Tuesday, August 25, 2020

ट्रेड यूनियन बिल

1927 में पूँजीवादी विश्व आर्थिक मन्दी को चपेट में आ रहा था. और मज़दूर वर्ग के जनवादी अधिकारों पर हमले शुरू हो गये थे। इंग्लैण्ड में जब ट्रेड यूनियन बिल पास हो रहा था तो 'किरती'ने (मई, 1927 में) एक लेख इस सम्बन्ध में प्रकाशित किया। लेख के लेखक के सम्बन्ध में जानकारी हासिल नहीं है, लेकिन यह उस समय क्रान्तिकारियों की सोच के बारे में बताता है। 1929 में जब ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल भारत में लागू करने की कोशिश की गयी थी तो भगतसिंह और बी.के. दत्त ने असेम्बली हॉल, दिल्ली में बम फेंका था।

इंग्लिस्तान के एक जगह टिके (Conservative) गुट के लोग कब से इस बात की ताक में थे कि कैसे मज़दूरों में बढ़ती हुई ताकत को रोका जाये उनको यह बात स्पष्ट नजर आती थी कि यदि मज़दूरों की बढ़त को अभी न रोका गया तो मजदूर देखते ही देखते राज के मालिक बन जायेंगे और इस तरह उन्हें राज की बागडोर छोड़नी पड़ेगी। उन्हें यह स्पष्ट पता था कि नाम मात्र स्वतन्त्र (Liberal) गुट तो किसी काम का नहीं है और न ही अभी जल्दी उनके ताकृत में आने की उम्मीद है। इसलिए यदि उन्हें खतरा था तो मजदूरों से ही था और मजदूरों की मुश्कें बाँधना ही उन्होंने सबसे पहले ठीक समझा।

इस काम के लिए उन्होंने ट्रेड यूनियन बिल का आविष्कार किया, जिसके सम्बन्ध में पिछले अंक में बताया गया था वे मजदूरों के सब करे-घरे को यह बिल पास कर कुएँ में डालना चाहते हैं। मज़दूरों ने इस बिल के खिलाफ़ बड़ी जोरदार आवाज बुलन्द की है। उन्होंने कहा है कि यह बिल एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग को मटियामेट करने के लिए लाया गया वर्ग-बिल है। मि. रामजे मैकडानल्ड जैसे मजदूर भी इस बिल को वर्ग-युद्ध की घोषणा समझते हैं और श्रमिक-संसार में सब जगह इस बिल से तूफ़ान मच गया है। मजदूर फिर एक दिन के लिए बड़ा आम हड़ताल करने की सोच रहे हैं। वे विरोध में मीटिंग कर रहे हैं। ख्याल किया जाता है कि संसद में इस बिल पर घमासान बहस होगी, और मजदूर-नेता यदि खरीद न लिये गये तो जी-तोड़कर लड़ेंगे।

आजकल जो लोग अंग्रेजी अखबार पढ़ते हैं उन्हें पता है कि इस बिल का किस तरह अंग्रेजी श्रमिक प्रेस में विरोध हो रहा है। इस बिल को वर्ग-कानून कहा जाता है। । मजदूर समझते हैं कि बाल्डविन की सरकार ने उनके बुनियादी अधिकारों पर धावा बोल दिया है। इस बिल से उनके संगठन के बिखर जाने का भारी खतरा है। मजदूरों का अपना दैनिक अखबार 'डेली हेराल्ड' (Daily Herald) लिखता है कि यह बिल मजदूरों को मानसिक रोगी समझता है और सख़्त अपराधियों के लिए इसने सज़ा भी नियत कर दी है। एक और मजदूर नेता इसे मुसोलिनी जैसा कानून कहा है।

बड़ी हड़ताल के समय से ही एक जगह खड़े (अनुदार) गुट के लोग यह माँग कर रहे थे कि सरकार कोई बिल संसद में पेंश करे, जिससे कि सबके सब मजदूर हड़ताल ही न कर सकें। और यदि एक यूनियन के मजदूर किसी दूसरी यूनियन की हमदर्दी में हड़ताल कर दें तो वह हड़ताल गैर-कानूनी मानी जाये इस समय यदि कोई यूनियन हड़ताल करती है तो वे मजदूर जो हड़ताल में शामिल नहीं होंगे, उन्हें यह समझाया नहीं जा सकेगा कि वे भी इसमें शामिल हों, क्योंकि यदि मजदूर पिकेटिंग आदि के जरिये ऐसा करेंगे तो उन्हें सजा दी जा सकेगी। इस बिल से सिविल सर्विस के कर्मचारियों के लिए किसी पार्टी में शामिल होना मना हो गया है और सबसे बड़ी चोट मजदूरों की राजनीतिक पार्टी पर की गयी है। वह यह है कि कोई मज़दूर राजनीतिक कामों के लिए तब तक चन्दा नहीं दे सकता, जब तक कि वह लिखकर न दे कि वह राजनीतिक कामों के लिए चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं, लेकिन जो लोग चन्दा नहीं देना चाहते, वे लिखकर दें कि वे चन्दा नहीं देना चाहते। अब स्थिति उलटी हो गयी है ।

इस आखिरी अंक से श्रमिकों के संगठन को बड़ी भारी चोट पड़ेगी और इस जमाने में जबकि कोई पार्टी रुपयों के बगैर चल ही नहीं सकती तो यह स्पष्ट है कि श्रमिक पार्टी का रुपयों के बगैर गला दबाने के लिए यह चाल चली गयी है। अन्य पार्टियों की तरह लेबर पार्टी को भी संसद में अपने उम्मीदवार खड़े करने और उन्हें सफल बनाने के लिए रुपयों की जरूरत है। जब दूसरी पार्टियाँ जैसे चाहे रुपये इकट्ठा कर सकती हैं और उन्हें कभी पूछा तक नहीं गया है तो कोई वजह नहीं कि मजदूरों की पार्टी के भीतर कार्यों में खामखाह टाँग अड़ायी जाये।

इस समय तक मज़दूरों की राजनीतिक पार्टी अपने फण्ड ट्रेड यूनियनों से इकट्ठा करती रही है। उदारवादी गुट का यह विचार है कि इस तरह यदि मज़दूर पार्टी के फ़ण्ड हो बन्द कर दिये गये तो मज़दूरों का संगठन स्वयं ही दोफाड़ हो जायेगा और इनके घरों में घी के दिये जल जायेंगे। इस तरह श्रमिक संगठन के टूट जाने से यह सदा ही इंग्लिस्तान के राज पर कब्जा जमाये रखेंगे। पर कौन-सी पार्टी टूटेगी और कौन-सी सत्ता में आयेगी, इस बात का पता तो अनुभव और भविष्य ही बतायेगा।
यदि यह बिल पास हो गया तो मजदूर फिर उन्हीं जूंजीरों में जकड़े जायेंगे जिनमें से कि यत्न से अभी वे निकले ही थे फिर उन जुंजीरों को तोड़ना आसान नहीं होगा। इसलिए श्रमिकों को अब वक्त सँभालना चाहिए और ऐसा जोरदार आंदोलन करना चाहिए कि इस पूंजीपति गुट को, जो भी मज़दूरों को गुलामी से छूटने नहीं देना चाहता, नानी याद आ जाये। पर यह नानी भी तभी याद आ सकती है, यदि आने वाली संसद में इनकी ऐसी हार हो कि याद कर-कर आँखें मला करें। इस समय संसद में इन पूँजीपतियों का बहुमत है। इस बहुमत के अभियान में ही ये लोग अकड़े फिर रहे हैं और मजदूरों को नज़रों में भी नहीं लाते।

हम चाहते हैं कि मजदूर नाम मात्र स्वतन्त्र (उदार) गुट में भी प्रचार करें और उनमें से बहुत-से सदस्यों को अपनी ओर कर लें, ताकि यह बिल पास ही न हो सके। और न सिर्फ यह बिल ही असफल करा दें वरन इस मौजूदा सरकार को भी उलट दें। इसने यह कानून पेश कर राज करने के सभी अधिकार गवाँ दिये हैं।

