Monday, September 28, 2020

सामाजिक परिवर्तन सदा ही ताकत और विशेष सुविधाएं मांगने वालो के लिए भय पैदा करता है।

लेखक:- शिवम कुमार पाण्डेय

क्या कह रहे हो तुम्हारी आवाज दबाई जा रही है, तुम पर जुल्म किया जा रहा है।इसीलिए जुलूस निकाल रहे हो तभी मैं कहा इतनी भीड़ क्यों है। पर ये भगत सिंह की  तस्वीर का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो? ओ क्रांति का दूसरा नाम भगत सिंह है! सड़को पर क्रांति होगी तोड़ - फोड़ की जाएगी , वाहनों को फूंका जाएगा रेलवे ट्रैक उखाड़ा जाएगा सबकुछ अस्त - व्यस्त कर दिया जाएगा, और डीजे लगा के नाच गाना किया जाएगा। इसी को छात्र , बेरोजगारों और किसानों का आंदोलन बोला जाएगा। वाह यार वाह गजब की क्रांति है यार पर ट्रैक्टर जो किसानों का मदद करता है उसको फूंक कर भगत सिंह जिंदाबाद के नारे लगाकर उनका अपमान करना  क्या यही विचार है?
भगत सिंह के नाम पर फलनवा - ढिकनवा मोर्चा संगठन बनाके लोगो को भड़काना, महौल खराब बिगाड़ना आदि करना आम बात हो गई है। हद तो तब हो जाती है जब किसी आतंकवादी या नक्सल गतिविधियों में शामिल व्यक्ति की तुलना शहीद भगत सिंह से कर दी जाती है चंद मुट्ठी भर नेताओ और बुद्धिजीवियों द्वारा।
कोई उनका ऐसा पोस्टर लगाता है मानों ये कोई क्रांतिकारी नहीं  गुंडा या माफिया हो ! मतलब एक कट्टा खोस दिया जाता है उनके जेबा में । अरे भाई थोड़ा तो रहम करो इनपर ये कोई मामूली व्यक्ति नहीं है ये वही हैं जिसने कहा था "सामाजिक परिवर्तन सदा ही ताकत और विशेष सुविधाएं मांगने वालो के लिए भय पैदा करता है। क्रांति एक ऐसा करिश्मा हैं जिसे प्रकृति स्नेह करती है और जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती - न प्रकृति में और न ही इंसानी कारोबार में। क्रांति निश्चय ही बिना सोची - समझी हत्याओं और आगजनी की दरिंदा मुहिम नहीं है और न ही यहां - वहां चंद बम फेंकना और गोलियां चलाना है; और न ही यह सभ्यता के सारे निशान मिटाने तथा समायोचित न्याय और समता के सिद्धांत को खत्म करना हैं। क्रांति कोई मायूसी से पैदा हुआ दर्शन भी नहीं और न ही सरफरोशों का कोई सिद्धांत हैं। क्रांति ईश्वर विरोधी हो सकती हैं लेकिन मनुष्य विरोधी नहीं।"
असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और दत्त द्वारा बांटे गए पर्चे में लिखा था "बहरो को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज़ की आवश्यकता। होती हैं," प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलीयां के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं। देखा जाए तो बम को वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया था और उसे खाली जगह फेंका गया था ताकि किसी को हानि ना पहुंचे नहीं अगर ऐसा नहीं होता तो कोई जिंदा ही नहीं बचता इस पर्चे को पढ़ने के लिए।
भूख हड़ताल का भी ढकोसला आजकल बहुत चलता है भारतीय राजनीति में युवा लोग भी कोई दूध के धुले नहीं है इस मामले को लेकर आज भूख हड़ताल शुरू होती है किसी मुद्दे को लेकर और अगले दिन अनार के जूस के साथ खत्म हो जाती है। सोचिए 114 दिन के भूख हड़ताल में कितनी यातनाएं झेलनी पड़ी होंगी शहीद भगत सिंह और उनके साथियों को।

आजकल के युवा पीढ़ी को चाहिए कि भगत सिंह के बारे में अच्छे से जाने पढ़े और समझे की कोशिश करे किसी के बहकावे आने की जरूरत नहीं है। शहीद भगत सिंह का "युवक" और "विद्यार्थी और राजनीति" नामक लेख काफी लोकप्रिय और प्रसिद्ध है जिसको एक बार अच्छे से जरूर पढ़ना चाहिए।
कितनो को तो ये भी नहीं पता होगा की 23 मार्च, 1931 को शाम सात बजे भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देकर उनकी लाशों के टुकड़े - टुकड़े किए गए।फिर फिरोजपुर , सतलुज नदी में बहाया गया। सब बहुत जल्दबाजी में किया गया। टुकड़े करने और अधजली हालत का प्रमाण 24 मार्च ,1931 को शहीद भगत सिंह की बहिन बीबी अमर कौर व अन्य देशवासियों  द्वारा खून - सने पत्थर ,रेत और तेज धार हथियार से कटी अधजली हड्डियां हैं, जिन्हें आजकल खटकड़कलां गांव में प्रदर्शित किया गया है।भगत सिंह पर बनी तमाम फिल्मों में इस सच्चाई को कभी  दर्शाया नहीं गया और युवाओं के बीच में भी कई तरह के भ्रम उत्पन्न किए गए। इतिहास हमसे  मांग करता है कि हम अपनी सूझ बूझ से बलिदानी शहीदों को समझे और संकीर्णता का शिकार होने से बचें । युवाओं को शहीद भगत सिंह का यह कथन गांठ बांध लेना चाहिए - "पढ़ो ,आलोचना करो , सोचो व इसकी (इतिहास की) सहायता से अपने विचार बनाने का प्रयत्न करो।"

Saturday, September 26, 2020

75 वें संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र 2020 में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूलपाठ



अध्यक्ष महोदय, 

संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर, मैं, भारत के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों की तरफ से, प्रत्येक सदस्य देश को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। भारत को इस बात का बहुत गर्व है कि वो संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक है।आज के इस ऐतिहासिक अवसर पर, मैं आप सभी के सामने भारत के 130 करोड़ लोगों की भावनाएं, इस वैश्विक मंच पर साझा करने आया हूं। 

अध्यक्ष महोदय, 

1945 की दुनिया निश्चित तौर पर आज से बहुत अलग थी। पूरा वैश्विक माहौल, साधन-संसाधन, समस्याएं-समाधान सब कुछ भिन्न थे। ऐसे में विश्व कल्याण की भावना के साथ जिस संस्था का गठन हुआ, जिस स्वरूप में गठन हुआ वो भी उस समय के हिसाब से ही था। आज हम एक बिल्कुल अलग दौर में हैं। २१वीं सदी में हमारे वर्तमान की, हमारे भविष्य की, आवश्यकताएं और चुनौतियां अब कुछ और हैं। इसलिए आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है? सदी बदल जाये और हम न बदलें तो बदलाव लाने की ताकत भी कमजोर हो जाती है | अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें, तो अनेक उपलब्धियां दिखाई देती हैं। लेकिन इसके साथ ही अनेक ऐसे उदाहरण भी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं। ये बात सही है कि कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नकार नहीं सकते कि अनेकों युद्ध हुए, अनेकों गृहयुद्ध भी हुए। कितने ही आतंकी हमलों ने पूरी दुनिया को थर्रा कर रख दिया, खून की नदियां बहती रहीं।

इन युद्धों में, इन हमलों में, जो मारे गए, वो हमारी-आपकी तरह इंसान ही थे। वो लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था, वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी, अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। उस समय और आज भी, संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे? पिछले 8-9 महीने से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से संघर्ष कर रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहां है, एक प्रभावशाली Response कहां है? 

 

अध्यक्ष महोदय,

संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव, आज समय की मांग है। संयुक्त राष्ट्र का भारत में जो सम्मान है, भारत के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों का इस वैश्विक संस्था पर जो अटूट विश्वास है, वो आपको बहुत कम देशों में मिलेगा। लेकिन ये भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र के reforms को लेकर जो Process चल रहा है, उसके पूरा होने का बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। आज भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये Process कभी एक logical end तक पहुंच पाएगा। आखिर कब तक, भारत को संयुक्त राष्ट्र के decision making structures से अलग रखा जाएगा? एक ऐसा देश, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक ऐसा देश, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, एक ऐसा देश, जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, सैकड़ों बोलियां हैं, अनेकों पंथ हैं, अनेकों विचारधाराएं हैं, जिस देश ने सैकड़ों वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और सैकड़ों वर्षों की गुलामी, दोनों को जिया है  

अध्यक्ष महोदय,

जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं, जब हम मजबूर थे तो दुनिया पर कभी बोझ नहीं बने। 

अध्यक्ष महोदय,

जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा? 

अध्यक्ष महोदय,

संयुक्त राष्ट्र जिन आदर्शों के साथ स्थापित हुआ था और भारत की मूल दार्शनिक सोच बहुत मिलती जुलती है, अलग नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के इसी हॉल में ये शब्द अनेकों बार गूंजा है- वसुधैव कुटुम्बकम। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है। भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना के लिए लगभग 50 peacekeeping missions में अपने जांबाज सैनिक भेजे। भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना में सबसे ज्यादा अपने वीर सैनिकों को खोया है। आज प्रत्येक भारतवासी, संयुक्त राष्ट्र में अपने योगदान को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र में अपनी व्यापक भूमिका भी देख रहा है। 

अध्यक्ष महोदय, 

02 अक्टूबर को ‘International Day of Non-Violence’ और 21 जून को ‘International Day of Yoga’, इनकी पहल भारत ने ही की थी। Coalition for Disaster Resilient Infrastructure और International Solar Alliance, ये भारत के ही प्रयास हैं। भारत ने हमेशा पूरी मानव जाति के हित के बारे में सोचा है, न कि अपने निहित स्वार्थों के बारे में। भारत की नीतियां हमेशा से इसी दर्शन से प्रेरित रही हैं। भारत की Neighbourhood First Policy से लेकर Act East Policy तक, Security And Growth for All in the Region की सोच हो या फिर Indo Pacific क्षेत्र के प्रति हमारे विचार, सभी में इस दर्शन की झलक दिखाई देती है। भारत की Partnerships का मार्गदर्शन भी यही सिद्धांत तय करता है। भारत जब किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, तो वो किसी तीसरे के खिलाफ नहीं होती। भारत जब विकास की साझेदारी मजबूत करता है, तो उसके पीछे किसी साथी देश को मजबूर करने की सोच नहीं होती। हम अपनी विकास यात्रा से मिले अनुभव साझा करने में कभी पीछे नहीं रहते। 

अध्यक्ष महोदय, 

Pandemic के इस मुश्किल समय में भी भारत की pharma industry ने 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाइयां भेजीं हैं।   विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक देश के तौर पर आज मैं वैश्विक समुदाय को एक और आश्वासन देना चाहता हूं। भारत की Vaccine Production और Vaccine Delivery क्षमता पूरी मानवता को इस संकट से बाहर निकालने के लिए काम आएगी। हम भारत में और अपने पड़ोस में phase 3 clinical trials की तरफ बढ़ रहे हैं। Vaccines की delivery के लिए Cold Chain और Storage जैसी क्षमता बढ़ाने में भी भारत, सभी की मदद करेगा।   

अध्यक्ष महोदय, 

अगले वर्ष जनवरी से भारत, सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के तौर पर भी अपना दायित्व निभाएगा। दुनिया के अनेक देशों ने भारत पर जो विश्वास जताया है, मैं उसके लिए सभी साथी देशों का आभार प्रकट करता हूं। विश्व के सब से बड़े लोकतंत्र होने की प्रतिष्ठा और इसके अनुभव को हम विश्व हित के लिए उपयोग करेंगे। हमारा मार्ग जन-कल्याण से जग-कल्याण का है। भारत की आवाज़ हमेशा शांति, सुरक्षा, और समृद्धि के लिए उठेगी। भारत की आवाज़ मानवता, मानव जाति और मानवीय मूल्यों के दुश्मन- आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी, ड्रग्स, मनी लाउंडरिंग के खिलाफ उठेगी। भारत की सांस्कृतिक धरोहर, संस्कार, हजारों वर्षों के अनुभव, हमेशा विकासशील देशों को ताकत देंगे। भारत के अनुभव, भारत की उतार-चढ़ाव से भरी विकास यात्रा, विश्व कल्याण के मार्ग को मजबूत करेगी।  

अध्यक्ष महोदय,

बीते कुछ वर्षों में, Reform-Perform-Transform इस मंत्र के साथ भारत ने करोड़ों भारतीयों के जीवन में बड़े बदलाव लाने का काम किया है। ये अनुभव, विश्व के बहुत से देशों के लिए उतने ही उपयोगी हैं, जितने हमारे लिए। सिर्फ 4-5 साल में 400 मिलियन से ज्यादा लोगों को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ना आसान नहीं था। लेकिन भारत ने ये करके दिखाया। सिर्फ 4-5 साल में 600 मिलियन लोगों को Open Defecation से मुक्त करना आसान नहीं था। लेकिन भारत ने ये करके दिखाया। सिर्फ 2-3 साल में 500 मिलियन से ज्यादा लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा से जोड़ना आसान नहीं था। लेकिन भारत ने ये करके दिखाया। आज भारत Digital Transactions के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में है। आज भारत अपने करोड़ों नागरिकों को Digital Access देकर Empowerment और Transparency सुनिश्चित कर रहा है। आज भारत, वर्ष 2025 तक अपने प्रत्येक नागरिक को Tuberculosis से मुक्त करने लिए बहुत बड़ा अभियान चला रहा है। आज भारत अपने गांवों के 150 मिलियन घरों में पाइप से पीने का पानी पहुंचाने का अभियान चला रहा है। कुछ दिन पहले ही भारत ने अपने 6 लाख गांवों को ब्रॉडबैंड ऑप्टिकल फाइबर से कनेक्ट करने की बहुत बड़ी योजना की शुरुआत की है।

 अध्यक्ष महोदय, 

Pandemic के बाद बनी परिस्थितियों के बाद हम “आत्मनिर्भर भारत” के विजन को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान, Global Economy के लिए भी एक Force Multiplier होगा। भारत में आज ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी योजनाओं का लाभ, बिना किसी भेदभाव, प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे। Women Enterprise और Leadership को Promote करने के लिए भारत में बड़े स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। आज दुनिया की सबसे बड़ी Micro Financing Schemes का सबसे ज्यादा लाभ भारत की महिलाएं ही उठा रही हैं। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां महिलाओं को 26 Weeks की Paid Maternity Leave दी जा रही है। भारत में Transgenders के अधिकारों को सुरक्षा देने के लिए भी कानूनी सुधार किए गए हैं।  

