विश्वविद्यालय में गंध मचाने वाला विचाराधारा की बात करता था अपने क्षेत्र में पीटे जाने के बाद यकायक उसकी विचारधारा को लकवा मार गया लाल सलाम करने वाला अब कहता है "डरो मत". अरे इतने बड़े क्रांतिकारी है, विचारों में परिवर्तन तो आना ही था। हास्यपद तो ये रहा की इसकी तुलना भगत सिंह से करने लग गए थे सब, स्तर इतना गिर गया है राजनीति में की क्या ही बोला जाय? कुछ तथाकथित छात्र संगठनो का कहना था की ये देश का अगला प्रधानमंत्री होगा , सिंगरेट फूंकते कुछ छात्र इसे अपना हीरो बना लिए थे...वैसे भी आजकल सोशल मीडिया का जमाना है हर कोई चमका जा रहा है या चमकाया जा रहा है। तथाकथित पत्रकार महोदय लोग इसीलिए रखे गए हैं। संघर्षों की ऐसी कहानी सुनाएंगे और लिखेंगे की उसे देखकर इनके मालिक को भी लगता है ये मैने कब किया? एक जर्मन शेफर्ड है वो रह रहकर भोंकता रहता है और खुद की तुलना उसने नेताजी सुभाषचंद्र बोस से कर दी थी वो भी जर्मनी रहकर फांसीवादी सरकार का विरोध काट रहा है ... अरे बुड़बक वो नेताजी ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लिए थे,ये देश की जनता की चुनी हुई सरकार है... यार कितना भौंकता है ये जर्मन शेफर्ड इसे देखकर रास्ते में लगा बोर्ड पर लिखा "शराबी कुत्तों से सावधान" याद आ जाता है..!
बाप के नाम पर मुख्यमंत्री बनने वाले को लगता है की वो बहुत बड़े जमीनी नेता हैं और उनके आगे कोई है ही नहीं। खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने वाले आत्मुग्धता में डूबे हुए हैं। बाप को जिन्होंने लाठी लाठी पिटवाया था उनके साथ जुड़ जाए इतना ही नही बाप जिसको मेहरारू बनाने पर तुले हुए थे उसको बुआ बना लिए बस यही राजनीति है। भले विदेश में जाकर इंजीनियरिंग पढ़ा हो इन्होंने लेकिन सोशल इंजीनियरिंग में पूरे फेल दिखे है। कहा क्या कब बोलना चाहिए शहुर नही सीखे फुल पप्पू को टक्कर दे रहे है..! ऐसा समाजवाद हावी है इनके ऊपर की ये आतंकियों और माफियाओं के कब्र पर फातिहा पढ़ने निकले जाते है हद तब हो जाती है जब "अज्ञात हमलवार" द्वारा मारे जा रहे भारत विरोधी तत्वों पर सवाल उठाने लग जाते है ... ये हर जगह हर मुद्दे पर बोलने लग जाते है बाते ऐसा करेंगे जैसे उनकी पार्टी क्षेत्रीय नही बल्कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। जमीन से उखड़ते जा रहे है उखड़ चुके है बल्कि ये लेकिन कोई सुधार नहीं आया है इनमे जस के तस अहंकार में डूबे हुए है।
यही हाल नौवीं फेल का है। इस नौवीं फेल को लगता है कि इसका आईक्यू लेवल भारत के पढ़े लिखे लोगो से ज्यादा है। बाप चारा खाकर जेल चल गया और ये गरीब गुरबा बनते है। मूस मारने वाला कहानी तो सबने सुना ही होगा आजकल तो गरीब गुरबा मटन मुर्गा मारकर खाता है , हवाई यात्रा करते हुए आकाश में जल का फल निगलता है वो भी नवरात्रि के दिन वीडियो डालता है, सावन में तथाकथित दत्तात्रेय ब्राह्मण के साथ मटन वाली तस्वीरें सब देखे ही होंगे, अब जनता का खून नही पी पा रहे है तो यही सही। बाकी लालटेन में मिट्टी का तेल हो तो अपने पृष्ट भाग में डालकर जो कीड़ी है उसे मार सकते है बड़ी राहत मिलेगी।
