Saturday, August 15, 2020

अखण्ड भारत पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता

यह सुविदित है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनेता के साथ-साथ लब्धप्रतिष्ठ कवि भी थे। समय-समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से वे राष्ट्र की चुनौतियों के विरूध्द सिंहगर्जना करते रहते हैं। स्वतंत्रता दिवस और अखण्ड भारत पर केन्द्रित अटलजी की निम्न कविता बेहद लोकप्रिय रचना है और यह आज भी सामयिक है।

पन्द्रह अगस्त का दिन कहता,
आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है।
लाशों पर पग धर कर,
आजादी भारत में आई।
अब तक हैं खानाबदोश,
गम की काली बदली छाई॥
कलकत्ता के फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥
हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते, यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती॥
इन्सान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियां भरता है, डालर में मुस्काता है॥
भूखो को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाये जाते हैं।
सूखे कण्ठों से, जेहादी नारे लगवाये जाते हैं॥

लाहौर, कराची, ढाका पर, मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया॥

बस इसीलिए तो कहता हूं, आजादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥

दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे।

उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥

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