अध्यक्ष महोदय,

भारत विश्व से सीखते हुए, विश्व को अपने अनुभव बांटते हुए आगे बढ़ना चाहता है। मुझे विश्वास है कि अपने 75वें वर्ष में संयुक्त राष्ट्र और सदस्य सभी देश, इस महान संस्था की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए और प्रतिबद्ध होकर काम करेंगे। संयुक्त राष्ट्र में संतुलन और संयुक्त राष्ट्र का सशक्तिकरण, विश्व कल्याण के लिए उतना ही अनिवार्य है। आइए, संयुक्त राष्ट्र के 75वें वर्ष पर हम सब मिल कर अपने आपको विश्व कल्याण के लिए, एक बार फिर समर्पित करने का प्रण लें।    

धन्यवाद। 

Tuesday, September 22, 2020

उन्होने अपने इसी आचरण से महामना के मूल्यों और उद्देश्यों का यथोचित प्रतिनिधित्व किया है।

लेखक:- गौरव राजमोहन नारायण सिंह

आज जिस पत्र के आलोक में मेरी भावनाओं ने मुझे इस संदेश को लिखने पर मजबूर किया है, उसके बारे में जहां एक तरफ मुझे पीड़ा हो रही है तो दूसरी तरफ गर्व की अनुभूति। आज माननीय उपसभापति, राज्यसभा, श्री हरिवंश नारायण जी का माननीय राष्ट्रपति व उप-राष्ट्रपति जी को लिखा गया वह मार्मिक पत्र विभिन्न संचार-माध्यमों द्वारा जब प्रकाशित हुआ तो मेरी भावनाओं आकस्मिक रूप से प्रतिस्फुटित हो गई। मानवीय संवेदनाओं से संदर्भित इस पत्र में उन्होने गत 20 सितंबर को राज्यसभा की कारवाई में हुई उस अशोभनीय घटना के बारे में बेहद संयम और सहनशीलता के साथ मार्मिक वर्णन किया है।

यह पत्र एक बार पुनः उनके सरल, सहज और सौम्य व्यक्तित्व को दर्शाता है। उनके इस गांधीवादी आचरण और आदर्शों ने राज्यसभा की उस महान उदारवादी परंपरा को भी जीवंत किया है, जो हमारे लोकतंत्र में बसी उस निष्ठा व आस्था को और मज़बूत करने का काम करती है। गत 20 सितंबर को हुई उसी घटना में पूरे देश ने देखा की किस प्रकार पीठ और आसंदी पर कुछ विपक्षी सांसदों ने वो किया जिसकी कल्पना सभ्य समाज में नहीं की जा सकती। देश ने देखा की किस प्रकार की अभ्रद्रता सदन में उप-सभापति और राज्यसभा कर्मचारियों के साथ कुछ सांसदों द्वारा की गई, जिससे पूरा देश शर्मसार है।   

लेकिन जेपी और अटल जैसे आदर्शवादियों के अनुयायी श्री हरिवंश ने जिस प्रकार से लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के माध्यम से न सिर्फ अपनी आपत्ति, पत्र के माध्यम से जताई बल्कि अपने स्वभाव के अनुरूप उन विपक्ष के प्रदर्शंकारी सांसदों से आज सुबह संसद परिसर में अपने घर से चाय के साथ मिलने भी पहुंचे और उनके स्वास्थ्य की जानकारी भी ली। यही घटना उनकी सादगी और समवेशी आचरण का प्रतिबिंब है। मुझे खुद इस बात का गर्व है की श्री हरिवंश, जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मेरी यही संकाय के अर्थशास्त्र विभाग के पुरा छात्र है, उन्होने अपने इसी आचरण से महामना के मूल्यों और उद्देश्यों का यथोचित प्रतिनिधित्व किया है।

मैं उनकी सादगी को नमन करता हूं और आपसे आग्रह करता हूं की आप सभी कृपया श्री हरिवंश जी का पत्र  पढ़े।

उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा।



माननीय राष्ट्रपति जी

भारत सरकार

नई दिल्ली

आदरणीय महामहिम जी,

कल दिनांक 20 सितंबर 2020 को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उससे पिछले दो दिनों से गहरी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव और मानसिक वेदना में हूं। 
मैं पूरी रात सो नहीं पाया। जेपी के गांव में पैदा हुआ. सिर्फ पैदा नहीं हुआ, उनके परिवार और हम गांव वालों के बीच पीढ़ियों का रिश्ता रहा, गांधी का बचपन से गहरा असर पड़ा। गांधी, जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकूर जैसे लोगों के सार्वजनिक जीवन ने मुझे हमेशा प्रेरित किया, जयप्रकाश आंदोलन और इन महान विभूतियों की परंपरा में जीवन में सार्वजनिक आचरण अपनायामेरे सामने 20 सितंबर को उच्च सदन में जो दृश्य हुआ, उससे सदन, आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति पहुंची है। सदन के माननीय सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ। आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई। उच्च सदन की हर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ायी गयी। सदन में माननीय सदस्यों ने नियम पुस्तिका फाड़ी। मेरे ऊपर फेंका। सदन के जिस ऐतिहासिक टेबल पर बैठकर सदन के अधिकारी, सदन की महान परंपराओं को शुरू से आगे बढ़ाने में मूक नायक की भूमिका अदा करते रहे हैं, उनकी टेबल पर चढ़कर सदन के महत्वपूर्ण कागजात-दस्तावेजों को पलटने , फेंकने व फाड़ने  की घटनाएं हुई। नीचे से कागज को रोल बनाकर आसन पर फेंके गये, नितांत आक्रामक व्यवहार, भद्दे और असंसदीय नारे लगाये गये। हृदय और मानस को बेचैन करने वाला लोकतंत्र के चीरहरण का दृश्य पूरी रात मेरे मस्तिष्क में छाया रहा। सो नहीं सका, स्वभावतः अंतर्मुखी हूं। गांव का आदमी हूं. मुझे साहित्य, संवेदना और मूल्यों ने गढ़ा है।
सर मुझसे गलतियां हो सकती है, पर मुझमें इतना नैतिक साहस है कि सार्वजनिक जीवन में खुले रूप से स्वीकार करूं।जीवन में किसी के प्रति कटु शब्द शायद ही कभी इस्तेमाल किया हो।क्योंकि मुझे महाभारत का यक्ष प्रश्न का एक अंश हमेशा याद रहता है. यक्ष ने युधिष्ठिर से पूजा, जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि हम रोज कंधों पर शव लेकर जाते हैं, पर हम कभी नहीं सोचते हैं कि अंततः जीवन की यही नियति है. मेरे जैसे मामूली गांव और सामान्य पृष्ठभूमि से निकले इंसान, आयेंगे और जायेंगे। समय और काल के संदर्भ में उनकी न कोई स्मृति होगी, न गणना । पर लोकतंत्र का यह मंदिर 'सदन' हमेशा समाज और देश के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा। अंधेरै में रोशनी दिखाने वाला लाइट हाउस बनकर संस्थाएं ही देश और समाज की नियति तय करती हैं. इसलिए राज्यसभा और राज्यसभा का उपसभापति का पद ज्यादा महत्वपूर्ण और गरिमामय है, मैं नहीं। इस तरह मैं मानता हूं कि मेरा निजी कोई महत्व नहीं है. पर इस पद का है। मैंने जीवन में गांधी के साधन और साध्य से हमेशा प्रेरणा पायी है।

बिहार की जिस भूमि से मेरा रिश्ता है, वहीं गणतंत्र का पहला स्वरूप विकसित हुआ. वैशाली का गणतंत्र। चंपारण के संघर्ष ने गांधी को महात्मा गांधी बनाया। भारत की नयी नियति लिखने की शुरुआत वहीं से हुई, जेपी की संपूर्ण क्रांति ने देश को दिशा दी। उसी धरती के लाल कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय का रास्ता, सदियों से वंचित और पिछड़े लोगों के जीवन में नयी रोशनी लेकर आया. उस धरती, माहौल, संस्कार और परिवेश से निकले मेरे जैसे गांव के मामूली इंसान की कोई पृष्ठभूमि नहीं है। हमारी परवरिश किसी अंग्रेजी स्कूल में नहीं हुई। खुले मैदान में पेड़ के नीचे लगने वाले पाठशाला से संस्कार का प्रस्फुटन हुआ। न पांचसितारा जीवन संस्कृति, न राजनीतिक दाव पैच से रिश्ता रहा। पर कल की घटनाओं से लगा कि जिस गंगा और सरयू के बीच बसे गांव के उदात संस्कारों, संयमित और शालीन व्यवहार के बीच पला, बढ़ा. गांधी, लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर जैसे लोगों के विचारों ने मुझे मूल्य और संस्कार दिये। उनकी ही हत्या मेरे सामने कल उच्च सदन में हुई।

भगवान बुद्ध मेरे जीवन के प्रेरणा सोत रहे हैं। बिहार की धरती पर ही आत्मज्ञान पाने वाले बुद्ध ने कहा था- आत्मदीपो भव।
 मुझे लगा है कि उच्च सदन के मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए। शायद मेरे इस उपवास से सदन में इस तरह के आचरण करनेवाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो।

यह उपवास इसी भावना से प्रेरित है. बिहार की धरती पर पैदा हुए राष्ट्रकवि दिनकर, दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। कल 23 सितंबर को उनकी जन्मतिथि है। आज 22 सितंबर सुबह से कल 23 सितंबर सुबह तक, इस अवसर पर चौबीस घंटे का उपवास मैं कर रहा हूं. काम काज की गति न रुके, इसलिए उपवास के दौरान भी राज्यसभा के कामकाज में नियमित व सामान्य रूप से भाग लूंगा।

पिछले सोमवार (14 सितंबर) को दोबारा मुझे उपसभापति का दायित्व दिया गया, तो मैंने कहा था- इस सदन में पक्ष एवं विपक्ष में एक से एक वरिष्ठ जिम्मेदार, प्रखर वक्ता एवं जानकार लोग मौजूद हैं. हम सब लोग उनके योगदान को समय-समय पर देखते हैं, मेरा मानना है कि वर्तमान में हमारा सदन प्रतिभावान एवं कमिटेड सदस्यों से भरा है। इस सदन में आदर्श सदन बनने की पूरी क्षमताएं हैं, जब-जब बहसे हुई, हमने देखा है. पर महज एक सप्ताह में मेरा ऐसा कटु अनुभव होगा, आहत करने वाला, कल्पना

नहीं की थी. दिनकर की कविता से अपनी भावना को विराम दे रहा हूं।

वैशाली । इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का, 
वैशाली! अतीत गहवर में गुंजन तलवारों का। 
वैशाली। जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता, 
जिसे ढूँढता देश आज उस प्रजातंत्र की माता।
रुको, एक क्षण पथिका यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ,
 राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।

अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए. आदर के साथ।

सादर,

हरिवंश

Monday, September 21, 2020

ना खाता न बही हम जो करे वही सही


विपक्ष के नेता तो सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने में लगे रहते हैं। जब संसद में बोलने की बात आती है किसी भी मुद्दे पर तो हल्ला हु मचाने लग जाते हैं और ऐसी ऐसी हरकतें करते हैं कि पूछिए मत ऐसा तो स्कूल में बच्चे लोग भी नहीं करते होंगे अपने क्लास में। रविवार के दिन जो कुछ भी हुआ संसद में इसकी जितनी निंदा की जाए उतना कम है। इतिहास में इस तरह की घटना कभी नहीं घटी। टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने उपसभापति के पास जाकर उनके माई को तोड़ दिया और उनके सामने ही रूल बुक को  फाड़ दिया। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह जी कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी जमकर हंगामा किया और मार्शल से धक्का-मुक्की भी की। जिस तरह सांसदों ने सदन में हंगामा किया तोड़फोड़ और धक्का-मुक्की की उससे राज्यसभा की मर्यादा तार-तार हो गई। इन दो कौड़ी के नेताओं के भारी हंगामे और शोरगुल के बीच ही कृषि से जुड़े विधेयक पारित हो गए। 
संविधान की बात करने वाले ने संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए यह दर्शा दिया कि ना खाता न बही हम जो करे वही सही। कानून बनाने वालों ने कानून की जबरदस्त खेल लिया उड़ाई नजारा तो यह था कि गैलरी और लोकसभा से विपक्षी सदस्य राज्यसभा में आकर हंगामा करने लग गए। करुणा महामारी को लेकर जो प्रोटोकॉल बनाया गया था उसको भी लोगों ने तोड़ कर रख दिया वह भी उस समय जब 40 के करीब सांसद कोविड-19 संक्रमित पाय गए हैं। मत पूछिए ऐसी भषण मची हुई थी कि किसी को कुछ होश या ख़बर ही नहीं था कि जो वो कर रहे है उससे देश की जनता पर क्या असर पड़ेगा? हर मुद्दे को लेकर भटकाने की कोशिश हमेशा से विपक्ष की चाल रही है। जब कुछ नहीं मिलता है तो शोर - शराबा करके संसद का समय और जनता का पैसा दोनों ही बर्बाद कर देते है। भारतीय संसद के लिए कोई नई बात नहीं है अभी हाल ही में देख सकते हैं 2019 अगस्त में जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने पर पीडीपी के दो सांसदों नजीर अहमद लवे और एमएम फैयाज़ ने संसद में ही अपने कपड़े फाड़ दिए थे।  पीडीपी के सांसदों द्वारा संसद में कपड़े फाड़ने पर सभापति वेंकैया नायडू ने दोनों सांसदों को सदन से बाहर भेज दिया था। इतना ही नहीं इन दोनों ने संविधान की प्रतिलिपि को भी फाड़ दिया था। एआईएमआईएम के  नेता असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 की कॉपी फाड़ दी थी इसको लेकर काफी हंगामा भी हुआ था। 
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की काली करतूत को कैसे भुला जा सकता है जब तीन तलाक के मुद्दे की चर्चा के दौरान लोकसभा में उन्होंने बीजेपी सांसद रमा देवी पर अभद्र टिप्पणी कर दी थी। रमा देवी स्पीकर की जगह पर बैठी हुई थी और आजम खान बोल रहे थे "तू इधर उधर की बात ना कर...", बाकी जो हुआ वह तो संसद का काला इतिहास है और इससे आप भली-भांति वाकिफ होंगे। 

