वाद-विवाद का समय: (रविवार, 18 सितंबर, सन् 1949)
श्री एच.वी. कामतः
मैं प्रस्ताव पेश करता हूं। अपने प्रथम संशोधन सं. 220 को पहले लेते हुए, संसार के अधिकांश व्यक्तियों में यह प्रथा है कि नवजात का नामकरण संस्कार अथवा नाम रखने का उत्सव मनाया जाये। गणराज्य के रूप में भारत का शीघ्र ही जन्म होने वाला है अतः समाज के कई वर्गों में लगभग सभी वर्गों में यह आन्दोलन हो रहा है कि इस नये गणराज्य के जन्म पर नामकरण संस्कार भी होना चाहिये। इस प्रकार के कई सुझाव दिये गये है कि भारतीय गणराज्य के इस नवजात शिशु का समुचित नाम क्या हो। मुख्य चुनाव ये हैं- भारत, हिन्दुस्तान, हिन्द, भरतभूमि, भारतवर्ष तथा अन्य इसी प्रकार के नाम । इस समय यह वांछनीय होगा, और शायद लाभदायक भी हो, कि इस विषय को ले लिया जाये कि भारतीय गणराज्य के रूप में नवजात शिशु के जन्म पर कौन सा नाम सबसे अधिक उपयुक्त होगा । कुछ लोग कहते हैं शिशु का नाम क्यों रखा जाये? इण्डिया पर्याप्त है। ठीक है । यदि नामकरण संस्कार की आवश्यकता न होती तो इण्डिया को ही बनाये रखते, पर जब हम यह मान चुके हैं कि इस शिशु का कोई नया नाम होना चाहिये तो यह प्रश्न उठता है कि इसका क्या नाम रखा जाये?
जो लोग भारत, भरतभूमि या भारतवर्ष के पक्ष में हैं, उन लोगों का तर्क इस तथ्य पर आश्रित है कि इस देश का यह बहुत ही प्राचीन नाम है। इतिहास लेखकों और भाषा वैज्ञानिकों ने इस देश के नाम के विषय में विशेषकर "भारत" नाम की व्युत्पत्ति पर गहन विचार किया है। परन्तु भारत नाम किस प्रकार पड़ा इस पर सब एकमत नहीं हैं। कुछ लोग इसका संबंध दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्रा से जोड़ते हैं जो 'सर्वदमन' अर्थात् सर्वविजयी के नाम से भी प्रसिद्ध था और जिसने इस प्राचीन देश में अपना अधिपत्य तथा राज्य स्थापित किया। उनके नाम पर यह देश भारत नाम से विख्यात हुआ । गवेषणा करने वाले विद्वानों की एक और विचारधारा वेफ अनुसार भारत वैदिक काल से.
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श्री एच.वी. कामतः
मैं केवल आयरलैण्ड के संविधान की ओर निर्देश करना चाहता हूं जिसको बारह वर्ष पूर्व स्वीकार किया गया था। इस अनुच्छेद के खण्ड (1) में वाक्य की जो रचना प्रस्थापित की गई है उससे उसमें भिन्न रचना है। मैं समझता हूं कि "इंडिया अर्थात् भारत" इस पद का अर्थ "इंडिया जिसको भारत कहा जाता है" है। मैं समझता हूं कि संविधान में यह कुछ भद्दा सा है। यदि इस पद का एक अधिक सांविधानिक मान्य रूप में और मैं तो यह कहूंगा कि एक अधिक कलात्मक तथा निश्चय ही अधिक सही रूप में रूपभेद कर दिया जाये तो अधिक अच्छा होगा। इस सभा में उपस्थित मेरे माननीय मित्र यदि 1937 में पारित किये गये आयरलैण्ड वके संविधान को देखने का कष्ट करें तो उनको यह विदित हो जायेगा कि आयरलैण्ड का स्वतन्त्र राज्य आधुनिक संसार के उन कुछ देशों में से है जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के पश्चात् अपने नाम बदले और उसके संविधान का चतुर्थ अनुच्छेद उनके देश के नाम परिवर्तन के संबंध में है। आयरलैण्ड स्वतन्त्र राज्य के संविधान का वह अनुच्छेद इस प्रकार है: "राज्य का नाम एयर अथवा अंग्रेजी भाषा में आयरलैण्ड है। "
