Thursday, September 16, 2021

मादर-ए-वतन सब हिन्दू हैं


सभी का ख़ून हैं शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी हैं,
सही तो कह गए मियाँ इंदौरी, आख़िर बाप तुम्हारा ग़ज़नी, अब्दाली या क़ासिम थोड़ी है, 

जिन माताओं की अस्मतें लूटीं उन आठसौ सालों में, वो नृशंसता बादशाह या सुल्तानों की थोड़ी हैं,
कहीं मूर्ति तोड़ी तो कहीं मंदिर तोड़े, फ़िर भी ये इतिहास काला थोड़ी हैं,

गज़वा-ए-हिन्द के गाज़ी आए और निपट गए, फ़िर भी ये सोच हारी थोड़ी है,
हिन्दू से नफ़रत सीने में दबाए, आज भी आतंकी जिहादी थोड़ी हैं,

कौन-सी ग़ैरत है तुम्हें यह मानने से, की तुर्कों-अरब से तुम्हारा रिश्ता थोड़ी हैं,
जिस संस्कृति ने अपनाया, उसी को काफ़िर मानते, ये जहालत भी तुम्हारी अपनी थोड़ी हैं,

कब तक छुपाओगे अपनी पहचान, आख़िर मानने में कोई हर्ज़ थोड़ी हैं,
सभी का ख़ून एक ही हैं मियाँ इंदौरी, मादर-ए-वतन सब हिन्दू हैं!!

- गौरव राजमोहन नारायण सिंह (हृतिक सिंह)

10 comments:

  1. चिंतनपूर्ण विषय पर सार्थक रचना ।

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  2. बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
    बस कुछ बद दिमाग समझ जाय ये बाते तो फिर किसी बात की चिंता कहाँ रहेगी

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  3. गहन तंज ।
    अद्भुत विरोधाभास।
    साधुवाद।

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    1. आपका बहुत आभार कुसुम जी।
      🌼🙏

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