लेखक:- शिवम कुमार पाण्डेय
क्या कह रहे हो? तुमसे तुम्हारा हक छीना जा रहा है तुमको आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जा रहा है। आखिर ऐसी नाइंसाफी क्यों हो रही तुम्हारे साथ कभी इसपर तर्क - वितर्क किये हो? सोचना और समझना केवल मुंह से बोल देने कोई युवा नहीं हो जाता है। तुम्हारे ही कंधे पर बंदूक रखकर वो अपनी वंशवादी परंपरा को बचाते है और इनकी रक्षा में तुम अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते हो। तुमको मिलता क्या है इसके बदले में? सिवाय उपहास, बहिष्कार और तिरस्कार के। काम निकल जाने के बाद तुम्हारी अवहेलना की जाती है तब तुमको ख्याल आता है कि तुम "युवा" हो। धिक्कार है ऐसे युवाओं पर जो जातिवाद, पंथवाद, क्षेत्रवाद और धर्म के नाम पर राजनीतिक दलों का समर्थन करते है। कुछ तथाकथित नेताओ के आगे पीछे घूमते रहते है और उनकी जय करते है। यहां तक तो ठीक है पर इन नेताओ की औलादों का भी चरण चुम्बन करने लगोगे तो तुम्हारा अधिकार छिनेगा नहीं तो क्या होगा? जिंदगी भर मेहनत और संघर्ष तुम किये
और फल कल कोई और ले गया। दरअसल आजकल केे युवा खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं रही है आजकल के युवाओं में यह बस अपने जाति के नेताओं के चक्कर में पड़कर अनर्गल एवं अनावश्यक मुद्दों का समर्थन करने लगे है जो किसी भी समाज के लिए हितकारी नहीं है। आजकल के युवा खुद गुटों में बट गए हैं और इन तथाकथित नेताओ के खातिर एक दूसरे से सिर फुटौव्वल , बिना तथ्यों के बहसबाजी और वाद - विवाद करने लग जाते हैं। हद तो तब हो जाती है जब एक दूसरे केेे घोर विरोधी नेता या राजनीतिक दल सत्ता में बैठने के लिए गठबंधन कर लेेते हैं और यह तथाकथित युवा नेता ताकते रह जाते हैं। फिर एहसास होता है कि हम युवाओं के साथ दगाबाजी हुई हैं पर इससे कोई सीख नहीं लेते और चले जाते हैं जूठन पत्तल चाटने के लिए।
बड़ा ही हास्यास्पद लगता है जब कोई अधेड़ उम्र या उम्रदराज का नेता कहता है कि "युवाओं को राजनीति से दूर रहना चाहिए" लेकिन ये वो क्यों भूल जाते है जब चुनाव सर पर आता है तो ये युवा ही प्रचार - प्रसार करते है तमाम राजनीतिक दलों के लिए किसी बूढ़े की बस बात नहीं है कि तपती धूप गर्मी में या कड़कती सर्दियों में जाके गांव - गांव घूम के पोस्टर चिपकाए। ठीक है युवाओं को राजनीति से दूर रहना चाहिए तो तमाम राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि अपने दल के नाम जोड़कर फलनवा युवा मोर्चा , ढिकनवा युवा संगठन भी बर्खास्त या समाप्त कर दे। आप देश के तमाम शिक्षण संस्थानों , विश्वविद्यालयो और महाविद्यालयों में जितने भी छात्र संगठन सबकी विचारधारा किसी न किसी राजनीतिक दल जुड़ी रहती है इससे भी मुंह नहीं फेरा जा सकता है। सभी छात्र नेताओं को समर्थन यही राजनीतिक दलों के लोग ही करते है सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए। मेरे ख्याल से ये सब भी बंद हो चाहिए क्योंकि जब कोई युवा छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव जीतते है तब इन्हीं माननीय लोगो पैर छूकर आशीर्वाद लेने जाते है और उन मित्रो या साथी छात्रों को भूल जाते है जिनके वजह से मुकाम पाए है।
क्या सिर्फ युवा तमाम राजनीतिक दलों के राजनीतिक रोटियां सेकने वाले को राजनीतिक बावर्ची है जिसका काम हो गया तो दुत्कार कर भगा दो? वो राजनीतिक दल जो समाजवाद के नाम पर अस्तित्व में आए पर हकीकत में कभी परिवारवाद से आगे बढ़ ही नहीं पाए वो देश चलाने की बात करते है और युवाओं को कहते है तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है। युवाओं का साथ देने वाली बात उस समय खारिज हो जाती है जब किसी काबिल युवा के स्थान पर किसी बड़े माननीय नेता के पुत्र को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाता है। बात पूरी तरह से साफ है खुद को युवा कह देने भर से अब काम नहीं चलने वाला है सोच और राजनीतिक समझ को मजबूत करना होगा वरना "युवा जोश कट्टर सोच" बस नारों में रह जायेगा। जातिवाद , पंथवाद क्षेत्रवाद आदि जैसे संकीर्ण दायरों से खुद मुक्त करना होगा और राष्ट्रवादी विचारधारा को अपनाना होगा जो रगो - रगो में राष्ट्रीयता का संचार करती है।
एकमात्र ऐसी विचारधारा जो सभी युवाओं को बिना किसी मतभेद के एक - दूसरे जोड़कर रखने का काम करेगी। युवक चाहे तो वो सबकुछ कर सकता है जो वो चाहे। संसार का इतिहास युवाओं से भरा हुआ है। युवक चाहे तो सरकार बदल जाए या तख्ता पलट कर दे। युद्धों का इतिहास उठा के देखिए बलिदानी युवाओं के रक्त से लथपत मिलेगा। भारत में भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु का बलिदान कौन भूल सकता है जो हसते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए ताकि भारत माता का उद्धार हो सके। इनके विचारो से सम्पूर्ण भारत में क्रांति की लहर जाग उठी लोगो के दिलो में उनके प्रति आदर और सम्मान और बढ़ गया। वर्तमान में देखे तो भारत में युवाओं की कोई कमी नहीं बस जरुरत है तो जोश जज्बा और जुनून की जो सिर्फ राष्ट्रवादी विचारधारा से ही उत्पन्न होगी। जिस दिन मन में ये भावना आ गई कि राष्ट्र से बढ़कर कोई नहीं है तो उस दिन युवाओं को राजनीति में कोई वंशवादी या परिवारवादी , जातिवादी आदि राजनीतिक दल चाह कर भी मात नहीं दे पाएगा। आज का युवा अगर कल को देश का बागडोर संभालना चाहता है तो उसे गुलाम मानसिकता को त्यागना ही पड़ेगा। अंत में यही कहना चाहूंगा उठो तुम युवा हो भारत देश के ,गहरी नींद से जागो अपने अंदर झाको और खुद के अस्तित्व को पहचानो।
वन्देमातरम!