मैं समझता हूं कि "इंडिया अर्थात् भारत" एक भद्दी पदावली है और मैं नहीं समझ पाता हूं कि मसौदा समिति ने इस प्रकार की रचना क्यों की है और एक ऐसी भूल की है जो मुझे एक सांविधानिक भूल दिखाई देती है। डॉ. अम्बेडकर पहले अपनी कई भूलें स्वीकार कर चुके हैं और मैं आशा करता हूं कि इस भूल को भी वे स्वीकार करेंगे और इस खण्ड की रचना का पुनरीक्षण करेंगे।
सेठ गोविन्द दासः
सभापति जी, नामकरण हमारे देश में एक बड़े महत्व की चीज मानी जाती थी और आज भी मानी जाती है। हम सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि नामकरण शुभ मुहूर्त में हो और जो नाम हम रखें वह नाम सुन्दर से सुन्दर हो। मुझे यह देख कर बड़ा हर्ष होता है कि हमारे देश का जो प्राचीनतम नाम है, वह हम रख रहे हैं परन्तु वह जिस सुन्दर तरीके से रखा जाना चाहिये था, डाक्टर अम्बेडकर साहिब मुझे क्षमा करेंगे, उस तरह से नहीं रखा जा रहा है। "इंडिया देट इज भारत" यह बहुत सुन्दर तरीका नाम रखने का नहीं है। हमें नाम रखना चाहिये था "भारत जिसे बाहर विदेशों में इण्डिया भी कहा जाता है" वह नाम ठीक नाम होता। जो कुछ हो कम से कम एक बात से हमें संतोष कर लेना चाहिये कि भारत नाम आज हम अपने देश का रख रहे हैं।
कुछ लोगों को यह भ्रम हो गया है कि इण्डिया इस देश का सबसे पुराना नाम है। हमारे सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद हैं और अब तो यह माना जाने लगा है कि वेद संसार के सबसे पुराने ग्रन्थ हैं, वेदों में इण्डिया नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ऋग्वेद में "ईडयम इड्डू और ईडेन्यः " ये शब्द आये हैं। यजुर्वेद में इडा शब्द आया है। परन्तु इनका इण्डिया से कोई संबंध नहीं है।
अध्यक्षः यह किसने कहा कि इण्डिया सबसे पुराना नाम है?
सेठ गोविन्द दासः
कुछ व्यक्तियों से यह सुना जाता है और इस घोषणा में एक पम्पफलेट भी निकला है जिसमें यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि इण्डिया भारत से भी पुराना नाम है। मैं चाहता हूं कि यह बात रिकार्ड में रहे कि यह गलत है। ईडयन और ईडे का अर्थ अग्नि है, ईडेन्यः का प्रयोग अग्नि के विशेषण वेफ रूप में हुआ है और ईडा वाणी का वाचक है।
श्री महावीर त्यागीः
क्या यह समझा जाये कि इण्डिया शब्द जो है वह इन्टरनेशनल फार्म का है?
सेठ गोविन्द दासः
इण्डिया शब्द हमारे किसी प्राचीन ग्रन्थ में न होकर उस समय से प्रयोग में आने लगा जब से यूनानी भारत में आये। यूनानियों ने हमारी सिन्ध नदी का नाम इंडस रखा और इंडस कहने के साथ इण्डिया शब्द आया। यह बात एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी लिखी है। उसके विपरीत यदि हम देखें तो हमको मालूम होता है कि वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मण ग्रंथों के पश्चात् हमारा सबसे प्राचीन और महान् ग्रन्थ जो महाभारत है, उसमें हमको भारत का नाम मिलता है: "अथते कीर्ति पष्यामि, वर्ष भारत भारत" - भीष्म पर्व । विष्णु पुराण में भी हमें भारत नाम मिलता है। वह इस प्रकार है: "गायन्तिः देवा किल गीत कानि, धन्यास्तु ने भारत भूमि भागे" । ब्राह्मण्ड पुराण में भी हमें इस देश का नाम भारत ही मिलता है। - "भरणाच्य प्रजानावै मनुर्भरत उच्यते । निरुक्त वचनाचैव वर्ष तद्भारत स्मृतं।" चीनी यात्री इत्सिंग जब भारत आया तो उसने भी अपनी यात्रा के वृतान्त में इस देश का नाम भारत ही लिखा था।
