Saturday, May 30, 2020

तथाकथित विचारधारा

आज का युवा कहा जा रहा है देखने वाली बात है। बिना जानकारी के बात करना एक ट्रेंड सा बन बन गया है युवाओं के बीच में जो बहुत ही हानिकारक है। पढ़ने लिखने की उम्र में ये तथाकित एजेंडे का शिकार हो रहे है और हर विचार को लेकर अपनी गलत अवधारणा बनाते हुए दिख जाएंगे जिसका जीता जागता उदाहरण है सोशल मीडिया। आप देखेंगे तो ये लोग किसी मुद्दे को लेके आपस में बहस करते है तो गाली देने पे उतारू हो जाते है और एक दूसरे का खानदान, जाति धर्म , आदि सब देखने लग जाते है। कोई कहता है मेरी ये विचारधारा है तो कोई कहता मुझे इस विचारधारा ने प्रभावित किया ये सही है फलाना ढिमका सब होता है भले कुछ ना जानते हो इन सबके बारे में इसके बावजूद भी एक दूसरे से भिड़ जाते है। क्या ये तथाकथित विचारधारा इनका पेट भरता है? या इनके कॉलेज की फीस भरता है और इनका खर्चा चलाता है? जी नहीं, इनमें से कुछ होता नहीं है दरअसल बात ये है कि ये पढ़ने के उम्र में इतना इन सबमें लीन हो जाते है कि तथाकथित विचारधारा वाले संगठन इन्हें बरगला देते है सोशल मीडिया के माध्यम गलत और उलूल जुलुल जानकारी देकर, इनके बीच अनेक भ्रांतिया पैदा कर देते है जो युवा सतर्क नहीं रहा इनके चंगुल में आसानी से फस जाता है। इसमें युवाओं कि भी कोई गलती नहीं है एक तथ्य तो ये भी है कि घर का माहौल कैसा है? देखा जाए तो बहुत कुछ इसपर निर्भर करता है। विचारधारा आजकल जाति को लेकर बन रही है और इसी पर एजेंडा चलाया जा जाता है जो कोई भी इसका समर्थन करता है वो स्वयं पैरो पर कुल्हाड़ी मारने का काम करता है । सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहां ये सब खेल बिना रोक टोक के चलता है। अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों पर ध्यान दे ताकि बाद में ना कहे कि हमारा बच्चा साफ सुथरा है इसे भड़काया गया है!
हद तो तब हो जाती है जब कोई आतंकी या नक्सली मारा जाता है सुरक्षा बलों द्वारा उसे ये तथाकथित विचारधारा संगठन (सक्रिय हो जाता है) कहता है कि " ये भटके हुए नौजवान है" इनका साथ देने के लिए कुछ तथाकथित नेता - परेता और पत्रकार दिख जाते है जिनका काम है देश का माहौल खराब करना। देखा जाए तो भारत में अराजकता बहुत फैल रहा है तमाम युवा इस अराजकता का शिकार हो रहे है। उम्मीद है सरकार इसमें कुछ ठोस कदम उठाने का कार्य करेगी और सोशल मीडिया को इन सबके लिए फटकार के साथ साथ कुछ सख्त कानून भी बनाए।

Thursday, May 28, 2020

वर्तमान स्थिति को देखते हुए राष्ट्रवादी का जोश से भरा हुआ संदेश

 दुश्मनों के वक्षस्थलों को फाड़ कर उनको भस्म करके उनकी राख को भी क्षितिर वितिर कर देने का मज़ा ही कुछ और है ताकि फिर किसी अन्य आक्रांताओं या विदेशी ताकतों में दुस्साहस ना हो हमें आंख उठाकर कर देखें।थर थर कांप उठे शत्रु  वीरों की  रुद्र गर्जन से ।
धरती हुंकार रही है क्योंकि रक्त की प्यासी हो गई है! सिंधु की लहरे प्यासी है बूंद- बूंद रक्त की .. खंडित भारत माता की तस्वीर कहती है उठ अपने मां की दूध की लाज रख पूरे भारतवर्ष में अखंड ज्योति जला रक्त के बूंद से ताकि फिर से भारत अखंड हो जाय।


