Wednesday, April 22, 2020

हिन्दुस्तानी की कलम से

_शिवम कुमार पांडेय

मै हिन्दुस्तान से हुँ ,हिन्दु से मेरी पहचान बढ़ी है।
ना समझो हमको कट्टरवादी,ना समझो हमको दंगावादी ,
 श्री राम का हम नाम लेते है, इससे ही हमारी पहचान बढ़ी है।
इस दुनिया में पहले आए हम , सभ्यता हमारी देन है, हमारी कला से ही पहचान है।
एक से एक विद्वान पैदा हुए यहाँ इसीलिए तो शून्य हमारी देन है 
दशमलव हमने दिया ,तभी तो अकड़म-बकड़म भी चाँद पे तो क्या वो मंगल पे भी चला रहे अभियान है,
इसीलिए तो मे कहता हूँ गर्व से मै हिन्दुस्तान से हूँ,
हिन्दु से मेरी पहचान बढ़ी है।
सभी धर्मों को हमने सम्मान दिया,
सबका आदर-सत्कार किया, इन सबके लिए दुनिया में हमारी जय-जयकार हुआ,इसीलिए तो मैं कहता हूँ मैं हिन्दुस्तान से हूँ ,हिन्दु से ही मेरी पहचान बढ़ी है।।
एक से एक नदियाँ बहती यहाँ, पवित्र नदियों का ये देश है, सिंधु, सरयू हो या गंगा हो या सरस्वती,यमुना हो या  ब्राह्ममपुत्र,या हो कृष्णा ,कावेरी,या हो, गोदावरी,नर्मदा से लेके तापी तक,इन सबसे ही हमारी सभ्यता की पहचान जुड़ी है , बहता है यहाँ हिन्द महासागर इसीलिए तो मैं गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दुस्तान से हूँ,
हिन्दु से मेरी पहचान बढ़ी है
है जंगल झाड़ी भी यहाँ पहाड़ी इलाको की कमी नहीं, है हिमालय यहाँ खड़ा सीना ऊँचा तानके 
है ये एक पर्वत श्रृखंला , इसमें कई पहाड़ो का वास है, इसीलिए तो मैं गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दुस्तान से हूँ , हिन्दु से मेरी पहचान बढ़ी है।
वीरो की धरती है ये एक से एक वीर पैदा हुए यहाँ,इसीलिए तो हमारी वीरता की पुरी दुनिया में सम्मान है।
चाहे श्री राम हो  या श्री परशुराम,इनकी पुरी दुनिया में जयकार है
इन्हीं नाम लेके आगे वीरो की पहचान बढ़ी है 
इसीलिए तो गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दुस्तान से हूँ ,हिन्दु से ही मेरी पहचान बढ़ी है।

Monday, April 20, 2020

भारत की वर्तमान राजनीति पर एक नजर


इस देश की राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है सत्ता हासिल करने के लिए अपने साथ हुए घिनौने अपराध को भुलाकर लोग अपराधियों से हाथ मिला लेते है। बात साफ है जिसको अपनी इज्जत की परवाह  नहीं वो देश की क्या इज्जत करेंगे? मोटी- मोटी बात है इस देश कि सत्ता पर सबकी गलत नजर है,सब अपना  घर भरना चाहते इसीलिए मजबूत नहीं मजबूर सरकार बनाने की बात होती रहती है !
नेता और पत्रकार
राजनीति देश की भलाई के लिए  की जाती है लेकिन आज के दौर में देखा जाए ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। हर जगह जातिवाद को लेकर संघर्ष छिड़ा रहता है । हद तो तब हो जाती है जब कोई समाजवादी नेता जात के नाम पर वोट मांगने लग जाता है बात यही तक सीमित नहीं रह जाती है ये अपनी उलूल- जुलुल बातो से जनता को मूर्ख बनाते है। विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया पर तरह - तरह के अफवाहों से भरे पोस्ट जाति और धर्म के नाम साझा की जाती है मात्र आम जन को भड़काने और उकसाने के लिए इसीलिए किसी पोस्ट को बिना सोचे समझे फैलाना नहीं चाहिए ये घातक सिद्ध हो सकता है। आज कल राजनीति के नाम पर जो जनता के बीच सिर फुटौव्वल करवाने की साज़िश रची जा रही है जाति के नाम पर इसे समझने की जरूरत है कि ये कौन लोग करवा रहे है! नहीं तो जाति के नाम पर अपना नेता चुनेंगे तो तैयार रहिए अपना सिर फोड़वाने के लिए।
अब ये सब रोकने के लिए देश की पत्रकारिता का बहुत बड़ा रोल होता है क्योंकि पत्रकारिता का मतलब ही होता है सच्चाई दिखाना और बेईमान नेताओ को बेनकाब करना परंतु देश का दुर्भाग्य यह है कि आज कल की पत्रकारिता बिक गई है। इन सबके बीच  बहुत से ऐसे पत्रकार और राष्ट्रवादी लोग है जो देश की हकीक़त से आप लोगो को परिचय कराते है जो देश तोड़ने की बात करने वालो के मुंह पर कड़े तमाचे का काम करता है।

