Saturday, September 12, 2020

कहते है न "पेट कितना दिन छिपेगा जब फुलेगा तो दिख ही जाएगा"

गांव में एक समय था जब क्रिकेट को क्रिकेट की तरह खेला जाता था पर कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले नीच लोग आ गए इसमें मार झगड़ा, गाली गलौज सब होने लगा। गुस्से में आकर बैट तोड़ा गया , स्टंप उखाड़ कर फेका जाना.. मत पूछिए बच्चो के खेल में कुछ बेईमान लोगो के घुस जाने से पूरा खेल बर्बाद हो जाय । धीरे धीरे इस खेल का पतन होना शुरू हुआ। अब तो ग्राउंड भी उस लायक नहीं बचा। खैर आजकल हैंडबॉल का जमाना है इसमें कोई काबिल का पूंछ नहीं बन सकता दौड़ने में फट जायेगी न। अब सबके बॉल भी आती है। क्रिकेट में तो ये हो गया था कि  बेईमान लोग पहले बैटिंग भी करते थे और बॉलिंग भी बस इसी को लेकर मार हो जाता था तो बेईमान कहता था कि " हमार पैसा लगल बा" मतलब बाकि सब पागल है का जो 10-15 ओवर फील्डिंग किए भरी दोपहरी में। 
हैंडबॉल में भी कुछ ऐसा ही हुआ यहां भी खेल में "बेईमानों" ने खलल डालने की कोशिश की पर नाकामयाब रहे।  खेल को खेल की तरह खेलना चाहिए पर कुछ 25-30 साल के लोग खेल में घुस के खलल डालना शुरू कर देते है उनका काम होता है कि अपने से छोटो को समझाए पर ये इसके विपरीत इन्हें भी अपनी तरह बेईमान बनाने की कोशिश करने लग जाते है।  खेल में अनुशासन होना चाहिए पर यहां कुछ बेईमान घुस के बेईमानी करने लग जाते है। हर जगह का यही हालात है ऐसे निम्न स्तर सोच रखने वाले मिल जाते हैं। ये संकीर्ण मानसिकता वाले जब  पीटाने लग जाते है "बेचारे" जैसी शक्ल बनाने लग जाते हैं बेईमान लोग!
क्या बताऊं मै समान्य ज्ञान भी पेलते हुए मिल जाएंगे  बात साल 2011-12 कि है " lucent रट के चले थे ये लोग मुझसे टक्कर लेने .. बताओ यार कहा ये साले बारहवी में या पास कहां मै 6-7 में पढ़ने वाला छात्र। ऐसा चापा इन लोगो को कि बटुरा गए...
वक्त गुजरता गया साल पे साल बीतते गए कॉम्पटीशन बढ़ता गया और वो बेईमान लोग गायब हो गए सारी तैयारी उनकी पिछवाड़े में घुस गई..
बात यू हुई गांव के शिवाला पे कॉम्पटीशन होता था लोग जाते थे , बहुत बड़ा हब बन गया था तैयारी करने वालो छात्रों का। मुझे भी बुलाया गया " आवा शिवम तुहू आवा तोहरो देख लेवल जाय" पर मै टाल देता देता था कहा करता था कि हम का करे आइब जा मर्दवा लोगन। तो मुझे लोग समझने लगे कि ये पढ़ता लिखता नहीं है मूर्ख बनाता है सबको इसको कुछ नहीं आता खाली फेंकता है... अरे पूछो मत मेरे पीठ पीछे ना जाने क्या क्या बतियाया गया भगवान ही मालिक है।

वाह यार क्या तैयारी चल रही कोई न कोई पीसीएस अधिकारी बनेगा , यूपीएससी निकालेगा लेखपाल का परीक्षा निकालेगा  , रेलवे में जाएगा आदि बहुत मेहनत कर रहे है सब के सब वाह यार शानदार!
मै भी  छुट्टियों में वाराणसी से गांव आया देखा माहौल को पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था मै सब समझता था कौन कितना टॉपर हैं। मै चाहता तो इन सबका पोल खोल देता पर सोचा रहने दो मुझसे क्या मतलब? लोग मेरी बातो को तो हवा में उड़ा देते है।
कहते है न "पेट कितना दिन छिपेगा जब फुलेगा तो दिख ही जाएगा" यहीं हुआ इन लम्पटों के साथ। हुआ  ये कि गणित का प्रेक्टिस पेपर हो रहा था उसमे एक महाशय बिना किसी solution के  डायरेक्ट उत्तर दे दिए चुकी  बहुविकल्पीय प्रश्न था सिर्फ गोला या टिक मार के टॉप होना था.. जब सारे लड़के उनके पीछे पड़ गए कि सॉल्व करके बताइए तो उनकी फट  गई.. उलूल जूलूल तरीके से प्रश्नों का उत्तर निकालने लगे... बस यही सबका भांडा फुट गया की कौन कितने पानी में है । ई सब पेपर लीक करवाते थे कि एक दिन तुम टॉप मारना एक दिन मै बाकि जो लड़के इधर- उधर से आए है वो तो गधे  है।
तहिये से कॉम्पटीशन वाला खेल भी बंद हो गया क्रिकेट कि तरह। बेईमान जहा रहेंगे वहा कोई भी चीज ढंग से नहीं हो सकती।
फिर मै शिवाले के संचालकों से मिला और कहा " इसी बेईमानी कि वजह से मै नहीं आया कभी"।

 

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