Thursday, December 23, 2021

हाथी जितना सुस्त होगा कमल उतना ही खिलेगा।

लेखक: कृष्णकांत उपाध्याय

मैं खुद को चुनाव विशलेषक नहीं मानता, लेकिन अभी कुछ दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में जाना हुआ, तो मालूम पड़ा की भाजपा वापसी कर रही है लेकिन जैसी वापसी भाजपा के लोग बता रहे हैं। भाजपा वैसी वापसी नहीं कर रही है जैसी 2017 में प्रचंड बहुमत थी, वापसी 230+ सीटों के साथ कर रही है क्योंकि तथाकथित किसान आंदोलन का खामियाजा उठाना पड़ेगा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में बाकी पूर्वांचल, अवध और बुंदेलखंड में भाजपा मजबूत नजर आ रही है और यहां जौनपुर और आजमगढ़ को छोड़ दें तो भाजपा हर जगह से एकतरफा निकल रही है।

भाजपा के वापसी का कारण एक नहीं अनेक प्रमुख कारण हैं जैसे-  
               
गावों में 18 घंटे बिजली का रहना, गावों तक सड़कों का जाल बिछना (कुछ क्षेत्रों को छोड़कर), कोरोना काल से ही मुफ्त राशन, लाकडाउन के समय महिलाओं के जनधन अकाउंट में तीन माह तक ₹500 तक देना, किसानों के अकाउंट में सलाना ₹6000 का वितरण, अयोध्या दिपोत्सव, अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि का निर्माण, काशी में बाबा काशी विश्वनाथ जी का कारीडोर, मुफ्त कोरोना वैक्सीन, इत्यादि। ये सारी चीजें भाजपा को जमीनी स्तर तक पहुंचने में मदद की हैं। 

योगी आदित्यनाथ की छवि

सबसे अधिक अगर भाजपा को जमीन से जोडने का काम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुलडोज़र चलाने वाली छवि ने कार्य किया है। 
इस सब से प्रदेश के लोगों को लगा की उत्तर प्रदेश में कोई पहला मुख्यमंत्री है जो बाहुबलियों को घुटने टेकने पर मजबूर किया है। शहर में किसी को लगे या ना लगे लेकिन गावों में लोग इससे प्रभावित हुए हैं।

विपक्ष के बयान वीरों के घातक बयान- 

भाजपा को मजबूती देने का कुछ काम तो विपक्ष में बैठे बयान वीरों ने ही किया है जैसे - अखिलेश यादव का कोरोना वैक्सीन पर दिया गया ज्ञान, अखिलेश यादव का जिन्ना के प्रति दिया गया ज्ञान भी इस कड़ी में भाजपा को आगे कर रहा है और अभी हाल ही में कई सपा नेताओं द्वारा लडकियों के शादी की उम्र को लेकर दिया गया बयान भी भाजपा को मजबूती देने का काम किया है।

इस बयान वीरों की श्रृंखला में केवल समाजवादी पार्टी के बयान वीर नहीं है बल्कि इस देश के सबसे बड़े बयान वीर माननीय श्री राहुल गांधी जी भी आगे ही हैं। उनका हिंदू और हिंदुत्व पर हर तीसरे दिन दिया जाने वाला बयान प्रियंका वाड्रा के मंदिर दर्शन और तिलक को तिरस्कृत कर रहा है। एक तरफ प्रियंका वाड्रा मंदिर में जाकर कांग्रेस को प्रदेश में तीसरे नंबर की पार्टी बनाने की कोशिश कर रही हैं तो राहुल गांधी अपने हिंदू-हिंदुत्व ज्ञान से कांग्रेस को और नीचे धकेल रहे हैं।

औवैसी फैक्टर - 

वैसे तो असुद्दीन औवैसी को विपक्ष की पार्टियां भाजपा की B टीम कहती हैं और उनका ये कहना गलत नहीं है क्योंकि औवेसी जहाँ भी चुनाव लड़ते हैं वहां मुस्लिम मतों में बिखराव कर भाजपा को मदद ही करते हैं। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया फिर उसके पश्चात बिहार में आरजेडी और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। अब जहां मुस्लिम मतों का बिखराव होगा वहां विपक्षी पार्टियों को नुकसान तो होगा ही और यही नुकसान भाजपा को फायदा पहुंचाता है। 

बसपा का जमीनी स्तर पर कमजोर होना - 

भाजपा के जीत का आखिरी कारण और मजबूत कारण बसपा का जमीनी स्तर पर कमजोर होना है। हाथी जितना सुस्त होगा कमल उतना ही खिलेगा। क्योंकि बसपा का कोर वोटर समाजवादी पार्टी को कभी वोट नहीं करता है और ना ही कभी करेगा। इसका उदाहरण 2019 के लोकसभा चुनावों में देखा जा चुका है सपा- बसपा गठबंधन के बावजूद बसपा का कोर वोटर सपा को वोट नहीं किया और नतीजा सपा अपने घर की सीटें भी हार गई। बसपा के न जीतने की स्थिति में बसपा के वोटर भाजपा को वोट करेंगे और भाजपा मजबूत होती जाएगी...