13 फरवरी 2014 को तेलंगाना राज्य के मुद्दे को लेकर लोकसभा में जो हुआ उसने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया था। भारतीय संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले अभूतपूर्व घटनाक्रम में  लोकसभा में माइक तोड़े गए और मिर्ची स्प्रे किया गया, जिससे तीन सांसदों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तथा बाद में सीमांध्र क्षेत्र के 16 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। हंगामे के बीच ही सदन में तेलंगाना विधेयक भी पेश कर दिया गया था। उस समय की लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि ,"इससे देश एवं संसद शर्मसार हुई तथा यह एक धब्बा है।" सदन में अप्रत्याशित हंगामा और अफरातफरी उस समय मच गई जब कांग्रेस से निष्कासित सदस्य एवं आंध्र प्रदेश के विभाजन का विरोध कर रहे उद्योगपति एल राजगोपाल ने काली मिर्ची स्प्रे करना शुरू कर दिया था ।लोकसभा के 16 सांसदों को पांच दिनों के लिए सिर्फ निलंबित किया गया था । इन सांसदों में तेलुगू देशम के पांच, कांग्रेस के पांच, वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी सहित दो सांसद और कांग्रेस से निष्कासित छह में से पांच सांसद शामिल थे। तेलंगाना बिल के विरोध के नाम पर लोकसभा में जमकर बवाल हुआ था । सांसदों ने बिल की कॉपियां फाड़ दी थी। स्पीकर का माइक तोड़ने की कोशिश की गई इतना ही नहीं सांसदों ने लोकसभा की कई मेजें और शीशे भी तोड़ दिए थे। ना जाने क्या क्या हो गया था  उस दिन संसद की गरिमा को तार तार कर दिया था जैसा की वर्तमान में भी देख सकते है।
इन  नेताओं की दो कौड़ी हरकतों की वजह से हमेशा से संसद की आत्मा को ठेस पहुंचता रहा है बाकि सब समझदार है क्या गलत क्या सही है का निर्णय लेने का।

Thursday, September 17, 2020

जो भी राष्ट्रहित में बाधक हो उसका सर्वनाश करो

                लेखक - शिवम् कुमार पाण्डेय

राष्ट्रहित से बढ़कर कोई कुछ नहीं होना चाहिए। राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है  इस बात इतिहास साक्षी रहा है। चाहे वो जातिवाद की राजनीति हो या मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कोई किसी से कम नहीं रहा है। सबने एक दूसरे को बराबर को टक्कर दी है चाहे वो कांग्रेस हो सपा हो , बसपा , आरजेडी   या कम्युनिस्ट पार्टी हो। देश को तोड़ने की बात करने वाले नक्सलियों को क्रांतिकारी तक बता दिया जाता है जिनका काम सिर्फ दूसरों को लूट मार कर खाने का है।  लाल सलाम के नाम पर ना जाने कितने निर्दोष लोगो को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है। इस्लामिक  कट्टरपंथी जिहादियों का भी एक ही लक्ष्य है "गज़वा ए हिन्द" जिसके नाम पर ना जाने कितने बेकसूर मासूम कश्मीरी पंडितों  को जम्मू और कश्मीर में अपने घर से बेघर होना पड़ा है। घर फूंक दिया गया , मां - बहनों की इज्जत लूटी गई जिहाद के नाम पर। साफ साफ पोस्टर पर लिखा था हिन्दुओं घर छोड़ दो अपनी जान की सलामती चाहते हो तो अपने घर की महिलाओं को हमारे हवाले कर दो। 

वर्ष 2016 फ़रवरी में जेएनयू में लगे नारों को भला कौन भूल सकता है। कुछ मुठ्ठी भर छात्रों और वामपंथी संगठनों ने विश्वविद्यालय की कीर्ति एवं शिक्षा के स्तर पर ऐसे आघात किए जिनको देशभक्ति के श्रेणी में तो कत्तई नहीं रखा जा सकता।जिस समय सारा देश सियाचिन के जांबाज शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा था उस समय जेएनयू में भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी तथा अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है के नारे लग रहे थे। आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई जा रही थी । वहां पोस्टर लगे जहां जिनमें लिखा था - शहीद अफजल गुरु की शहादत की पहली बरसी पर स्मृति सभा जिसमें अरुंधती राय, प्रो. जगमोहन , सुजितो भद्र , जेएनयू  के प्रो. एके रामकृष्णन के नाम भाषण देने वालों थे। डीएसयू के पोस्टरों में छापा गया कि कश्मीर के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष को लाल सलाम। देश की एकता और अखंडता को खुलेआम चुनौती दी जा रही थी। जहां कहीं भी देश में भारतीय सेना के विरुद्ध विद्रोही गतिविधियां हैं उन सब के समर्थन में जेएनयू में सेमिनार एवं प्रदर्शन आयोजित हो किए जाते रहे है विभिन्न संगठनों द्वारा। कश्मीर, असम ,मणिपुर और नागालैंड के विद्रोह संगठनों की उपस्थिति देखी जा सकती है। 

"भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाह अल्लाह इंशाह अल्लाह ,तुम कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा" अर्थात अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देशी विरोधी नारे लगाना और आतंकियों के एनकाऊंटर  पर मानव अधिकार की बाते करने वालो को तमाम राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त था। एक तरफ भारतीय सैन्य बलों के जवानों पर पत्थबाजी होती थी जिसका जवाब चाहकर की भी हमारे जवान गोली से नहीं दे सकते थे और दूसरी तरफ ये तथाकथित सेक्युलर लोग इनपर कश्मीर में बलात्कार करने का आरोप लगाते थे। पूरी तरह से भारतीय सेना का मनोबल गिराने की नाकाम कोशिश की गई। जिस छाती से दूध पिया उसी में दांत गड़ाने का काम किया इन लोगो ने। इन देशद्रोहियों की भगत सिंह से की जा रही थी! करने वाले कांग्रेसी नेता थे जिनको को तो चुल्लू भर पानी में जाकर डूब मरना चाहिए। तनिक भी शर्म ना आयी की भगत सिंह की आत्मा क्या सोच रही होगी कि कैसे निकम्में लोग पैदा हो गए है देश में यानी सत्ता के लिए कुछ भी कर बैठेंगे। मार्क्स माओ स्टालिन लेनिन चे ग्वेरा और कस्त्रो ना जाने कितने विदेशियों को अपना आदर्श मानने वाले वामपंथियों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भी नहीं छोड़ा है।

उड़ी हमले में शहीद हुए जवानों पर भी गंदी राजनीति करने से कुछ लोग बाज नहीं आए। सेना के जवानों कहा जाता था कि "ये घूस देके भर्ती हुए है"। जब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकियों को 72हुरो के पास पहुंचाकर अपने साथी जवानों का बदला लिया और ये दिखाया की हम घर में घुस कर मार सकते है तो इसको भी तमाम विपक्षी नेताओ ने मानने से इंकार कर दिया। सबको सबूत चाहने लगा था सेना के बहादुरी का हद तो तब हो गई जब राहुल गांधी ने कहा मोदी सेना के जवानों की खून की दलाली करते है।

 पिछले साल 14 फरवरी 2019 का ही मामला देख लीजिए  सीआरपीएफ के जवानों पर कायरतापूर्ण हमला हुआ था जिहाद के नाम पर जिसमें करीब 45 जवान शहीद हो गए थे। वायुसेना ने 26 फ़रवरी 2019 को एयर स्ट्राइक से इसका बदला लिया था जिसपर तथाकथित सेक्युलर लिबरल गैंग ने सवाल खड़ा कर दिया था। शुक्र है कि 5 अगस्त 2019 को संसद में माननीय गृहमंत्री अमित शाह ने धारा 370 और 35अ निष्क्रिय करने का बिल पारित कर दिया जिसे लेकर सालो से  अटकलें लगाई जा रही थी कि संघ और भाजपा सिर्फ बाते करती है इनके बस का कुछ नहीं है। अलगादवादी , हुरियत, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी वाले कहते थे 370 हटा तो आग लगा देंगे , तबाही मचा देंगे आदि उलुल- जुलूल भाषणों से वहां की अवाम और युवाओं को बरगलाने और भड़काने का काम करते थे। 370 हटा हम सब ने देखा और इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में से लिखा गया। जब से 370 हटा तब से आप देख सकते हैं जन्नत जाने वालों की लंबी लाइन लगी हुई है। हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं की तो कमर तोड़ दी गई है। 

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने यो ये जता दिया कि राष्ट्रहित में फैसले लेने से भाजपा सरकार तनिक भी संकोच नहीं करेगी। इसका भी विरोध हुआ समुदाय विशेष के लोगों ने दंगा करने की कोशिश की, देश का माहौल खराब किया गया। तमाम राजनैतिक पार्टियों को घिनौना चरित्र उजगार हुआ। सेक्युलर पत्रकारों , लिबरल बुद्धिजीवियों और वामपंथी संघठनो ने आग में पेट्रोल डालने का कार्य किया। शाहीन बाग इसका जीता जागता उदाहरण है। 

अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण हो रहा है काफी लंबे सालो के बाद हिन्दुओं की आस्था को न्याय मिला। उत्तर प्रदेश के मुख्मंत्री भी "हिन्दू ह्रदय सम्राट" योगी आदित्यनाथ है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को भुलाया नहीं जा आखिर इन्हीं कार्यकाल में विवादित बाबरी ढांचा गिराया गया था। इन्होंने अपने राजनीति करियर दांव पर लगा दिया सिर्फ प्रभु श्री राम के लिए।आडवाणी , अशोक सिंघल , पूर्व प्रधान अटल बिहारी वाजपेई जी, देवी ऋतंभरा आदि लोगो के बिना ये आंदोलन संभव भी नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने 56 इंची सीने जोर दिखाया जिसका पूरे विश्व में गूंजा उठा। बहुत पहले नारा लगाया गया था "मिले मुलायम काशीराम हवा में उड़ गए जय श्रीराम" वर्तमान में इसका सटीक उत्तर ये है "अजर अमर है जय श्री राम   मर गए मुल्ला काशीराम" । जैसी करनी वैसी भरनी जो आप करेंगे उसका दंश तो भोगना ही पड़ेगा। कारसेवकों के ऊपर गोलियां चलवाने से आप कौन से बड़का सेक्युलर बन गए! कांग्रेसियों कारामात को भी कोई नहीं भूल सकता ये तो हिन्दुओं को आतंकवादी बनाने लगे हुए थे "भगवा आतंकवाद" की संज्ञा देने लगे थे। साल 2008 में जिहाद के नाम पर होने वाले जगह जगह बम विस्फोटों को कौन भूल सकता है। सबसे महत्वपूर्ण 26/11 का मुंबई हमला जिसने पूरे देश को दहला दिया था। अभी वर्तमान में  देखिए कांग्रेसियों की करास्तनी राम मंदिर में लगने वाने गुलाबी पत्थराें के खनन पर राजस्थान सरकार ने रोक लगाा कर 25 ट्रक जप्त कर लिया। मतलब इन कांग्रेसियों  की बुद्धि अभी तक खुली नहीं है। खैर अंत में बस यही कहना चाहूंगा जो कोई भी राष्ट्रहित के मार्ग में बाधक होगा उसका सर्वनाश हो जाएगा।

Tuesday, September 15, 2020

रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह का लोकसभा में बयान

( 15 सितंबर 2020, रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन तनाव को लेकर लोकसभा में जवाब देते हुए। फोटो:- लोकसभा टीवी )

सबसे पहले मैं संक्षेप में चाईना के साथ हमारेBoundary issue के बारे में बताना चाहता हॅू।  जैसा कि सदन इस बात से अवगत है कि भारत एवं चाईना का सीमा का प्रश्न (Boundaryquestion) अभी तक unresolved है। भारत और China की Boundary का customary और traditional alignment,China नहीं मानता है ।हम यह मानते हैं, कि यहalignment, well-established भौगोलिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी पुष्टि न केवल treaties और agreements द्वारा, बल्किhistoric usage औरpractices द्वारा भी हुई है। इससे दोनों देश सदियों से अवगत हैं।जबकि चाईना यह मानता है कि boundary अभी भी औपचारिक रूप से निर्धारित नहीं है। साथ ही चाईना यह भी मानता है कि historical jurisdiction के आधार पर जो traditional, customary lineहै, उसके बारे में दोनों देशों की अलग-अलग व्याख्या है।  दोनों देश,1950 एवं 1960 के दशक में इस पर बातचीत कर रहे थे, परन्तु इस पर mutually acceptable समाधान नहीं निकल पाया।

जैसा कि यह सदन अवगत है चाईना, भारत की लगभग 38,000square km भूमि का अनधिकृत कब्जा लद्दाख में किए हुए है। इसके अलावा,1963 में एक तथाकथित Boundary-Agreement के तहत, पाकिस्तान नेPoKकी 5180square km भारतीय जमीन अवैध रूप से चाईना को सौंप दी  है।  चाईना, अरूणाचल प्रदेश की सीमा से लगे हुए लगभग 90,000square km भारतीय क्षेत्र को भी अपना बताता है।  भारत तथा चाईना, दोनों ने, औपचारिक तौर पर यह माना है कि सीमा का प्रश्न (Boundaryquestion)एक जटिल मुद्दा है जिसके समाधान के लिए patience की आवश्यकता है तथा इस issue का fair, reasonable और mutually acceptable समाधान, शांतिपूर्ण बातचीत के द्वारा निकाला जाए। अंतरिम रूप से दोनों पक्षों ने यह मान लिया है कि सीमा पर peace और tranquillityबहाल रखना bilateral relationsको बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि अभी तक India-China के border areas में commonly delineated Line of Actual Control (LAC) नहीं है और LAC को लेकर दोनों का perception अलग-अलग है।  इसलिए peace और tranquillity बहाल रखने के लिए दोनों देशों के बीच कई तरह के agreementsऔर protocolsहैं।

 इन समझौतों के तहत दोनों देशों ने यह माना है कि LAC पर peace और tranquillity बहाल रखी जाएगी, जिसपर LAC की अपनी-अपनीrespective positions और boundary questionका कोई असर नहीं माना जाएगा।  इस आधार पर वर्ष 1988 के बाद से दोनों देशों के bilateral relationsमें काफी विकास हुआ।  भारत का मानना हैकि,bilateral relations को विकसित किया जा सकता है, तथा साथ ही साथ boundary मुद्दे के समाधान के बारे में चर्चा भी की जा सकती है। परन्तु LAC पर peace और tranquillity में किसी भी प्रकार की गम्भीर स्थिति का bilateral relations पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा।

