Wednesday, June 9, 2021

वैक्सीन पर राजनीति

क्यों रे गोलू ! बड़ा भोलू बन रहा है। वैक्सीन लगवाया की नही? गोलू- लगवा लिया भइया अभी दूसरा डोज लेना बाकी है। वाह तू तो बड़ा चालू निकला गोलू बिल्कुल ठीक किया यही एकमात्र विकल्प है कोरोना से लड़कर जितने के लिए। कुछ लोग तो कह रहे थे की हम नही लगवाएंगे भाजपा की वैक्सीन है! अब वैक्सीन भी राजनीतिक दल वाले बनाने लग गए क्या? हद होती हैं किसी चीज की अफवाह फैलाए की इसको लगाते ही इंसान नपुंसक होय जावेगा। 
देश के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों को भी इन तथाकथित लोगो ने नही छोड़ा। जब पूरी दुनिया इस महामारी से जूझ रही है तब यही भारत देश के वैज्ञानिकों और चिकित्सको ने मोर्चा संभाला है कोई राजनीतिक दल का कार्यकर्ता इलाज नही कर रहा है। दो चार बैनर और पोस्टर लगाकर समाजवाद का नारा देने वाले लोगो के रगो में जातिवाद का जहर दौड़ता हैं। तभी तो वैक्सीन को लेकर तपाक से बोले पड़े "बीजेपी वैक्सीन लगाएगी  उसका भरोसा करू मैं ? अपनी सरकार आएगी सबको मुफ्त में वैक्सीन लगेगी। हम बीजेपी का वैक्सीन नही लगवा रहे है।" भला बताओ जरा ये उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके है  बाते मूर्खो वाली करते है।

खैर बाप ही के पास बेटे का इलाज है। पूर्व रक्षा मुलायम सिंह यादव ने टीका लगवा लिया हैं और अपने पुत्र को ये संदेश दिया है कि टीका लगवा लो जिंदा रहे तो बहुत राजनीति होगी। बाप के टीका लगवाने और प्रधानमंत्री के भाषण के बाद फिर इसपर साहब का बयान आया की- "जनाक्रोश को देखते हुए आख़िरकार सरकार ने कोरोना के टीके के राजनीतिकरण की जगह ये घोषणा करी कि वो टीके लगवाएगी। हम भाजपा के टीके के ख़िलाफ़ थे पर 'भारत सरकार' के टीके का स्वागत करते हुए हम भी टीका लगवाएंगे व टीके की कमी से जो लोग लगवा नहीं सके थे उनसे भी लगवाने की अपील करते हैं ।"
शायद इसी को थूककर चाटने वाली राजनीति कहते है। समाजवाद के नाम पर जातिवादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले समाजवादियों का झंडा फट कर चरर  हो चु जीका है। इनका काम नही कारनामा बोलता है। इनके युवा समर्थक कहते है "कहा हो अखिलेश यूपी बुलाती है" और तो और नारा लगाया जाता है "22 में बायसाइकिल" का जो महज एक ख्याली पुलाव है।

 इतना ही नही सपा के सांसद एसटी हसन का बेतुका बयान देते है की बीते 7 वर्षों में शरीयत में छेड़छाड़ हुई, तभी आई आसमानी आफत..! एसटी हसन ने कहा कि "इन सात सालों में जनता का जो हश्र हुआ है, वो किसी से छिपा नहीं है।पिछले सात सालों में भाजपा सरकार ने कई कानून बनाये हैं. जिनमें शरीयत के साथ छेड़छाड़ की गई। नागरिकता कानून बना दिया गया, जिसमें सिर्फ मुसलमान को नागरिकता नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस सरकार के ऐसे कामों से जो नाइंसाफियां हुई हैं, इसके चलते ही देश में 10 दिन के अंदर दो बार बड़े तूफान आए। आसमानी आफत आई और कोरोना के चलते हजारों लोगों की मौत हो गई।" ये सब  बकवास सुनकर तो यही लगता है की समाजवादी पार्टी का नाम बदलकर नमाजवादी पार्टी कर देना चाहिए हद से हद क्या होगा सपा से नपा कहलाएंगे बाकी नप तो ये वैसे भी गए है।  

