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Saturday, October 3, 2020

एक उम्मीद की किरण जो जागी थी इस देश को बदलने की।

                         शिवम कुमार पाण्डेय



दिन बुधवार 17 अगस्त 2011, सुबह-सुबह अखबार पर ध्यान गया राष्ट्रीय सहारा पृष्ठ 9, "हजारे के साथ हजारों", पूर्वांचल भी खड़ा हुआ अन्ना के साथ" में हेडलाइन छपा था।
16 अगस्त 2011, मंगलवार सुबह वही हुआ जिसका अंदेशा था।अनशन से पहले ही दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे और उनके चार सहयोगियों को सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। फिर क्या था देश के विभिन्न हिस्सों में गिरफ्तारी के खिलाफ हो हल्ला शुरू हो गया हर जगह निंदा ,नारेबाजी, विरोध प्रदर्शन होने लगा, इस बीच खबर आई कि उन्हें 7 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इस पर लोगों ने कहा, '1975 में जैसे इमरजेंसी लगाकर सारे देश को बंधक बना दिया गया था आज वैसी ही स्थिति है'। पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में सुबह अन्ना की गिरफ्तारी की खबर मिलते ही जनाक्रोश भड़क गया क्या वकील, क्या नेता क्या, क्या सामाजिक कार्यकर्ता, क्या नौजवान, क्या महिलाएं, क्या छात्र क्या बच्चे, सभी उनकी गिरफ्तारी से आहत थे। इसी बीच एक वृद्ध ने कहा कि अगर आज जेपी यानी जयप्रकाश नारायण जिंदा होते तो व्यथित होकर यही कहते कि 36 साल में भी सत्ता का चरित्र नहीं बदला।

बात भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर हुई थी और देखते-देखते यह लोकतंत्र की हिफाजत के लिए संघर्ष और व्यवस्था में परिवर्तन के बड़े मकसद में तब्दील हो गई थी।सरकारी स्तर पर अन्ना को रोकने की जो कोशिश हुई उसका प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही तकाजा साथ तौर पर  अदूरदर्शिता का शिकार होते दिख रहा था।महिलाएं, छात्र तमाम अन्य तबकों ने सड़कों पर निकल कर जतला दिया था कि यह देश किसी सरकार और सत्ता पर काबिज पार्टी से ज्यादा उस परंपरा का है जिसे अहिंसक मूल्यों की गांधीवादी परंपरा कहते हैं।
अन्ना हजारों के रोल मॉडल बन चुके थे।सब के मुंह से अन्ना - अन्ना की आवाजें निकल रही थी एक उम्मीद की किरण जो जागी थी इस देश को बदलने की।
इनकी इस लड़ाई को इतिहास की लंबी यात्रा से जोड़कर देखा जा रहा था। लोक बनाम तंत्र की या विभाजक रेखा किसी दूसरे ने नहीं मात्मा गांधी ने खींची थी जब गोली खाने की पूर्व संध्या पर लिखे अपने आखिरी दस्तावेज में उन्होंने लिखा था 'लोकतंत्र के विकास क्रम में यह अवस्था आने ही वाली है जब लोक और तंत्र में सीधा मुकाबला होगा और उस मुकाबले में लोक की जीत हो इसकी हमें आज से तैयारी करनी है'।
26 जून 1975 की सुबह सूरज अभी आंख भी नहीं खुल पाया था कि इंदिरा गांधी ने सारे देश को जेल में बदल दिया था। पता नहीं यह क्यों है कि तंत्र अपने सारे काले कारनामे सूरज उगने से पहले ही करता है। 1942 में भी ऐसा ही हुआ था और गिरफ्तार गांधी कहां ले जाए गए देश को लंबे समय तक पता नहीं चला। 1975 में दिल्ली से जयप्रकाश को गिरफ्तार कर कहां ले गए किसी को पता नहीं चला। लेकिन लोक अपने पाले आई गेंद का पता कर लिया और फिर खेल कुछ यूं हुआ कि आजादी के बाद पहली बार केंद्र से कांग्रेसी सरकार का बिस्तर बन गया तब जो बंधा से आज तक बना ही हुआ है। अब जब तक उनका बिस्तर लगता है अभी तो दूसरों के सहारे।
अन्ना हजारे ने भी कदम कदम पर अपना आंदोलन जिस तरह खड़ा किया था इसमें इतनी दूर तक आने की संभावना नहीं थी।इस आंदोलन का असली काम तो यह था कि भ्रष्टाचार को पैदा करने वाली अवस्था बदलनी है। अन्ना का कहना था कि या लंबी लड़ाई है जिसे हमें सावधानी से लड़ना है दूसरी बात उन्होंने यह कहा कि जब किसी सरकार को उखाड़ दिया गिराने का आंदोलन नहीं बल्कि साफ शब्दों में भी बोले कि इनको गिराकर क्या होगा जो आएंगे वह कैसे हैं यह भी तो हम देख रहे हैं। सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। इस आंदोलन की आड़ में जो अपनी राजनीति की छोरियां तेज कर रहे थे उन्हें सीधी चोट थी।लेकिन वह यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे यह भी कहा कि अगर सरकार इस आंदोलन का गलत ढंग से मुकाबला करेगी तो जाएगी और इस तरह जाएगी तो मैं उसकी फिक्र नहीं करता हूं। देश जिस तरह जाग उठा है, उसके बाद दो ही बातें होंगी या तो सरकार अपना रवैया बदले गिया सरकार ही बदल जाएगी। अब चुनना सरकार वालों का है।उन्होंने कांग्रेस के दुष्प्रचार का सीधा जवाब दिया कि "अन्ना हजारे संसद की सर्वोपरिता को नहीं मानते हैं।" हम उसे पूरी तरह मानते हैं उसका पूरा सम्मान करते हैं, कानून बनाने के उसके अधिकार को भी स्वीकार करते हैं।