 वर्ष 1993 एवं 1996 के समझौते में इस बात का जिक्र हैकि LAC के पास, दोनों देश अपनी सेनाओं की संख्या कम से कम रखेंगे।  समझौते में यह भीहै, कि जबतक boundaryissueका पूर्णसमाधान नहीं होता है, तबतक LACको strictly respect और adhere किया जाएगा और उसका उल्लंघन नहीं किया जाएगा । इन समझौतों में भारत व चाईना, LACके clarification द्वारा एक common understanding पर पहुचने के लिए भी committed हुए थे | इसके आधार पर 1990 से 2003 तक दोनों देशों द्वारा LAC पर एक common understanding बनाने की कोशिश की गई लेकिन इसके बाद चाईना ने इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने पर सहमति नहीं जताई ।  इसके कारण कई जगहों पर China तथा भारत के बीच LAC perceptions में overlap है | इन क्षेत्रों में तथा border के कुछ अन्य इलाकों में दूसरे समझौतों के आधार पर दोनों की सेनाएं face-offआदि की स्थिति का समाधान निकालती हैं,जिससे कि शांति कायम रहे।

इससे पहले कि मैं सदन को वर्तमान स्थिति के बारे में बताऊॅं, मैं यह बताना चाहता हॅूं कि सरकार की विभिन्न intelligence agencies के बीच coordination का एक elaborate और time tested mechanism है जिसमें Central Police Forces और तीनों armed forces की intelligence agencies शामिल हैं | Technicalऔर human intelligence को लगातार coordinated तरीके से इकट्ठा किया जाता है, तथा armed forces से उनके decision making के लिए share किया जाता है।

 अब मैं सदन को इस साल उत्पन्न परिस्थितियों से अवगत कराना चाहता हॅूं।  अप्रैल माह से Eastern Ladakhकी सीमा पर चाईना की सेनाओं की संख्या तथा उनके armaments में वृद्धिदेखी गई।  मई महीने कीके प्रारंभ में चाईना ने गलवान घाटी क्षेत्र में हमारी troopsकेnormal, traditional patrolling pattern में व्यवधान  शुरू किया जिसके कारण face-offकी स्तिथि उत्पन्न हुई ।  Ground Commanders `द्वारा इस समस्या को सुलझाने के लिए विभिन्न समझौतों तथा protocol के तहत वार्ता की जा रही थी, कि इसी बीच मई महीने के मध्य में चाईना द्वारा western sector में कई स्थानों पर LAC पर transgression करने की कोशिश की गई।  इनमें Kongka La, Gogra and Pangong Lakeका North Bank शामिल है।  इस कोशिशों को हमारी सेनाओं ने समय पर देख लिया तथा उसके लिए आवश्यक जवाबी कार्यवाही की।

 हमने चाईना को diplomatic तथा military channels के माध्यम से यह अवगत करा दिया, कि इस प्रकार की गतिविधियाँ, status quoको unilaterally बदलने का प्रयास है।  यह भी साफ कर दिया गया कि ये प्रयास हमें किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है।

LACके ऊपर friction बढ़ता हुआ देख कर दोनों तरफ के सैन्य कमांडरों ने 6 जून 2020 को मीटिंग की, तथा इस बात पर सहमति बनी कि reciprocal actionsके द्वारा disengagement किया जाए।  दोनो पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि LAC को माना जाएगा तथा कोई ऐसी कार्रवाई नहीं की जाएगी, जिससे status-quoबदले।  किन्तु इस सहमति के violation में चीन द्वारा एक violent face off की स्थिति 15 जून को गलवान में create की गई।  हमारे बहादुर सिपाहियों ने अपनी जान का बलिदान दिया पर साथ ही चीनी पक्ष को भी भारी क्षति पहुचाई और अपनी सीमा की  सुरक्षा में कामयाब रहे।

इस पूरी अवधि के दौरान हमारे बहादुर जवानों ने, जहाँ  संयम की जरूरत थी वहां संयम रखा तथा जहाँ शौर्य की जरुरत थी, वहां शौर्य प्रदर्शित किया।  मै सदन से यह अनुरोध करता हूँ कि हमारे दिलेरों की वीरता एवं बहादुरी की भूरि-भूरि प्रशंसा करने में मेरा साथ दें।  हमारे बहादुर जवान अत्यंत मुश्किल परिस्थतियों में अपने अथक प्रयास से समस्त देशवासियों को सुरक्षित रख रहे हैं।

एक ओर किसी को भी हमारे सीमा की सुरक्षा के प्रति हमारे determination के बारे में संदेह नहीं होना चाहिए, वहीँभारत यह भीमानता है कि पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण संबंधों के लिए आपसी सम्मान और आपसी sensitivity आवश्यक हैं।  चूंकि हम मौजूदा स्थिति का dialogueके जरिए समाधान चाहते हैं,   हमने Chinese sideके साथ diplomatic और military engagement बनाए रखाहै।  इन discussions में तीन key principles हमारी approachको तय करते हैंः (i)दोनों पक्षों को LACका सम्मान और कड़ाई से पालन करना चाहिए; (ii) किसी भी पक्ष को अपनी तरफ से यथास्थिति का उल्लंघन करने का प्रयास नहीं करना चाहिए; और  (iii)दोनों पक्षों के बीच सभी समझौतों और understandings का पूर्णतया पालन होना चाहिए।  Chinese sideकी यह  position है कि , स्थिति को एक जिम्मेदार ढंग से handled किया जाना चाहिए और द्विपक्षीय समझौतों एवं protocolके अनुसार शांति एवं सद्भाव सुनिश्चिित किया जाना चाहिए।

 जबकि ये discussions चल ही रहे थे, चीन की तरफ से 29 और 30 अगस्त की रात को provocative सैनिक  कार्रवाई की गई, जो Pangong Lakeके South Bank area में status quo को बदलने का प्रयास था।  लेकिन एक बार फिर हमारी armed forces द्वारा timely और firm actionsके कारण उनके ये प्रयास सफल नहीं हुए। 

जैसा कि उपर्युक्त घटनाक्रम से स्पष्ट है, चीन की कार्रवाई से हमारे विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों के प्रति उसका disregard दिखता है। चीन द्वारा troops की भारी मात्रा में तैनाती किया जाना 1993 और 1996 के समझौतों का उल्लंघन है।  LAC का सम्मान करना और उसका कड़ाई से पालन किया जाना, सीमा क्षेत्रों में शांति और सद्भाव का आधार है, और इसे 1993 एवं 1996 के समझौतों में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है।  जबकि हमारी armed forcesइसका पूरी तरह पालन करती हैं, Chinese sideकी ओर से ऐसा नहीं हुआ है। उनकी कार्रवाई के कारण LACके आसपास समय- समयपर  face-offsऔर frictions पैदा हुए हैं।  जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया, इन समझौतों में face-offsकी स्थिति से निपटने के लिए विस्तृत procedures और normsनिर्धारितहैं।  तथापि, इस वर्ष हाल की घटनाओं में Chinese forces का violent conduct सभी mutually agreed normsका पूर्णतया उल्लंघन है।

 अभी की स्थिति के अनुसार, Chinese side ने LAC  और अंदरूनी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिक टुकड़ियां और गोलाबारूद mobilize किआ हुआ है।  पूर्वी लद्दाख और Gogra, Kongka La और Pangong Lake का North और South Banks पर कई friction areas हैं।  चीन की कार्रवाई के जवाब में हमारी armed forces ने भी इन क्षेत्रों में उपयुक्त counter deployments किए हैं ताकि भारत के security interests पूरी तरह सुरक्षित रहे।  अध्यक्ष महोदय, सदन को आश्वस्त रहना चाहिए कि हमारी armed forces इस चुनौती का सफलता से सामना करेंगी, और इसके लिए हमें उनपर गर्व है।  अभी जो  स्थिति बनी हुई है उसमें sensitive operational issues शामिल है।  इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा ब्यौरा का खुलासा नहीं करना चाहॅूंगा और, मैं आश्वस्त हॅूं, यह सदन इस  sensitivity को समझेगा।

Covid-19 के challenging समय में, हमारी armed forces और ITBP की तेजी से deployment हुई है। उनके प्रयासों को appreciate किए जाने की जरूरत है। यह इसलिए भी संभव हुआ है, क्योंकि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में border infrastructure के विकास को काफी अहमियत दी है। सदन को जानकारी है कि पिछले कई दशकों में चीन ने बड़े पैमाने पर infrastructure activity शुरू की है, जिनसे border areas में उनकी deployment क्षमता बढ़ी है।इसके जबाव में हमारी सरकार ने भी border infrastructure विकास के लिए बजट बढ़ाया है, जो पहले से लगभग दुगुना हुआ है। इसके फलस्वरूप border areas में काफी roads और bridges बने हैं। इससे न केवल local population को जरूरी connectivity मिली है, बल्कि हमारी armed forces को बेहतर logistical support भी मिला है। इसके कारण वे border areas में अधिक alert रह सकते हैं, और जरूरत पड़ने पर बेहतर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। आने वाले समय में भी सरकार इस उद्देश्य के प्रति committed रहेगी।

Honorable Speaker,

मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि भारत हमारे border areas में मौजूदा मुद्दों का हल, शांतिपूर्ण बातचीत और consultation के जरिए किए जाने के प्रति committed है। इस उद्देश्य को पाने के लिएमैं अपने Chinese counterpart से 4 सितंबर को Moscow में मिला और उनसे हमारीin-depth discussion हुई। मैंने स्पष्ट तरीके से हमारी चिन्ताओं को चीनी पक्ष के समक्ष रखा, जो उनकी बड़ी संख्या में troops की तैनाती, aggressive behaviour और unilaterally status quo बदलने की कोशिश, (जो bilateral agreements के उल्लंघन) से सम्बंधित थाI मैंने यह भी स्पष्ट किया, कि हम इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना चाहते हैं और हम चाहते हैं कि चीनी पक्ष हमारे साथ मिलकर काम करेंIवहीं हमने यह भी स्ष्ट कर दिया कि हम भारत की sovereignty और territorial integrity की रक्षा के लिए पूरी तरह से determined हैं। इसके बाद मेरे colleague विदेश मंत्री श्री जयशंकर जी भी 10 सितंबर को Moscow में Chinese विदेश मंत्री से मिले । दोनों एक agreement पर पहुंचे कि यदि Chinese side द्वारा sincerely और faithfully agreement को implement किया जाता है तो complete disengagement प्राप्त किया जा सकता है, और border areas में शांति स्थापित हो सकती है।

जैसे कि सदस्यों को जानकारी है, बीते समय में भी चीन के साथ हमारे border areas में लम्बे stand-offs की स्थिति कई बार बनी है जिसका शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया गया था। हालांकि, इस वर्ष की स्थिति, चाहे वो troops की scale of involvement हो या friction points की संख्या हो, वह पहले से बहुत अलग है, फिर भी हम मौजूदा स्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के प्रति committed हैं। इसके साथ-साथ मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हॅूं कि हम सभी परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार हैं।

 अध्यक्ष महोदय, इस सदन की एक गौरवशाली परम्परा रही है, कि जब भी देश के समक्ष कोई बड़ी चुनौती आयी है तो इस सदन ने भारतीय सेनाओं की दृढ़ता और संकल्प के प्रति अपनी पूरी एकता और भरोसा दिखाया है। साथ ही, सीमा क्षेत्र में तैनात अपने बहादुर सेना के जवानों के शौर्य, पराक्रम, और सीमा की सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर पूरा विश्वास व्यक्त किया है।

मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारे armed forces के जवानों का जोश एवं हौसला बुलंद है। माननीय प्रधानमंत्री जी के बहादुर जवानों के बीच जाने के बाद हमारे कमांडर तथा जवानों में यह संदेश गया है कि देश के 130 करोड़ देशवासी जवानों के साथ हैं। उनके लिए बर्फीली ऊॅंचाइयों के अनुरूप विशेष प्रकार के गरम कपड़े, उनके रहने का specialised tent तथा उनके सभी अस्त्र-शस्त्र एवं गोला बारूद की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। हमारे जवानों की यह प्रतिज्ञा सराहनीय है I दुर्गम ऊॅंचाइयों पर, जहां आक्सीजन की कमी है, तथा तापमान शून्य से नीचे है, उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आती है, और वे सियाचीन, कारगिल आदि ऊॅंचाइयों पर अपना कर्तव्य इतने वर्षों से निभाते आ रहे हैं। 

मुझे इस गौरवमयी सदन के साथ यह साझा करने में कतई संकोच नहीं है कि लद्दाख में हम एक चुनौती के दौर से गुजर रहे हैं, और मैं इस सदन से यह आग्रह करना चाहता हॅूं कि हमें एक resolution पारित करना चाहिए कि हम अपने वीर जवानों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर खड़े हैं, जो कि अपनी जान की बगैर परवाह किए हुए देश की चोटियों की उचाईयों पर विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत माता की रक्षा कर रहे हैं। यह समय है जब यह सदन अपने सशस्त्र सेनाओं के साहस और वीरता पर पूर्ण विश्वास जताते हुए उनको यह संदेश भेजे कि यह सदन और सारा देश सशस्त्र सेनाओं के साथ है जो भारत की संप्रभुता एवं सम्मान की रक्षा में जुटे हुए हैं।

Sunday, September 13, 2020

सुखदेव को भूख हड़ताल के दौरान भगत सिंह का पत्र

भूख हड़ताल शुरू होने के बाद भारतीय जनता की चेतना में भगतसिंह व बटुकेश्वर दत्त गहरे उतरते गये। भगत सिंह के शब्दों में हमेशा कष्ट सहना फलीभूत हुआ। सारे देश में एक जन-आन्दोलन छिड़ गया। हम अपने लक्ष्य में सफल रहे। 13 सितम्बर, 1929 को यतीन्द्रनाथ दास 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद शहीद हो गये। जब उनका पार्थिव शरीर लाहौर से कलकत्ता ले जाया जा रहा था तो हर बड़े शहर के स्टेशन पर लाखों की भीड़ उनके अन्तिम दर्शनों के लिए उमड़ पड़ती थी। कलकत्ता में 4 लाख लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
इन दिनों भगतसिंह अपने किन विचारों के माध्यम से अपनी सारी लड़ाई लड़ रहे थे, इसका स्पष्ट पता उस पत्र में चलता है, जो उन्होंने सुखदेव के साथ चल रहे विचार-संघर्ष के सन्दर्भ में लिखा था। खेद है कि सुखदेव के जिस पत्र के उत्तर में भगतसिंह ने यह महत्त्वपूर्ण ख़त लिखा था, वह आज उपलब्ध नहीं है। फिर भी विचार और बहस के अन्तर्गत आने वाले प्रायः सभी बिन्दु यहाँ स्पष्ट हैं।