एक वर्ग ऐसा है जिसे बात- बात पर विरोध प्रदर्शन करना होता है। होता इनसे कुछ नही है सिवाय बकइती के लेकिन ज्ञान दुनिया भर का देंगे। बोलेंगे ऐसे मानिए सरकार ने सबसे बड़ा अन्याय इन्ही के साथ किया है क्योंकि ये फलाने जाति से ताल्लुक रखते है। खुद को राजवंश और बड़े घराने का खून बताने वाले ये तथाकथित लोगो का अलग ही रोना है। अरे यार अगर सर्वश्रेष्ठ बनने का दंभ भरते हो तो बना लो पार्टी और कूद पड़ो राजनीति में कौन रोक रखा है तुम्हें..? उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय तथाकथित ब्राह्मणों पर अत्याचार हो रहा था और लोकसभा में इन तथाकथित राजपूतों पर होने लगा है... हद है लालू मुलायम जैसे भी थे अपनी पार्टी बनाकर बड़े नेता बने न.. आप भी बन जाओ ये लोकतंत्र है, चलने चलाने का हुनर होना चाहिए। पैदा होते ही कोई सत्ता नही पा जाता है । विरोध करने की भी एक सीमा होती है , मजहबी लोगो को अपना बाप बनाएंगे तो गाली ही सुनेंगे । वो विदेशी कोख से जन्मा बोलता है कि "राजाओं-महाराजाओं का राज रहा। जो भी वो चाहते, कर देते थे। किसी की जमीन चाहिए तो उसे हड़प लेते थे। कांग्रेस पार्टी और हमारे कार्यकर्ताओं ने देश की जनता के साथ मिलकर आजादी प्राप्त की, लोकतंत्र लेकर आए और संविधान दिलवाया। फिर चाय वाले ने प्रतिक्रिया व्यक्त की तो धुआं धुआं हो गया "शहजादे ने तो राजा-महाराजा को बुरा-भला कह दिया। लेकिन भारत के इतिहास में जो अत्याचार नवाबों ने किए, सुल्तानों ने किए.. उनकी बात पर तो शहजादे के मुंह पर ताला लग जाता है।"
वैसे कांग्रेस बनी कैसे थी ? कांग्रेस की स्थापना ही क्यों हुई थी? मुझे नही पता पर एक जगह पढ़ा था की "ऐ लन ऑक्टेवियन ह्यूम इटावा के ब्रिटिश कलेक्टर थे और १८५७ में भारतीय क्रांतिकारियों से बचने के लिए मंदिर में छिपे थे और फिर वहाँ से साड़ी पहन के भागे थे। इन्होंने एक संगठन की स्थापना की ताकि १८५७ जैसी ब्रिटिश विरोधी स्थिति पुनः ना उत्पन्न हो और ब्रिटिश सरकार के वफ़ादार नेताओं का एक संगठन बनाया। उस संगठन का नाम कांग्रेस था। क्या ही बोला जाय ये दूसरो पर लांछन लगाते है जिनका खुद का इतिहास ही काला और गंध से भरा हुआ है। तमिल नाडू में अपने बाप के हत्यारों के साथ मिलकर सरकार बना लेना ही तो राजनीति है।
वामपंथियों को कितना भी गरियाया जाय नही सुधरने वाले है। पहले तो इनका अस्तित्व ही नही बचा है ले देकर केरल में ही सिमट चुके है वो भी न जाने कब चला जाए हाथ से..! इनको कभी प्रश्न नही देखा हू पिछले कई सालों से राड़ की तरह छाती पीट रहे है। कॉमरेड गांजा फूंकने के बाद विश्वविद्यालय में फिलिस्तीन बचाओ की राजनीति करते हैं। इस समय तो छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का ताबड़तोड़ ठुकाई हो रहा है उसे लेकर इनके दिल में जो दर्द करारा उठ रहा है देखने लायक है.. ये प्रजाति ही ऐसी है जिसे जबतक पीटा जाय शांत नही रहते है कुछ न कुछ खुरपात करते ही रहते है.. पप्पू भी लगता है इन्ही लोगो से अपना