जनसत्ता संवाद
भारत के लिए राहत: ओली की अपनी पार्टी के ही लोग जिस तरह उनका इस्तीफा चाहते थे, उसे देखते हुए चीन के लिए भी ओली के पक्ष में हस्तक्षेप करना संभव नहीं रह गया था । नेपाल का यह नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम जहां चीन के लिए बड़ा झटका है, वहीं भारत के लिए यह राहत का अवसर है, क्योंकि भारत विरोधी ओली सत्ता से बाहर हो चुके हैं।
कूटनीतिज्ञ समूचे घटनाक्रम पर निगाह रख रहे है।
चीन के समर्थन व भारत विरोधी एजंडे के जरिए नेपाल की सत्ता संभालने वाले ओली के तीन साल के प्रधानमंत्री काल का 21 मई को तब अचानक अंत हो गया, जब राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दी। मध्यावधि चुनाव कोविड संकट के बीच होंगे। टीकाकरण न कर पाने के कारण नेपाल में कोरोना की स्थिति पहले ही सरकार के नियंत्रण के बाहर है। संविधान विशेषज्ञों ने राष्ट्रपति के फैसले की आलोचना की है। विपक्ष ने उनके निर्णय को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, निरंकुश और प्रतिगामी बताया है। 149 विपक्षी सांसदों ने राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है, जो कि 275 सदस्यीय संसद में बहुमत के लिए जरूरी 137 की संख्या से कहीं अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति को तीन दलों वाले विपक्ष यानी नेपाली कांग्रेस, प्रचंड के नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और उपेंद्र यादव के नेतृत्व वाली जनता समाजवादी को सरकार बनाने का अवसर देना चाहिए था। सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल व झलानाथ खनाल धड़े का भी विपक्ष को समर्थन था । नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में विपक्ष ने राष्ट्रपति के सामने बहुमत के लिए जरूरी सांसदों के दस्तखत के साथ सरकार बनाने का दावा भी पेश किया, लेकिन भंडारी ने उस पर विचार नहीं किया । विपक्ष के दावे को ध्वस्त करने के लिए ओली ने राष्ट्रपति के सामने 153 सांसदों के समर्थन का दावा किया था, इसके बावजूद वह विश्वास मत नहीं जीत पाए। हालांकि राष्ट्रपति का कहना है कि चूंकि ओली और विपक्ष-किसी के भी पास बहुमत नहीं है, इसलिए उन्हें संसद भंग करने का फैसला लेना पड़ा । नेपाल में 2023 में आम चुनाव प्रस्तावित है।
विश्वास मत खोने के बाद ओली खुद संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने की बात कर रहे थे। हिंदू वोट पाने के लिए ओली पहले ही भगवान राम और सीता के जन्मस्थान के बारे में टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर चुके हैं। ओली ने अयोध्या के नेपाल में होने का भी दावा किया है, जिसका भारत ने हालांकि तीखा विरोध किया, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान ओली नेपाल के हिंदुओं को अपने पाले में करने के लिए एक बार फिर अपना यह दावा दोहराएंगे। इसके अलावा नेपाल के नए और विवादित नक्शे का प्रचार करते हुए ओली खुद को आक्रामक राष्ट्रवादी के रूप में पेश करते हुए जताएंगे कि भारत विरोधी रुख के लिए ही उन्हें जाना पड़ा।
( स्रोत: प्रस्तुत लेख जनसत्ता अखबार से साभार)
बहुत सुन्दर लेख | पर अब तो जो कुछ होगा वह चुनाव के बाद ही होगा |देखते हैं कि ओली जीतते हैं या नहीं |
ReplyDeleteजी बिलकुल सही कहा आपने।
Deleteसुन्दर लेख
Deleteआपका बहुत आभार आलोक जी।
Deleteबढ़िया है...
ReplyDeleteप्रकाश जी आपका बहुत आभार। स्वागत है आपका राष्ट्रचिंतक ब्लॉग पर।
Deleteसार्थक लेख ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी।
Deleteबढिब
ReplyDeleteसरिता जी स्वागत है आपका राष्ट्रचिंतक ब्लॉग पर।🌻
Deleteप्राजातांत्रिक परंपराओं के निर्माण की सुदीर्घ यात्रा तय करनी है अभी नेपाल को। सूचनाप्रद लेख। आभार।
ReplyDeleteविश्वमोहन जी सही कहा आपने।
Deleteसदैव स्वागत है आपका🌻
जानकारी भरी पोस्ट ।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद मीना जी🌻
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