ऐसा नहीं है कि सपा मजबूत नहीं है लेकिन अभी की सपा कमजोर हो गई है। 2012 में जब सपा प्रचंड बहुमत से सरकार में आई थी तो वो वक्त अलग था। उस समय मुलायम सिंह यादव, आजम खां, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल यादव जैसे नेता का जमीन पर पकड़ और अपने मतों को जोड़े रखने की राजनीतिक कौशल मजबूत थी। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात से बाहर नहीं निकले थे। नरेन्द्र मोदी का लहर नहीं था। उस समय योगी आदित्यनाथ जी का प्रदेश राजनीति में जन्म नहीं हुआ था वो एक लोकसभा और आस पास तक ही सीमित थे। लेकिन आज अखिलेश यादव अकेले हैं ना मुलायम सिंह यादव सक्रिय हैं ना आजम खां जो अपने पारम्परिक मतों के बिखराव को रोक लें। शिवपाल सिंह यादव का दल तो अखिलेश यादव से मिल गया लेकिन दिल मिलने में वक्त लगेगा क्योंकि ये चुनावी मिलन है पारिवारिक मिलन नहीं और इसीलिए दल मिले हैं दिल नहीं। और जब तक दिल मिलेंगे तब तक देर हो गई होगी....

बाकी समय का इंतजार करें। 

( लेखक  इलहाबाद विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास एंव हिंदी विषयों में स्नातक और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से शिक्षा शास्त्र में स्नातक हैं। हिन्दी एंव शिक्षाशास्त्र से परास्नातक किया हैं।)
 

Monday, December 13, 2021

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से शिव के कॉरिडोर तक

 संस्कृति से सरोकार न रख कर सर्वांगीण विकास का सपना देखने वाले राष्ट्र कालांतर में बरबाद गये। भारत में भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को वर्षों तक उपेक्षित किया गया। देश का सौभाग्य है कि इसके महत्व को समझने वाला भारत माता का एक ऐसा सच्चा सपूत नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी के रूप में अवतरित हुआ। जिसने अपने सांस्कृति राष्ट्रवाद के विचारों को अमली जामा पहनाते हुए पूरे विश्व में इसकी धाक जमा दी है। समाज की समझ जरूरी है, भारत जैसे विशाल देश की समझ सामान्य नागरिक के बस की बात नहीं हैं। मैं मोदी को तो एक एक परिपक्व समाजशास्त्री मानता हूं और उसका की परिणाम है कि भारत पूरी तेजी से विकास की राह पर अग्रसर है। पूरा विश्व भारत के नेतृत्व को स्वीकार करने को मानसिकता बना रहा है।
भारत सदियों अनेक बाह्य एवं आंतरिक आक्रमणों एवं कुचक्रो के बाद भी एक जीवंत राष्ट्र बना रहा, उसका मूल धारणा उसकी संस्कृति एवं संस्कृति की निरंतरता रही है।भारत का प्राण उसकी संस्कृति है और उसकी प्राण वायु प्रदान करने वाली 135 करोड़ देशवासियों की विशाल फौज देश के प्रति अगाध श्रद्धाभक्ति भागौलिक राष्ट्रवाद की संकल्पना नही ला सकती है । सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत ऋषि मुनियों एवं अनेकानेक वैदिक ग्रंथों ने संपूर्ण सृष्टि के कल्याण कि जो कल्पना की वह अन्यत्र देश में नहीं मिलती है। हम संस्कृति के पोषक पुजारी हैं संस्कृति हमारी पहचान है। संस्कृति हम सभी को आपस में प्रेम एवं बंधुत्व का सटीक पाठ कराते हुए न केवल दिल से जोड़ती है अपितु मानवीय गुणों की समस्त आवश्यकताओं एवं संभावनाओं से युक्त बनाती है। औपनिवेशिक शक्तियों एवं दुर्दांत मुगल आक्रमणकारियों ने जितना हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने का प्रयास किया ,उतना ही वें असफल हुए। यह सही है कि हमारी पहचान मिटाने की कोशिश की गई और इसी क्रम में हमारे धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहरों एवं आस्था के केंद्रों को ध्वस्त कर दिया गया। हमारा मनोबल टूटा लेकिन यह बहुत दिनों तक निम्न रहा। ऐसा नेतृत्व आया जिसने टूटे मनोबल को पुनर्जीवित किया और सम्मान की ज्योति आकाश को छूने लगी है। 