मेनिफेस्टों इन्ही लोगो से लिखवाया होगा। लेफ्ट लिबरल की विचधारा रखने वाले कहते है "धर्म अफीम का नशा है" लेकिन जब बात इस्लाम की आती है तो तथाकथित सेकुलर लिबरल मुस्लिम लेखक बुद्धिजीवी पत्रकार आदि मजहबी कट्टरपंथ वाला रंग अपना दिखाने लग जाते है। देश के संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक है कहने वाले पूर्व प्रधामंत्री मनमोहन सिंह हंस के वेश में बगुला हैं, मोदी जी कहे थे न एक बार "डॉ साहब रैन कोट पहनकर नहाते थे"। एकबार फिर से यही बात बोलकर पूरे विपक्षी में खेमे में भूचाल ला दिया है और विपक्ष पूरा मौका देने से चूक नही रहा है। हिंदू शरणार्थियों के लिए संसद में रोकर भागने वॉक आउट करने वाली हिडिंबा का क्या ही कहना? रंग बदलने में गिरगिट से भी आगे निकली। आने वाले समय में इसका और इसके पार्टी का हाल वामपंथियों से भी बुरा होगा तब तक कर ले हम्मा हम्मा रंभा बंबा..!
चुनावी विश्लेषण वाले तथाकथित पत्रकार 4 जून को मातम मानते हुए नजर आएंगे फिलहाल प्रेशर कुकर की सीटी वाला काम रहे है वरना कुकर तो फट ही जाएगा..! मन की शांति के लिए विरोधी इन्हें पढ़ते है और इनके यूट्यूब चैनल पर जाकर देखते हैं। यकीन मानिए दो जून की रोटी तक नही पचेगी इन खलिहर खैरातियो से कर ले बकइती जितना करना आखिर में यही सब करने का तो खैरात मिलता है। बाकी कोई नही टक्कर में चाय वाला फिर से आ रहा है पूर्ण बहुमत में .. चाय वाला चौकीदार बना था पिछले चुनाव में इस साल परिवार बन चुका है सबका और देश जिसका परिवार बन के खड़ा हो गया हो उसे कौन रोक सकता है ..!
Commendable Satire!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 06 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआपका बहुत आभार आदरणीय यशोधा जी🌻🙏
Deleteसटीक
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद गुरु जी 🌻
Deleteअपनी अपनी बुद्धि के हिसाब से सबको सब समझ में आता है l वैसे हम अपने घर के अंदर के झगड़ों को कभी साझा नहीं करते हैं l बाहर निकलते है और मुस्कुरा देते है l :)
ReplyDeleteसही कहा सर आपने।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद धन्यवाद सर।
Deleteचुन चुन के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
ReplyDeleteलाजवाब ओवरटाइम।
धन्यवाद रूपा जी।
Deleteये सर्कस है कुछ और दिनों का...लोकतंत्र को बहुत मँहगा न पड़ जाए..बस इतनी तमन्ना है....काम करने वाले काम करते रहेंगे....उन्ही के कंधों पर राष्ट्र टिका है.
ReplyDeleteधारदार.
शुक्रिया। सही कहा आपने । बाकी स्वागत है आपका राष्ट्रचिंतक ब्लॉग पर।
Deleteअतिसुन्दर लेख है । शब्दो का सही चुनाव किये है ,🎉
ReplyDeleteसार गर्भित और विचारणीय आलेख .... कुछ लोगों की रोज़ी रोटी ऐसे ही चलती है और उनके लिए पेट भरना ही जीवन है ... कमाई जैसे भी हो ...
ReplyDeleteहा, सहमत। आपका बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteसार्थक एवं चिंतनपरक लेख
ReplyDeleteजी धन्यवाद सर🌻
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