इस समय जरूरत है कि मजदूरों के अपने घर में भी किसी तरह की फूट न हो और मज़दूरों के नरम और गरम गुटों के सब लोग एकजुट हो जायें ताकि साझे ज़ोर से इस मौजूदा सरकार का डटकर मुकाबला किया जा सके और इसे ऐसे चने चबाये जायें कि सारी उम्र ही इस वक़्त को याद कर-कर हाथ मला करें।

Saturday, August 15, 2020

अखण्ड भारत पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता

यह सुविदित है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनेता के साथ-साथ लब्धप्रतिष्ठ कवि भी थे। समय-समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से वे राष्ट्र की चुनौतियों के विरूध्द सिंहगर्जना करते रहते हैं। स्वतंत्रता दिवस और अखण्ड भारत पर केन्द्रित अटलजी की निम्न कविता बेहद लोकप्रिय रचना है और यह आज भी सामयिक है।

पन्द्रह अगस्त का दिन कहता,
आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है।
लाशों पर पग धर कर,
आजादी भारत में आई।
अब तक हैं खानाबदोश,
गम की काली बदली छाई॥
कलकत्ता के फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥
हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते, यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती॥
इन्सान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियां भरता है, डालर में मुस्काता है॥
भूखो को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाये जाते हैं।
सूखे कण्ठों से, जेहादी नारे लगवाये जाते हैं॥

लाहौर, कराची, ढाका पर, मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया॥

बस इसीलिए तो कहता हूं, आजादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥

दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे।

उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥

Sunday, August 9, 2020

काकोरी के वीरों से परिचय'

9 अगस्त, 1925 को शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला और उनकेअन्य क्रान्तिकारी साथियों ने क्रान्तिकारी पार्टी के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से लखनऊ के करीब काकोरी के पास रेलगाड़ी रोक सरकारी खजाना लूटा। इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के अलावा बाकी सभी क्रान्तिकारी पकड़े गये। भगतसिंह भी तब कानपुर निवास के समय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन पार्टी में भर्ती हो चुके थे। 'विद्रोही' नाम से मई, 1927 में भगत सिंह ने 'काकोरी के वीरों से परिचय' शीर्षक लेख पंजाबी में छपवाया। उस लेख के छपते ही भगतसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। चारपाई पर हथकड़ी लगे बैठे भगतसिंह का प्रसिद्ध चित्र इसी गिरफ्तारी के समय लिया गया। 
इससे पहले भगत सिंह पंजाब लौटकर शचीन्द्रनाथ सान्याल की पुस्तक 'बन्दी जीवन' का पंजाबी अनुवाद छपवा चुके थे।

पहले 'किरती' (पंजाबी पत्रिका) में काकोरी से सम्बन्धित कुछ लिखा जा चुका है। आज हम काकोरी षड्यन्त्र और उन वीरों के सम्बन्ध में कुछ लिखेंगे जिन्हें उस सम्बन्ध में कड़ी सजा मिली हैं।
9 अगस्त, 1925 को एक छोटे-से स्टेशन काकोरी से एक पैसेंजर ट्रेन चली। यह स्टेशन लखनऊ से आठ मील की दूरी पर है ट्रेन मील-डेढ़ मील चली होगीकि सेकेण्ड क्लास में बैठे हुए तीन नौजवानों ने गाड़ी रोक ली और दूसरों ने मिलकर गाड़ी में जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया। उन्होंने पहले ही जोर से आवाज देकर सभी यात्रियों को समझा दिया था कि वे डरें नहीं, क्योंकि उनका उद्देश्य यात्रियों को तंग करने का नहीं, सिर्फ सरकारी खजाना लूटने का है खैर, वे गोलियाँ चलाते रहे। वह (कोई यात्री) आदमी गाड़ी से उतर पड़ा और गोली लग जाने से मर गया।
सरकारी अधिकारी हार्टन, सी. आई.डी. इसकी जाँच में लगा। उसे पहले से ही यकीन हो गया था कि यह डाका क्रान्तिकारी जत्थे का काम है। उसने सभी सन्दिग्ध व्यक्तियों की छानबीन शुरू कर दी। इतने में क्रान्तिकारी जत्थे की राज्य परिषद की एक बैठक मेरठ में होनी तय हुई। सरकार को इसका पता चल गया। वहाँ खूब छानबीन की गयी।
फिर सितम्बर के अन्त में हार्टन ने गिरफ्तारियों के वारण्ट जारी किये और 26 सितम्बर को बहुत-सी तलाशियाँ ली गयीं और बहुत-से व्यक्ति पकड़ लिये गये। कुछ नहीं पकड़े गये। उनमें से एक श्री राजेन्द्र लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बम केस में पकड़े गये और वहीं उन्हें दस वर्ष कैद हो गयी और श्री अशफ़ाकउल्ला और शचीन्द्र बख्शी बाद में पकड़े गये, जिन पर अलग मुकदमा चला।
जज के फैसले से यह पता चलता है कि असहयोग आन्दोलन दब जाने से देशभक्त युवकों का शान्ति से विश्वास उठ गया और उन्होंने युगान्तर दल स्थापित किया। श्री जोगेश चन्द्र चट्टोपाध्याय बंगाल से इस दल का संगठन बनाने यू.पी. आये और पक्का काम कर सितम्बर, 1924 में लौट गये। उस समय बंगाल में आर्डिनेंस पास हो चुका था और आप लौटते ही हावड़ा पुल पर पकड़े गये। तलाशी लेने पर आपकी जेब से एक कागज मिला, जिस पर यू.पी. की राज्य परिषद की किसी बैठक का और यू.पी. में अपने दल के संगठन का हाल लिखा हुआ था। खैर, फिर काम चल पड़ा और काम चलाने की खातिर कई डरकैतियाँ भी की गयीं। जज के विचार में इस दल के नेता हैं श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल। श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल का नाम किससे छिपा है। आप ही 'बन्दी जीवन जैसी प्रसिद्ध व शानदार पुस्तक के लेखक हैं। बनारस के निवासी हैं और 1915 के गदरर आन्दोलन में आपने खूब काम किया था। आप बनारस षड्यन्त्र के नेता व श्री रासबिहारी जी का दायाँ हाथ थे। तब उम्रकैद हुई थी लेकिन 1920 में छूट गये थे। फिर आप अपने पिछले काम पर ही जुट गये और सन् 1925 के शुरू में 'दि रेवल्यूशनरी' परचा एक ही दिन में सारे हिंदुस्तान में बँटा। उसकी भाषा व अच्छे विचारों की अंग्रेजी अखबारों ने भी खूब तारीफ़ की थी। आप फ़रवरी में पकड़े गये। आप पर उस सम्बन्ध में मुकदमा चलाया गया और आपको दो साल कैद की सजा मिली। वहीं से आपको काकोरी के मुकदमे में घसीट लिया गया। आप बड़े जिन्दादिल हैं। कोर्ट में स्वयं खुश रहना और दूसरों को खुश रखना ही आपका काम था। आप ने अपना मामला स्वयं लड़ा। जज आपको ही सबका गुरु कहता है। 'बन्दी जीवन' का गुजराती व पंजाबी में अनुवाद हो है। चुका आप अंग्रेज़ी और बंगाली के उत्त्व कोटि के लेखक हैं। अब आपको दो उम्रकैद हो गयी है। आपके साथ आपका छोटा भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल भी घसीट लिया गया वह क़रीब बी.ए. में पढ़ता था। पकड़ा गया और उसे पाँच साल की कैद हो गयी। श्री शचीन्द्र के बाद अत्यन्त प्रसिद्ध वीर श्री रामप्रसाद हैं। आप जैसा सुन्दर, मजबूत जवान खोजने से मिलना भी मुश्किल है बहुत योग्य आदमी है। हिन्दी का बड़ा लेखक है। आपने कैथराइन', 'बोल्शेविकों के काम', 'मन की लहर' आदि अनेक पुस्तकें लिखीं। आप उर्दू के माने हुए शायर हैं आपकी उम्र 28 बरस की है। पहले 1919 में मैनपुरी षड्यन्त्र में आपके वारण्ट निकले और आपके गुरु श्री गेंदालाल जी आदि पकड़े गये, लेकिन आप नेपाल की ओर चले गये और वहाँ बड़ी मुश्किल सहन कर गुजारा करते रहे। पूरा दिन हल चलाना, कुदाल चलाना, मेहनत-मशक्कत करना और रात में सिर्फ डेढ़ आना पाना, जिससे पेटभर रोटी भी नहीं खा सकते थे। कई बार तो घास तक खाना पड़ा। लेकिन मज़ा यह, फिर भी बैठकर कविता लिखना, और भारतमाता की याद और प्रेम में आँसू बहाने और गीत गाने। ऐसे नौजवान कहाँ से मिल सकते हैं? आप युद्ध-विद्या में बड़े कुशल हैं और आज उन्हें फाँसी का दण्ड मिलने का कारण भी बहुत हद तक यही है। इस वीर को फाँसी का दण्ड मिला और आप हँस दिये ऐसा निर्भीक वीर, ऐसा सुन्दर जवान, ऐसा योग्य और उच्चकोटि का लेखक और निर्भय योद्धा मिलना मुश्किल है।

