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Friday, July 17, 2020

युगान्तकारी माँ

 सितम्बर, 1928 के 'किरती' में सुप्रसिद्ध देशभक्त शचीन्द्रनाथ सान्याल की माँ के बारे में प्रकाशित एक संपादकीय नोट। 

हमारे पाठक हिन्दुस्तान के प्रमुख युगान्तकारी श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल जी के नाम-काम से अच्छी तरह परिचित हैं। हम उनका चित्र भी 'किरती' में प्रकाशित कर चुके हैं। उनका सम्पूर्ण परिवार ही युगान्तकारी है। 1914-15 वाले गदर आन्दोलन में उनके दो भाई गिरफ्तार किये गये थे, जिनमें से एक नजरबन्द है और दूसरे को दो साल की कैद हुई और स्वयं उन्हें आजीवन कारावास की सजाएँ हो गयी थीं। अब उन्हें काकोरी केस में फिर आजीवन कैद की सजा हो गयी है। साथ ही उनके सबसे छोटे भाई श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल जी को पाँच बरस की कैद हो गयी है। यह भी अपने बड़े भाइयों की तरह दिलेर हैं और खुशदिल रहने वाले हैं। ऐसे वीर पुत्रों की जननी माँ धन्य है। लेकिन हमें अफ़्सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि 52 साल की उम्र में लगभग एक माह पूर्व उनका देहान्त हो गया था। वह कोई सामान्य स्त्री नहीं थी। वह स्वयं भी पढ़ी-लिखी और क्रान्तिकारी विचारों वाली थी। इनका जन्म बंगाल के सबसे अधिक शिक्षित विद्वान और भक्ति के गढ़ शान्तिपुर के एक बड़े परिवार में हुआ। इनके एक बहन और एक भाई और थे। इनके बड़े भाई श्री योगेशचन्द्र राय अब तक जीवित हैं वे 1907 के स्वदेशी आन्दोलन में काफी सक्रिय रूप से काम करने वालों में हैं। बाद में राजपरिवर्तनकारी आन्दोलनों के सम्बन्ध में उनकी अनेकों बार तलाशियाँ हुई और पुलिस उनके पीछे लगी रहती थी। श्री शचीन्द्रनाथ को माता श्रीमती क्षीरोदवासिनी देवी काफ़ी शिक्षित थीं। आपको पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से वजीफा मिलता रहा। आप हमेशा समाचार पत्र, पत्रिकाएँ और नयी-नयी पुस्तकें पढ़ती रहती थीं। श्री शचीन्द्र के पिता श्री हरिनाथ सान्याल भी स्वदेशी आंदोलन के सक्रिय समर्थक थे। 1907 के स्वदेशी आन्दोलन के बहुत पहले से ही वह स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करने लगे थे। श्री शचीन्द्र की माता उनके ऐसे विचारों और कार्यो में बहुत सहायता करती थीं और स्वदेशी आन्दोलन चलने पर दोनों इसी काम में लग गये। हालाँकि हरिनाथ सान्याल सरकारी नौकरी में थे और अच्छा-खासा वेतन पाते थे।

