Wednesday, May 27, 2020

इनके अरमानों को पंचशील के समझौतों ने लील लिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया भर में मानवाधिकारो को लेकर बकैती करता  रहता है पर उसे "तिब्बत" में हो रहा क्रूर न्याय नहीं दिखाई दिया। 1949 से लेकर 1959 तक का यह 10 साल का कालखंड तिब्बत के इतिहास का विनाशकारी और निराशाजनक कालखंड है। एक शक्तिशाली पड़ोसी देश चीन तिब्बत को निगल रहा था और दुनिया चुपचाप उसे देख रही थी इस अमानवीय कृत्य पर विश्व मौन है। तिब्बत के मन्दिर तोड़ दिए गए,पुस्तकालय जला दिए गए और मठों में से साधुओं को बाहर निकाल दिया गया। भारत को उस वक्त तिब्बत का साथ देना चाहिए था आखिर में तिब्बत की संस्कृति ही भारत को उससे जोड़ती थी पर इधर अहिंसा की कसमें खाने वाले '"हिंदी चीनी" भाई - भाई करने में लगे हुए थे। एक दिन ऐसा आया कि इनके अरमानों को पंचशील के समझौतों ने लील लिया। हैरानी की बात तो ये भी है कि पंडित नेहरू के वक्त में ही चीन सरकार लद्दाख में सड़क बनाती रही। भारत सरकार को इसका पता था लेकिन वह उसे छिपाती रही और अंत में जब चीन ने खुद ही घोषणा कर दी कि उसने लद्दाख में सड़क बना ली है तो भारत सरकार के पास दिखावे के लिए भी कोई बहाना नहीं बचा था। 


2 comments:

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    1. हा कांग्रेसियों कि विदेश और रक्षा नीति हमेशा से फिसड्डी रही है..

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