कहते हैं कर्मों का फल यही भुगतना पड़ता है। कर्मा वो कूतिया है जब काटती है तो लोग पानी भी नहीं मांगते हैं। जो अधिकारी इसमें शामिल था वो 26/11 के हमले में इस्लामिक आतंकवाद का शिकार हुआ।
कांग्रेस को सत्ता में आने से मतलब है। मुस्लिम प्रेम कांग्रेस ने सैकड़ों पाप किए हैं। इसीलिए सत्ता से आजतक बाहर है। अभी ये कांग्रेसी स्वीकारने को तैयार नहीं हैं तो कि "इस्लामिक आतंकवाद" जैसा कुछ है। इसे लीचड़पन के अतरिक्त कुछ नहीं कहा जाएगा। कांग्रेसियों की दिक्कत ये है कि इन्हें सिर्फ सत्ता से मतलब रहा है और उसके लिए इन्होंने वामपंथ और नक्सलवाद के आगे तक सिर झुका लिया। पशुपति से तिरुपति तक लाल कॉरिडोर को खाद पानी देकर इन्होंने जो पूरे देश में गन्ध है किसी से छुपा हुआ नहीं है।
29 सितम्बर 2008: महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक मोटरसाइकिल पर लगाए गए बम में विस्फोट हो गया। छह लोग मारे गए और 101 घायल हुए।
30 सितम्बर 2008: मालेगांव के आजाद नगर पुलिस थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
21 अक्टूबर 2008: महाराष्ट्र के एटीएस ने मामले की जांच अपने हाथ में ली।
23 अक्टूबर 2008: एटीएस ने मामले में पहली गिरफ्तारी की। साध्वी प्रज्ञा सिह ठाकुर और तीन अन्य को गिरफ्तार किया गया। एटीएस ने दावा किया कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने किया था।
नवम्बर 2008: लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को विस्फोट की साजिश में कथित संलिप्तता के आरोप में एटीएस ने गिरफ्तार किया।
20 जनवरी 2009: एटीएस ने प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित सहित 11 गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। आरोपियों पर मकोका, यूएपीए और आईपीसी की कठोर धाराओं के तहत आरोप लगाए गए। दो व्यक्तियों- रामजी उर्फ रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे को वांछित अभियुक्त बताया गया।
जुलाई 2009: विशेष अदालत ने कहा कि इस मामले
में मकोका के प्रावधान लागू नहीं होते और अभियुक्तों पर नासिक की एक अदालत में मुकदमा चलाया जाएगा।
अगस्त 2009: महाराष्ट्र सरकार ने विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
जुलाई 2010: बंबई उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के आदेश को पलट दिया और मकोका के तहत आरोपों को बरकरार रखा।
अगस्त 2010: पुरोहित और प्रज्ञा सिह ठाकुर ने उच्च न्यायालय के आदेश के के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
एक फरवरी 2011: एटीएस मुंबई ने एक और व्यक्ति प्रवीण मुतालिक को गिरफ़्तार किया। तब तक कुल 12 लोग गिरफ्तार।
13 अप्रैल 2011: एनआईए ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली।
फरवरी और दिसम्बर 2012: एनआईए ने दो और लोगों लोकेश शर्मा और धन सिह चौधरी को गिरफ़्तार किया। तब तक कुल 14 गिरफ्तारियां हो चुकी थी।
अप्रैल 2015: उच्चतम न्यायालय ने मकोका की उपयुक्तता पर पुनर्विचार के लिए मामला विशेष अदालत को वापस भेज दिया।
फरवरी 2016: एनआईए ने विशेष अदालत को बताया कि उसने इस मामले में मकोका के प्रावधानों को लागू करने के बारे में अटॉर्नी जनरल की राय ले ली है।
13 मई 2016: एनआईए ने विशेष अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया। मामले से मकोका के आरोप हटा दिए गए। सात आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई।
25 अप्रैल 2017: बंबई उच्च न्यायालय ने प्रज्ञा ठाकुर को जमानत दे दी। उच्च न्यायालय ने पुरोहित को जमानत देने से इनकार कर दिया।