कष्टों से भागना कायरता है

प्रिय भाई,

मैंने आपके पत्र को कई बार ध्यानपूर्वक पढ़ा। मैं अनुभव करता हूँ कि बदली हुई परिस्थितियों ने हम पर अलग-अलग प्रभाव डाला है। जिन बातों से जेल के बाहर घृणा करते थे, वे आपके लिए अब अनिवार्य हो चुकी हैं इसी प्रकार मैं जेल से बाहर जिन बातों का विशेष रूप से समर्थन करता था, वे अब मेरे लिए विशेष महत्त्व नहीं रखतीं। उदाहरणार्थ, मैं व्यक्तिगत प्रेम को विशेष रूप से मानने वाला था, परन्तु अब इस भावना का मेरे हृदय एवं मस्तिष्क में कोई विशेष स्थान नहीं रहा। बाहर आप इसके कड़े विरोधी थे, परन्तु इस सम्बन्ध में अब आपके विचारों में भारी परिवर्तन एवं क्रान्ति आ चुकी है। आप इसे मानव-जीवन का एक अत्यन्त आवश्यक एवं अनिवार्य अंग अनुभव करते हैं और अनुभूति से आपको एक प्रकार है।
आपको याद होगा कि एक दिन मैंने आत्महत्या के विषय में आपसे चर्चा की थी। तब मैंने आपको बताया था, कई परिस्थितियों में आत्महत्या उचित हो सकती है, परन्तु आपने मेरे इस दृष्टिकोण का विरोध किया था मुझे उस चर्चा का समय एवं स्थान भली प्रकार याद है। हमारी यह बात शहंशाही कुटिया में शाम के समय हुई थी। आपने मजाक के रूप में हँसते हुए कहा था कि इस प्रकार की कायरता का कार्य कभी उचित नहीं माना जा सकता। आपने कहा था कि इस प्रकार का कार्य भयानक और घृणित है, परन्तु इस विषय पर भी मैं देखता हूँ कि आपकी राय बिल्कुल बदल चुकी है। अब आप उसे कुछ अवस्थाओं में न केवल उचित, वरन अनिवार्य एवं आवश्यक अनुभव करते हैं। मेरी इस विषय में अब वही राय है, जो पहले आपकी थी, अर्थात आत्महत्या एक घृणित अपराध है, यह पूर्णतः कायरता का कार्य है। क्रान्तिकारी का तो कहना ही क्या, कोई भी मनुष्य ऐसे कार्य को उचित नहीं ठहरा सकता।

आप कहते हैं कि आप यह नहीं समझ सके कि केवल कष्ट-सहन करने से आप अपने देश की सेवा किस प्रकार कर सकते हैं आप जैसे व्यक्ति की ओर से ऐसा प्रश्न करना बड़े आश्चर्य की बात है। क्योंकि नौजवान भारत सभा के ध्येय 'सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना' को हमने सोच समझकर कितना प्यार किया था। मैं यह समझता हूँ कि आपने अधिक से अधिक सम्भव सेवा की। अब वह समय है कि जो कुछ आपने किया है, उसके लिए कष्ट उठायें। दूसरी बात यह है कि यही वह अवसर है, जब आपको सारी जनता का नेतृत्व करना है।

मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है, जैसेकि हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था कार्य करने के पश्चात उसका परिणाम और उसका फल भोगने की बारी आती है। क्या आपका यह विचार है कि यदि हमने दया के लिए गिड़गिड़ाते हुए दण्ड से बचने का प्रयत्न किया होता, तो हमारा यह कार्य उचित होता? नहीं, इसका प्रभाव लोगों पर उल्टा होता। अब हम अपने लक्ष्य में पूर्णतया सफल हुए हैं।

बन्दी होने के समय हमारी संस्था के राजनीतिक बन्दियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। हमने उसे सुधारने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया। मैं आपको पूरी गम्भीरता से बताता हूँ कि हमें यह विश्वास था कि हम बहुत कम समय के भीतर ही मर जायेंगे। हमें उपवास की स्थिति में कृत्रिम रीति से भोजन दिये जाने का न तो ज्ञान ही था, न हमें यह विचार सूझता ही था। हम तो मृत्यु के लिए तैयार थे। क्या आपका यह अभिप्राय है कि हम आत्महत्या करना चाहते थे? नहीं, प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। हमारे मित्र (श्री यतीन्द्रनाथ दास) की मृत्यु तो स्पृहणीय है क्या आप इसे आत्महत्या कहंगे? हमारा कष्ट सहन करना फलीभूत हुआ। समस्त देश में एक विराट और सर्वव्यापी आन्दोलन शुरू हो गया। हम अपने लक्ष्य में सफल हुए। इस प्रकार के संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।

इसके अतिरिक्त हममें से जिन लोगों को यह विश्वास है कि उनको मृत्युदण्ड दिया जायेगा, उनको धैर्यपूर्वक उस दिन की प्रतीक्षा करनी चाहिए जब यह सजा सुनायी जायेगी और तत्पश्चात उन्हें फाँसी दी जायेगी। यह मृत्यु भी सुन्दर होगी, परन्तु आत्महत्या करना, केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देना, तो कायरता है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं। मैं और आप, वरन मैं कहूँगा, हममें से किसी ने भी किंचित कष्ट सहन नहीं किया है। हमारे जीवन का यह भाग तो अभी आरम्भ होता है।

आपको यह याद होगा कि अनेक बार इस विषय पर हमने बातचीत की है कि रूसी साहित्य में प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है, वह हमारे साहित्य में कदापि नहीं दिखायी देती। हम उनकी कहानियों में कष्टों और दुखदायी स्थितियों को बहुत पसन्द करते हैं, परन्तु कष्ट-सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हम उनके उन्माद और उनके चरित्र को असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक हैं, परन्तु इसके कारणों पर सोच विचार करने की कभी चिन्ता नहीं करते। मैं कहूँगा कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के उल्लेख ने ही उन कहानियों में सहदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र तथा साहित्य में ऊंचाई उत्पन्न की है। हमारी दशा उस समय दयनीय और हास्यास्पद हो जाती है, जब हम अपने जीवन में अकारण ही रहस्यवाद प्रविष्ट कर लेते हैं, यद्यपि इसके लिए कोई प्राकृतिक या ठोस आधार नहीं होता। हमारे जैसे व्यक्तियों को, जो प्रत्येक दृष्टि से क्रान्तिकारी होने का गर्व करते हैं, सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरम्भ किये संघर्ष के द्वारा आमन्त्रित करते हैं एवं जिनके कारण हम अपनेआप को क्रान्तिकारी कहते हैं।

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि जेलों में और केवल जेलों में ही कोई व्यक्ति अपराध एवं पाप जैसे महान सामाजिक विषय का प्रत्यक्ष अध्ययन करने का अवसर पा सकता है। मैंने इस विषय का कुछ साहित्य पढ़ा है और जेलें ही ऐसे विषयों का स्वाध्याय करने के सबसे अधिक उपयुक्त स्थान हैं। स्वाध्याय का सर्वश्रेष्ठ भाग है : स्वयं कष्टों को सहना।

आप भली प्रकार जानते हैं कि रूस में राजनीतिक बन्दियों का बन्दीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात उनके द्वारा जेलों के प्रबन्ध में क्रान्ति लाये जाने का सबसे बड़ा कारण था। क्या भारत को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं है, जो इस विषय से पूर्णतया परिचित हों और इस समस्या का निजी अनुभव रखते हो। केवल यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं, किसी प्रकार भी उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रान्तिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को प्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता। इस प्रकार का आन्दोलन क्रान्ति के कार्यकाल को बहुत सीमा तक कम कर देगा। जितने आन्दोलन अब तक आरम्भ हुए हैं, उन सबसे पृथक रहने के लिए आपने जो तर्क दिये हैं, मैं उन्हें समझने में असमर्थ हूँ। कुछ मित्र ऐसे हैं जो या तो मूर्ख हैं या नासमझा वे आपके इस व्यवहार को (जिसे वे स्वयं कहते हैं कि हमें किंचित भी नहीं समझ सकते, क्योंकि आप उनसे बहुत ऊँचे और उनकी समझ से बहुत परे हैं) अनोखा और अद्भुत समझते हैं।

वास्तव में यदि आप यह अनुभव करते हैं कि बन्दीगृह का जीवन वास्तव में अपमानपूर्ण है, तो आप उसके विरुद्ध आन्दोलन करके उसे सुधारने का प्रयास क्यों नहीं करते? सम्भवतया आप यह कहेंगे कि यह संघर्ष सफल नहीं हो सकता, परन्तु यह तो वही तर्क है, जिसकी आड़ लेकर साधारणतया निर्बल लोग प्रत्येक आन्दोलन से बचना चाहते हैं। यह वह उत्तर है, जिसे हम उन लोगों से सुनते रहे हैं, जो जेल से बाहर क्रान्तिकारी प्रयत्नों में सम्मिलित होने से जान बचाना चाहते थे। क्या आज यही उत्तर मैं आपके मुख से सुना? कुछ मुट्ठीभर कार्यकर्ताओं के आधार पर संगठित हमारी पार्टी अपने लक्ष्यों और आदर्शों की तुलना में क्या कर सकती थी? क्या हम इससे यह निष्कर्ष निकालें कि हमने इस काम के प्रारम्भ करने में नितान्त भूल की है? नहीं, इस प्रकार का परिणाम निकालना उचित नहीं होगा। इससे तो उस व्यक्ति की भीतरी निर्बलता प्रकट होती है। जो इस प्रकार सोचता है।

आगे चलकर आप लिखते हैं कि चौदह वर्ष तक बन्दीगृह के कष्टों से भरपूर जीवन बिताने के पश्चात किसी व्यक्ति से यह आशा नहीं की जा सकती कि उस समय भी उसके विचार वही होंगे, जो जेल से पूर्व थे, क्योंकि जेल का वातावरण उसके समस्त विचारों को रौंदकर रख देगा। क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ कि क्या जेल से बाहर का वातावरण हमारे विचारों के अनुकूल था? फिर भी असफलताओं के कारण क्या हम उसे छोड़ सकते थे? क्या आपका आशय यह है कि यदि हम इस क्षेत्र में न उतरे होते, तो कोई भी क्रान्तिकारी कार्य कदापि नहीं हुआ होता? यदि ऐसा है तो आप भूल कर रहे हैं। यद्यपि यह ठीक है कि हम भी वातावरण
को बदलने में बड़ी सीमा तक सहायक सिद्ध हुए हैं, तथापि हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं।

मैं तो यह भी कहूँगा कि साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स, वास्तव में इस विचार को जन्म देने वाला नहीं था। असल में यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति ने ही एक विशेष प्रकार के विचारों वाले व्यक्ति उत्पन्न किये थे। उनमें मार्क्स भी एक था। हाँ, अपने स्थान पर मार्क्स भी निस्सन्देह कुछ सीमा तक समय के चक्र को एक विशेष प्रकार की गति देने में आवश्यक सहायक सिद्ध हुआ है।

मैंने (और आपने भी) इस देश में समाजवाद और साम्यवाद के विचारों को जन्म नहीं दिया, वरना यह तो हमारे ऊपर हमारे समय एवं परिस्थिति के प्रभाव का परिणाम है। निस्सन्देह हमने इन विचारों का प्रचार करने के लिए कुछ साधारण एवं तुच्छ कार्य अवश्य किया है, इसलिए मैं कहता हूँ कि जब हमने इस प्रकार एक कठिन कार्य को हाथ में ले ही लिया है, तो हमें उसे जारी रखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। विपत्तियों से बचने के लिए आत्महत्या कर लेने से जनता का मार्गदर्शन नहीं होगा, वरन यह तो एक प्रतिक्रियावादी कार्य होगा।

जेल के नियमों के अनुसार जीवन की निराशाओं, दबाव और हिंसा के असीम परीक्षायुक्त वातावरण का विरोध करते हुए हम कार्य करते रहे। जिस समय हम अपना कार्य करते थे, उस समय नाना प्रकार से हमें कठिनाइयों का निशाना बनाया जाता था। यहाँ तक कि जो लोग अपनेआप को महान क्रान्तिकारी कहने का गौरव अनुभव करते थे, वे भी हमको छोड़ गये। क्या ये परिस्थितियाँ असीम परीक्षायुक्त न थीं? फिर अपने आन्दोलन एवं प्रयासों को जारी रखने के लिए हमारे पास क्या कारण और तर्क था?

क्या स्वयं यही तर्क हमारे विचारों को शक्ति नहीं देता है? और क्या ऐसे क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के उदाहरण हमारे सामने नहीं हैं, जो जेलों से दण्ड भोगकर लौटे और अब भी कार्य कर रहे हैं? यदि बाकुनिन ने आपके समान सोच विचार किया होता, तो वह प्रारम्भ में ही आत्महत्या कर लेता। आज आपको असंख्य ऐसे क्रान्तिकारी दिखायी देते हैं, जो रूसी राज्य में उत्तरदायी पदों पर विराजमान हैं और जिन्होंने अपने जीवन का अधिकतर भाग दण्ड भोगते हुए जेलों में बिताया है। मनुष्य को अपने विश्वास पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए। कोई नहीं कह सकता कि भविष्य में क्या घटना होने वाली है। क्या आपको याद है कि जब हम इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि हमारी-फैक्टरियों में अत्यन्त तीन एवं प्रभावकारी विष भी रखा जाना चाहिए. तो बम आपने बड़ी दृढ़ता से इसका विरोध किया था। आप इस विचार से ही घृणा करते थे। आपको इस पर विश्वास नहीं था फिर अब क्या हुआ? यहाँ तो ऐसी विकट और जटिल परिस्थितियाँ भी नहीं हैं। मुझे तो इस प्रश्न पर विचार करने में भी घृणा होती है। आपको उस मनोवृत्ति से भी घृणा थी जो आत्महत्या करने की अनुमति देती है। आप मुझे यह कहने के लिए क्षमा करें कि यदि आपने अपने बन्दी बनाये जाने के समय ही इन विचारों के अनुकूल कार्य किया होता (अर्थात आपने विष खाकर उस समय आत्महत्या कर ली होती) तो आपने क्रान्तिकारी कार्य की बहुत बड़ी सेवा की होती, परन्तु इस समय तो इस कार्य पर विचार करना भी हमारे लिए हानिकारक है।