Wednesday, May 27, 2020

इनके अरमानों को पंचशील के समझौतों ने लील लिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया भर में मानवाधिकारो को लेकर बकैती करता  रहता है पर उसे "तिब्बत" में हो रहा क्रूर न्याय नहीं दिखाई दिया। 1949 से लेकर 1959 तक का यह 10 साल का कालखंड तिब्बत के इतिहास का विनाशकारी और निराशाजनक कालखंड है। एक शक्तिशाली पड़ोसी देश चीन तिब्बत को निगल रहा था और दुनिया चुपचाप उसे देख रही थी इस अमानवीय कृत्य पर विश्व मौन है। तिब्बत के मन्दिर तोड़ दिए गए,पुस्तकालय जला दिए गए और मठों में से साधुओं को बाहर निकाल दिया गया। भारत को उस वक्त तिब्बत का साथ देना चाहिए था आखिर में तिब्बत की संस्कृति ही भारत को उससे जोड़ती थी पर इधर अहिंसा की कसमें खाने वाले '"हिंदी चीनी" भाई - भाई करने में लगे हुए थे। एक दिन ऐसा आया कि इनके अरमानों को पंचशील के समझौतों ने लील लिया। हैरानी की बात तो ये भी है कि पंडित नेहरू के वक्त में ही चीन सरकार लद्दाख में सड़क बनाती रही। भारत सरकार को इसका पता था लेकिन वह उसे छिपाती रही और अंत में जब चीन ने खुद ही घोषणा कर दी कि उसने लद्दाख में सड़क बना ली है तो भारत सरकार के पास दिखावे के लिए भी कोई बहाना नहीं बचा था। 


गाली देने पर वध कर दिया जाता है

आजकल लोगो को क्या हो गया है? शब्दों का आकाल पड़ गया है क्या जो गाली गलौज की भाषा इस्तेमाल करने लगते है। कहने को पढ़े लिखे पर बात वाहियात और जाहिलो से भी गिरे हुए स्तर का करते है। हम एक सभ्य समाज में रहते है खासकर भारत में जो अपनी पुरानी संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है जहा खाते वक्त कुत्ते को भी नहीं टोका जाता वहा पे लोगो का इस प्रकार की घटिया बाते करना निंदनीय और असभ्य होने की निशानी है। यहां है कुछ लोग जो भारतीय संस्कृति को तहस नहस करना चाहते है इसीलिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते है जिसका वर्णन करना भी शर्म कि बात है। ये तथाकथित लोग अपने आप को बुद्धिजीवी समझते है पर ये कैसे बुद्धिजीवी जो अपनी कही गई बातों को तर्क के माध्यम से सिद्ध नहीं कर पाते है तो अभद्र भाषा का प्रयोग करने लगते है । इतना ही नहीं ये कुतर्की लोगो के मा बहन के लिए ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग करते है जिसे सुनते ही आपका भी खून खौल जाय। ये एक बात से अंजान है कि "भरी सभा में सौवीं गाली देने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का शीश काट कर वध कर दिया गया था" जिससे साफ पता चलता है कि हमारे यहां गाली देने वाले को बख्शा नहीं जाता चाहे वो बुआ का ही लड़का क्यों न हो स्वयं इतिहास इसका साक्षी है। सरकार को भी इसपर सख्त एक्शन लेना चाहिए और कब तक सोशल मीडिया को ऐसी हरकतों पर कार्यवाही न करने के लिए माफ किया जाय।

