काकोरी केस के चार वीरों को फाँसी पर लटका दिया गया। वे लाड़-प्यार से पले शूरवीर हँसते-हँसते शहादत प्राप्त कर गये। भारतमाता के चार सुपुत्र अपने शीश देश और राष्ट्र के नाम अर्पण कर गये। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा, अपना फर्ज पूरा कर दिया। वे इस पंच भौतिक शरीर की कैद से आजाद हो गये और हम गुलामों को अपनी गुलामी के दुखड़े रोने के लिए पीछे छोड़ गये!!!
जिस देश में देशभक्ति गुनाह समझा जाता हो, जिस देश में आज़ादी की ख्वाहिश रखना बगावत समझा जाता है, जहाँ लोक कल्याण की सजा मौत हो, जहाँ देशभक्तों की गरदन में फाँसी का रस्सा डाला जाता हो, उस देश की हालत ख्याल में तो भले ही आ जाये, लेकिन बयान नहीं की जा सकती। किसी देश की अधोगति इससे ज्यादा क्या हो सकती है। लेकिन जिस देश में यह अन्याय नित्य प्रति होते हों, जहाँ ऐसे अत्याचार दिन-प्रतिदिन ही होते रहें यदि वहाँ के निवासी ऐसे-ऐसे अन्यायों, ऐसे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठानी तो दूर, आह तक न भर सकते हों तो उस देश के निवासियों की हालत कैसी होगी?
हिन्दुस्तान गुलाम है। इसकी बागडोर विदेशियों के हाथ है। इससे प्रेम करना मौत को पुकारना है। इसकी आज़ादी के सपने देखना घर-बार, बाल-बच्चे छोड़कर जलावतनी की जिन्दगी गुज़ारना है। इस महीवाल के प्रेम ने कई सोहनियों को गहरे समुद्रों में डुबोया। इसके प्रेम ने कई प्रेमियों के दल के दल खत्म किये। इसका प्रेम अगाध है, अथाह है। इसके प्रेमी बेअन्त हैं, असंख्य हैं। न इस प्रेम का स्वर पता चलता है, न इसके प्रेमियों को ताव आती है यहाँ तो 'चुप भाई चुप' वाली बात है।
यह जुल्म कब तक रहेगा? इस अन्याय का भाण्डा कब फूटेगा? बेगुनाहों को कब तक शहीद किया जायेगा? देश-प्रेमियों को कब तक गोली का निशाना बनाया जायेगा? कब तक इस गुलामी डायन का और मुँह देखना पड़ेगा? आजादी देवी के दर्शन कब तक होंगे? अभी कितनी शहीदियाँ प्राप्त करनी होंगी। अभी और कितनों को फाँसी पर चढ़ाया जायेगा? रब्बा! वह दिन कब आयेगा, जब ये शहीदियाँ रंग लायेंगी। ईश्वर, वह दिन कब देखेंगे जब हमारा बगीचा हरा-भरा होगा? यहाँ से पतझड़ का कूच कब होगा? उल्लू कब तक इस बाग में डेरा जमाये बैठे रहेंगे? बुलबुलें किस दिन फिर यहाँ चहचहायेंगी? ये पिंजरे कब टूटेंगे? आज़ादी कब लौटेगी, उजड़े कब फिर बसेंगे?
लोगो! भारत माता के चार सुन्दर जवान फाँसी चढा दिये गये। वे नौकरशाही के डसे, दुश्मनी का शिकार हो गये। कौन बता सकता है कि वदि वे जीवित रहते तो क्या-क्या नेकी के काम करते, कौन-कौन से परोपकार करते? कौन कह सकता है कि उनके रहने से संसार पहले से सुन्दर और रहने योग्य न दिखायी देता? वे बीर थे, आज़ादी के आशिक थे। उन्होंने देश और कौम की खातिर अपनी जान लुटा दी। वे अपनी माँओं की कोख को सफल बना गये।
यदि भारतमाता आजाद होती तो इनके बलिदानों का मोल पड़ता। यदि आज हिन्दुस्तान में कुछ जान होती तो ये बलिदान बेकार न होते। हाय! आजादी के वीर चले गये। उन्हें किसी ने न पहचाना, उन्हें किसी ने न कहा, आप शूरवीर हो, आप बहादुर हो। वह जगह धन्य है, जहाँ आप जन्म-पले! जहाँ आप खेले। वे राहें धन्य हैं, जहाँ आप चले, जहाँ आप कूद-भागे। वीर, मातृभूमि के लाड्ले स जा₹ वीर चले गये! वे अपना जन्म सफल कर गये!