एक और विशेष बात, जिस पर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, यह है कि हम लोग ईश्वर, पुनर्जन्म, नरक-स्वर्ग, दण्ड एवं पारितोषिक, अर्थात भगवान द्वारा किये जाने वाले जीवन के हिसाब आदि में कोई विश्वास नहीं रखते। अतः हमें जीवन एवं मृत्यु के विषय में भी नितान्त भौतिकवादी रीति से सोचना चाहिए। एक दिन जब मुझे पहचाने जाने के लिए दिल्ली से यहाँ लाया गया था, तो गुप्तचर विभाग के कुछ अधिकारियों ने मेरे पिता जी की उपस्थिति में मुझसे इस विषय पर बातचीत की थी। उन्होंने कहा था कि मैं कोई भेद खोलने और इस प्रकार अपना जीवन बचाने के लिए तैयार नहीं हूँ, इससे यह सिद्ध होता है कि मैं जीवन से बहुत दुखी हूँ। उनका तर्क था कि मेरी यह मृत्यु तो आत्महत्या के समान होगी, परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया था कि मैरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में ही मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक से अधिक सम्भव सेवा करना चाहते हैं विशेषकर मंरे जैसा भला मनुष्य, जिसका जीवन किसी भी रूप में दुखी या चिन्तित नहीं है, किसी समय भी, आत्महत्या करना तो दूर रहा, उसका विचार भी हृदय में लाना ठीक नहीं समझता। वही बात मैं इस समय आपसे कहना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अनुमति देंगे कि मैं आपको यह बताऊँ कि मैं अपने बारे में क्या सोचता हूँ। मुझे अपने लिए मृत्युदण्ड सुनाये जाने का अटल विश्वास है। मुझे किसी प्रकार को पूर्ण क्षमा या नम्र व्यवहार की तनिक भी आशा नहीं है। यदि कोई क्षमा हुई भी तो पूर्णतः सबके लिए न होगी, वरन वह भी हमारे अतिरिक्त अन्य लोगों के लिए नितान्त सीमित एवं कई बन्धनों से जकड़ी हुई होगी। हमारे लिए तो न क्षमा हो सकती है और न वह होगी ही इस पर भी मेरी इच्छा है कि हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही मेरी अभिलाषा यह है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे, तो हमें फाँसी दे दी जाने। मेरी यह इच्छा है कि यदि कोई सम्मानपूर्ण और उचित समझौता होना कभी सम्भव हो जाये, तो हमारे जैसे व्यक्तियों का मामला उसके मार्ग में कोई रुकावट या कठिनाई उत्पन्न करने का कारण न बने। जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला दंना चाहिए हम क्रान्तिकारी होने के नाते अतीत के समस्त अनुभवों से पूर्णतया अवगत हैं। इसलिए हम नहीं मान सकते कि हमारे शासकों और विशेषकर अंग्रेज़ जाति की भावनाओं में इस प्रकार का आश्चर्यजनक परिवर्तन उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार का परिवर्तन क्रान्ति के बिना सम्भव ही नहीं है। क्रान्ति तो केवल सतत कार्य करते रहने से, प्रयत्नों से, कष्ट सहन करने एवं बलिदानों से ही उत्पन्न की जा सकती है, और की जायेगी।

जहाँ तक मेरे दृष्टिकोण का सम्बन्ध है, मैं तो केवल उसी दशा में सबके लिए सुविधाओं और क्षमादान का स्वागत कर सकता हूँ जब उसका प्रभाव स्थायी हो और देश के लोगों के हृदयों पर हमारी फाँसियों से कुछ अमिट चिह्न अंकित हो जायें। बस यही; इससे अधिक कुछ नहीं।

Saturday, September 12, 2020

कहते है न "पेट कितना दिन छिपेगा जब फुलेगा तो दिख ही जाएगा"

गांव में एक समय था जब क्रिकेट को क्रिकेट की तरह खेला जाता था पर कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले नीच लोग आ गए इसमें मार झगड़ा, गाली गलौज सब होने लगा। गुस्से में आकर बैट तोड़ा गया , स्टंप उखाड़ कर फेका जाना.. मत पूछिए बच्चो के खेल में कुछ बेईमान लोगो के घुस जाने से पूरा खेल बर्बाद हो जाय । धीरे धीरे इस खेल का पतन होना शुरू हुआ। अब तो ग्राउंड भी उस लायक नहीं बचा। खैर आजकल हैंडबॉल का जमाना है इसमें कोई काबिल का पूंछ नहीं बन सकता दौड़ने में फट जायेगी न। अब सबके बॉल भी आती है। क्रिकेट में तो ये हो गया था कि  बेईमान लोग पहले बैटिंग भी करते थे और बॉलिंग भी बस इसी को लेकर मार हो जाता था तो बेईमान कहता था कि " हमार पैसा लगल बा" मतलब बाकि सब पागल है का जो 10-15 ओवर फील्डिंग किए भरी दोपहरी में। 
हैंडबॉल में भी कुछ ऐसा ही हुआ यहां भी खेल में "बेईमानों" ने खलल डालने की कोशिश की पर नाकामयाब रहे।  खेल को खेल की तरह खेलना चाहिए पर कुछ 25-30 साल के लोग खेल में घुस के खलल डालना शुरू कर देते है उनका काम होता है कि अपने से छोटो को समझाए पर ये इसके विपरीत इन्हें भी अपनी तरह बेईमान बनाने की कोशिश करने लग जाते है।  खेल में अनुशासन होना चाहिए पर यहां कुछ बेईमान घुस के बेईमानी करने लग जाते है। हर जगह का यही हालात है ऐसे निम्न स्तर सोच रखने वाले मिल जाते हैं। ये संकीर्ण मानसिकता वाले जब  पीटाने लग जाते है "बेचारे" जैसी शक्ल बनाने लग जाते हैं बेईमान लोग!
क्या बताऊं मै समान्य ज्ञान भी पेलते हुए मिल जाएंगे  बात साल 2011-12 कि है " lucent रट के चले थे ये लोग मुझसे टक्कर लेने .. बताओ यार कहा ये साले बारहवी में या पास कहां मै 6-7 में पढ़ने वाला छात्र। ऐसा चापा इन लोगो को कि बटुरा गए...
वक्त गुजरता गया साल पे साल बीतते गए कॉम्पटीशन बढ़ता गया और वो बेईमान लोग गायब हो गए सारी तैयारी उनकी पिछवाड़े में घुस गई..
बात यू हुई गांव के शिवाला पे कॉम्पटीशन होता था लोग जाते थे , बहुत बड़ा हब बन गया था तैयारी करने वालो छात्रों का। मुझे भी बुलाया गया " आवा शिवम तुहू आवा तोहरो देख लेवल जाय" पर मै टाल देता देता था कहा करता था कि हम का करे आइब जा मर्दवा लोगन। तो मुझे लोग समझने लगे कि ये पढ़ता लिखता नहीं है मूर्ख बनाता है सबको इसको कुछ नहीं आता खाली फेंकता है... अरे पूछो मत मेरे पीठ पीछे ना जाने क्या क्या बतियाया गया भगवान ही मालिक है।

वाह यार क्या तैयारी चल रही कोई न कोई पीसीएस अधिकारी बनेगा , यूपीएससी निकालेगा लेखपाल का परीक्षा निकालेगा  , रेलवे में जाएगा आदि बहुत मेहनत कर रहे है सब के सब वाह यार शानदार!
मै भी  छुट्टियों में वाराणसी से गांव आया देखा माहौल को पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था मै सब समझता था कौन कितना टॉपर हैं। मै चाहता तो इन सबका पोल खोल देता पर सोचा रहने दो मुझसे क्या मतलब? लोग मेरी बातो को तो हवा में उड़ा देते है।
कहते है न "पेट कितना दिन छिपेगा जब फुलेगा तो दिख ही जाएगा" यहीं हुआ इन लम्पटों के साथ। हुआ  ये कि गणित का प्रेक्टिस पेपर हो रहा था उसमे एक महाशय बिना किसी solution के  डायरेक्ट उत्तर दे दिए चुकी  बहुविकल्पीय प्रश्न था सिर्फ गोला या टिक मार के टॉप होना था.. जब सारे लड़के उनके पीछे पड़ गए कि सॉल्व करके बताइए तो उनकी फट  गई.. उलूल जूलूल तरीके से प्रश्नों का उत्तर निकालने लगे... बस यही सबका भांडा फुट गया की कौन कितने पानी में है । ई सब पेपर लीक करवाते थे कि एक दिन तुम टॉप मारना एक दिन मै बाकि जो लड़के इधर- उधर से आए है वो तो गधे  है।
तहिये से कॉम्पटीशन वाला खेल भी बंद हो गया क्रिकेट कि तरह। बेईमान जहा रहेंगे वहा कोई भी चीज ढंग से नहीं हो सकती।
फिर मै शिवाले के संचालकों से मिला और कहा " इसी बेईमानी कि वजह से मै नहीं आया कभी"।

 

हर जगह छपा पोस्टर शिक्षा का घटिया स्तर

   क्यों न गिरे शिक्षा स्तर
  हर कोई बना है मास्टर
 कहा कहा पढ़े बालक 
 सब है कोचिंग संचालक
 गलियों में देखो शहरों के
 गांवो में भी छपा पोस्टर
 आओ बेटा पढ़ो इधर
 मान्यता नहीं मिला है
 फिर खोल लिए स्कूल
  कोचिंग वाली शिक्षा 
 आंखो झोंकती धूल
 जो स्कूल में ना पढ़े
कोचिंग से आगे बढ़े
हिंदी अंग्रेजी पता नहीं
जो ये पढ़ाए वहीं सही

Friday, September 11, 2020

सुबह सुबह पईसा से मिलते ही अपना बचपन याद गया

तीन भाई डॉलर, रुपया और पईसा। डॉलर दोनों से उम्र में बड़ा और समझदार भी है। रुपया इधर की बात उधर करने में मग्न रहता है। कोई सही बात करो बुरा मान जाता है और कहत है कि आप झूठ बोल रहे है अपनी बात को साबित करने के लिए सबूत दिखाए वरना लौट के जाय। जब मै अपनी बात को सही साबित कर देता हूं तो दांत चियार देता है और कवनो काम भी तो नहीं उसके पास इसके अलावा। डॉलर कहता भी है भैया काहे ई पागल से बतिया के अपना भेजा फ्राई करते है ये अपने आगे किसी की सुनता ही नहीं है देखो कब से कह रहा हूं जाओ अम्मा बुला रही है तो नहीं जा रहा ताकि काम न करना पड़े कामचोर कहीं का। फिर मैने बोला जाने दो खेलने कुदने का दिन है कुछ दिन और हवा में उड़ लेने दो। तभी रुपया अपनी सफाई में बोला- अरे नहीं भईया इसकी बात मत मानिए  ई तो ऐसे बोल रहा है जैसे सारा काम यही करता है। गाय को चारा डालना , गोबर फेंकना, गाय को नहलाना, फलाना ढीकाना। दूध हम दुहते है गाय का और लत्ती भी खाते है  मज़ा ई लेता है । बड़ा है न इसीलिए हर जगह काबिल बनने लग जाता है। फिर मैंने कहा अच्छा ठीक है ई बताओ जरा ' पईसा ' नहीं नजर आ रहा है कहा होगा इस वक्त इतना दिन हो होय गया गांव आए हुए एक्को दिन लौका नहीं कहीं अपने नानी के यहां तो नहीं चला गया है? 
तब डॉलर बोला - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । उ सवेरे घर निकल जाता है तो शाम को  या तो अन्हरिया में ही मिलेगा। बड़ा चंठ होय गया है सारा दिन गोली/ कंचा , क्रिकेट में लगा रहता है। पढ़ाई लिखाई में तो ध्यान रहता नहीं है बस दीनवा भर घूमता रहता है।
खैर मुझे पता है जब मै पिछले साल पईसा से मिला था तो उसकी गणित अपने दोनो बड़े भाईयो से तेज था और अभी भी है। शरारती बड़ा है पेड़ पे तो ऐसे चढ़ जाता है मानो गिलहरी सर्रर दे गुजर गई पता भी ना चला। एकदम सुबह उससे मुलाकात हुई हालचाल पूछा तो बोला ," एकदम मस्त है" हाथ में बिस्कुट और टोस्ट लेके जा रहा था लगता है अभी दुकान से ही आ रहा है। उसने मुझसे पूछा - चाय नाश्ता हो गया क्या भैया?
मै बोला - नाश्ता तो नहीं पर चाय जरूर पी लिया हूं।
उसके बाद बोला चलिए ठीक है साइकिल से था तेजी में निकल गया कहीं उसकी चाय न ठंडी हो जाय। तेज हवा चल रही थी अचानक से एका एक मौसम ने रुख बदल बदल लिया घनघोर बादल छाए हुए थे और मै भी जल्दी से घर की तरफ निकल लिया। खूब तेजी से वर्षा होने लगी इस बार धान के खेती में लगभग सभी लोगों ने जोर दिया है। इस झमाझम बारिश की ही तो बस दरकार थी बस खेतो में जम के पानी लग जाय और का चाहिए। चलो आज तो मज़ा आ जाएगा गरमा गरम पकौड़ी खाने को मिलेगी घर पे इस बरसात में।

Thursday, September 10, 2020

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के शुभारम्भ अवसर पर प्रधानमंत्री का सम्बोधन

                     (स्रोत:- पीएमओ)

रउआ सभे के प्रणाम बा।

देशवा खातीर, बिहार खातीर, गांव के जिनगी के आसान बनावे खातीर और व्‍यवस्‍था मजबूत करे खातीर, मछरी उत्‍पादन, डेयरी, पशुपालन और कृषि क्षेत्र में पढ़ाई और रिसर्च से जुड़ल सैकड़न करौड़ रूपया के योजना के शिलान्‍यास और लोकार्पण भइल ह। ऐकरा खातीर सउसे बिहार के भाई–बहन लोगन के अनघा बधाई दे तनी।

बिहार के गवर्नर फागू चौहान जी, मुख्यमंत्री श्रीमान नीतीश कुमार जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्रीमान गिरिराज सिंह जी, कैलाश चौधरी जी, प्रताप चंद्र सारंगी जी, संजीव बालियान जी, बिहार के उप मुख्यमंत्री भाई सुशील जी, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष श्रीमान विजय चौधरी जी, राज्य मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यगण, सांसदगण, विधायक गण, और मेरे प्रिय साथियों,

साथियों, आज जितनी भी ये योजनाएं शुरू हुई हैं उनके पीछे की सोच ही यही है कि हमारे गांव 21वीं सदी के भारत, आत्मनिर्भर भारत की ताकत बनें, ऊर्जा बनें। कोशिश ये है कि अब इस सदी में Blue Revolution यानि मछली पालन से जुड़े काम, White Revolution यानि डेयरी से जुड़े काम, Sweet Revolution यानि शहद उत्पादन से जुड़े काम, हमारे गांवों को और समृद्ध और सशक्त करे। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई है। आज देश के 21 राज्यों में इस योजना का शुभारंभ हो रहा है। अगले 4-5 वर्षों में इस पर 20 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे। इसमें से आज 1700 करोड़ रुपए का काम शुरु हो रहा है। इसी के तहत ही बिहार के पटना, पूर्णियां, सीतामढ़ी, मधेपुरा, किशनगंज और समस्तीपुर में अनेक सुविधाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया गया है। इससे मछली उत्पादकों को नया इंफ्रास्ट्रक्चर मिलेगा, आधुनिक उपकरण मिलेंगे, नया मार्केट भी मिलेगा। इससे खेती के साथ ही अन्य माध्यमों से भी कमाई का अवसर बढ़ेगा।