Tuesday, May 26, 2020

और जिम्मेदार लोग इतिहास कि इस समीक्षा से आसानी से बच के निकल गए।


     _शिवम कुमार पाण्डेय

सन 1947, 15 अगस्त भारत आजाद हुआ चारों तरफ खुशहाली थी मिठाईयां बांटी जा रही थी भारत माता की जय के नारे लग रहे थे तो कहीं इंकलाब जिंदाबाद! ब्रिटिश राज का सूपड़ा साफ हो चुका है वह जा चुके हैं पर जाते-जाते उन्होंने अपना एक और मकसद पूरा कर दिया था भारत की बर्बादी उस बर्बादी का नाम है पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र अर्थात भारत का बंटवारा हो गया माता खंडित हो गई इसमें अहम भूमिका भारत के उन नेताओं ने निभाई जो कहा करते थे भारत का बटवारा हमारी लाशो  से गुजर कर होगा,बड़ी-बड़ी बातें हुआ करती थी समय आया तो कोई अनहोनी को रोक नहीं पाया मजहब के आधार पर एक मुल्क बन गया। पाकिस्तान 14 अगस्त को आजाद  हुआ।भारत ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया सभी धर्मों को यहां रहने की आजादी मिली भले ही पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन जारी रहा बंटवारे के वक्त इतना खून खराबा रक्तपात हुआ था कि लाखों लोग मारे गए थे। "भारत का बंटवारा हुआ भारतीयों के लाशों से सत्य अहिंसा की बातें करने वाले देख रहे थे खामोशी से" एक सवाल आज ही उठता रहता है नेहरू को हिंद मिला जिन्ना को पाक मिला शहीद भगत सिंह के सपने वाले भारत को क्या मिला ?
हमें सुखदेव और राजगुरु को भी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने भगत सिंह के साथ ही हंसते हुए फांसी के फंदे को गले लगाया था कि मातृभूमि का उद्धार हो सके पर इन्हें क्या मालूम था आने वाले समय में भारत के टुकड़े हो जाएंगे। चंद्रशेखर आजाद रामप्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अन्य क्रांतिकारी साथियों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता इनके विचारों ने देश में जागृति लाने का काम किया जिससे लोगों के विश्वास हो गया कि अब ब्रिटिश राज का वक्त खत्म होने को आया है पर किसी ने ख्वाबों में भी नहीं सोचा होगा आने वाले समय में यह दिन भी देखने को मिलेगा अपने ही सपूतों के सामने माता टूट के बिखर जाएगी और पूरे भारत को रक्त के आंसू बहाने पड़ेंगे।
आजादी के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहां करते थे "आजादी छीन कर हासिल होती है मांग कर नहीं तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा" काश इस कथन का बाकी लोगों ने भी समर्थन किया होता शायद ये बर्बादी देखने को नहीं मिलती।
एक नाम को लोग हमेशा रटते रहते है महात्मा गांधी ये को शख्सियत है जिसके जिक्र के बिना ये विवाद अधूरा रह जाता है। कुछ लोग कहते है देश के   बटवारे को गांधी जी चाहते तो रोक सकते थे अगर वो नेहरू और जिन्ना के जिद्द के आगे झुकते नहीं। वो चाहते तो सरदार वल्लभाई पटेल का समर्थन कर उन्हें प्रधानमंत्री पद दिलवा कर सारे फसाद की जड़ नष्ट कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले गांधी जी के सामने ऐसी क्या परिस्थिति आ पड़ी कि वो कुछ नहीं कर पाए और मजहब के आधार पर देश बट गया।
गांधी जी की चर्चा तो हर महफ़िल में होती है कोई इनको आदर्श बताता है तो कोई गाली देता है। बिना गांधी के किसी काम नहीं चलता है कोई इन्हें दिल में रखता है तो कोई जेब में। कुछ तो ऐसे है गांधी की तरह दिखने की कोशिश करते है नकल उतारते हुए  उनकी तरह चश्मा और वस्त्र पहनकर निकल पड़ते है और गांधीवादी होने का  ढोंग करते है। मानो तो गांधी एक विचार है न मानो तो लाचार है।
गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई नाथूराम गोडसे ने किया था इसके लिए इस को फांसी की सजा भी हुई। महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को भी समझ अकेला गया इनके खिलाफ केस चला पर कोई नतीजा नहीं निकला। इतना ही नहीं गांधीवादियों ने गांधीवाद को ही मार डाला! गांधीवाद की कसमें खाने वालों ने हत्या की अगली सुबह तक गांधीवाद की भी हत्या कर दी थी। 30 जनवरी 1948 शाम करीब 5:30 बजे गोली मारकर हत्या कर दी गई थी उनके वैचारिक विरोधी गोडसे द्वारा पर इन तथाकथित गांधी वादियों को क्या हो गया था जिन्होंने दंगा भड़काने का काम किया हिंदू महासभा से गोडसे के जुड़े होने के कारण 30 जनवरी की रात को मुंबई और पुणे में हिंदू महासभा,आर एस एस और अन्य हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों और कार्यालाओ पर हमले शुरू हो गए।
Dr koenraad Elst  कि पुस्तक Why I killed the Mhatama के अनुसार 31 जनवरी की रात तक मुम्बई में 15 और पुणे में 50 से अधिक हिन्दू महासभा कार्यकर्ता, संघ के स्वयंसेवक और सामान्य नागरिक मारे दिए गए और बेहिसाब संपत्ति स्वाहा हो गई. 1 फरवरी को दंगे और अधिक भड़के और अब यह पूरी तरह जातिवादी और ब्राह्मणविरोधी रंग ले चुका था. सतारा, कोल्हापुर और बेलगाम जैसे ज़िलों में चितपावन ब्राह्मणों की संपत्ति, फैक्ट्री, दुकानें इत्यादि जला दी गई. औरतों के बलात्कार हुए. सबसे अधिक हिंसा सांगली के पटवर्धन रियासत में हुई।
वीर सावरकर के घर पर भी हमला हुआ था। सावरकर तो बच गए लेकिन उनके छोटे भाई डॉ नारायण दत्त सावरकर घायल हो गए हैं और इसी घाव के कारण सन 1949 में उनकी मृत्यु हो गई। नारायण स्वतंत्रता सेनानी थे इन्होंने समाज में सुधार लाने का भी कार्य किया और समाज से बदले नहीं इन्हें पत्थर ही मिला। उस समय तक दंगों पर पत्रकारिता पर भी रोक लगी थी फिर भी एक अनुमान के अनुसार मरने वालों की संख्या 1000 से कम न थी। यह जितना कुछ भी हुआ सब का सब अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के नाम पर हुआ।महात्मा गांधी की हत्या का आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर भी लगा लोग नाथूराम गोडसे को आरएसएस कार्यकर्ता बताकर आरएसएस को बदनाम करने में लग गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। अगस्त 1948 में गांधी हत्या संयंत्रों से संघ के सदस्य बाइज्जत बरी कर दिए गए। इसके बाद संघ प्रमुख गोलवलकर गुरूजी ने प्रधानमंत्री नेहरु को चिट्ठी लिखकर संघ से प्रतिबंध हटाने की मांग की।संघ प्रमुख का कहना था कि प्रतिबंध जब गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने पर लगा है और आरोपों को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है प्रतिबंध स्वतः ही हट जाना चाहिए।
पहले तो टाल मटोल, आनाकानी हुई फिर शर्ते रखी गई जो संघ के लिए अपमानजनक भी था। बहुत संघर्ष करना पड़ा संघ को इसके बाद कुछ शर्तों के बाद प्रतिबंध वापस ले लिया गया सरकार द्वारा।गांधी जी एक बहुत बड़ी हस्ती थे अपने समय के इस बात में कोई संदेह नहीं है। उनकी हत्या का भारतीय राजनीति पर गंभीर असर पड़ा और आज भी कुछ तथाकथित लोग इसको लेकर घटिया राजनीति करते हुए संघ को बदनाम करते दिख जाएंगे पर कपूर कमीशन की रिपोर्ट पर ध्यान उनका नहीं जाता। भारत विभाजन बहुत बड़ी त्रासदी थी स्नेह हिंदू जनमानस को हिला कर रख दिया या एकदम से झकझोर दिया था। वर्तमान में भी लोग इसका जिम्मेदार कांग्रेस पर गांधी को मानते हैं और अपना गुस्सा जाहिर करते हैं पर गांधी की हत्या एक हिंदू राष्ट्रवादी ने कर दिया था न बस उसी को लेकर कांग्रेस अपनी नाकामियों को छिपाने में लगी रहती है। खैर जब गोलवलकर गुरुजी को महात्मा गांधी की हत्या और उसमें संघ को घसीटे जाने की खबर मिली उन्होंने मौजूद कार्यकर्ताओं से कहा कि संघ 30 वर्ष पीछे चला गया अभी संघ को  22 वर्ष ही हुए थे स्थापना को ऊपर से यह सब। सब कुछ दाव पर लग गया था संघ का कहा जाए तो भविष्य अंधेरे में अगर उस वक्त की स्थिति को देखा जाए तो। हिंदू महासभा हमेशा के लिए समाप्त हो गई और कांग्रेस में भी कुछ हिंदूवादी नेता थे जिन्हें पर्दे के पीछे धकेल दिया गया।कभी भी बंटवारे जैसे त्रासदी पर सार्थक वार्तालाप नहीं हुआ और बंटवारे जैसे त्रासदी के जिम्मेदार लोग इतिहास की इस समीक्षा से आसानी से बच के निकल गए।


