Friday, April 14, 2023

देश के ऊपर के पंथ को रखेंगे तो आजादी खतरे में पड़ जायेगी !

 
26 जनवरी,1950 को भारत एक स्वतंत्र देश होगा। उसकी स्वतंत्रता का क्या होगा? क्या वह अपनी स्वतंत्रता बनाए रखेगा या फिर इसे खो देगा? यह पहला विचार है, मेरे दिमाग में आता है। ऐसा नहीं है कि भारत कभी भी एक स्वतंत्र देश नही था। मुद्दा यह है कि उसने एक बार अपनी स्वतंत्रता खो दी थी।क्या वह इसे दूसरी बार खो देगा ? यही सोच मुझे भविष्य के लिए सबसे ज्यादा चिंतित करती है। जो बात मुझे बहुत परेशान करती है, वह यह है कि न केवल भारत ने पहले एक बार अपनी स्वतंत्रता खोई है, बल्कि उसने इसे अपने ही कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात से खो दिया है। मोहम्मद-बिन-कासिम द्वारा सिंध के आक्रमण में, राजा दाहर के सैन्य कमांडरों ने मोहम्मद-बिन-कासिम के एजेंटों से रिश्वत स्वीकार की और अपने राजा के पक्ष में लड़ने से इनकार कर दिया। यह जयचंद ही थे, जिन्होंने मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण करने और पृथ्वीराज के खिलाफ लड़ने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें अपनी व सोलंकी राजाओं की मदद का वादा किया। जब शिवाजी हिंदुओं की मुक्ति के लिए लड़ रहे थे, तो अन्य मराठा कुलीन और राजपूत राजा मुगल सम्राटों की तरफ से लड़ाई लड़ रहे थे। जब अंग्रेज सिख शासकों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे, तो उनके प्रमुख सेनापति गुलाब सिंह चुप हो गए और सिख साम्राज्य को बचाने में मदद नहीं की।

क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? यह चिंता इस तथ्य की अनुभूति से और भी गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारे शत्रुओं के अलावा हमारे पास विविध और विरोधी  राजनीतिक पंथों वाले कई राजनीतिक दल होने जा रहे हैं। क्या भारतीय अपने देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे?मुझे नहीं पता। लेकिन यदि पार्टियां देश के ऊपर पंथ को रखेंगी, तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी। इस घटना से हम सभी को सख्ती से बचना चाहिए। हमें अपने खून की आखिरी बूंद से आजादी की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।

26 जनवरी, 1950 को भारत इस अर्थ में एक लोकतांत्रिक देश होगा कि उस दिन से भारत में लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए सरकार होगी। लेकिन उसके लोकतांत्रिक संविधान का क्या होगा? क्या वह इसे बनाए रख पाएगा या खो देगा। यह दूसरा विचार है, जो मेरे दिमाग में आता है और मुझे पहले की तरह चिंतित करता है। ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या है। एक समय था, जब भारत गणराज्यों से भरा हुआ था, और जहां राजतंत्र थे, वे या तो निर्वाचित थे, या सीमित थे। वे कभी निरपेक्ष नहीं थे। ऐसा नहीं है कि भारत संसदीं या संसदीय प्रक्रिया को नहीं जानता था। बौद्ध भिक्षु संघों के एक अध्ययन से पता चलता है कि न केवल संसदें थीं- क्योंकि संघ और कुछ नहीं, बल्कि संसदें थीं- बल्कि संघ आधुनिक समय में ज्ञात संसदीय प्रक्रिया के सभी नियमों को जानते और उनका पालन करते थे। यह भारत जैसे देश में बहुत संभव है कि यहां लोकतंत्र के तानाशाही को जगह देने का खतरा है। इस नए जन्मे लोकतंत्र के लिए यह काफी संभव है कि वह अपने स्वरूप को बरकरार रखे, लेकिन वास्तव में तानाशाही की जगह दे। यदि भूस्खलन होता है, तो दूसरी आशंका के वास्तविकता बनने का खतरा कहीं अधिक होता है।

~डॉक्टर भीमराव आंबेडकर 

( बाबा साहब द्वारा 25 नवंबर ,1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का संपादित अंश , स्रोत: अमर उजाला अखबार)