साथियों, देश के हर हिस्से में, विशेषतौर पर समंदर और नदी किनारे बसे क्षेत्रों में मछली के व्यापार-कारोबार को, ध्यान में रखते हुए, पहली बार देश में इतनी बड़ी व्‍यापक योजना बनाई गई है। आज़ादी के बाद इस पर जितना निवेश हुआ, उनसे भी कई गुना ज्यादा निवेश प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना पर किया जा रहा है। जब अभी गिरिराज जी बता रहे थे तो शायद ये आंकड़ों को सुनकर भी कई लोगों को अचरज लगेगा कि ऐसे चला था लेकिन जब आप हकीकत को जानेंगे तो आपको लगेगा कि यह सरकार कितने-कितने क्षेत्रों में कितने-कितने लोगों की भलाई के लिए कैसे-कैसे लंबे कामों की योजना को आगे बढ़ा रही है।

देश में मछली से जुड़े व्यापार-कारोबार को देखने के लिए अब अलग से मंत्रालय भी बनाया गया है। इससे भी हमारे मछुआरे साथियों को, मछली के पालन और व्यापार से जुड़े साथियों को सुविधा हो रही है। लक्ष्य ये भी है कि आने वाले 3-4 साल में मछली निर्यात को दोगुना किया जाए। इससे सिर्फ फिशरीज सेक्टर में ही रोज़गार के लाखों नए अवसर पैदा होंगे। अभी जिन साथियों से मैं बात कर रहा था, उनसे संवाद के बाद तो मेरा विश्वास और ज्यादा बढ़ गया है। जब मैंने राज्‍यों का विश्‍वास देखा और मैंने भाई ब्रजेश जी से बातें की, भाई ज्‍योति मंडल से बातें की और बेटी मोणिका से बात की, देखिए कितना विश्‍वास झलकता है।

साथियों, मछली पालन बहुत कुछ साफ पानी की उपलब्धता पर निर्भर करता है। इस काम में गंगा जी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के मिशन से भी मदद मिल रही है। गंगा जी के आस-पास बसे इलाकों में रीवर ट्रांसपोर्ट को लेकर जो काम चल रहा है, उसका लाभ भी फिशरीज सेक्टर को मिलना तय है। इस 15 अगस्त को जिस मिशन डॉल्फिन की घोषणा की गई है, वो भी फिशरीज सेक्टर पर अपना प्रभाव स्‍वाभाविक, यानि एक प्रकार से बायो-प्रोडक्‍ट मदद, एक्‍स्‍ट्रा बेनिफि‍ट होने ही वाला है। मुझे पता चला है कि हमारे नीतीश बाबू जी इस मिशन से जऱा ज्‍यादा ही उत्साहित हैं। और इसलिए मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि जब गंगा डॉल्फिन की संख्या बढ़ेगी, तो इसका लाभ गंगा तट के लोगों को तो बहुत मिलनेवाला है, सभी को मिलेगा।

साथियों, नीतीश जी के नेतृत्व में बिहार में गांव-गांव पानी पहुंचाने के लिए बहुत प्रशंसनीय काम हो रहा है। 4-5 साल पहले बिहार में सिर्फ 2 प्रतिशत घर पीने के साफ पानी की सप्लाई से जुड़े थे। आज ये आंकड़ा बढ़कर 70 प्रतिशत से अधिक हो गया है। इस दौरान करीब-करीब डेढ़ करोड़ घरों को पानी की सप्लाई से जोड़ा गया है। नीतीश जी के इस अभियान को अब जल जीवन मिशन से नई ताकत मिली है। मुझे जानकारी दी गई है कि कोरोना के इस समय में भी बिहार में करीब 60 लाख घरों को नल से जल मिलना सुनिश्चित किया गया है। ये वाकई बहुत बड़ी उपलब्धि है। ये इस बात का भी उदाहरण है कि इस संकट काल में जब देश में लगभग सब कुछ थम गया था, तब भी हमारे गांवों में किस तरह एक आत्‍मविश्‍वास के साथ काम चलता रहा। ये हमारे गांवों की ही ताकत है कि कोरोना के बावजूद अनाज, फल, सब्जियां, दूध, जो भी आवश्‍यक चीजें थीं, मंडियों तक, डेयरियों तक बिना किसी कमी आता रहा, लोगों तक पहुंचता ही रहा।

साथियों, इस दौरान अन्न उत्पादन हो, फल उत्पादन हो, दूध का उत्‍पादन हो, हर प्रकार से बंपर पैदावार हुई है। यही नहीं सरकारों ने, डेयरी उद्योग ने भी इस मुश्किल परिस्थिति के बावजूद रिकॉर्ड खरीद भी की है। पीएम किसान सम्मान निधि से भी देश के 10 करोड़ से ज्यादा किसानों के बैंक खातों में सीधा पैसा पहुंचाया गया है। इसमें करीब-करीब 75 लाख किसान हमारे बिहार के भी हैं। साथियों, जब से ये योजना शुरु हुई है, तब से अब तक करीब 6 हज़ार करोड़ रुपए बिहार के किसानों के बैंक खाते में जमा हो चुके हैं। ऐसे ही अनेक प्रयासों के कारण गांव पर इस वैश्विक महामारी का प्रभाव हम कम से कम रखने में सफल हुए हैं। ये काम इसलिए भी प्रशंसनीय है क्योंकि बिहार कोरोना के साथ-साथ बाढ़ की विभीषिका का भी बहादुरी से सामना कर रहा है।

साथियों, कोरोना के साथ-साथ भारी बरसात और बाढ़ के कारण बिहार समेत आसपास के क्षेत्रों में जो स्थिति बनी है, उससे हम सभी भलीभांति परिचित हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों का प्रयास है कि राहत के कामों को तेज गति से पूरा किया जाए। इस बात पर बहुत जोर दिया जा रहा है कि मुफ्त राशन की योजना और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोज़गार अभियान का लाभ बिहार के हर जरूरतमंद साथी तक पहुंचे, बाहर से गांव लौटे हर श्रमिक परिवार तक पहुंचे। इसलिए ही, मुफ्त राशन की योजना को जून के बाद दीपावली और छठपूजा तक बढ़ा दिया गया है।

साथियों, कोरोना संकट के कारण शहरों से लौटे जो श्रमिक साथी हैं, उनमें से अनेक साथी पशुपालन की तरफ बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार और बिहार सरकार की अनेक योजनाओं से उनको प्रोत्साहन भी मिल रहा है। मैं ऐसे साथियों को कहूंगा कि आज जो कदम आप उठा रहे हैं, उसका भविष्य उज्‍ज्‍वल है। मेरे शब्‍द लिख करके रखिए, आप जो कर रहे हैं इसका भविष्‍य उज्‍ज्‍वल है। सरकार का ये निरंतर प्रयास है कि देश के डेयरी सेक्टर का विस्तार हो। नए प्रोडक्ट्स बनें, नए इनोवेशंस हों, जिससे किसान को, पशुपालकों को ज्यादा आय मिले। इसके साथ इस बात पर भी फोकस किया जा रहा है कि देश में ही उत्तम नस्ल के पशु तैयार हों, उनके स्वास्थ्य की बेहतर व्यवस्था हो और उनका खान-पान स्वच्छ हो, पोषक हो।

इसी लक्ष्य के साथ आज देश के 50 करोड़ से ज्यादा पशुधन को खुरपका और मुंहपका जैसी बीमारियों से मुक्त करने के लिए मुफ्त टीकाकरण अभियान चल रहा है। पशुओं को बेहतर चारे के लिए भी अलग-अलग योजनाओं के तहत प्रावधान किए गए हैं। देश में बेहतर देसी नस्लों के विकास के लिए मिशन गोकुल चल रहा है। एक वर्ष पहले ही देशव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम शुरु किया गया था, जिसका एक चरण आज पूरा हो चुका है।

साथियों, बिहार अब उत्तम देसी नस्लों के विकास को लेकर देश का एक प्रमुख सेंटर बन रहा है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत आज पूर्णिया, पटना, बरौनी में जो आधुनिक सुविधाएं बनी हैं उससे डेयरी सेक्टर में बिहार की स्थिति और मज़बूत होने वाली है। पूर्णिया में जो सेंटर बना है, वो तो भारत के सबसे बड़े सेंटरों में से एक है। इससे सिर्फ बिहार ही नहीं पूर्वी भारत के बड़े हिस्से को बहुत लाभ होगा। इस केंद्र से ‘बछौर’ और ‘रेड पूर्णिया’ जैसी बिहार की देसी नस्लों के विकास और संरक्षण को भी और ज्यादा बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

एगो गाय सामान्यतः एक साल में एक बच्चा देवेली। लेकिन आई॰वी॰एफ़॰ तकनीक से एक गायकी मदद सेएक साल में अनेकों बच्चा प्रयोगशाला में हो रहल बा। हमार लक्ष्य इ तकनीक के गाँव-गाँव तक पहुँचावे के बा।

साथियों,

पशुओं की अच्छी नस्ल के साथ ही उनकी देखरेख और उसको लेकर सही वैज्ञानिक जानकारी भी उतनी ही ज़रूरी होती है। इसके लिए भी बीते सालों से निरंतर टेक्नॉलॉजी का उपयोग किया जा रहा है। इसी कड़ी में आज ‘ई-गोपाला’ app शुरु किया गया है। ई-गोपाला app एक ऐसा Online digital माध्यम होगा जिससे पशुपालकों को उन्नत पशुधन को चुनने में आसानी होगी, उनको बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी। ये app पशुपालकों को उत्पादकता से लेकर उसके स्वास्थ्य और आहार से जुड़ी तमाम जानकारियां देगा। इससे किसान को ये पता चल पाएगा कि उनके पशु को कब क्या ज़रूरत है और अगर वो बीमार है तो उसके लिए सस्ता इलाज कहां उपलब्ध है। यही नहीं ये app, पशु आधार से भी जोड़ा जा रहा है। जब ये काम पूरा हो जाएगा तो e-GOPALA app में पशु आधार नंबर डालने से उस पशु से जुड़ी सारी जानकारी आसानी से मिल जाएगी। इससे पशुपालकों को जानवर खरीदने-बेचने में भी उतनी ही आसानी होगी।

साथियों, कृषि हो, पशुपालन हो, मछलीपालन हो, इन सबका विकास और तेजी से हो, इसके लिए वैज्ञानिक तौर तरीकों को अपनाना और गांव में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना बहुत ही आवश्यक है। बिहार तो वैसे भी कृषि से जुड़ी पढ़ाई और रिसर्च का अहम सेंटर रहा है। दिल्ली में यहां हम लोग पूसा-पूसा सुनते रहते हैं। बहुत ही कम लोगों को पता है कि असली पूसा, दिल्ली में नहीं बल्कि बिहार के समस्तीपुर में है। यहां वाला तो एक तरह से उसका जुड़वा भाई है।

साथियों, गुलामी के कालखंड में ही, समस्तीपुर के पूसा में राष्ट्रीय स्तर का एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर खुला था। आज़ादी के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे विजनरी नेताओं ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। इन्हीं के प्रयासों से प्रेरणा लेते हुए साल 2016 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्विद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी गई थी। इसके बाद इस यूनिवर्सिटी में और इसके तहत चलने वाले कॉलेज में Courses का भी और सुविधाओं का भी व्यापक विस्तार किया गया है। चाहे मोतिहारी में Agriculture और Forestry का नया कॉलेज हो, पूसा में School of Agribusiness and ruralmanagementहो, बिहार में कृषि विज्ञान और कृषि प्रबंधन की पढ़ाई के लिए शिक्षा व्यवस्थाओं को और मजबूत किया जा रहा है। इसी काम को और आगे बढ़ाते हुए School of agribusiness and rural managementकी नई बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ है। साथ ही, नए हॉस्टल, स्टेडियम और गेस्ट हाउस का भी शिलान्यास किया गया है।

साथियों, कृषि क्षेत्र की आधुनिक जरूरतों को देखते हुए, पिछले 5-6 वर्षों से देश में एक बड़ा अभियान जारी है। 6 साल पहले जहां देश में सिर्फ एक केंद्रीय कृषि विश्विद्यालय था, वहीं आज देश में 3-3 सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज़ हैं। यहां बिहार में जो बाढ़ हर साल आती है उससे खेती-किसानी को कैसे बचाया जाए, इसके लिए महात्मा गांधी रिसर्च सेंटर भी बनाया गया है। ऐसे ही मोतीपुर में मछली से जुड़ा रीजनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर, मोतिहारी में पशुपालन से जुड़ा कृषि और डेयरी विकास केंद्र, ऐसे अनेक संस्थान कृषि को विज्ञान और तकनीक से जोड़ने के लिए शुरु किए गए हैं।

साथियों, अब भारत उस स्थिति की तरफ बढ़ रहा है जब गांव के पास ही ऐसे क्लस्टर बनेंगे जहां, फूड प्रोसेसिंग से जुड़े उद्योग भी लगेंगे और पास ही उससे जुड़े रिसर्च सेंटर भी होंगे। यानि एक तरह से हम कह सकते हैं- जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान। इन तीनों की ताकत जब एकजुट होकर काम करेगी, तब देश के ग्रामीण जीवन में बहुत बड़े बदलाव होने तय हैं। बिहार में तो इसके लिए बहुत संभावनाएं हैं। यहां के फल, चाहे वो लीची हो, जर्दालू आम हो, आंवला हो, मखाना हो, या फिर मधुबनी पेंटिंग्स हो, ऐसे अनेक प्रोडक्ट बिहार के जिले-जिले में हैं। हमें इन लोकल प्रोडक्ट्स के लिए और ज्यादा वोकल होना है। हम लोकल के लिए जितना वोकल होंगे, उतना ही बिहार आत्मनिर्भर बनेगा, उतना ही देश आत्मनिर्भर बनेगा।

