन पायलट ने ये सारे पद अपनी काबिलियत के आधार पर कमाएं। कांग्रेस और सुरजेवाला पार्टी सदस्यता, चुनाव टिकट दे सकते हैं पर जनता नहीं, जनता नेता खुद कमाता है नेताओं की असल कमाई ये जनता ही होती है और यही छोटी सी बात आज के दौर में कोई नेता नहीं समझ पा रहा है और यही गलती कांग्रेस कर रही है पर सच्चाई यही है कि सचिन पायलट ने जो भी कांग्रेस से पाया है वह अपनी काबिलियत के दम पर पाया है और उतना ही कांग्रेस को दिया भी है शायद इसीलिए कपिल सिब्बल ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “ आखिर हम लोग कब जागेंगे जब सारे घोड़े अस्तबल से चले जाएंगे तब” इशारा साफ है कि कांग्रेस में अभी भी कुछ बदला नहीं है लेकिन कांग्रेस में बदलाव बहुत जरूरी है। भारतीय राजनीति में कांग्रेस के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन जिस तरह कांग्रेस परिवार मोह में युवा नेताओं को किनारे कर रही है उससे साफ है कि कांग्रेस पार्टी अपनी पकड़ भारतीय राजनीति में खोती जा रही है। कहीं ऐसा ना हो कि कांग्रेस अपने युवा नेताओं को मौका ना दे और इसी तरह सारे युवा नेता कांग्रेस छोड़कर जाते रहें और एक दिन कांग्रेस बस बुजुर्गों नेताओं की पार्टी बनकर रह जाए। जिस तरह भाजपा कांग्रेस के कद्दावर युवा नेताओं में भविष्य तलाश रही है उससे तो साफ जाहिर है कि भाजपा भविष्य की राजनीति देख रही है। भाजपा जानती है कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ही हैं जो राज्य के सत्ता की बागडोर अच्छे से सम्भाल सकते हैं कि वैसे ही सचिन पायलट में भी भाजपा राजस्थान में भविष्य की राजनीति देख रही है लेकिन इसमें अड़चन उसके खुद के नेता हैं जो युवा और सक्षम भी हैं राजस्थान में राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे नेता की अगली पीढ़ी भाजपा को सिंचने के लिए तैयार हो रही है। जितना जल्दी ये बात कांग्रेस समझ जाएं उतना ही उसके लिए बेहतर होगा। गांधी परिवार से अलग होकर भी कांग्रेस को भविष्य तलाश करनी ही पड़ेगी क्योंकि कांग्रेस कितना ही राहुल गांधी को युवा नेता बनाने की कोशिश कर ले लेकिन वो युवा नेता नहीं है। राहुल गांधी की उम्र अगले लोकसभा चुनाव तक ट्रेन में टिकट बुकिंग करते समय आरक्षण में छूट पाने वाली श्रेणी में आ जाएगी। बाकी कांग्रेस के आलाकमान की इच्छा पर कांग्रेस और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को इतना याद रख लेना चाहिए कि भारत के मतदाता कांग्रेस के आलाकमान के हिसाब से नहीं चलते हैं। अगर कांग्रेस के आलाकमान ने अपने रवैए में बदलाव नहीं किया और यही हाल रहा कांग्रेस का तो “कांग्रेस मुक्त भारत” का तो पता नहीं पर हां “युवा मुक्त कांग्रेस” जरूर देखें को मिल जाएगा...
अंग्रेजो द्वारा बनाई गई पार्टी का सर्वनाश एक न एक दिन तो होना ही है।
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