तीसरे वीर श्री राजिन्द्रनाथ लाहिड़ी हैं। 24 वर्ष का अत्यन्त सुन्दर जवान एम.ए., बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था। जज कहता है कि यह युगान्तर दल का एक मजबूत स्तम्भ है। आप गाड़ी रोकने वालों में थे। बाहर से था – कमजोर सूखा-सा। कलकत्ते के पास दक्षिणेश्वर बम फैक्टरी में पकड़ा गया, वहीं दस साल कैद हुई। खुशी में मोटा होने लगा। काकोरी के मुकदमे में तो शरीर खूब भर गया था और अब फाँसी की सज़ा हो गयी है।

वीर रोशन सिंह को भी फाँसी की सजा हुई है आप पहले पुलिस की मदद करते थे और बहुत-से डकैत आपने पकड़वाये थे आप भी फँस गये। लेकिन कोई डकैत तो नहीं है। जज भी कहता है, यह नौजवान सच्चे देशसेवक थे! अच्छा! इस वीर को भी बार-बार नमस्कार।

इसके बाद श्री मन्मथनाथ गुप्त की बारी है। आप काशी विद्यापीठ के बी.ए. के विद्यार्थी थे। 18 बरस की उम्र है। बंगाली, गुजराती, मराठी, उड़िया, हिन्दी, अंग्रेजी और फ्रेच आदि अनेक भाषाएँ आपने सीख ली थीं। जज ने आपको भी डकैतियों में शामिल कर 14 साल की सख्त सजा दी है। आप बड़े निर्भय हैं और यह सजा सुनकर हँस दिये। आजकल जेल में भूख हड़ताल किये बैठे हैं। आपसे गैर-सरकारी सदस्य ने जेल में आकर पूछा कि खाना क्यों नहीं खाते, तो आपने उत्तर दिया कि हम मनुष्य हैं। हमारे साथ मनुष्यों जैसा व्यवहार होना चाहिए। मैं नहीं समझता कि इस पशुओं जैसे व्यवहार को सहन कर मैं 14 साल तक जी सकूँगा। तिल-तिल कर मरने से एक बार मर जाना अच्छा है। आप पहले असहयोग में भी जेल जा चुके हैं।

अब जिस नौजवान का जिक्र होगा उसे यदि हम महापुरुष कह दें तो कुछ झूठ न होगा। वह वीर श्री राजेश चंद्र चटर्जी हैं। आप कोमिल्ला (ढाका) के रहने वाले हैं। वह बी.ए. में फिलासफी के विद्यार्थी थे। प्रोफ़ेसर आप पर बहुत खुश थे और 
कहते थे कि लड़का बड़ा होनहार है। लेकिन आपने कॉलेज तो क्या, पूरी दुनिया की फिलॉसफी पर लात मार दी और सबकुछ छोड़कर युगान्तर दल में जा मिले। आपको डिफेंस ऑफ इण्डिया एक्ट के अनुसार गिरफ्तार किया गया और अकथनीय व असहनीय कष्ट दिये गये एक दिन आपके सर पर पाखाना डाल दिया गया और चार दिन तक कोठरी में बन्द रखा गया। मुँह धोने तक के लिए पानी नहीं दिया गया और बुरी तरह मार-मारकर पूरा बदन जुख़्मी कर दिया गया। लेकिन आपके पास चुप से अधिक क्या रखा था। 1920 में छूटे तो एक मामूली कार्यकर्ता की तरह कांग्रेस में काम करते रहे। घर से गरीब हैं, लेकिन अपना घर तबाह करके भी दुनिया में सेवा होती है। आप 1923 में यू.पी. आये और फिर 'युगान्तर' दल की नींव रखी। 1924 में बंगाल लौट गये और पकड़े गये। पहले आपको आर्डिनेंस के तहत पकड़ा था, फिर यहाँ काकोरी लाया गया। आपको दस बरस कैद हुई है। बेहद खूबसूरत नौजवान हैं। जज ने आपकी बड़ी तारीफ़ की है। श्री गोविन्द चरणकार उर्फ डी.एन. चौधरी लखनऊ से पकड़े गये थे आप बहुत पुराने क्रान्तिकारी हैं। 1918 या 1919 में ढाका में पुलिस आपको पकड़ने आये। आपने गोलियों का जवाब गोलियों से दिया और गोलियों में से लड़ते-लड़ाते भाग निकले, लेकिन गोलियाँ खत्म हो चुकी थीं और आप घायल हो गये थे। पकड़े गये, कालापानी मिला। 1922 में बहुत बीमार हो गये थे, तब छोड़े गये। 1925 में फिर पकड़े गये और अब 10 साल कैद हो गयी है। अब श्री सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य सम्बन्धी कुछ लिखेंगे। आप भी बनारस के रहने वाले थे। बनारस षड्यन्त्र के समय आपकी उम्र 16 बरस की थी, पकड़े गये। लेकिन कुछ प्रमाणित न होने से छूट गये और फिर नजरबन्द कर बुन्देलखण्ड में रखे गये। आप हिन्दी के बड़े प्रसिद्ध लेखक हैं। कानपुर के प्रताप' जैसे प्रसिद्ध अखबार के सहायक सम्पादक थे। आप बनारस से पकड़े गये और अब आपको सात साल कैद हुई है। आप बहुत सुन्दर गाते हैं। जेल में आप योगाभ्यास करते थे।
श्री राजकुमार कानपुर के रहने वाले हैं। आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बी.ए. में पढ़ते थे। पकड़े गये। आपके कमरे से दो रायफ़लें निकलीं। बहुत सुन्दर गाने वाले और देखने में भी आप काफ़ी सुन्दर हैं। जोशीले बहुत हैं। श्री दामोदर स्वरूप जब बहुत बीमार होने पर भी कोर्ट में बुलाये गये तो आपको जोश आ गया और आपने जज को खूब सुनायी। जज ने कहा कि फैसले के समय तुम्हें इसका मज़ा चखाया जायेगा। वीर युवक को दस साल की सजा हो गयी! जीवन एक तरह से तबाह हो गया, लेकिन आप हँस दिये। धन्य हैं ये वीर और इन्हें जन्म देने वाली वीर माताएँ।
श्री विष्णु शरण दुर्बल मेरठ के रहने वाले हैं वैश्य अनाथालय के अधीक्षक थे। बी.ए. में असहयोग कर दिया गया था और मेरठ को उन्होंने दूसरा बारदोली बना दिया था। सिविल नाफरमानी के लिए तैयार हो गये थे। बड़े सुन्दर वक्ता थे। आपके घर युगान्तरकारियों की बैठक हुई थीं। आपको सात साल की सजा हो गयी है। श्री रामदुलारे को भी 7 साल की सजा हुई है। आप कानपुर निवासी थे। स्काउट मास्टर, कांग्रेस के जोशीले सेवक थे। 6 अप्रैल को फैसला सुनाया गया, उस दिन सभी वीर गाते आये थे- 

