1962 के बाद पहली बार जनरल सगत सिंह ने दिखाया कि चीनियों के साथ न सिर्फ़ बराबरी की टक्कर ली जा सकती है, बल्कि उन पर भारी भी पड़ा जा सकता है। जनरल वी के सिंह बताते हैं, "इत्तेफ़ाक से मैं उस समय वहीं पोस्टेड था। जनरल सगत सिंह ने जनरल अरोड़ा से कहा कि भारत चीन सीमा की मार्किंग होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं सीमा रेखा पर चलता हूँ।अगर चीनी विरोध नहीं करते हैं तो हम मान लेंगे कि यही बॉर्डर है और वहाँ पर हम फ़ेसिंग बना देंगे।"
"जब उन्होंने ये करना शुरू किया तो चीनियों ने विरोध किया।उनके सैनिक आगे आ गए। कर्नल राय सिंह ग्रनेडियर्स की बटालियन के सीओ थे। वो बंकर से बाहर आकर चीनी कमांडर से बात करने लगे। इतने में चीनियों ने फ़ायर शुरू कर दिया। कर्नल राय सिंह को गोली लगी और वो वहीं गिर गए।"
"गुस्से में भारतीय सैनिक अपने बंकरों से निकले और चीनियों पर हमला बोल दिया। जनरल सगत सिंह ने नीचे से मीडियम रेंज की आर्टलेरी मंगवाई और चीनियों पर फ़ायरिंग शुरू करवा दी। इससे कई चीनी सैनिक मारे गए। चीनी भी गोलाबारी कर रहे थे लेकिन नीचे होने के कारण उन्हें भारतीय ठिकाने दिखाई नहीं दे रहे थें।"
भारतीय सेना के करीब 70 जवान शहीद हो गए और भारतीय सेना के हमले से चीनी सैनिकों को भागने का भी मौका नहीं मिला और उसके 400 सैनिक मारे गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन दिनों सेना को तोप से गोलाबारी करने का हुक्म प्रधानमंत्री देते थे। सगत सिंह ने किसी से आदेश नहीं लिया और लगातार तीन दिन तक फायरिंग करते रहे। यह लड़ाई तब रुकी जब चीन ने भारत को हवाई हमले की धमकी दी, तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारी युद्ध विराम पर सहमत हुए। सगत सिंह ने वह कर दिया था जिसकी कल्पना भी नामुमकिन थी। उसने उस सोच को पूरी तरह बदल दिया कि भारतीय फौज कभी चीन से मुकाबला नहीं कर सकती। खैर बात वर्तमान की जाय तो सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथ में है और सेना को खुली छूट है। चीनी आंखो को फोड़ना सख्त जरूरी हो गया है क्योंकि इनकी नजरे भारतीय क्षेत्रो को हड़पने में ही लगी रही रहती है और लूटी हुई जमीन से इनको दौड़ाकर मार भगाना भी है। तिब्बत के लोग भी आज़ादी चाहते है वो इस चीनी साम्यवादी सरकार के क्रूरता से तंग आ चुके है। इस युद्ध के अलावा दुसरा कोई विकल्प नहीं है।
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