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत की सांस्कृतिक, भौगोलिक, प्रजातीय इत्यादि विविधताओं को एकता में परिवर्तित करता है। इसमें हमें जो बल प्राप्त होता है वह राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल करता है। इस भावना की प्रबलता को बनाए रखना देश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। हमें अपने सांस्कृतिक आधारों को मजबूती प्रदान करना है ताकि राष्ट्रप्रेम की भावना अक्षुण हो और देशभक्ति की अलख पूर्ण सम्मान के साथ निरंतर जलती रहे। हमारे प्रधानमंत्री जी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जो अलख जलायी, उसके अंतर्गत संपूर्ण भारत में विविध कार्य सम्पादि किये जा रहे हैं। एकता के नैतिक प्रतीक सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्मारक एक सफल प्रयास है। 
देश की सांस्कृतिक एकता का संभावना शिव है जो काशी के अधिष्ठता हैं। काशी भारतीय धर्म एवं संस्कृति का जीवंत संग्रहालय हैं। यह देवाधिदेव महादेव विश्वनाथ की ऐसी नगरी है जिसके कण- कण में विद्यमान है। शिव की महिमा अपरंपार है। वे परम ब्रह्म हैं। काशी संपूर्ण भारत में पूजनीय है। काशी का जीवन शिव के विराट व्यक्तित्व की छवि है। द्रविड़ सभ्यता हो या देश की कोई भी सभ्यता और सभी ने शिव की इस नगरी को अपने तीर्थ स्थली के रूप में अंगीकार किया है तथा काशी विश्वनाथ के दर्शन को प्राप्त करने के सुयोग की कामना की है। प्रत्येक हिंदू काशी आने को अपना सौभाग्य मानता है और शिव दर्शन को अहोभाग्य। यह शिव के कारण ही अनेकता में एकता का अद्भुत परिवेश दिखाई पड़ता है। एकात्मकता जो दर्शन होता है वह संपूर्ण काशी के अधिवास के प्रतिरूप को देखकर समझा जा सकता है। काशी लघु भारत है। विश्वनाथ की नगरी में क्षेत्रीय था एवं प्रांतीय था कि संकीर्ण में भावना नदारद है। इसी का परिणाम है कि सर्वत्र काशी की भी पूछ होती है, वह सर्वत्र पूजनीय और वंदनीय होता है। शिव शंकर और गंगा से युक्त काशी सर्व समर्थ है लेकिन वर्षो से विश्वनाथ दरबार का एक ऐसा स्वरूप भी है जो सब को कष्ट देता रहा है तथा मंदिर की छवि को धूमिल करता रहा है। वह है, इसके आसपास संकरी तंग गलियां, अपर्याप्त दर्शन, भीड़ भाड़ व अव्यवस्था तथा गंगाजी तक की कष्टकारी पहुंच। श्री विश्वनाथ मंदिर हिंदू एकता का एक ऐसा अद्वितीय विशाल आस्था का केंद्र है, जहां ही नहीं विदेशों से भी हिंदू भक्त प्रति वर्ष श्रद्धा पूर्वक आते हैं। शिव प्रदत्त सांस्कृतिक एकता में जो सबसे बड़ी बाध थी, वह मंदिर में प्रवेश से लेकर ज्योति स्वरूप लिंग के संगम दर्शन पूजन तक की रही। किसी जमाने में मां गंगा जो वहीं पास से बहती रही, श्रद्धालु उनमें स्नान कर मंदिर में प्रवेश करते रहे। सरकारें आयी और गई किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अंततः वर्ष 2014 में मां गंगा ने नरेंद्र मोदी जी को बुला ही लिया। भगवान शिव का आशीर्वाद ना केवल मोदी जी को ही प्राप्त हुआ अपितु काशी वासियों एवं संपूर्ण देशवासियों को भी प्राप्त हुआ। हमारा आत्म सम्मान पुनः प्रतिष्ठित हुआ है। सनातन धर्म सत्यम शिवम सुंदरम पर आधारित है। ऐसे सनातन धर्म की शाश्वत मोदी जी के प्रयास से और भी सुदृढ़ एवं सुगम हुई है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की यह पहल राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करेगी और भारत को विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठापित करेगी।

( प्रस्तुत लेख काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में प्रोफेसर अरविंद कुमार जोशी जी का है । लेख का का स्रोत "राष्ट्रीय सहारा अखबार"। )