इसके उलट इस देश में एक और धर्म है जिसकी भावनाएं आहत नहीं होती, उस धर्म का अपमान करने पर आप "प्रगतिशील व्यक्तित्व" के धनी माने जाते हैं, इस धर्म का अपमान करना "अभिव्यक्ति की आजादी" माना जाता है, बुद्धिजीवी वर्ग, राजनीतिक लोग, मिडिया, न्यायालय भी इस धर्म के अपमान को अपमान नहीं मानता है, इस धर्म के आराध्यों को काल्पनिक कह दिया जाता है, इस धर्म के अपमान पर गला या जुबान नहीं काटा जाता है, इस धर्म के बारे में वो भी ज्ञान दे सकता है जिसने कभी इस धर्म में विश्वास भी नहीं किया हो, इस धर्म के बारे में बात करने पर देश में महंगाई, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था सब बढ़ने और गिरने लग जाते हैं और यह धर्म है "हिंदू"
वैसे भी हिंदू धर्म का अपमान होना ही चाहिए, इस धर्म के लोग अपने भगवान के नाम पर ही शराब से लेकर बहुत सारी नशा कर जाते हैं तो इस देश में "मां काली के अपमान" से भावनाएं आहत हो भी जाएं तो क्या?
पहले आप बंद कीजिए भगवान के नाम पर नशा करना फिर आपकी भावनाएँ आहत करने का प्रयास कोई नहीं कर पाएगा और हो सके तो अपने संस्कृति, धर्म को थोड़ा जानिए, समझिए और बचाइए वरना आप भी "तलवारों की नोक पर सलवारें" पहनना शुरू कर देंगे.....
सबको जागईए...
लेखक:- कृष्णकांत उपाध्याय
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक 4485) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत आभार सर❤️🌻🙏
Deleteबहुत बढ़िया कहा अनुज 👌
ReplyDeleteसादर
जी आपका बहुत आभार ❤️🌻🙏
Deleteसच को उजागर करता,अच्छा आलेख
ReplyDeleteआपका बहुत आभार सर❤️🌻🙏
Deleteकड़वा सच यही है शिवम जी। कुछ लोगों में दोगलापन कूट-कूट कर भरा है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।
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