बातें करनी आसान हैं, बड़कें मारनी आसान हैं चगल-चगल करना और बात है, कुर्बानी देना और बात है। परीक्षा अलूणी चट्टान है, इसे चाटना आसान नहीं है। परीक्षा से बड़े-बड़े तौबा कर उठे थे। परीक्षा के आगे कोई जिगर वाला ही टिक सकता है। इन वीरों ने किस हिम्मत, किस बहादुरी से परीक्षा दी है इनकी बहादुरी कभी भूल सकती है? धन्य हैं इनके माँ-बाप, जिन्होंने उन्हें जन्म दिया धन्य हैं ये स्वयं, जो बलिदान के पुंज, आत्मत्याग की मिसाल हैं।
जब कभी आजादी का इतिहास लिखा जायेगा, जब कभी शहीदों का जिक्र होगा, जब कभी भारतमाता के लिए बलिदान करने वालों की चर्चा होगी तो वही 1. राजिन्द्रनाथ लाहिड़ी 2. रामप्रसाद बिस्मिल, 3. रोशन सिंह और 4. अशफ़ाकृउल्ला का नाम ज़रूर लिया जायेगा। उस समय आने वाली पीढ़ियाँ इन शहीदों के आगे शीश झुकायेंगी और इन वीरों के बहादुरी भरे किस्से सुन-सुन सिर हिलायेंगी। उस समय ये कोम का आदर्श माने जायेंगे, इन बुजुर्गों की पूजा होगी। आज हम कमजोर हैं, निःशक्त हैं। आज हम गिरे हुए हैं, झूठे हैं। आज हम अपनी दिली भावनाएँ नहीं बता सकते क्योंकि हम कायर हैं, डरपोक हैं, आज हमें सच कहने से डर लगता है, क्योंकि कानून की तलवार हमारे सिरों पर लटकती दिखायी देती है। इससे यह नहीं कह सकते, 'काकोरी के शहीदो! आपने जो किया,भारतमाता के बन्धन तोड़ने के लिए किया। आपने जो कष्ट उठाये, वह हिन्दुस्तान को आजाद करवाने के लिए उठाये।' आज हम यह नहीं कह सकते कि 'आपने अपने मतानुसार अच्छा किया। गुलामों की अवस्था कितनी गिर जाती है। गुलामों में कितनी गिरावट आ जाती है। दैवी गुण उनमें से किस तरह भाग जाते हैं। वे कितने ढोंगी और पाखण्डी बन जाते हैं। वे कितने बुज़दिल व कायर बन जाते हैं। वे सच्ची-खरी बातें मुँह पर नहींकह सकते। वे दिल में कुछ और रखते हैं और बाहर कुछ और। उनकी हालत कितनी दयनीय हो जाती है।
इस हालत को सुधारने का एक ही साधन है, इस दुर्दशा को बदलने का एकमात्र इलाज है, इस दुर्दशा की एक ही दवा है, और वह है आज़ादी। आज़ादी कुर्बानियों के बगैर नहीं मिल सकती। शहीदों की इज्जत करने से, शहीदों के कारनामे याद करने से कुर्बानी का चाव उमड़ता है । जो कौम शहीदों को शहीद नहीं कह सकती, उसे क्या खाक आज़ाद होना है?