छात्र नेता
अब हम का बताए छात्रनेताओ के बारे के में जब ये लोग चुनाव जीत जाते है तब ये लोग छात्रो से मिलना मुनासिब नही समझते। ये लोग देश-प्रदेश के जितने बड़े नेता उनसे आशीर्वाद लेने जाते है,पैर छुते है ,उनके साथ डिनर करते है आदि।आम भाषा मे बोले तो ये लोग चाकरी करते है! एक छात्रनेता को स्वतंत्र होना चाहिए ताकि वो अपनी और छात्रो की समस्याओ को खुलकर सबके सामने रख सके । आमतौर पर देखा जाए तो ये किसी न किसी पार्टी और उसकी विचारधाराओ जुड़े रहते है जिसकी वजह से इन्हे सही गलत का पता नही चलता है और ये अपने मुद्दे ना उठाकर राजनैतिक पार्टियो की बात रखते है! इस तरह बिना मेहनत के देश के तमाम राजनैतिक दलो को हर विश्वविधालयो से अपना-अपना कैडर मिल जाता है जिसका काम आरजकता फैलाना होता है।
युवा नेता
भारत देश में कोइ भी व्यक्ति राजनिति में आता है तो अपने आप को एक युवा नेता के रूप में दर्शाता हैं असल में वो ये भुल जाता है कि उसके सिर के बाल पक गए है बकैती बतियाते-बतियाते! मतलब उम्र 45-50 पार हो चुकी है तब भी ये अपने आप को युवा  समझने की भुल कर बैठते है।



Friday, April 10, 2020

मातृभूमि

जब बच्चा पैदा होता है तो माता के रक्त से बना दूध उसका पालन पोषण करता है । जब वह बड़ा हो जाता है तो  अपना पेट कहा से भरता है? इस धरा से उत्पन्न अन्न से ही न ये धरती ही न उसका पेट भरती है  जहां हम रहते है वो मां भारती है ... आपके विचार धर्म इत्यादि अलग हो सकते है पर मातृभूमि तो एक है न इसके लिए ही तो तन मन धन लुटाने की बात हम करते है। कुछ लोग आज कल वन्देमातरम् को सांप्रदायिक बताकर गाने से मना कर है। मै पूछता हूं इन लोगो से क्या मां की वंदना  करना या गीत गाना गुनाह है क्या? भारत माता की जय बोलना भी इन लोगों के लिए सांप्रदायिक हो जाता है! सबका अपना अपना विचार है जिसको बोलना है बोले जिसको नहीं बोलना है मत बोले।
पर जो आज वन्देमातरम् बोलने और भारत माता की जय बोलने से मना कर रहा है निश्चिंत ही वो कल को दुश्मन देश के शत्रुओं के विरुद्ध भी देश का साथ न दे या  यह कह ले कि विदेशी आक्रांताओं से हाथ मिला ले..
मेरे जैसे लोग देश को एकजुट करने के दिशा में काम कर रहे है करते रहेंगे। हमारी संस्कृति और सभ्यता सबसे पुरानी है एक से एक योद्धा यहां पैदा हुए रामायण , महाभारत, गीता पुराण वेद इसका जीता जागता उदाहरण है फिर भी हम कई दशकों और कोई सौ सालो तक गुलाम रहे है। हमे इन सब मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस मनाते है मिठाई बाटते है पर 14 अगस्त को भूल जाते जिस  दिन भारत माता को खंडित कर दिया गया था ...
उन तमाम वीर शहीदों की शहादत भी किसी को याद नहीं रहती है देश का इस तरह का विस्तार किया गया कि आज भी देश में घूसखोरी , भ्रष्टाचार आतंकवाद इत्यादि चरम पे रहता है!
इससे साफ पता चलता है कि आज भी विदशी पैरो की धूल हमारे पीठ पर लगी हुई है जिसे साफ करने की सख्त जरुरत है।।
जय हिन्द।।
जय भारत।।

नक्सलवाद एक समस्या

लाल सलाम मुर्दाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद !
लाल सलाम के नाम के पर देश में हिंसा भड़काया जा रहा है। नक्सलवादियों ने लाल सलाम के नाम पर ना जाने कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया ये कहते हुए कि हम मजदूरों और किसानों के हक ले लिए लड़ाई लड़ रहे है और हमारी लड़ाई सरकार से है आम लोगो से नहीं। सिर्फ दंतेवाड़ा जैसे जंगलों में 15000 से भी ज्यादा जवान नक्सली हमले में अपनी जान गवा बैठे है इतना तो  युद्ध (1948,1962 ,1965,1971 और 1999 की कारगिल में) में नहीं शहीद हुए होंगे। ये किसानों की बात करते है और इनके घर के चिराग को भी बुझा देते है जो देश सेवा के लिए आर्म्ड फोर्सेज में शामिल होते है। आजकल इनका एक नया एजेंडा चल रहा है "आज़ादी" जबकि देश को आज़ाद हुए 70 साल से ज्यादा हो गया है । एक विशेष वर्ग इनकी तुलना भगत सिंह और उनके साथियों से करने में लगा हुआ है जबकि ये उनके पैरों के धूल बराबर भी  नहीं है । उन्होंने ने तो अपनी  जिंदगी देश के नाम कर दी थी और हसते हुए फांसी पे झुल गए थे ताकि भारत माता का उद्धार हो सके पर लाल सलामी विचारधारा वाले अपनी ही धरती को अपने ही सपूतों के खून से रंगने की साजिश रच रहे है ।