इन सबके बीच तो एक बात तो ही भूल ही गए जो गांव देहात में स्टाइल मारने वाले हर लौंडे पर सटीक बैठता है " बाप जिए अंधेरा में लइका बने पॉवर हाउस" वाह रे जिंदगी का कवनो ठिकाना कब कौन बाजी मार जाय..!
एक फिल्मबाज चचा मिल गए राह चलते हुए लगे अपनी कहानी बया करने की एक जमाना था जब सिनेमा हॉल में कवनो फिलम नही छोड़ता था आज देखो दो वक्त की रोटी के लिए जद्दो-जेहद करना पड़ रहा है। मास्टर जी कहते थे बेटा पढ़ लो लेकिन हमको हमारे बड़का घराने के होने का घमंड था लेकिन जमाना एक सा नही रहता बदल जाता है। हमहु बोले अरे चचा छोड़ो सब ना तो वो अब सिनेमा हाल ही रहा वो पार्टी का दफ्तर बन गया दुकान खुल गई और और ना ही मास्टर साहब मास्टर रह गए मास्टर साहब तो अब प्रिंसिपल बन गए है। बाकी आप अपने बाप दादाओं की जायदाद पाकर अय्याशी किए जिंदगी भर और अभी कौन सा आप किसी से कम खेत परती छोड़कर और अधिया देकर नल्ले घूमेंगे तो भूखे ही मरेंगे न.... इतना कहना ही था कि चचा ताव में बोल पड़े का जमाना आ गया है आजकल का लड़का सब जबान लड़ाने लग गए है बात करने का लहजा भुला गए है..। अब सच तो कड़वा ही लगता है लोगो को चाहे इस जमाने के हो या उस जमाने के अपनी काली हकीकत सबको बुरी लगती है। चचा तो फिलमबाज थे पर आजकल के लौंडो को क्या हो गया है वो तो एक दम से "चिलमबाज" हो गये है और जाते फिरते है "दम मारो दम मिट गए हम, लगाओ सुबह शाम दस बोतल रम" जमाना है भइया जमाना क्या सकते है ..! एक जमाना तो "पुरब के ऑक्सफोर्ड" का भी था जब यहां से कलेक्टर निकलते थे लेकिन आज चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनने की होड़ लगी हुई है..! पहले कहा पीसीएस का फॉर्म भरना ही बेइज्जती मानते थे सब भरते भी तो तो छुप छिपाकर आईएएस से नीचे बात ही नही होती थी। लेकिन तब का ऑक्सफर्ड अब खस्ताहाल हो गया है। मरे हुए शहर की रंगत थी तो यूनिवर्सिटी से ही वर्तमान में तो विरान हो चला है। ये भी एक जमाना है जहां छात्रों को सिर्फ सरकारी नौकरी से ही कमाना है। हमारा क्या है हमे तो पहले से ही जमाने ने ठुकराया है बाकी बचा खुचा जो उससे था उसने भी औकात दिखा दी बोली दूर रहो मुझसे मैने भी कह दिया अगर तुम मिल जमाना छोड़ दूंगा मैं....!
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी🙏🌻
DeleteWaaah
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