लोगो! देखे हैं आशिक सूली पर चढ़ते? वे मौत से मजाक करते थे। वे मौत पर हँसते थे, उन्हें मृत्यु का भय नहीं था। वे यार की गली में शीश तली पर रखकर आये थे। उन्हें डर क्या था, वे तो आये ही मरने थे। मृत्यु का तो वे पहले ही वरण कर चुके थे, जीवन की आशा तो वे पहले ही छोड़ चुके थे। वे तो गाते थे
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है।
कहाँ वे और कहाँ हम? वे तो किसी और हो देश के निवासी थे। वे तो गुरीबों की आह सुनकर मैदान में उतरे थे। वे तो हिन्दुस्तान से भूख- नंग को दूर करने आये थे। वे तो मज़दूरों और किसानों का हाल पूछने आये थे। वे तो किसी ऊँचे आदर्श के पुजारी थे। वे तो किसी ऊँचे स्वप्न की उड़ान में मस्त थे। वे तो बे नज़ारे देखते थे, जहाँ न भूख है, न नग्नता। जहाँ न गरीबी है, न अमीरी जहाँ न जुल्म है न अन्याय। बस जहाँ प्रेम है, एकता है, जहाँ इन्साफ़ हैं, आज़ादी है, जहाँ सुन्दरता है। पर हम? हम?...हाय रे!
किसी का आदर्श कमाना, आप खाना और बच्चों को पालना होता है। किसी का आदर्श स्वयं को ऊँचा उठाने का होता है। किसी का आदर्श गरीबों, दुखियों को लूटकर धन-दौलत इकट्ठा करना होता है, किसी का आदर्श अपने सुन्दर शरीर को तकलीफ़ से दूर करने का होता है। किसी का आदर्श कुछ होता है, किसी का कुछ। लेकिन उनका आदर्श देश था। उनका आदर्श हिन्दुस्तान की आजादी था उनका कोई स्वार्थ नहीं था उनके खाने के लिए, उन्हें ओढ़ने के लिए किसी बात की कमी न थी । वे तो जो कुछ करते थे, लोक-कल्याण की खातिर, लोक-सेवा के लिए करते थे। वे इतने बलिदान के पुंज निकले, कि स्वयं को हमारे ऊपर वार दिया। आइये, इन वीरों को प्रणाम करें।
मातृभूमि के लाड़लो! क्या हुआ यदि डर के मारे आज हम आपका नाम भी लिखने से घबराते हैं? क्या हुआ जो आज हम दिल की बातें कहने में झिझकते हैं? क्या हुआ यदि आज हिन्दुस्तान में मुर्दानोशी छायी है और आपका नाम लेने से ही षड्यन्त्रकारी बन जाते हैं? क्या हुआ यदि कोई हिन्दुस्तानी आपको भला- बुरा भी कहे, लेकिन समय आयेगा जब आपकी कद्र होगी, जब आपको शहीद कहा जायेगा, जिस तरह 1857 के गदर को अब ' आज़ादी की जंग' कहा जाता है। समय सिद्ध कर देता है, समय सच्ची-सच्ची कहलवा देता है, समय किसी का लिहाज़ नहीं करता। उस समय आप अपनी असली शान से चमकेंगे और उस समय हिन्दुस्तान आप पर बलिहारी जायेगा।
शहीद वीरो! हम कृतघ्न हैं, हम तुम्हारे किये को नहीं जानते। हम कायर हैं, हम सच-सच नहीं कह सकते। हमें आप माफ करो, हमें आप क्षमादान दो। हमें मौत से भय लगता है, हमारा दिमाग सूली का नाम सुनते ही चक्कर खा जाता है। आप धन्य थे। आपके बड़े जिगर थे कि आपने फाँसी को टिच्च समझा। आपने मौत के समय मजाक किये! पर हम? हमें चमड़ी प्यारी है, हमें तो जरा-सी तकलीफ़ ही मौत बनकर दिखने लगती है। आजादी! आजादी का तो नाम सुनते ही हमें कँपकँपी छिड़ जाती है। हाँ! गुलामी के साथ हमें प्यार है, गुलामी की ठोकरों से हमें मजा आता है! आपकी नस-नस से, रग-रग से आज़ादी की पुकार गूँजती थी लेकिन हमारी रग-रग से, हमारी नस-नस से, गुलामी की आवाज़ निकलती है। आपका और हमारा क्या मेल? हमें आप क्षमा करो, आप हमारे केवल यह प्रेम के अश्रु ही स्वीकार करो।
कहो, धन्य हैं, काकोरी के शहीद...!