विद्रोही जो स्वर्ग की सत्ता के विरुद्ध,
उंगली पर पर्वत उठाए खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो कंश के अत्याचारों के विरुद्ध
उसके ही नगर में जाकर खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो स्त्रियों की मुक्ति के लिए
जरासंध के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो स्त्री के सम्मान के लिए
कुरु साम्राज्य के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो प्रेम के लिए सामाजिक
रूढियों के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो मटकियां फोड़ता था
नगर जाते गांव के दुग्ध को रोकने के लिए।
विद्रोही नही जाते हैं वन में
वर्षों तप करके किसी
रहस्य को जानने के लिए
विद्रोही समाज मे रहकर ही ख
ड़े हो जाते हैं उसके सुधार के लिए।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआपका बहुत आभार आदरणीय यशोदा जी🙏🌻
Deleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद सर।
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी।
Deleteबहुत सुंदर, कृष्ण को सही और अनोखे ढंग से परिभाषित किया है आपने
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद अनीता जी स्वागत हैं आपका ब्लॉग पर🌻
Deleteसार्थक और सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सर आपका। हमारे बड़े भईया ने लिखा है।
Deleteनमन है ऐसे विद्रोहियों को ... कृष्ण अपनाप में जीवन हैं, माया है, यथार्थ हैं ...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने।
Deleteनमन।