सरफ़रोशी की तमन्ना, 
अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना 
बाजु-ए-कातिल में है।
सजाएँ लापरवाही से सुनीं और हँस दिये। उसके बाद दुख की घड़ी आ गयी। जिन वीरों ने एक साथ समुद्र में किश्तियाँ डाली थीं, उनके ही अलग होने का पल आ गया। "क्रान्तिकारी लोगों में जो अगाध और गम्भीर प्रेम होता है, उसे साधारण दुनियादार आदमी अनुभव नहीं कर सकते " श्री रासबिहारी के इस वाक्य का अर्थ भी हम लोग नहीं समझ सकते। जिन लोगों ने 'सिर रख तली प्रेम की गली' में पैर रख दिया हो, उनकी महिमा को हमारे जैसे निकृष्ट आदमी क्या समझ सकते हैं? उनका परस्पर प्रेम कितना गहन होता है, उसे हम सपने में भी नहीं जान सकते। डेढ़ साल से अपने जीवन के अन्धकारमय भविष्य के इन्तजार में मिलकर बैठे थे। वह पल आया, तीन को फांसी, एक को उम्रकैद, एक को 14 बरस कैद, 4 को दस वर्ष कैद व बेटियों को 5 से 10 साल की सख्त केद सुनाकर जज उन्हें उपदेश देने लगा, "आप सच्चे सेवक और त्यागी हो। लेकिन गृलत रास्ते पर चले हो।" गरीब भारत में ही सच्चे देशभक्तों का यह हाल होता है। जज उन्हें अपने कामों पर पुनर्विचार करने की बात कह चलता बना और फिर...फिर क्या हुआ? क्या पूछते हैं? जुदाई के पल बड़े बुरे होते हैं। जिन्हें फाँसी की सजा मिल गयी, जिन्हें उम्रभर के लिए जेल में बन्द कर दिया गया, उनके दिलों का हाल हम नहीं समझ सकते। कदम-कदम पर रोने वाले हिन्दुस्तानी, यों ही थर-थर काँपने लग जाने वाले कायर हिन्दुस्तानी, उन्हें क्या समझ सकते हैं? छोटों ने बड़ों के पैरों पर झुककर नमस्कार किया। उन्होंने छोटों को आशीर्वाद दिया, जोर से गले मिले और आह भरकर रह गये भेज दिये गये। जाते हुए श्री रामप्रसाद जी ने बड़े दर्दनाक लहजे में कहा-
 दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं।
खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं।

 यह कहकर वह लम्बी, बड़ी दूर की यात्रा पर चले गये। दरवाजे से निकलते समय उस अदालत के बड़े भारी रैंकन थियेटर हाल की भयावह चुप्पी की एक आह भरकर तोड़ते हुए उन्होंने फिर कहा-

हाय, हम जिस पर भी तैयार थे मर जाने को।
जीते जी हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।

हम लोग एक आह भरकर समझ लेते हैं कि हमारा फूर्ज पूरा हो गया। हमें आग नहीं लग उठती, हम तड़प नहीं उठते, हम इतना मुर्दे हो गये हैं। आज वे भूख-हड़ताल कर बैठे हैं और तड़प रहे हैं और हम चुपचाप सब तमाशा देख रहे हैं। ईश्वर उन्हें बल व शक्ति दे कि वे वीरता से अपने दिन पूरे करें और उन वीरों के बलिदान रंग लायें।

लेखक

'विद्रोही'

Thursday, August 6, 2020

भारत के निर्माण का शुभारम्भ हो चुका है।


( 5 अगस्त 2020, को श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य शुभारंभ कार्यक्रम में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने अपने विचार व्यक्त  किए )
 
श्रद्धेय महंत नृत्यगोपाल जी महाराज सहित उपस्थित सभी संत चरण, भारत के आदरणीय और जनप्रिय प्रधानमंत्री जी, उत्तर प्रदेश की मा. राज्यपाल जी, उत्तर प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री जी, सभी नागरिक सज्जन माता-भगिनी।
 
आज आनंद का क्षण है, बहुत प्रकार से आनंद है। हम सबने एक संकल्प लिया था। मुझे स्मरण है कि तब के हमारे संघ के सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी ने, हम सबको आगे कदम बढ़ाने से पहले यह बात याद दिलाई थी कि बहुत परिश्रम के साथ बीस-तीस साल काम करना पड़ेगा, तब कभी ये काम संपन्न होगा। हमने बीस-तीस साल काम किया, तीसवें साल के प्रारंभ में हमें संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। सबने जी जान से प्रयास किये एवं उनमें से अनेक लोगों ने बलिदान भी दिए। वे सब आज सूक्ष्म रूप में यहाँ उपस्थित हैं। ऐसे भी अनेकों हैं जो प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो सकते, परिस्थिति के कारण वे यहाँ आ नहीं पाये। रथ यात्रा का नेतृत्व करने वाले अडवानी जी अपने घर पर बैठ कर इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। कितने ही लोग ऐसे हैं जो आ भी सकते हैं पर परिस्थिति ही ऐसी है कि बुलाये नहीं जा सकते। वो भी अपनी-अपनी जगह से इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। मैं पूरे देश में देख रहा हूँ कि आनंद की लहर है, सदियों की आस पूरी होने का आनंद है।
 
लेकिन आज सबसे बड़ा आनंद है, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास की आवश्यकता थी और जिस आत्मभान की आवश्यकता थी, उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है। वह अधिष्ठान है उस आध्यामिक दृष्टि का, “सिया राममय सब जग जानहि”। सारे जगत को अपने में देखने और स्वयं में जगत को देखने की भारत की दृष्टि। इसी कारण से भारत के प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार आज भी विश्व में सबसे अधिक सज्जनता का व्यवहार होता है और इस देश का सबके साथ सामूहिक व्यवहार वसुधैव कुटुम्बकम का होता है। ऐसा स्वभाव और इसके साथ-साथ अपने कर्तव्य का निर्वाह, व्यवहारिक जगत की माया की सभी दुविधाओं में से रास्ते निकालते हुए, जितना संभव हो सके सबको साथ लेकर चलने की जो एक विधि बनती है, उसका अधिष्ठान आज यहाँ पर बन रहा है। परम वैभव संपन्न और सबका कल्याण करने वाले भारत के निर्माण का शुभारंभ आज उन हाथों से हो रहा है जिनके पास इस निर्माण के व्यवस्था-तंत्र का नेतृत्व है ये और भी आनंद की बात है।
आज सभी का स्मरण हो रहा है, और स्वाभाविक विचार भी आता है, कि अशोक जी आज यहाँ रहते तो कितना अच्छा होता, पू. महंत परमहंस दास जी आज होते तो कितना अच्छा होता। लेकिन उसकी जो इच्छा होती है वैसा ही होता है। परंतु मेरा यह विश्वास है कि जो यहाँ हैं वो अपने मन से और जो नहीं हैं वो सूक्ष्म रूप से आज यहाँ उस आनंद को ना केवल उठा रहे हैं अपितु उस आनंद को शतगुणित भी कर रहे हैं। इस आनंद में एक स्फुरण है, एक उत्साह है- हम कर सकते हैं, हमको करना है, यही करना है।
 
एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः ।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः
हमें सबको जीवन जीने की शिक्षा देनी है। अभी कोरोना का दौर चल रहा है, सारा विश्व अंर्तमुख हो गया है एवं विचार कर रहा है कि कहाँ गलती हुई और आगे का रास्ता कैसे निकलेगा।
 