ऐसी तमाम बातें उस दौर में हमें सुनने और देखने को मिला उस वक्त केजरीवाल किरण बेदी और विपक्ष के तमाम लोग अन्ना हजारे समर्थन में खड़े दिखे। लोगों में आक्रोश था कांग्रेस को लेकर जो 2014 के लोकसभा में कांग्रेस के लिए काल बन के आया अब सत्ता भाजपा के हाथ में आ गई । इससे पहले अन्ना के चेले अरविंद केजरीवाल उसी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई जिसके विरोध इन्होंने जंग छिड़ी थी हालांकि यह सरकार 49 दिनों में ही गिर गई। इससे पहले 2013-14 विधानसभा के चुनाव में केजरीवाल ई आम आदमी पार्टी को 28 सीट कांग्रेस को आठ और भाजपा को 24 सीट मिली थी। कांग्रेस की 15 साल से शीला दीक्षित सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा। केजरीवाल ने हर वह काम किया है जो उन्होंने चुनाव से पहले वादा किया था कि नहीं करेंगे। यह उनका राजनीतिक चाल था इसके बाद अन्ना हजारे का महत्व खत्म हो गया सब जान गए थे किन का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है यह भी कोई दूध के धुले नहीं। यह सब के सब बरसाती मेंढक हैं और कुछ नहीं। ऐसी तमाम प्रतिक्रियाएं हर तरफ से आ रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद इनका जन लोकपाल बिल वाला आंदोलन शांत सा हो गया। कुछ कांग्रेसियों का कहना था सब एक बहाना था कांग्रेस को पूरी तरह से खत्म करने के लिए। जिसमें यह सफल में हुए नतीजा 2014 लोकसभा चुनाव। ऐसी तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा अन्ना को। केजरीवाल आज के दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हुए पूर्ण बहुमत के साथ और अन्ना तो मानो जैसे गुमनामी में जी रहे हैं।

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