Monday, May 25, 2020

स्वर्गलोक में देवताओं के प्रश्न और मै.

किसी ने मुझसे पूछा कब तक तारीफ करोगे अपने देश की?
मैंने बोला, सीने में सांस रहेगी जब तक।
तब तक तारीफ करूंगा मै अपने देश की।

फिर  उसने पूछा कब तक रखोगे राष्ट्रवाद की भावना अपने दिल दिल में?
मैंने बोला, जबतक सूरज उगेगा नील गगन में।
तब तक राष्ट्रवाद कि भावना रहेगी मेरे दिल में।।

किसी दूसरे ने पूछा, क्या तुम खुश हो इस देश में जीवन पाकर?
मैंने बोला,जैसे एक बच्चे को खुशी हुई है अपने मां को पाकर।

आखिरी प्रश्न उठा क्या तुम्हारी तमन्ना है?
मैंने उत्तर दिया,अब अपने देश के लिए कुछ कर गुजरना है।
हर जीवन में अपने भारत देश में ही जन्म लेना है।।


Sunday, May 24, 2020

भारत माता का मुकुट है कश्मीर

एक कविता मैंने लिखी थी बहुत साल पहले जिसको आप लोगो के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं जिसका शीर्षक है "भारत माता का मुकुट है कश्मीर"

भारत माता का मुकुट है कश्मीर
जो भी इसकी मांग करेगा मै उसको दूंगा चीर।।
स्वर्ग से भी सुंदर है हमारा कश्मीर
इसकी रक्षा करने के लिए शरहदो पर
सीना तान के खड़े भारत माता के वीर।।

बुरी नजर से ना देखो इसे 
भारत माता का मुकुट है कश्मीर।
सपनो में भी ऐसी हरकत मत करना
वरना आंखो में घुसा दूंगा तीर।।

इस काश्मीर के लिए बहुत कुछ सहते है
भारत माता के वीर।
गिदड़ो से पत्थर भी खाते है वीर
शरहदो पर गोलियां भी अपने सीने पर
हंसते झेल लेते  भारत माता के वीर।।

भारत देश की भूमि का टुकड़ा नहीं है
जो कोई भी आसानी से अलग कर दे
भारत से कश्मीर।।

भारत माता का मुकुट है कश्मीर
जो भी इसकी मांग करेगा मै उसको दूंगा चीर।।
हमे हमारे जान से भी ज्यादा प्यारा है कश्मीर
इसके लिए शहीद हो गए हजारों अनेकों वीर।
ऐसे कैसे ले लोगों तुम कश्मीर,नहीं है ये कोई
किसी के बाप की जागीर।।

भारत माता का है  सम्मान
जो करेगा इसका अपमान
मै ले लूंगा उसकी जान।
छाती ठोक कहता है ये बात हर वीर
जो मांगेगा काश्मीर मै दूंगा उसको चीर।।
भारत माता का मुकुट है कश्मीर...

जय हिन्द जय भारत
वंदेमातरम्


आजाद हस्ती और हिंदुत्व की अग्नि

             (1)
वीर भूमि का वीर पुत्र हूं
कैसे भूल सकता हूं ज़ुल्मो को
एक तरफ देश बटा, कैसे बटने 
दे सकता हू श्रीरामचन्द्र की भूमि को।
ना जाने किन परिस्थितियों में लूट
गया मेरा भारत, अब ना बिखरने देंगे
 इसकी आजाद हस्ती को।।
     
                (2)
जोर लगाओगे तभी  तुम्हारा शोर होगा
हक मिलता नहीं मांगने से छिनना पड़ता है
हिंदुत्व की अग्नि है इसमें तपना पड़ता है
आओ ये प्रण ले कल भारत की तस्वीर बदलेंगे ,
हम हिन्दू भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाके  दम लेंगे ।।


Saturday, May 23, 2020

बचपन में जो माटी चाटी

बचपन में जो माटी चाटी 
इस माटी के खातिर जान देना
अदम्य साहस और वीरता का
परिचय देना !
लाख कोशिश होगी देश विरोधी
ताकतों की देश तोड़ने की, 
संयम और धैर्य बनाए रखना 
वक्त आने पर सीधा इनका
मुंह तोड़ना !
मां और मातृभूमि से बढ़ कर
कुछ नहीं, इसके लिए जीना
और मरना !