दो रास्तों को उसने देख लिया और वह विचार कर रहा है कि क्या कोई तीसरा रास्ता भी है? हाँ है ! ये मार्ग हमारे पास है। हम दे सकते हैं और इस मार्ग को दिखाने का काम हमको ही करना है। उसकी तैयारी करने के संकल्प करने का भी आज दिवस है। उसके लिए आवश्यक तप पुरुषार्थ हमने किया है। प्रभु श्रीराम के जीवन से लेकर आज तक अगर हम देखेंगे तो पायेंगे कि वो सारा पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरवृत्ति हमारे रग-रग में है। हमने उसको खोया नहीं है, वो हमारे पास ही है। हम शुरू करेंगे तो हो जाएगा। इस प्रकार का विश्वास और प्रेरणा का स्फुरण आज हमको इस दिन से मिलता है और सभी भारतवासियों को मिलता है, कोई भी अपवाद नहीं है क्योंकि सबके राम हैं और सबमें राम हैं।
 
अब यहाँ भव्य मंदिर बनेगा, सारी प्रक्रिया शुरू हो गई है एवं दायित्व बाँटे गए हैं। जिनका जो काम है वो करेंगे। उस समय हम सब लोगों को क्या काम रहेगा ? हम सब लोगों को अपने मन की अयोध्या को सजाना और संवारना है। इस भव्य कार्य के लिए प्रभु श्रीराम जिस ‘धर्म‘ के विग्रह माने जाते हैं- वह जोड़ने वाला, धारण करने वाला, ऊपर उठाने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म और सबको अपना मानने वाला धर्म, उस धर्म की ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हम सबको अपने मन की अयोध्या को बनाना है। यहाँ पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, मन की अयोध्या भी साथ-साथ बनती चली जानी चाहिए। और इस मंदिर के पूर्ण होने से पहले हमारा मन मंदिर भी बनकर तैयार रहना चाहिए, इसकी आवश्यकता है।
 
यह मन मंदिर कैसा रहेगा, तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बताया है –
 
काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥
जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई।प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥

हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। सभी दोषों से, विकारों से, द्वेषों से एवं शत्रुता से मुक्त हो कर दुनिया की माया कैसी भी हो उस में सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ। हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर, केवल अपने देशवासी ही नहीं अपितु संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाला इस देश का व्यक्ति, और ऐसा समाज गढ़ने का यह काम है। इस समाज को गढ़ने के काम का एक सगुण साकार प्रतीक, वो यहाँ खड़ा होने वाला है। यह प्रतीक हम सबको सदैव प्रेरणा देता रहेगा। भव्य राम मंदिर को बनाने का कार्य भारतवर्ष के लाखों अन्य मंदिरों के समान केवल एक और मंदिर बनाने का काम नहीं है अपितु देश के सारे मंदिरों में स्थापित मूर्तियों का जो आशय है, उस आशय के पुनर्प्रकटीकरण और उसके पुनर्स्थापन करने का शुभारंभ आज यहाँ बहुत ही समर्थ हाथों से हुआ है। इस मंगल अवसर पर, आनंद के इस क्षण में मैं आप सबका अभिनंदन करता हूँ और इस समय मेरे मन में जो विचार आए उसको आपके चिंतन के लिए आप सबके सामने रखता हुआ आप सब से विदा लेता हूं।
 
बहुत-बहुत धन्यवाद

“जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि”॥

(5 अगस्त 2020, अयोध्या में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राम मंदिर भूमि पूजन के शुभ अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।)

सियावर रामचंद्र की जय!

जय सियाराम।

जय सियाराम।

आज ये जयघोष सिर्फ सियाराम की नगरी में ही नहीं सुनाई दे रहा बल्कि इसकी गूंज पूरे विश्व भर में है। सभी देशवासियों को और विश्व भर में फैले करोड़ों भारत भक्तों को, राम भक्तों को, आज के इस पवित्र अवसर की कोटि-कोटि बधाई।

मंच पर विराजमान यूपी की गवर्नर श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, पूज्य नृत्य गोपालदास जी महाराज और हम सभी के श्रद्धेय श्री मोहन भागवत जी, ये मेरा सौभाग्य है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मुझे आमंत्रित किया, इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने का अवसर दिया। मैं इसके लिए हृदय पूर्वक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का आभार व्यक्त करता हूं।

राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

भारत, आज,भगवान भास्कर के सानिध्य में सरयू के किनारे एक स्वर्णिम अध्याय रच रहा है। कन्याकुमारी से क्षीरभवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक, सम्मेद शिखर से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर से पटना साहिब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्ष्यद्वीप से लेह तक, आज पूरा भारत,राममय है। पूरा देश रोमांचित है, हर मन दीपमय है। आज पूरा भारत भावुक भी है। सदियों का इंतजार आज समाप्त हो रहा है। करोड़ों लोगों को आज ये विश्वास ही नहीं हो रहा कि वो अपने जीते-जी इस पावन दिन को देख पा रहे हैं।

साथियों,

बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे हमारे रामलला के लिए अब एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। टूटना और फिर उठ खड़ा होना, सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से रामजन्मभूमि आज मुक्त हो गई है। मेरे साथ फिर एक बार बोलिए, जय सियाराम, जय सियाराम!!!

साथियों,

हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो, देश का कोई भूभाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो। 15 अगस्त का दिन उस अथाह तप का, लाखों बलिदानों का प्रतीक है, स्वतंत्रता की उस उत्कंठ इच्छा, उस भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह, राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक, कई-कई पीढ़ियों ने अखंड अविरत एक-निष्ठ प्रयास किया है। आज का ये दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।

राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था। जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राममंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, मैं उन सब लोगों को आज नमन करता हूँ, उनका वंदन करता हूं। संपूर्ण सृष्टि की शक्तियां, राम जन्मभूमि के पवित्र आंदोलन से जुड़ा हर व्यक्तित्व, जो जहां है, इस आयोजन को देख रहा है, वो भाव-विभोर है, सभी को आशीर्वाद दे रहा है।

साथियों,

राम हमारे मन में गढ़े हुए हैं, हमारे भीतर घुल-मिल गए हैं। कोई काम करना हो, तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर ही देखते हैं। आप भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। श्रीराम भारत की मर्यादा हैं, श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

इसी आलोक में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर, श्री राम के इस भव्य-दिव्य मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ है। यहां आने से पहले, मैंने हनुमानगढ़ी का दर्शन किया। राम के सब काम हनुमान ही तो करते हैं। राम के आदर्शों की कलियुग में रक्षा करने की जिम्मेदारी भी हनुमान जी की ही है। हनुमान जी के आशीर्वाद से श्री राममंदिर भूमिपूजन का ये आयोजन शुरू हुआ है।

साथियों,

श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा, और ये मंदिर करोड़ों-करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा, और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। इस मंदिर के बनने के बाद अयोध्या की सिर्फ भव्यता ही नहीं बढ़ेगी, इस क्षेत्र का पूरा अर्थतंत्र भी बदल जाएगा। यहां हर क्षेत्र में नए अवसर बनेंगे, हर क्षेत्र में अवसर बढ़ेंगे। सोचिए, पूरी दुनिया से लोग यहां आएंगे, पूरी दुनिया प्रभु राम और माता जानकी का दर्शन करने आएगी। कितना कुछ बदल जाएगा यहां।

साथियों,

राममंदिर के निर्माण की ये प्रक्रिया, राष्ट्र को जोडऩे का उपक्रम है। ये महोत्सव है- विश्वास को विद्यमान से जोड़ने का। नर को नारायण से, जोड़ने का। लोक को आस्था से जोड़ने का। वर्तमान को अतीत से जोड़ने का। और स्वं को संस्कार से जोडऩे का। आज के ये ऐतिहासिक पल युगों-युगों तक, दिग-दिगन्त तक भारत की कीर्ति पताका फहराते रहेंगे। आज का ये दिन करोड़ों रामभक्तों के संकल्प की सत्यता का प्रमाण है।

