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Wednesday, November 22, 2023

मैच जिताने में ऑलराउंडर की बड़ी भूमिका होती है

अभी अभी विश्वकप खत्म हुआ हैं। लोगो की भावनाएं आहत हुई है। करीब 20 साल बाद भारत और आस्ट्रेलिया आमने सामने थे फाइनल में इस बार टॉस जीतकर बॉलिंग की ऑस्ट्रेलिया ने पिछली भारत ने की थी जैसे लेकिन कोई फर्क नही पड़ा नतीजा वही निकला 6 विकेट से ऑस्ट्रेलिया ने मैच को जीत लिया। रोहित शर्मा ने जो शॉट खेला था उसके लिए वो जब तक जीवित रहेंगे तब तक खुद को गालियां ही देंगे... कैसे यार मुझे रुकना चाहिए था.... एक दम से 1983 में जैसे सर विवियन रिचर्ड्स ने खेला था और कपिल देव ने कैच पकड़ा था उसी तरह से रोहित शर्मा ने खेला और हेड ने कैच पकड़कर खेल पलट दिया। बात यही नही खतम नही होती है हमने एक ऑलराउंडर खेलाना जरूरी नहीं समझा, सूर्या को खेलाना बेकार ही फैसला था वो बॉलिंग भी नही करा सकता है.. हार्दिक पांड्या का घायल को बाहर होना खल गया लेकिन इतने बड़े देश क्या कोई ऑलराउंडर नहीं मिला बीसीसीआई को.. हद है अश्विन को बाहर बैठा कर रखा फाइनल में शार्दुल भी नही खेला चलो ठीक है कम से कम यार प्रसिद्ध कृष्णा को तो खेला सकते थे। पार्ट टाइमर कोई नहीं था भारत में जिसका डोमेस्टिक में बॉलिंग रिकॉर्ड बढ़िया हो और अच्छा खासा ओवर निकाल ले।

2007 का T20 ,2011 हो या 2013 का चैंपियन ट्रॉफी  हम तभी जीते जब खिलाड़ी बदलते गए पिच के हिसाब से विनिंग कांबिनेशन जैसा कुछ नही होता है। Constant कुछ भी नही होता है... सचिन सहवाग तक बॉलिंग करके ओवर निकाल लेते थे जब टीम जरूरत पड़ती थी तो। युवराज रैना जैसे ऑलराउंडर अब नही दिखते है टीम। भले ही फास्ट बॉलिंग ऑलराउंडर नही थे लेकिन टीम संतुलित थी इन स्पिन फेंकने वालो से। शर्म की बात है की टीम में कोई ऑलराउंडर नही है अगर जडेजा को आप बल्लेबाज मानते है तो आप आईपीएल ही देखिए वही सही है आपके लिए... Individual records बनाने में सब लगे ही थे और बनने भी चाहिए.. लेकिन दबाव में खेलने वाला गंभीर बड़ा याद आया यार...इस विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया की टीम आप देख सकते है ऑलराउंडरों और पार्ट टाइम गेंदबाजों की कमी नही थी। मानते है हमने 10 दस मैच लगातार जीते लेकिन सामने 5 बार की चैंपियन थी जो कभी हार नही मानती है अफगानिस्तान के खिलाफ मैक्सवेल के दोहरे शतक बता दिया था की हम हारने वालो में से नही है। कहते है न सब अच्छा हो रहा तो गलत चीजे दिखनी बंद हो जाती है लोगो को वही हुआ है आलोचना किसी को पसंद नही आजकल वैसे भी आलोचना करने वालो का रिकॉर्ड चेक करने लग जाते है आजकल के तथाकथित प्रसंशक लोग। बिना ऑलराउंडर के खेलेंगे तो खामियाजा भुगतना ही था एक न एक दिन ।

2011 भारत विश्वकप टीम में धोनी और गंभीर को छोड़ सारे खिलाड़ी लगभग ठीक ठाक गेंदबाजी कर लेते थे।
1996 की श्रीलंका की विश्वकप टीम में महानामा और कालुविथर्ना को छोड़ सब गेंदबाजी कर सकते थे।
87 की विश्वकप ऑस्ट्रेलिया टीम में 8-9 गेंदबाजी कर सकने वाले लोग थे। ये विश्वकप भारत में हुए थे।

 एक बात और विव रिचर्ड्स महान थे और रहेंगे जब दुनियाभर के बड़े क्रिकेटर 60 की स्ट्राइक से वनडे खेलते थे और उसे बेस्ट कहते थे तब विव रिचर्ड्स की 90+ स्ट्राइक थी इतना ही नही तेज गेंदबाज भी थे फिल्डिंग में तो लाजवाब एक दम 3d खिलाड़ी बिना हेलमेट के उस समय के तेज गेंदबाजो को पानी पिला देते थे... महानता ये नही की आपने अपने करियर में क्या किया.. आपने विश्व कप जितवाया की नही अपनी टीम को इसमें में है..!

6 comments:

  1. आपके विचारों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। फ़ाइनल मैच में अश्विन को न खिलाना एक रणनीतिक भूल थी। 1983 की विश्व विजेता भारतीय टीम में तो हरफ़नमौला (ऑलराउंडर) खिलाड़ियों की भरमार थी जिन्होंने भारत को ऐतिहासिक विजय दिलवाई। विवियन रिचर्ड्स के विषय में भी आपकी बात सही है कि उनकी महानता के आसपास भी आज का कोई खिलाड़ी नहीं पहुंच सकता। उनके ज़माने में तो गेंदबाज़ी तथा क्षेत्ररक्षण पर कोई प्रतिबंध भी नहीं होते थे। फिर भी वे धुआंधार बल्लेबाज़ी करते थे और अच्छे-से-अच्छे गेंदबाज़ को सबक़ सिखा देते थे। वे पार्ट-टाइम स्पिन गेंदबाज़ भी थे।

    समय मिले तो इसी संदर्भ में मेरा निम्न लेख पढ़ें:

    https://jitendramathur.blogspot.com/2021/01/blog-post_47.html

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    1. हा सर धन्यवाद आपका। सही कहा आपने आजकल आईपीएल से खिलाड़ी उठा लिए जाते है जिनकी तुलना एबी डिविलियर्स Mr 360 से की जाती है। रणजी ट्रॉफी के खिलाड़ी कही विलुप्त से हो चुके है ....🏏🐼

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  2. सहमत आपकी बात से ... बहुत ज़रुरी है आल राउन्डर का होना ...

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  3. ऑलराउंडर की बात ही निराली है।

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