साथियों, मुझे खुशी है कि बिहार के युवा, विशेषतौर पर हमारी बहनें पहले से ही इसमें सराहनीय योगदान दे रही हैं। श्रीविधि धान की खेती हो, लीज़ पर ज़मीन लेकर सब्जी उगाना हो, अज्जोला सहित दूसरी जैविक खादों का उपयोग हो, कृषि मशीनरी से जुड़ा हायरिंग सेंटर हो, बिहार की स्त्री शक्ति भी आत्मनिर्भर भारत अभियान को ताकत देने में आगे हैं। पूर्णिया जिले में मक्का के व्यापार से जुड़ा ‘अरण्यक FPO’और कोसी क्षेत्र में महिला डेयरी किसानों की ‘कौशिकी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी’, ऐसे अनेक समूह प्रशंसनीय काम कर रहे हैं। अब तो हमारे ऐसे उत्साही युवाओं के लिए, बहनों के लिए केंद्र सरकार ने विशेष फंड भी बनाया है। 1 लाख करोड़ रुपए के इस इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से ऐसे FPO-कृषि उत्पादक संघों को, सहकारी समूहों को, गांव में भंडारण, कोल्ड स्टोरेज और दूसरी सुविधाएं बनाने के लिए आर्थिक मदद आसानी से मिल पाएगी। इतना ही नहीं, हमारी बहनों के जो स्वयं सहायता समूह है, उनको भी अब बहुत मदद दी जा रही है। आज बिहार में स्थिति ये है कि वर्ष 2013-14 की तुलना में अब स्वयं सहायता समूहों को मिलने वाले ऋण में 32 गुणा की वृद्धि हुई है। ये दिखाता है कि देश को, बैंकों को, हमारी बहनों के सामर्थ्य पर उनकी उद्यमशीलता पर कितना भरोसा है।

साथियों, बिहार के गांवों को, देश के गांवों को आत्मनिर्भर भारत का अहम केंद्र बनाने के लिए हमारे प्रयास लगातार बढ़ने वाले हैं। इन प्रयासों में बिहार के परिश्रमी साथियों का रोल भी बड़ा है और आपसे देश को उम्मीदें भी बहुत अधिक हैं। बिहार के लोग, देश में हों या विदेश में, अपने परिश्रम से, अपनी प्रतिभा से अपना लोहा मनवाते रहे हैं। मुझे विश्वास है कि बिहार के लोग, अब आत्मनिर्भर बिहार के सपने को पूरा करने के लिए भी निरंतर इसी तरह काम करते रहेंगे। विकास योजनाओं की शुरुआत के लिए मैं फिर से एक बार बहुत-बहुत बधाई देता हूं लेकिन एक बार फि‍र से मैं अपनी भावनाएं प्रकट करूंगा, मेरी आपसे कुछ अपेक्षाएं हैं, वो बताऊंगा और मेरी अपेक्षा यही है मास्क और दो गज़ की दूरी के नियम का पालन अवश्‍य करते रहिए, सुरक्षित रहिए, स्वस्थ रहिए।

अपने घर में बड़े आयु के जो परिवार के जन हैं उनको बराबर संभालकर रखिए, ये बहुत आवश्‍यक है, कोरोना को लाइट मत लीजिए और हर नागरिक को, क्‍योंकि हमारे पास वैज्ञानिकों के द्वारा वैक्‍सीन जब आये तब आये, लेकिन ये जो सोशल वैक्‍सीन है, वो कोरोना से बचने का उत्‍तम उपाय है, बचने का यही रास्‍ता है और इसलिए दो गज की दूरी, मास्‍क, कहीं पर थूकना नहीं, बुजुर्गों की चिंता करना, इन विषयों को मैं बार-बार याद कराता हूं। आज आपके बीच आया हूं, फि‍र से याद कराता हूं कि मुझे फि‍र एक बार आपके बीच आने का मौका मिला, मैं बहुत-बहुत राज्‍य सरकार का, हमारे गिरिराज जी का, सबका धन्‍यवाद करता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद !!!

Wednesday, September 9, 2020

CCC गठजोड़ को तोड़ कर रख दिया गया है।

लेखक:- शिवम् कुमार पाण्डेय

CCC गठजोड़ को तोड़ कर रख दिया गया है। CCC यानि  कांग्रेस कम्युनिस्ट चीन इनकी बेहूदा हरकतों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है भारतीय सेना द्वारा। कांग्रेसियों का कहना ही क्या वो तो भारतीय सेना को कायर सिद्ध करने में लग गई थी और इनके जूठन में पर पलने कम्युनिस्टों का कहना ही क्या वो माओ को अपना बाप मानते हैं तो चीन का ही समर्थन करेंगे। चीन की पीपुल्स लिबशन आर्मी 7 सितम्बर की शाम पूरी के साथ रिचेन ला और रिजांग ला क्षेत्र में घुसे थे, लेकिन भारतीय सेना ने उनकी कोशिश को नाकाम कर दिया। हवाई फायरिंग भी हुई पर आगे ऐसा फिर कोई घुसपैठ कोशिश हुई तो भीषण गोलाबारी भी हो सकती है और चीनी सरकार अपने सैनिकों की तबाही अपने आंखो से देखेगी। चीन हमेशा 1962 की रट लगाए रहता है पर 1967 भूल जाता है जब भारतीय सेना के रणबांकुरो ने चीनियों को धूल चटाई थी।दोनों देशों की सेना के बीच एक महत्वपूर्ण एवं निर्णायक तकरार सितंबर 1967 में नाथू ला पोस्ट पर हुई जिसने यह मिथक तोड़ दिया था कि भारतीय सेना कभी चीन से युद्ध में जीत नहीं सकती। जनरल सगत सिंह को 17 माउंटेन डिविजन का जीओसी बनाया गया था। उनकी इसी पोस्टिंग के दौरान नाथुला में चीनी सैनिकों की भारतीय सैनिकों से ज़बरदस्त भिड़ंत हुई।

1962 के बाद पहली बार जनरल सगत सिंह ने दिखाया कि चीनियों के साथ न सिर्फ़ बराबरी की टक्कर ली जा सकती है, बल्कि उन पर भारी भी पड़ा जा सकता है। जनरल वी के सिंह बताते हैं, "इत्तेफ़ाक से मैं उस समय वहीं पोस्टेड था। जनरल सगत सिंह ने जनरल अरोड़ा से कहा कि भारत चीन सीमा की मार्किंग होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं सीमा रेखा पर चलता हूँ।अगर चीनी विरोध नहीं करते हैं तो हम मान लेंगे कि यही बॉर्डर है और वहाँ पर हम फ़ेसिंग बना देंगे।"

"जब उन्होंने ये करना शुरू किया तो चीनियों ने विरोध किया।उनके सैनिक आगे आ गए। कर्नल राय सिंह ग्रनेडियर्स की बटालियन के सीओ थे। वो बंकर से बाहर आकर चीनी कमांडर से बात करने लगे। इतने में चीनियों ने फ़ायर शुरू कर दिया। कर्नल राय सिंह को गोली लगी और वो वहीं गिर गए।"

"गुस्से में भारतीय सैनिक अपने बंकरों से निकले और चीनियों पर हमला बोल दिया। जनरल सगत सिंह ने नीचे से मीडियम रेंज की आर्टलेरी मंगवाई और चीनियों पर फ़ायरिंग शुरू करवा दी। इससे कई चीनी सैनिक मारे गए। चीनी भी गोलाबारी कर रहे थे लेकिन नीचे होने के कारण उन्हें भारतीय ठिकाने दिखाई नहीं दे रहे थें।"

भारतीय सेना के करीब 70 जवान शहीद हो गए और भारतीय सेना के हमले से चीनी सैनिकों को भागने का भी मौका नहीं मिला और उसके 400 सैनिक मारे गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन दिनों सेना को तोप से गोलाबारी करने का हुक्म प्रधानमंत्री देते थे। सगत सिंह ने किसी से आदेश नहीं लिया और लगातार तीन दिन तक फायरिंग करते रहे। यह लड़ाई तब रुकी जब चीन ने भारत को हवाई हमले की धमकी दी, तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारी युद्ध विराम पर सहमत हुए। सगत सिंह ने वह कर दिया था जिसकी कल्पना भी नामुमकिन थी। उसने उस सोच को पूरी तरह बदल दिया कि भारतीय फौज कभी चीन से मुकाबला नहीं कर सकती। खैर बात वर्तमान की जाय तो सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथ में है और सेना को खुली छूट है। चीनी आंखो को फोड़ना सख्त जरूरी हो गया है क्योंकि इनकी नजरे भारतीय क्षेत्रो को हड़पने में ही लगी रही रहती है और लूटी हुई जमीन से इनको दौड़ाकर मार भगाना भी है। तिब्बत के लोग भी आज़ादी चाहते है वो इस चीनी साम्यवादी सरकार के क्रूरता से तंग आ चुके है। इस युद्ध के अलावा दुसरा कोई विकल्प नहीं है।


Tuesday, September 8, 2020

अपने गांव में घूमते हुए जब मै रेलवे लाइन के पास पहुंचा।

ये नजारा शाम के वक्त का हैं जब मै अपने गांव देवकली (गाजीपुर यूपी में है) को घूमने निकला। पास ही में एक छोटा सा तरांव रेलवे स्टेशन है ।  मै तो कुछ पौधे लेने के लिए निकला था जोकि रेलवे लाइन के उस पार मिल रहा था आते वक्त शाम को मैंने ये तस्वीर ले लीं।
ये रहा उत्तर प्रदेश वन विभाग का पौधशाला। रास्ते में आते बहुत कुछ देखने को मिला। जिनकी तस्वीरें मैंने अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर ली। 
पौधशाला के अंदर की तस्वीर है । जहां छोटे छोटे पौधों की नर्सरी देखी जा सकती है। चाहे कोई  भी पौधा ले लीजिए 7 रुपए का ही मिलेगा। करीब 3 बजे घर से पैदल ही निकला था घूमने के लिए हलका धूप और छांव था। 
बिना इस पुल के यहां तक पहुंचना नामुमकिन सा था । ये पुल हाल ही में बना है जो देवकली और तराव को जोड़ता है। पुराने पुल पे तो बाढ़ का पानी लगा हुआ था तो यही एक आसान रास्ता दिखा।  चलते वक्त कुछ पंक्षी दिखे जो आमतौर बहुत कम देखने को मिलते है अब गांव में।

चलते चलते रास्ते ताड़ के बगीचों से गुजर कर निकलना था आखिर में ये जगह इसीलिए तो जानी जाती है। 
तस्वीरों में साफ देख सकते है ताड़ के पेड़ को जिसके फल से ताड़ी निकलती है भोग विलास डूबे हुए लोग इसका आनंद हर तरीके से उठाते है। बहुत पहले भोजपुरी  में गाना भी निकलता था " हमके ताड़ वाली ताड़ी चाही..!" ताड़ी पीना कोई गलत चीज नहीं पर हर चीज की अपनी एक हद होती है। चलते चलते रेलवे लाइन के पास आ पहुंचे तेज धूप निकल चुकी थी तपती हुई इस वक्त रेलवे के कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे थे। ना जाने कितने ट्रेनें इधर गुजरती होंगी और ना जाने कितने अनगिनत  यात्री यात्रा का लुत्फ उठाते हुए अपनी मंजिल को पहुंचे होंगे। तब बहुत से नजारे वो खिड़कियों से देखते होंगे। 

इस तस्वीर को देखकर अपने बचपन की याद आ जाती है अपने दोस्तो के साथ खेलते घूमते हुए यहां तक पहुंचते थे कभी कभी तो यही सोचते विचारते थे कि रेल की पटरी कहा तक जाती होगी? 

एक बोर्ड दिखा जिससे साफ मालूम हुआ कि जहां आना था आ चुका हूं। यहां से लिप्टस और सागवन के पौधे लिए और घर को रवाना हुए। अब शाम रही थी तो रास्ते में अपने पूर्वजों की निशानी का भी हाल चाल लेते चले। रेलवे लाइन के पास में हमारी  जमीन थी सोचा देखते चलूं और साथ में पोखरिया पर (जगह का नाम) काली माई के दर्शन भी जाएंगे। लौटते वक्त और 2 तीन तस्वीरें ले ली मैंने । 


अब निकल पड़ा रास्ते घर की ओर सीधा वन विभाग के सामने से रेलवे लाइन पार करते ही एक रास्ता चला जा रहा है। 
बहुत पुराने जमााने की ट्यूबवेल मशीन यह एक मात्र जरिया था पानी का खेतो तक पहुंचाने का जिनके खेत नदी से दूरी पर थे। और अभी भी ये अपना कार्य कर रहा है।
ये रहा कली माई का मंंदिर जिसके जिसके दर्शन बहुत दिनों के बाद हुए। इस मंंदिर की महिमा अपरमपार है। माता जहां स्थापित है ज्यों की त्यों है।  इनकी मूर्ति को यहां स्थापित के मन्दिर का एक कमरा बना था पर किसी काम नहीं अब खाली ही पड़ा हुआ है और काली माता की मूर्ति वहीं नीम के छांव में विराजमान है। इसका भी अलग ही इतिहास है कहा जाता है कि मेरे पूर्वजों  में से एक काली बाबा यहां तपस्या किए थे जिसके चलते यहां काली माई आई और  इस स्थान को पवित्र कर दिया।
जय मां काली
मंदिर के पास में एक कुआ दिखा जो कभी गांव के लोगो की प्यास बुझाया करता था आजकल सुनसान पड़ा हुआ है। इस आधुुनिकता के जमाने में अब सबके घर में हैंडपंप लगा हुआ है किसी बाहर आने जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। साथ में मोटर भी लगा हुआ है और बिजली हमेशा रहती है। स्टार्ट बटन दबाते ही हर हर पानी बहने लगता हैं ।इस कच्ची सड़क से लोगो के आने जाने में बहुत मदद मिलती है क्योंकि यही एक मात्र सहारा है गांव वालो का।


ये रहा ब्रह्म बाबा का मंदिर "जय हो ब्रह्म बाबा" । बाकी इधर उधर की तस्वीरें भी खींच लिया हूं।
इस बार लगभग सभी ने धान की  खेती पर जोर दिया है। जिन्होंने बाजरा बोया था सब भारी बरसात में बह गया। धान को इसी भारी बारिश का इंतेजार रहता है। नदी को देख के साफ कहा जा सकता है कितनी ज्यादा बारिश हुई होगी। 
इस पुल को देखिए डूब गया है जिससे लोगो को काफी दिक्कत सामना करना पड़ रहा है। 5 मिनट का रास्ता अब 20-25 मिनट का समय ले रहा है। कुछ दिनों में पानी पुल से नीचे उतर जाएगा इसमें घबाराने वाली कोई नई बात नहीं है यहां के लोगो के लिए।
पौधों को लेकर घर आ गये। अब इसको कल अच्छे से लगा दिया जायेगा। वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है। वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना इसका प्रयोजन करना है। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना। मानव के जीवन को सुखी, सम्रद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का अपना विशेष महत्व है। मानव सभ्यता का उदय तथा इसका आरंभिक आश्रय भी प्रकृति अर्थात वन व्रक्ष ही रहे हैं। मानव को प्रारम्भ से प्रकृति द्वारा जो कुछ प्राप्त होता रहा है। उसे निरन्तर प्राप्त करते रहने के लिए वृक्षारोपण अती आवश्यक है।