आज का ये दिन सत्य, अहिंसा, आस्था और बलिदान को न्यायप्रिय भारत की एक अनुपम भेंट है। कोरोना से बनी स्थितियों के कारण भूमिपूजन का ये कार्यक्रम अनेक मर्यादाओं के बीच हो रहा है। श्रीराम के काम में मर्यादा का जैसा उदाहरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए, देश ने वैसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी मर्यादा का अनुभव हमने तब भी किया था जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। हमने तब भी देखा था कि कैसे सभी देशवासियों ने शांति के साथ, सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए व्यवहार किया था। आज भी हम हर तरफ वही मर्यादा देख रहे हैं।

साथियों,

इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है। जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह छोटे-छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई, जिस तरहमावले, छत्रपति वीर शिवाजी कीस्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब-पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल बने, जिस तरह दलितों-पिछ़ड़ों-आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधी जी को सहयोग दिया, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का ये पुण्य-कार्य प्रारंभ हुआ है।

जैसे पत्थरों पर श्रीराम लिखकर रामसेतु बनाया गया, वैसे ही घर-घर से, गांव-गांव से श्रद्धापूर्वक पूजी शिलाएं, यहां ऊर्जा का स्रोत बन गई हैं। देश भर के धामों और मंदिरों से लाई गई मिट्टी और नदियों का जल, वहां के लोगों, वहां की संस्कृति और वहां की भावनाएं, आज यहां की शक्ति बन गई हैं। वाकई, ये न भूतो न भविष्यति है। भारत की आस्था, भारत के लोगों की सामूहिकता की ये अमोघ शक्ति, पूरी दुनिया के लिए अध्ययन का विषय है,शोध का विषय है।

साथियों,

श्रीरामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया है। श्रीराम का चरित्र सबसे अधिक जिस केंद्र बिंदु पर घूमता है, वो है सत्य पर अडिग रहना। इसीलिए ही श्रीराम संपूर्ण हैं। इसलिए ही वो हजारों वर्षों से भारत के लिए प्रकाश स्तंभ बने हुए हैं। श्रीराम ने सामाजिक समरसता को अपने शासन की आधारशिला बनाया था। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमानजी एवं वनवासी बंधुओं से सहयोग और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया।

यहां तक कि एक गिलहरी की महत्ता को भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। उनका अद्भुत व्यक्तित्व, उनकी वीरता, उनकी उदारता उनकी सत्यनिष्ठा, उनकी निर्भीकता, उनका धैर्य, उनकी दृढ़ता, उनकी दार्शनिक दृष्टि युगों-युगों तक प्रेरित करते रहेंगे। राम प्रजा से एक समान प्रेम करते हैं लेकिन गरीबों और दीन-दुखियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। इसलिए तो माता सीता, राम जी के लिए कहती हैं-

दीन दयाल बिरिदु संभारी

यानि जो दीन है, जो दुखी हैं, उनकी बिगड़ी बनाने वाले श्रीराम हैं।

साथियों,

जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जहां हमारे राम प्रेरणा न देते हों। भारत की ऐसी कोई भावना नहीं है जिसमें प्रभु राम झलकते न हों। भारत की आस्था में राम हैं, भारत के आदर्शों में राम हैं! भारत की दिव्यता में राम हैं, भारत के दर्शन में राम हैं! हजारों साल पहले वाल्मीकि की रामायण में जो राम प्राचीन भारत का पथ प्रदर्शन कर रहे थे, जो राम मध्ययुग में तुलसी, कबीर और नानक के जरिए भारत को बल दे रहे थे, वही राम आज़ादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति बनकर मौजूद थे! तुलसी के राम सगुण राम हैं, तो नानक और कबीर के राम निर्गुण राम हैं!

भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े हैं तोसदियों से ये अयोध्या नगरी जैन धर्म की आस्था का केंद्र भी रही है। राम की यही सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है! तमिल में कंब रामायण तो तेलगू में रघुनाथ और रंगनाथ रामायण हैं। उड़िया में रूइपाद-कातेड़पदी रामायण तो कन्नड़ा में कुमुदेन्दु रामायण है। आप कश्मीर जाएंगे तो आपको रामावतार चरित मिलेगा, मलयालम में रामचरितम् मिलेगी। बांग्ला में कृत्तिवास रामायण है तो गुरु गोबिन्द सिंह ने तो खुद गोबिन्द रामायण लिखी है। अलग अलग रामायणों में, अलग अलग जगहों पर राम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलेंगे, लेकिन राम सब जगह हैं, राम सबके हैं। इसीलिए, राम भारत की ‘अनेकता में एकता’ के सूत्र हैं।

साथियों,

दुनिया में कितने ही देश राम के नाम का वंदन करते हैं, वहां के नागरिक, खुद को श्रीराम से जुड़ा हुआ मानते हैं। विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या जिस देश में है, वो है इंडोनेशिया। वहां हमारे देश की ही तरह ‘काकाविन’रामायण, स्वर्णद्वीप रामायण, योगेश्वर रामायण जैसी कई अनूठी रामायणें हैं। राम आज भी वहांपूजनीय हैं। कंबोडिया में ‘रमकेर’रामायण है, लाओ में ‘फ्रा लाक फ्रा लाम’ रामायण है, मलेशिया में ‘हिकायत सेरी राम’तो थाईलैंड में ‘रामाकेन’है! आपको ईरान और चीन में भी राम के प्रसंग तथा राम कथाओं का विवरण मिलेगा।

श्रीलंका में रामायण की कथा जानकी हरण के नाम सुनाई जाती है, और नेपाल का तो राम से आत्मीय संबंध, माता जानकी से जुड़ा है। ऐसे ही दुनिया के और न जाने कितने देश हैं, कितने छोर हैं, जहां की आस्था में या अतीत में, राम किसी न किसी रूप में रचे बसे हैं! आज भी भारत के बाहर दर्जनों ऐसे देश हैं जहां, वहां की भाषा में रामकथा, आज भी प्रचलित है। मुझे विश्वास है कि आज इन देशों में भी करोड़ों लोगों को राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने से बहुत सुखद अनुभूति हो रही होगी। आखिर राम सबके हैं, सब में हैं।

साथियों,

मुझे विश्वास है कि श्रीराम के नाम की तरह ही अयोध्या में बनने वाला ये भव्य राममंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का द्योतक होगा। मुझे विश्वास है कि यहां निर्मित होने वाला राममंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा। इसलिए हमें ये भी सुनिश्चित करना है कि भगवान श्रीराम का संदेश, राममंदिर का संदेश, हमारी हजारों सालों की परंपरा का संदेश, कैसे पूरे विश्व तक निरंतर पहुंचे। कैसे हमारे ज्ञान, हमारी जीवन-दृष्टि से विश्व परिचित हो, ये हमारी, हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों की ज़िम्मेदारी है। इसी को समझते हुए, आज देश में भगवान राम के चरण जहां जहां पड़े, वहाँ राम सर्किट का निर्माण किया जा रहा है!

अयोध्या तो भगवान राम की अपनी नगरी है! अयोध्या की महिमातो खुद प्रभु श्रीराम ने कही है-

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि

यहां राम कह रहे हैं- मेरी जन्मभूमि अयोध्या अलौकिक शोभा की नगरी है। मुझे खुशी कि आजप्रभु राम की जन्मभूमि की भव्यता, दिव्यता बढ़ाने के लिए कई ऐतिहासिक काम हो रहे हैं!