21 सितंबर 2017: पुरोहित को उच्चतम न्यायालय से जमानत मिली। साल के अंत तक सभी गिरफ्तार आरोपी जमानत पर बाहर आ गए।
27 दिसंबर 2017: विशेष एनआईए अदालत ने आरोपी शिवनारायण कलसांगरा, श्याम साहू और प्रवीण मुतालिक नाइक को मामले से बरी कर दिया। अदालत ने यूएपीए के तहत आतंकी संगठन का सदस्य होने और आतंकी गतिविधियों के लिए धन जुटाने से संबंधित आरोप भी हटा दिए।
30 अक्टूबर 2018: सात आरोपियों ठाकुर, पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी के खिलाफ आरोप तय किए गए। उन पर आतंकी कृत्य करने के लिए यूएपीए के तहत और आपराधिक साजिश व हत्या के लिए भादसं के तहत मुकदमा चलाया गया।
तीन दिसम्बर 2018: मामले के पहले गवाह की पूछताछ के साथ मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई।
14 सितंबर 2023: अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों (जिनमें से 37 मुकर गए) से जिरह के बाद अभियोजन पक्ष ने अपनी गवाही बंद करने का फैसला किया।
23 जुलाई, 2024: बचाव पक्ष के आठ गवाहों से जिरह पूरी हुई।
12 अगस्त 2024: विशेष अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत अभियुक्तों के अंतिम बयान दर्ज किए। मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की अंतिम दलीलों के लिए सुनवाई की तारीख दी गई।
19 अप्रैल 2025: विशेष अदालत ने निर्णय के लिए सुनवाई बंद कर दी।
31 जुलाई 2025: विशेष एनआईए न्यायाधीश एके लाहोटी ने ठाकुर और पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि दोषसिद्धि के लिए कोई 'ठोस और विश्वसनीय' सबूत नहीं थे। अदालत ने कहा, अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।
उस समय का माहौल कैसा था किसी से छिपा हुआ नहीं है। वो वक्त ऐसा था जब बड़े शहरों में धार्मिक स्थलों पर आतंकी हमले होते रहते थे। इस्लामिक आतंकवाद के ऊपर न तो आज बोलते हैं विपक्ष के लोग न तो तब जब ये सत्ता में थे। इन्हें दिखा क्या "भगवा आतंकवाद"।
"न तो कोई हिदू आतंकी हो सकता है, न ही कोई मुसलमान, सिख या ईसाई। हर धर्म प्रेम, सद्भावना, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है। सभी धर्म शांति की बात करते हैं।" अब ये बयान आया है उस व्यक्ति का जो "26/11 RSS की साज़िश" नामक पुस्तक का लोकार्पण किया था। एक नहीं दो दो बार दिल्ली और मुंबई में पहुंचे थे प्रमाणित करने का काम रहे थे इस सफेद झूठ को।
इतना ही नहीं इस समय तो देश के प्रधानमंत्री भी कश्मीर के अलगाववादियों के साथ हाथ मिलाते दिखते थे। खासकर उससे जिसपर वायुसेना के अधिकारियों के हत्या का आरोप था।
2008 में क्या एक ही विस्फोट हुआ था?
13 मई को जयपुर में बम धमाके हुए थे, 25 जुलाई को बेंगलुरू में, 26 जुलाई को अहमदाबाद में... अरे भाई कहा कहा नहीं हुआ होगा पर उस समय लोगों को दिखा क्या मालेगांव में भगवा आतंकवाद ! रहा नहीं गया इनसे तो 26/11 को भी जोड़ दिया और बटला हाउस वालो के लिए बिलबिला उठे थे। मतलब हद है राजनीति के लिए कोई इतना कैसे गिर सकता है?
अगर हिंदू आतंकियों जैसे कार्य करता तो अब तक भारत में विशेष समुदाय के लोगों का क्या अस्तित्व भी रहता? खैर छोड़िए देश का बंटवारा भी करवा लिया इस विशेष समुदाय ने और इस देश में रुक भी गए संसाधनों पर अधिकार जमाने के लिए। यहां तो सौदा कर लिए कुछ लोग अपनी मां तक का इनका वोट पाने के लिए। फिर भी एक सच्चे देशभक्त सैनिक के लिए देश हमेशा सर्वोपरि रहा है।
(स्रोत: राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता आदि)