पढ़ने लिखने के उम्र में जो राजनीतिक पार्टियों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते है फिर वो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते है। ये 19-25 उम्र होती है पढ़ो लिखो और जानकारी लो। पर इसको मानता कौन है? कुछ विद्वानों की 2-4 बाते पढ़कर , आधी अधूरी जानकारी लेकर आपस में भिड़ जाते है! इससे समाज को भी गलत दिशा मिलती है , बीमार हो जाता है, समाज में कभी भी ऐसे लोग खुश नहीं रहते हैं। जब देखो तब लड़ते झगड़ते हुए मिल जाएंगे अंत में होता क्या है ? सबको एक दिन श्मशान घाट पे जाना है!
एक बहुत बड़ी खूबी देखिए समाज की केतनहू नीच और गुंडा माफिया किस्म के व्यक्ति जब मर जाता है तो सब बात करते हुए उसकी बुराई नहीं अच्छाई ही बतीयाते हुए मिल जाएंगे "अरे बहुत बढ़िया आदमी था" मर गए बेचारे भले अपने बाप को लतियाते थे पर बहुत सही आदमी थे!
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