साथियों,


हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है-“न्राम सदृशो राजा, प्रथिव्याम् नीतिवान् अभूत”॥ यानि कि, पूरी पृथ्वी पर श्रीराम के जैसा नीतिवान शासक कभी हुआ ही नहीं! श्रीराम की शिक्षा है-“नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना”॥ कोई भी दुखी न हो, गरीब न हो। श्रीराम का सामाजिक संदेश है- “प्रहृष्ट नर नारीकः,समाज उत्सव शोभितः”॥ नर-नारी सभी समान रूप से सुखी हों। श्रीराम का निर्देश है- “कच्चित् ते दयितः सर्वे, कृषि गोरक्ष जीविनः”। किसान, पशुपालक सभी हमेशा खुश रहें। श्रीराम का आदेश है-“कश्चिद्वृद्धान्चबालान्च, वैद्यान् मुख्यान् राघव। त्रिभि: एतै: वुभूषसे”॥ बुजुर्गों की,बच्चों की, चिकित्सकों की सदैव रक्षा होनी चाहिए। श्रीराम का आह्वान है- “जौंसभीतआवासरनाई।रखिहंउताहिप्रानकीनाई”॥ जो शरण में आए,उसकी रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। श्रीराम का सूत्र है- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”॥ अपनी मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। और भाइयों और बहनों, ये भी श्रीराम की ही नीति है- “भयबिनुहोइन प्रीति”॥ इसलिए हमारा देश जितना ताकतवर होगा, उतनी ही प्रीति और शांति भी बनी रहेगी।


राम की यही नीति और रीति सदियों से भारत का मार्गदर्शन करती रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने, इन्हीं सूत्रों, इन्हीं मंत्रों के आलोक में, रामराज्य का सपना देखा था। राम का जीवन, उनका चरित्र ही गांधीजी के रामराज्य का रास्ता है।


साथियों,


स्वयं प्रभु श्रीराम ने कहा है-

देशकाल अवसर अनुहारी। बोले बचन बिनीत बिचारी॥

अर्थात, राम समय, स्थान और परिस्थितियों के हिसाब से बोलते हैं, सोचते हैं, करते हैं।

राम हमें समय के साथ बढ़ना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं। राम परिवर्तन के पक्षधर हैं, राम आधुनिकता के पक्षधर हैं। उनकी इन्हीं प्रेरणाओं के साथ, श्रीराम के आदर्शों के साथ भारत आज आगे बढ़ रहा है!

साथियों,

प्रभु श्रीराम ने हमें कर्तव्यपालन की सीख दी है, अपने कर्तव्यों को कैसे निभाएं इसकी सीख दी है! उन्होंने हमें विरोध से निकलकर, बोध और शोध का मार्ग दिखाया है! हमें आपसी प्रेम और भाईचारे के जोड़ से राममंदिर की इन शिलाओं को जोड़ना है। हमें ध्यान रखना है,जब जबमानवता ने राम को माना है विकास हुआ है, जब जब हम भटके हैं विनाश के रास्ते खुले हैं! हमें सभी की भावनाओं का ध्यान रखना है। हमें सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास करना है। अपने परिश्रम, अपनी संकल्पशक्ति से एक आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है।


साथियों,

तमिल रामायण में श्रीराम कहते हैं-

“कालम् ताय, ईण्ड इनुम इरुत्ति पोलाम्”॥

भाव ये कि, अब देरी नहीं करनी है, अब हमें आगे बढ़ना है!

आज भारत के लिए भी, हम सबके लिए भी, भगवान राम का यही संदेश है! मुझे विश्वास है, हम सब आगे बढ़ेंगे, देश आगे बढ़ेगा! भगवान राम का ये मंदिर युगों-युगों तक मानवता को प्रेरणा देता रहेगा, मार्गदर्शन करता रहेगा! वैसे कोरोना की वजह से जिस तरह के हालात हैं,प्रभु राम का मर्यादा का मार्ग आज और अधिक आवश्यक है।


वर्तमान की मर्यादा है, दो गज की दूरी- मास्क है जरूरी। मर्यादाओं का पालन करते हुए सभी देशवासियों को प्रभु राम स्वस्थ रखें, सुखी रखें, यही प्रार्थना है। सभी देशवासियों पर माता सीता और श्रीराम का आशीर्वाद बना रहे।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, सभी देशवासियों को एक बार फिर बधाई!

बोलो सियापति रामचंद्र की…जय !!!

Saturday, August 1, 2020

भाई बालमुकुन्द जी

अगस्त, 1928 के 'किरती' में प्रकाशित यह लेख भगत सिंह या उनके किसी साथी का लिखा हुआ है।।

अब तक हम पंजाबी शहीदों के जीवन 'किरती' में बिना क्रम के ही छापते रहे हैं। कभी बब्बर अकाली शहीदों के जीवन छापे तो कभी 1914-15 वाले गदर पार्टी के शहीदों के। कभी 1908 वाले मदनलाल जी का ही जीवन छापा। अब हमारा इरादा है कि उनके जीवन-वृत्तान्त को उसी तरह छापते हुए भी उन आन्दोलनों का क्रमश: हाल लिखें ताकि हमारे पाठक समझ सकें कि पंजाब में जागृति कैसे पैदा हुई और फिर काम कैसे होता रहा और किन कामों के लिए, किन विचारों के लिए, उन शहीदों ने अपने प्राण तक उत्सर्ग कर दिये। वास्तव में अब का आन्दोलन 1907 से ही चलता है और फिर वह कभी किसी रंग में और कभी किसी ढंग से चलता चला गया 1907 में बड़ा भारी आन्दोलन हुआ। जोश में आये लोगों ने कई जगह दंगे, झगड़े किये, उनकी कुछ बातें सरकार ने मान ली और फिर आन्दोलन को कुचल डाला। बाद में 1908-09 में लिटरेचर पैदा करने और अच्छे-अच्छे विचारों को पक्का करने का काम होता रहा। बाद में एक खुफ़िया सोसायटी बन गयी, जिसका परिणाम दिल्ली बम केस से प्रकट हुआ। इसमें चार सज्जनों श्री अमीरचन्द जी, श्री अवध बिहारी , श्री  बालमुकुन्द जी और श्री बसंत कुमार विश्वास को फांसी हुई। बाद में कामागाटामारू की बजबज घटना हो गयी और 1914-15 यानी अगले ही वर्ष गदर-लहर की रौनक हुई और तीन-चार साल तक यही हंगामा रहा। 1919 में विद्रोह हुए और मार्शल लॉ लगा। फिर असहयोग आन्दोलन चला और अकाली आन्दोलन चले और आखिर में बब्बर अकाली आन्दोलन चला, जिसमें 10-12 लोग फाँसी पर लटकाये गये या लड़ते-लड़ते शहीद हो गये। पंजाब में बलिदान और आन्दोलनों का इतिहास हिन्दुस्तान में सब प्रान्तों से अधिक सुन्दर और गर्व योग्य है, लेकिन अफ़सोस है कि उसे अभी तक किसी ने क्रमिक रूप में लिखा ही नहीं। आज हम दिल्ली-षड्यंत्र के शहीद, शहीद भाई बालमुकुन्द जी का जीवन लिख रहे हैं। अगली बार हम दिल्ली-षड्यन्त्र का इतिहास भी देंगे और हम उनके साथ के और शहीदों के हालात भी लिखेंगे। श्री गुरु तेगबहादुर साहब की जब औरंगज़ेब ने दिल्ली में हत्या करवायी थी तब उनके साथ एक ब्राह्मण भाई मतिदास भी थे और उन्हें भी आरे से चीरकर शहीद किया गया था तब से इनके खानदान को भाई का खिताब मिला हुआ है। भाई बालमुकुन्द जी इसी खानदान में से थे। आप हरियाणा जिला झेलम के रहने वाले थे। भाई परमानन्द जी के चाचा के लड़के थे। आपने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की थी।

