Sunday, March 10, 2024

छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है

कहते है जो पढ़ लिख लिया वो आगे बढ़ गया। बात सही भी है आजकल के आधुनिक दुनिया में बिना पढ़े लिखे गुजारा भी नही हैं किसी का। लाखों छात्र छात्राएं घर से दूर सुदूर निकल पड़ते हैं पढ़ने लिखने के लिए। कोई बनारस तो कोई दिल्ली तो कोई प्रयाग जाता है कलेक्टर बनने। अपना जी जान लगा देते है ये होनहार फिर भी सफलता के आड़े शासन- प्रशासन की नाकामियां आ जाती है। बार-बार पेपर लीक होना इन तमाम छात्रों का हौसला तोड़ देती है। एक पेपर को क्लियर करने में जब सरकार को चार साल लग जा रहे है तो क्या ही कहना... भुगतना तो छात्रों को पड़ता है जो सरकारी नौकरी के तैयारी  के लिए अपना सबकुछ झोंक चुके होते है।  जो लोग लगातार मेहनत कर रहे हैं भूख प्यास दुनिया जहान भूलकर लगे हुए थे तैयारी में उनका क्या ही कहना ,ऐसी अनियमिताओं से व्यथित होकर कोई आत्महत्या कर लेता है।
हर कोई इतना संपन्न परिवार से नही होता है कि लांखो रुपया लगाकर धंधा पानी खोल ले एक सरकारी नौकरी ही है जो उसकी जीवन की नैया पार लगा सकती है। कोई ऐसा पेपर नही जो साफ सुथरा ढंग से हुआ हो हर बार का वही हाल बनाया जा चुका है। पेपर लीक करके उसे रद्द कराना ही मास्टरस्ट्रोक बनकर रह गया है।

रेलवे से लेकर राज्य सरकारों की तमाम नौकरियों में लेट सबेर हो रहा है । नकल माफियाओं का दबदबा कायम है ये कोई भी पेपर होता है लीक करा देते है और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। एक कल्याण सिंह का समय था जब दसवीं और बारहवीं तक में नकल नही होता था और आज का समय है पीसीएस लेवल का परीक्षा तक सक दायरे में रहता है लीक हुआ है और हर बार होता है बार-बार होता है। मजाक बनकर रह गया है छात्रों का भविष्य। कोई ठुल्लुआ आकर कहता है की सरकारी नौकरी सबको नही मिल सकती है भीड़ ज्यादा हैं लोगो को दूसरे सेक्टर की तरफ ध्यान देना चाहिए लेकिन जितनी है उतनी किसी को मिल रही है की नही इसपर नही बोलेंगे। बाकी आईआईटी ,एनआईटी , आईआईएम, एमबीबीएस वाले आईएएस बने घूम रहे है वो देश सेवा का भाव है नागरिकशास्त्र , समाजशास्त्र आदि पढ़के स्नातक करने वाला सरकारी नौकरी की तरफ न देखे क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में बहुत पैसा है...!
 हद दर्जे के लोग आ जाते है शासन-प्रशासन के नकारेपन पर सवाल खड़ा करने पर देशद्रोही घोषित कर देंगे 
अब तो हद हो गई है। मतलब अब  तो हद हो गई है की लेखपाल की परीक्षा पास करना भी बड़ी बात हो चली है अखबारो में लोगो की तस्वीरें छप रही है।
 सरकारी नौकरी पर ज्ञान देने वाली चुगद बिरादरी आजकल खामोश कैसे बैठी हुई है. नौकरी मिले न मिले इनके माईबाप नौकरियां देने की घोषणाएं तो भरपूर कर रहे हैं....बुरा तो लग रहा होगा, सुलग भी रही होंगी.. अपने माईबाप का विरोध नहीं करेगी ये बिरादरी?
खैर रोजगार का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी या कोई और पक्का रोजगार ही थोड़े होता है..कोई ३०० रूपये की दिहाड़ी पर महीना भर काम कर ले तो वो भी रोजगार ही होता है...!
कई सालो पहले मैने कुछ लिखा था वो आज भी सटीक बैठता है
अब है ही क्या समझाने और बताने को? 
गांव हो या शहर जिंदगी हो गई है खंडहर! 
घर- गांव छोड़ के खेती- बारी 
बड़का शहर में होत ह चौकीदारी! 
नौकरी ना मिलल सरकारी 
अब बेचत हई ठेला पर तरकारी ! 
क्या करे साहब शिक्षा हुई बेकार
 हम हुए अंग्रेजी के आगे लाचार ! 
फिर घर से हुए दूर बने मजदूर 
ना ढंग से पैसा ना भरा पेट भरपूर 
सारा सपना हुआ चकनाचूर! 
अब है ही क्या समझाने और बताने को? 
गांव हो या शहर जिंदगी हो गई है खंडहर!
 यही कहानी हर युवा गाता है 
अपने को यूपी-बिहार से बताता है!

2 comments:

  1. समसामयिक घटनाचक्र पर सार्थक कटाक्ष।

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