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Thursday, May 21, 2020

घर, गांव और पंछी

           (1)
माटी और खपड़ैल का घर
हम सोते थे इसकी छांव में
अब नहीं दिखता है गांव में
इट के पक्के मकान हो गए
अक्सर याद आती है  मिट्टी
इसकी खुशबू से दूर हो गए
 
          (2)
टिकरी बतासा गोरस ताजा
गांव में आता है बड़ा मजा
गांव से भारत जाना जाता
इसकी कुछ बात निराली
यहां हरियाली ही हरियाली

           (3)
उड़ा पंछी नील गगन में
चैन आया उसके तन में
आजाद होकर पिंजरे से
ली उसने चैन कि सांस..
कौन जीना चाहे कैद में
सबसे प्यारी खुली हवा


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