आप तब जोधपुर के राजा के लड़कों को पढ़ाते थे, जब आपको गिरफ्तार किया गया था। वहाँ आपके घर की तलाशी ली गयी। आपके गाँव में भी घर की तलाशी हुई, लेकिन कोई चीज ऐसी न मिली जिससे कि आपके खिलाफ़ कुछ साबित किया जा सके। वास्तव में 1907 में जो आन्दोलन चला था उसके साथ ही कुछ आदमियों में जोश भर गया था। 1908 की भारतमाता बुक सोसायटी और लाला हरदयाल के प्रचार ने भी कुछ और रंग चढ़ा दिया। उसके बाद बंगाल के एक-दो आदमी इधर आये। उन्होंने इनमें बहुत-से नौजवानों को एक खुफिया पार्टी में शामिल किया। 1910 में श्री रासबिहारी बोस ने आकर पंजाब का काम स्वयं संगठित किया, जिसमें कि भाई बालमुकुन्द को ही लाहौर का जत्थेदार नियत किया गया। दिसम्बर, 1912 में दिल्ली में वायसराय का जुलूस निकल रहा था बड़़ी शानो-शौकत, बड़ी रौनक और हो-हल्ला मचा हुआ था। चाँदनी चौक में से जुलूस जा रहा था। वायसराय लॉर्ड हार्डिंग चौकी पर सवार थे। अचानक एक ओर से बम गिरा। वायसराय घायल हो गया और एक नौकर मर गया। बड़ा शोर हुआ। बड़े हाथ-पाँव मारे गये, लेकिन कुछ पेश न चली। कुछ पता न चला कि यह काम किसने किया। पाँच-छह महीने गुज़र गये। लाहौर के लारेन्स गार्डन के मिण्टगुमरी हॉल में घोड़ों का नाच हो रहा था। हॉल से बाहर एक बम फट गया। इससे एक हिन्दुस्तानी चपरासी मर गया। उस समय कोई गिरफ्तारी न हो सकी। फिर कहा जाता है कि एक बम लाहौर के किले में चला, उसका भी कुछ पता न चल सका। लारेन्स बाबू के बम चलने से कोई सात-आठ महीने बाद बंगाल में किसी जगह तलाशी थी। अवध बिहारी का दिल्ली का पता हाथ लग गया। उनकी तलाशी हुई और एक पत्र लाहौर से आया पकड़ा गया उस पर मेहर सिंह के दस्तखत थे। है। पूछने पर उन्होंने बता दिया कि यह पत्र दीनानाथ का लिखा हुआ कई दीनानाथ लाहौर में पकड़े गये। आखिर में असली दीनानाथ भी मिल गया, जिसने कुछ दिनों में पूरा भेद खोल दिया और सरकारी वायदा-माफ गवाह बन गया। उसके बयान से कोई बारह आदमी और पकड़े गये। जोधपुर से भाई बालमुकुन्द जी भी पकड़े गये।
दिल्ली में मुकदमा चला। सबसे बड़ा आरोप था, 'लारेन्स गार्डन का बम और तख्ता पलटने के परचों की योजना।' भाई बालमुकुन्द चूँकि लाहौर के जत्थेदार थे और बड़े योग्य व कट्टर देशभक्त थे, इसलिए आपके खिलाफ़ कुछ भी सबूत न होने के बावजूद फाँसी की सज़ा दे दी गयी चीफ कोर्ट का जज अपील के फैसले में स्वयं लिखता है

"Firstly, it is pointed out rightly enough that the search of his houses at Jodhpur and Karyala, his home in the Jhelum district, failed to reveal anything in his possession any conditions literature. Secondly admit tedly he had no direct connection with the Lahore bomb outrage or the July leaflets."

यानी, यह तर्क पेश किया गया है कि उनके घरों की तलाशी से कोई कागज़ ऐसा नहीं निकला जोकि विद्रोह का प्रचार करने वाला हो। और दूसरी बात यह भी ठीक है कि लाहौर बम से और जुलाई में बाँटे गये तख्ता पलट परचों से भी उनका कोई सम्बन्ध प्रमाणित नहीं होता और इस मुकदमे में और किसी बम का ज़िक्र भी नहीं, फिर भी उन्हें मौत की सज़ा क्यों दी गयी? जज लिखता है कि क्या हुआ यदि उनसे लाहौर में बम चलाने से पहले नहीं पूछा गया, क्या हुआ कि यदि वे उन दिनों लाहौर में नहीं थे, क्या हुआ यदि इस बात का भी प्रमाण नहीं कि बाद में भी उन्हें बम चलाने की खूबर दी गयी। आखिर वह षड्यन्त्र का सदस्य तो था हो, वह साजिश में शामिल तो हो ही चुका था बस, इसी से वह हत्या का जिम्मेदार है और कानून के अनुसार उसे फाँसी की सजा मिलनी चाहिए। कानून की विशेषताओं का अब क्या जिक्र करें? हद ही हो गयी है। आपको फाँसी की सजा दी गयी, क्योंकि आप बड़े कट्टर तख्ता पलटने वाले थे और बड़े योग्य थे। देशभक्ति की भावना बड़े जोरों से भरी हुई थी और दूसरी बात यह थी कि दिल्ली बम के चल जाने के बाद भी उसके चलाने वालों का पता न चल सकने से सरकार का रोग खत्म हो गया था। O-Dyer (ओडायर) नया-नया लाट बनकर आया था, वह यह बरदाश्त नहीं कर सका। वह मेरा क्रोध इसी मुकुदमें में निकाला गया। एक सज्जन बड़े सुन्दर शब्दों में ओडायर की पॉलिसी का जिक्र करते थे। वे कहते हैं कि ओडायर की पॉलिसी थी

"Guilty or not guilty, a few must be punished to maintain the prestige of the Govt."

यानी, चाहे अपराधी हों या निर्दोष कुछ आदमियों को सज़ा ज़रूर दी जायें, ताकि सरकार के रोब में कमी न हो। खैर! आपको फांसी की सजा हुई। आपने बड़ी प्रसन्नता से सुनी। अपील खारिज हो चुकने के बाद आपको 1915 में फांसी पर लटका दिया गया। लोग बताते हैं कि आप बड़े चाव से दौड़े-दौड़े गये। फांसी के तख्ते पर चढ़ गये और अपने हाथों से ही फाँसी की रस्सी को गले में डाल लिया। भाई बालमुकुन्द जी की अपनी शहादत बड़ी ऊँची और पूजा योग्य है, लेकिन उनके बलिदान को उनकी धर्मपत्नी के अतुलनीय प्रेम से, सती होने से और भी चार चाँद लग गये। भाई बालमुकुन्द जी जेल में बन्द थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रामरखी उनसे 44 मिलने आयीं। पूछा, "रोटी कैसी मिलती है?" उत्तर मिला, "आधी रेत और आधे आटे की जली हुई और बिल्कुल कच्ची रोटी मिलती है।" नमूना ले लिया। घर जाकर वैसा आटा तैयार किया, वैसी ही रोटी पकायी। कहा - "जब मेरे प्रीतम आप ऐसी रोटी खाते हैं तो मैं इससे अच्छी कैसे खा सकती हूँ।" वैसी ही रोटी खाती रहीं। फिर एक बार मुलाकात हुई। पूछा, “इतनी सख्त गर्मी में सोते कहाँ हैं?"

जवाब मिला, "अँधेरी कोठरी में, सख्त गर्मी में दो कम्बल मिलते हैं।" घर आ 44 गयीं। घर की सबसे पिछली कोठरी में जाकर सो गयीं। मच्छर काट-काटकर खाते 44 थे। क्या करतीं? वहीं सोना था । सखी- सहेलियों ने कहा, "पगली, यह भी कोई जिन्दा रहने वालों का तरीका है?" श्रीमती रामरखी ने पूछा, "तो क्या ऐसे रहने वाले बचते नहीं?" सखियों ने कहा, "और क्या। इस तरह करने वाले भी क्या बचे हैं?"

उनकी आँखें भर आयीं। सहेलियाँ चुप होकर बैठ गयीं, वह वहीं सोती रहीं। एक दिन वे भीतर निढाल पड़ी थीं कि बाहर से औरतों के रोने-चिल्लाने की आवाजें आयीं। सब समझ लिया कि उनके प्रीतम भाई बालमुकुन्द जी को फाँसी हो चुकी है। उनकी लाश भी नहीं दी गयी। उठीं। नहायी-धोयी, सुन्दर-सुन्दर कपड़े और आभूषण पहनकर फर्श पर उनके ध्यान में मग्न होकर बैठ गयीं। फिर वे उठीं नहीं। धन्य थे भाई बालमुकुन्द और धन्य श्रीमती रामरखी। उन्होंने हिन्दुस्तानी क्रान्ति को कितना सुन्दर बना दिया।