लेखक:- शिवम कुमार पाण्डेय
रोटी को भी विशेष नाम दिया गया है "राजनीतिक रोटी" जो हर कोई सेके जा रहा है। मत पूछिए बड़ी लंबी होड़ लगी हुई हैं ,गजब की भीड़ और मारामारी है। हर कोई अपना हक मांग रहा है नहीं किसी से भीख मांग रहा है। मजाल किसी की कोई रोककर देखा दे इनको अरे भाई झुझारू नेता - परेता लोग है ये नहीं जलती हुई लाश पर रोटी सकेंगे तो कौन सेकेगा? ओ कुछ पत्रकार भी है का लाइन में लगे हुए है नमक, मिर्च, मसालों के साथ अब बिना इसके सब्जी तो बन नहीं सकती न। नीछान सादि रोटियां मज़ा थोड़ी न देंगी तो ये भी आ जाते है माल मटेरियल लेकर। झूठ कपास , उलुल - जुलूल , इधर - उधर की फालतू बकैती करने वाले कुछ मुट्ठी भर डिजाइनर पत्रकारों का काम होता जब लकड़ियां जल कर राख हो जाय तब उसको क्षितिर - वितिर कर के उसको हवा में उड़ा देना। इन्हें क्या मालूम कि लोगों पर क्या गुजर रही होगी जिनके मृत परिजनों के जलती हुई चिता पर ये घिनौना खिलवाड़ होता है ? यह सब एक साजिश और षड्यंत्र के साथ किया जाता है इस देश की एकता और अखंडता को तोड़ने के लिए। जब कोई भी व्यक्ति जाति विशेष का भूखा मरता है कोई नहीं जाता उसका खोज खबर लेने के लिए पर जहां कोई उसके साथ दुर्घटना या अनहोनी हो जाती है तो सब उसके घर में इतनी भीड़ लगा देते है कि इनसे बड़ा कोई उसका हितैषी ही नहीं है। मौका मिला नहीं शुरू हो गए दलितों की तुष्टिकरण की राजनीति करने। कभी सवर्णों से लगाव तो कभी पिछड़ों से जुड़ाव बस जहां इनकी राजनीतिक रोटी को आग मिल जाय देखने के खातिर और का रखा है जीवन में! आरोपी अगर मुस्लिम हो तो ऐसी चुप्पी साध लेंगे की मानो जैसे कोई सांप सूंघ गया हो, इसी को कहते है मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति। इन सबका फायदा मिशनरी वालो भी फायदा उठाते है धर्मपरिवर्तन करके दलित को ईसाई बनाकर। एक ग़लत धरना उत्पन्न की जाती है दलितों के सामने तुम्हारे साथ हिंदू धर्म में अपमान और अत्याचार हो रहा है। आओ इशू प्रभु के शरण में। यह अब एक एजेंडा नहीं है तो क्या है? किस नजरिए से देखा जाए इसको? जब कोई भी अपराध होता है तो बिना जांच - पड़ताल के विवादित और भड़काऊ बयान देने के तथाकथित सेकुलर समाजवादी लिबरल गैंग सक्रिय हो जाता है। एक मंच पर खुलेआम लोगों के सामने एक क्षेत्रीय पार्टी का नेता दूसरे समाज के मा, बहन - बेटियों को गरियाता है पर इस पर मीडिया में कोई शोर शराबा देखने को नहीं मिलता है क्योंकि वह नेता पिछड़े वर्ग का है। जब विकास दुबे जैसा अपराधी मारा जाता है तब शोर-शराबा होने लग जाता है 'ब्राम्हण को कैसे मार दिए'? मतलब जो सही है उसको नहीं दिखाएंगे जो गलत है उसके लिए लड़ मर जाएंगे वाह क्या गजब है हम किस अजीबो - गरीब भारत में जी रहे है जहां हिन्दू धर्म तोड़ने की साजिश रची जा रही है कुछ जयचंदो द्वारा सिर्फ सत्ता सुख के लिए। जघन्य अपराध करने वालों के लिए समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए चाहे वो किसी भी जाति , धर्म या मजहब का हो। उसको कड़ी से कड़ी सजा मिले पर इस तरह जलती हुई लाश पर रोटियां सेंकने वालों को सबक सिखाने सख्त जरुरत है।
Nice article 🌻
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने। हाथरस वाले मामले PFI का भी नाम आ रहा है।
ReplyDeleteजी बहुत धन्यवाद आपका। आगे देखिए होता है क्या...
Deleteशानदार लेख।
ReplyDeleteशुक्रिया रजत जी🌻
Deleteबहुत अच्छा लेख लिखा है आपने,सटीक एवं सत्य ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मधुलिका जी🌻
Deleteजी आपका बहुत धन्यवाद मनोज जी🌻
ReplyDeleteआपने एक अच्छा लेख लिखा।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सिद्धार्थ जी आपका।
Deleteअच्छी प्रस्तुति! विषय वस्तु को काफी गंभीरता से लिखा है।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद एवं आभार हृतिक जी। 🌻
Deleteउम्दा लेख। बहुत बेहतरीन लिखा है..
ReplyDeleteशानदार,जबरदस्त,जिंदाबाद
आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कृष्णा जी प्रोत्साहन हेतु। बाकी इन्कलाब जिंदाबाद।
Deleteवाह!क्या खूब लिखा है।
ReplyDeleteशुक्रिया भाई।
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