Friday, May 22, 2020

पढ़ो, लिखो,समझो तब विचार बनाओ

पढ़ने लिखने के उम्र में जो राजनीतिक पार्टियों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते है  फिर वो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते है। ये 19-25 उम्र होती है पढ़ो लिखो और जानकारी लो। पर इसको मानता कौन है? कुछ विद्वानों की 2-4 बाते पढ़कर , आधी अधूरी जानकारी लेकर आपस में भिड़ जाते है!  इससे समाज को भी गलत दिशा मिलती है , बीमार हो जाता है, समाज में कभी भी ऐसे लोग खुश नहीं रहते हैं। जब देखो तब लड़ते झगड़ते हुए मिल जाएंगे अंत में होता क्या है ? सबको एक दिन श्मशान घाट पे जाना है!
एक बहुत बड़ी खूबी देखिए समाज की केतनहू नीच और गुंडा माफिया किस्म के व्यक्ति जब मर जाता है तो सब बात करते  हुए उसकी बुराई नहीं अच्छाई ही बतीयाते हुए मिल जाएंगे "अरे बहुत बढ़िया आदमी था" मर गए बेचारे भले अपने बाप को लतियाते थे पर बहुत सही आदमी थे! 

गुलाम

आवाज़ है दिल की सुनो,
क्या कहना चाह रहा है ?
हम तो जी लिए मजे में
अपने संतानों का सोचो!
घटिया राजनीति मत करो
वरना विदेशी राज करेंगे
तुम तो जी लिए आजाद 
अपनी पीढ़ी की सोचो
जो हो जाएगी गुलाम 
ना काम होगा ना धाम
बस गुलाम तो गुलाम !

Thursday, May 21, 2020

सिपाही

वो सूरज उगने से पहले जगता था
वो सुबह सुबह  दौड़ता खेलता था।
कॉलेज जाके  मन से पढ़ना भी था
फिर शाम शरीर को रगड़ना भी था।।
क्योंकि जितना रगड़ा उतना तगड़ा।
मेहनत उसकी एक दिन रंग लाई
मां की आंखे खुशी से भर आईं..
बेटा जो बन गया उसका सिपाही।।


घर, गांव और पंछी

           (1)
माटी और खपड़ैल का घर
हम सोते थे इसकी छांव में
अब नहीं दिखता है गांव में
इट के पक्के मकान हो गए
अक्सर याद आती है  मिट्टी
इसकी खुशबू से दूर हो गए
 
          (2)
टिकरी बतासा गोरस ताजा
गांव में आता है बड़ा मजा
गांव से भारत जाना जाता
इसकी कुछ बात निराली
यहां हरियाली ही हरियाली

           (3)
उड़ा पंछी नील गगन में
चैन आया उसके तन में
आजाद होकर पिंजरे से
ली उसने चैन कि सांस..
कौन जीना चाहे कैद में
सबसे प्यारी खुली हवा


गांव की यादे

आम जामुन का पेड़
कभी खेतो का मेढ़
सबकुछ याद आता है
कुछ भुला बिसरा हुआ
धुंधली धुंधली हुई यादे
वो मित्रो के कसमें वादे
माटी का बना खिलौना
वो गोली - लट्टू नचौना
शाम की क्रिकेट विकेट
रेलवे का एल्बम टिकेट
कभी गिल्ली और डंडा
वो  कॉमिक्स  का फंडा 
सबकुछ याद आता है..
और याद याद रह जाता है।।