श्रीमती क्षीरोदवासिनी देवी अपने बच्चों को घर में स्वयं पढ़ाती थीं। स्वदेशी आन्दोलन के बाद में उन्होंने स्वयं ही अपने पुत्रों को अनुशीलन समिति में भर्ती कराया। अनुशीलन समिति बंगाल की एक पार्टी थी, जो उस समय तक खुफिया राजपरिवर्तनकारी दल नहीं बनी तो, लेकिन बाद में वही सबसे बड़ी और शक्तिशाली राजपरिवर्तनकारी पार्टी बन गयी थी। बाद में माँ को यह भी पता लग गया कि शचीन्द्र युगान्तकारी दल में शामिल हुआ है। लेकिन वह कभी घबरायी नहीं, बल्कि हमेशा उनसे सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करती थीं। वह प्रसन्न थीं कि उनका बेटा देश सेवा में संलग्न है। उनके सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार के कारण काफी दूर-दूर से युगान्तकारी उनके दर्शनों के लिए आते थे। उनमें श्री रासबिहारी बोस, हिन्दुस्तान के राजपरिवर्तनकारी शहीदों के सिरमौर श्री जतीन्द्रनाथ मुकर्जी तथा श्री शशांक हाजरा आदि शामिल थे। वह बंगाल के युगान्तकारियों में 'युगान्तकारी माँ' के रूप में मशहूर थीं। दूर अण्डमान के बन्दियों के बीच भी उनकी ख्याति पहुँच चुकी थी। 1915 में जब गदर पार्टी ने चारों तरफ़ ज़बरदस्त बगावत करने की तैयारियाँ की थीं, उस समय श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके दोनों युवा भाई इस काम में जुटे हुए थे। स्मरण रहे कि इनके पिता का देहावसान हो चुका था इस कारण परिवार का बोझ भी इनके सिर आ पड़ा। जब फरवरी में विद्रोह पैदा करने की तारीख भी तय हो चुकी थी, तब इन भाइयों में आपस में विवाद चल पड़ा कि कौन पीछे रहकर परिवार की देखभाल करे, क्योंकि कोई भी पीछे रहने के लिए सहमत नहीं होना चाहता था। दोनों की यह इच्छा थी कि देश के स्वतन्त्रता-संघर्ष में वे सक्रिय रूप से मैदान में कूद पड़ें। तब उनकी वीर माता ने आगे आकर कहा कि वह किसी की राह में नहीं आना चाहती, जिस किसी की भी इच्छा हो, वह उनकी चिन्ता छोड़कर देश-सेवा के कार्य में जुट जाये। पर वह सारा काम तो बीच में ही रह गया। गदर की सारी योजना फेल हो गयी। मुकदमा चला। श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल को आजीवन कैद हो गयी। जब वह बनारस जेल से अण्डमान (कालेपानी) भेजे गये, उस समय उनकी आयु 22 बरस की थी। माँ उनसे मिलने गयी और प्रसन्नतापूर्वक कहा "मेरा पुत्र सचमुच संन्यासी हो गया है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि उसने अपना जीवन देश-सेवा के लिए अर्पित कर दिया है।" इसके पश्चात पुलिस उनका पीछा करने लगी और बहुत परेशान करती रही। अब काकोरी केस चला और जब उनका छोटा पुत्र श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल भी गिरफ्तार कर लिया गया तो इनको बहुत घबराहट हुई, क्योंकि वह अभी बिल्कुल बच्चा था और पढ़ रहा था। ज़्यादा चिन्ता यह थी कि संकट में कहीं वह घबरा न जाये। लेकिन मालूम हुआ कि वह जेल में बिल्कुल निश्चिन्तता से रह रहा है। इस बात से इन्हें बहुत खुशी हासिल हुई। कहने लगीं, "मुझे अपने भूपेन्द्र से यही आशाएँ थीं।"
लेकिन उनका सारा जीवन कठिनाइयों में ही गुज़र गया। उन्हें कभी चैन का समय ही नहीं मिला। देखते-देखते काकोरी का मुकदमा समाप्त हो गया। और कोई ठोस सबूत न मिलने के बावजूद श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल को आजीवन कैद और भूपेन्द्रनाथ को पाँच साल की सजा हो गयी यह झटका उनसे बरदाश्त न हो सका। यह चोट उनसे सही न गयी। वह फिर कभी न सँभल सकीं। लेकिन अपने पुत्रों पर उन्हें बहुत फट रहा। उन्होंने शचीन्द्रनाथ सान्याल को अपने अन्तिम पत्र में लिखा था कि दुनियादारी के हिसाब से भले ही मैं बहुत गरीब हूँ, लेकिन मेरे जैसा अमीर कौन है जिसके पुत्र सत्यपथ पर चल रहे हैं और देश-सेवा में जिन्होंने अपनी जिन्दगियाँ अर्पण कर दी हैं, मुझे अपने पर बहुत नाज़ है। आह! ऐसी और कितनी माताएँ आज हमारे देश में हैं? धन्य है यह माँ और धन्य-धन्य हैं उनके पुत्र!

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