Sunday, October 3, 2021

किस्मत के मारे बेचारे

विकलांग जिन्हे प्रधामंत्री मोदीजी दिव्यांग कहकर संबोधित करते है। पैदायशी विकलांग होने से बड़ा दुख कुछ भी नही है।  एक बच्चा जिसके हाथ की उंगलियां ना हो या पैर लगड़ाते हुए चले , गूंगा बहरा या अंधा हो उसकी पीड़ा वही समझ सकता है। स्कूल में बच्चे चिढ़ाते है और बाहर आओ तो लोग हाथ देखकर बार बार पूछते है अरे ये कैसे हुआ तुम्हारे साथ? चारे के मशीन में हाथ डाल दिए थे क्या? जब लड़का बताता है नही पैदा हुआ था तो इसी तरह था तो कुछ कहते है ज़रूर इसकी मां ने ग्रहण के दौरान प्याज काटा होगा होगा या इसके पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम है, कुछ लोग सीधा लंगड़ा लूला कहकर उपहास करते है मजाक उड़ाते है आदि बकवास की बाते सुनकर बच्चा मानसिक पीड़ा से गुजरता है की उसका मन आत्महत्या करने का करता है वो अंदर ही अंदर ही तड़पकर रह जाता है।

हालात ऐसे रहते है की ऐसे लोग लोगो से बोलना ही छोड़ देते है या कम बोलते है। जो बोलते है तो वो गुस्से में उनका चिढ़चिड़ापन बाहर निकल आता हैं।  वो अकेले रहते है तो आंखे में आंसू आ जाता है उनके , वे खुद से ही घृणा करने लग जाते है। पुरषों का तो चलिए ठीक है कैसे भी दिन गुजर जाता है पर महिलाओं कि तो दुर्गति हो जाती है। सरकार भले विशेष सुविधा प्रदान कर रही हो लेकिन उसका लाभ क्या दिव्यांगजन सही से उठा पाते है ? ये सोचने वाली बात है।जिला अस्पताल में प्रमाण पत्र बनवाना भी किसी झंझट से कम  नही है। प्रमाण पत्र में जिसका 40% या इससे अधिक होता है वही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है। पर उनका क्या जो जिनका जो पैदायशी विकलांग है उनकी विकलांगता पर सीएमओ साहब 40% से कम प्रमाण पत्र जारी कर देते है उनकी तो जिंदगी झंड हो जाती है बेचारे ना इधर के होते है ना उधर के। यह गंभीर समस्या है सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए। चलिए सरकारी नौकरीयो में दे सकते है मत दीजिए शिक्षा के क्षेत्र उसका कोटा खत्म मत कीजिए।  सरकार क्या उन लोगो का भी जातीय आरक्षण खत्म करेगी जो बड़े - बड़े पदों पर बैठे है? हिम्मत ही नहीं है सब वोट खिसक जायेगा वोट तो बात की बात है देश में आगजनी और दंगा  होने लगेगा । यही सत्य है जो कुछ नही कर सकते है और हालात से लाचार है इस देश का संविधान और इसको चलाने वाले लोग उसी पर अपना जोर लगाते है।