Tuesday, June 1, 2021

कुछ लोगो का तो काम ही है ज्ञान झाड़ना


कुछ लोगो को कुछ नही मिलता हैं तो ज्ञान झाड़ने लगते है दूसरो के सामने मानो जिस विषय के बारे में बता रहे है उसमे Phd करके बैठे हो। दुनिया में कोई भी घटना घट जाय ये हर विषय के एक्सपर्ट बनते है चाहे अर्थव्यस्था का मुद्दा हो , युद्धनीति हो या विदेश नीति हर मुद्दे पर ज्ञान झाड़ते है। ये लोग हर जगह मिल जायेंगे चाय वाले के दुकान से लेकर विश्वविद्यालय की कक्षा में यहां तक कि शादी समारोह में भी खाने के समय पूछ देते है ये जो सलाद खा रहे हो इससे कौन सा विटामिन मिलता है? मतलब जीव विज्ञान के भी जानकार बनने लग जायेंगे या कह लीजिए डॉक्टर से कम जानकार  थोड़ी न समझते है खुद को !  चावल उठाकर प्लेट में डालने ही वाला रहता हु की तभी कोई पूछ देता है धान का कटोरा किसे कहते है? अरे इस सरकार की  दाल नही गलने वाली अगले चुनाव में। पुड़िया कम  खाओ वरना वजन बढ़ जाएगा ये कहने वाले भी मिल जाते हैं मानो वो बहुत बड़े एथलीट हो।

विश्वविद्यालय में तो कहिए ही मत बहुत से छात्र अपने को क्रांतिकारी  समझने लगते है जबतक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का क्लास चलता है। खुद को भगत सिंह समझने लग जाते हैं सब भले ही उनके बारे में कुछ ना पढ़े हो। वही सुनी सुनाई बातो पर विश्वास कर लेना एक बहुत बड़ी बीमारी है। एक लेख है भगत सिंह का "मैं नास्तिक क्यों हूं?" बस इसके बारे में सब जान गए और सब खुद को जी जान से नास्तिक बनाने  में लग जाते है। कोई कह दिया भगत सिंह तो मार्क्सवादी थे तो फिर मार्क्सवादी बन गए। अरे भगत सिंह तो लेनिन की किताब पढ़ रहे थे हम भी लेनिन के सिद्धांतो पर चलेंगे और वामपंथी बनेंगे। इन मूर्खो को कौन बताए की भगत सिंह तो गीता और रामायण भी पढ़ते थे। कुछ अपने को माओ और चे ग्वेरा समझते है। स्टालिन बनने की ख्वाहिश में पूरा जिंदगी बर्बाद कर लेते है। ये सब के सब ज्ञान देते है दूसरो को की तुम सोए हुए युवा हो या नागरिक हो और खुद गांजा फूंकते हुए कैंपस में मिल जायेंगे।

अपना काम तो होता नहीं है इन लोगो से पर दुनिया भर का ज्ञान झाड़ते है। दो चार लेख और अखबारों को पढ़कर ये रक्षा
विशेषज्ञ बनते है। पूरा इतिहास और भूगोल का ऐसा ज्ञान देंगे की मानो इन्हे लड़ने के लिए भेज दिया जाए तो जीतकर आएंगे। वो अलग बात है कि सौ मीटर दौड़ने में हाफ जाते है। उलुल- जुलूल ज्ञान झाड़ना अलग बात है और काम करना अलग बात है। मुझे तो ये बात आजतक नहीं पता चला कि की इतना ज्ञान लाते कहा से है? गलत और अधूरी जानकारी को ये ग्रहण करके अपने सामने दूसरों को ये तुच्छ समझते हैं। इनकी जानकारी जाकारी और सामने वाले की महामारी!
हद है! दूसरो की सत्य बाते इनसे पचती कहा  है?  कुछ तो ऐसे इतिहास के जानकार मिलते है जिनका कहना है कि हिंदुओ ने भी नरसंहार किया है ! ज्ञान झाड़ने की इस लड़ाई में कोई किसी से पीछे नहीं रहता है। वाद-विवाद का एक अलग ही दौर चल पड़ा है इस इंटरनेट के जमाने में।कोई जानकारी लेनी है इंटरनेट पर आसानी से मिल जाता है कुछ एक क्षणों में। वही से दो चार लाइन जान जाते है और कोई मिल जाता है तो उसके सामने झाड़ने लग जाते हैं। सोशल मीडिया का नशा सबके सर चढ़ कर बोल रहा हैं जहा झूठ कपास और अफवाह सिवाय कुछ नही है। जो पक्ष में है वही सही है बाकी सब गलत है। एक दूसरे को ज्ञान देते देते बोल पड़ते हैं आप हमशे ज्यादा जानते हैं क्या? नही तू मुझसे ज्यादा जानता है! चल निकल यहां से! तुझे बोलने का शहूर नही है? जाओ पढ़ो लिखो बच्चे हो मेरे सामने! बच्चा किसको बोल रहे हो खड़े खड़े बेच दूंगा आपको! चलो जाओ रास्ता नापो अपना। बिना जानकारी के बहस नही करते!