Tuesday, May 19, 2020

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है।

आरएसएस के आगे किसी की कोई औकात नहीं है भले ही मुंह से कोई शेर बन जाय अलग बात है। किसी को पता भी है 40 राष्ट्र में आरएसएस फैला हुआ है इसके करीब 40 लाख से ज्यादा वॉलंटियर भारत में है। आरएसएस को बदनाम करने से अच्छा कभी इसके साखा में आइए महीनों समय दीजिए इतना आसान नहीं आरएसएस को जानना पूरा खपा देना पड़ेगा। संघ का कार्यकर्ता बहुत  मेहनती और पढ़ा लिखा होता है। 1948 का युद्ध भारत पाकिस्तान युद्ध याद है न कि भूल गए जरा इतिहास में घूसिएगा श्रीनगर का हवाई अड्डा बर्फबारी से ढक गया था और दुश्मन का हमला शुरू हो चुका था। इस हवाई अड्डे को स्वयसेवकों ने 26 घंटे में साफ कर दिया और भारतीय सेना के जवान हवाई मार्ग से आने में सफल रहे। इतना ही नहीं आर्म्स और एम्युनिशन  फंस गया  था जहा पे पकिस्तानी सेना की नजर थी। वहा जाना खतरे से खाली नहीं था फिर भी गए स्वयसेवकों ने प्राण कि परवाह किए बगैर केवनी और घुटनों के बल घिसते और रेंगते हुए गए उधर से धड़ा धड़ गोलियां चल रही है किसी के सीने पे लग रही है किसी खोपड़ी पे पर जज्बा वहीं है। उन्होंने इसमें सफलता पाई आर्म्स और एम्युनिशन लाने में कामयाब रहे जिसमें संघ के 13 कार्यकर्ता वीरगति को प्राप्त हुए। ये भारतीय सेना की बहुत बड़ी मदद थी जिसके फलस्वरूप सेना के बड़े अधिकारियों ने संघ के इन कार्यकर्ताओं को सम्मानित करने का प्रस्ताव भेजा जिसको संघ द्वारा ठुकरा दिया गया। संघ का विचार यह था कि मां की सेवा और वंदना तो हमारा धर्म और कर्म है इसके लिए हमें किसी पुरस्कार की कोई जरूरत नहीं । हम बिना किसी लालसा के भारत माता की सेवा करते रहेंगे। संघ की देश भक्ति पे सवाल खड़ा करना कही से भी उचित नहीं है। इसके आगे और पीछे बहुत किस्से पड़े हुए है। बाकि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है।

Thursday, May 14, 2020

फेक न्यूज : एक एजेंडा


फेक न्यूज़ बड़ी खतरनाक होती है इससे बच के रहे उतना ही अच्छा है । किसी भी खबर को हवा देने पहले तथ्यों को जांच परख ले की ये खबर सत्य है या असत्य ये नहीं कि आप उसपे आंख मूंद के भरोसा करले और सोशल मीडिया के माध्यम से चारो और अनजाने में फेक न्यूज फैलाने का काम करे। सब जानते है किसके क्या विचार है?फिर भी आए दिन बड़े बड़े स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों के विचारों को तरोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है। ये और कुछ नहीं एक एजेंडा चल रहा है लोगो को भ्रमित करने के लिए कि लोग हमारे विचारधारा को अपना ले और उसी मार्ग पर चले परंतु आप सतर्क और सावधान रहे ऐसे संकीर्ण मानसिकता वालो से इसी में आपकी और समाज की भलाई है।
एक फेक न्यूज तो महाभारत में भी उड़ी थी कि अश्वत्थामा मर गया बिना देखे ताके आचार्य द्रोण ने अपने “प्रण” रक्षा हेतु शस्त्र त्याग कर मौन होकर बैठ गए और धृष्टद्युम्न द्वारा उनका शीश काट कर वध कर दिया जबकि मरा उनका पुत्र अश्वत्थामा नहीं “हाथी अश्वत्थामा”(जो भीम द्वारा मारा गया था) था ये मिथ्या को को सत्य मान बैठे आखिर में खबर ही ऐसे पेश कि गई थी धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा “अश्वत्थामा हतो। नरो वा कुंजरो।।” द्रोण ने “अश्वत्थामा हतो” सुना पर “नरो वा कुंजरो” सुना ही नहीं क्योंकि धीमे स्वर में कहा गया था। भारत में डिजिटल इंडिया तो चला पर इसके साथ साथ ” फेक न्यूज एजेंडा” भी चला इसको रोकने की सख्त जरूरत है। सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए तमाम न्यूज चैनलों पर कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर जो भ्रम और झूठी खबरें लोगो को परोसी गई इससे कोई अनिभिज्ञ नहीं है। कुछ समाचार पत्रों , अखबारों ने भी खूब अफवाहें उड़ाई जो की एक शर्मनाक बात है।