श्री कल्लूर सुब्बा राव (मद्रास):
श्रीमान्, मैं भरत नाम का हार्दिक समर्थन करता हूं जो प्राचीन नाम है। भरत नाम ऋग्वेद (ऋग3, 4, 23.4) में है। उसमें यह कहा गया है 'इम इन्द्र भरतस्य पुत्रा' ऐ इन्द्र, ये भरत के पुत्र हैं। वायुपुराण में भरत की सीमायें में दी हुई हैं:
'इदं तु मध्यमं चित्रां शुभाशुभ फलोदयम्।
उतरं यत्समुद्रस्य हिम् वत् दक्षिणं च यत्।।
(वायुपुराण उ. 45-75)
इसका अर्थ यह है कि वह भूमि जो हिमालय के दक्षिण में है और समुद्र के उत्तर में है, भरत नाम से पुकारी जाती है। इस कारण भरत नाम बहुत प्राचीन है। इण्डिया नाम सिन्धु; इण्डस नदी के नाम पर पड़ा है और हम अब पाकिस्तान को हिन्दुस्तान कह सकते हैं क्योंकि सिन्धु नदी वहां पर है। सिन्द हिन्द हो गया क्योंकि संस्कृत के (स) का उच्चरण प्राकृत में (ह) हो जाता है। यूनानी हिन्द को इन्द कहते हैं। एतत्पश्चात् यह ठीक तथा उचित होगा कि हम इण्डिया का भरत के नाम से उल्लेख करें। सेठ गोविन्द दास और अन्य हिन्दी भाषा भाषी मित्रों से मैं निवेदन करूंगा कि भाषा का नाम भी वे भारती रखें। मैं समझता हूं कि हिन्दी के स्थान में भारती रखा जाये क्योंकि भारती का अर्थ सरस्वती है।
श्री रामसहाय (मध्य भारत संघ):
प्राचीन प्रथा के अनुसार तो नामकरण प्रारम्भिक जीवन में ही किया जाता है लेकिन आज आधुनिक सभ्यता के अनुसार जब हम किसी बिल या किसी कानून का विचार करते हैं तो पहली धारा को जो नाम की होती है उसे आखिर में लेते हैं। उसी प्रथा के अनुसार आज हम पहली धारा पर विधान की करीब-करीब सब धाराओं पर विचार करने के पश्चात् अन्त में विचार करते हुए इस भारतवर्ष का नाम भारत अपने विधान में रख रहे हैं। आज जितनी भी हमारी धार्मिक पुस्तके हैं और जितना हिन्दी साहित्य है उन सबमें ही करीब-करीब इस देश का नाम हमेशा भारत ही के नाम से प्रचलित रहा है। हमारे लीडर्स भी जब वह भाषण देते हैं तब वह इसे प्रायः भारत के ही नाम से पुकारते हैं। एक समय वह था कि जब यह समझा जाता था कि रियासतें अंग्रेजी राज्य को मजबूत बनाने के लिये कायम की गई हैं। यह, एक प्रकार का कलंक रियासती जनता पर भी था। आज से बहुत पहले हम उस कलंक को मिटा चुके हैं और भारतवर्ष का एक अंग बनकर ही हमने कांस्टीट्यूशन बनाने में भाग लिया है और सारे विधान का उपभोग हम अब प्रान्तीय जनता के समान उसके साथ करेंगे। मैं अधिक समय हाउस का न लेकर उस प्रस्ताव का समर्थन करता हूं।
श्री कमलापति त्रिपाठी (यू.पी):
आज इस देश का नामकरण करने का संशोधन हमारे सामने उपस्थित है। मुझे प्रसन्नता होती यदि ड्राफ्टिंग कमेटी ने जो संशोधन उपस्थित किया है उसका स्वरूप कुछ दूसरा रखा होता। "इण्डिया दैट इज भारत" के स्थान पर यदि दूसरे प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया होता तो मैं समझता हूं कि, अध्यक्ष महोदय, कि वह इस देश की परम्परा और गौरव के अनुकूल ही होता और कदाचित् इस विधान- परिषद् के लिये भी सौभाग्य की बात हुई होती। यदि दैट इज लगाना ही था तो 'भारत दैट इज इण्डिया' यदि स्वीकार किया गया होता और इस प्रकार का प्रस्ताव हमारे सामने आता तो वह अधिक उपयुक्त हुआ होता। मेरे मित्र कामत जी ने आपके सामने अपना संशोधन उपस्थित किया है कि "भारत एज इट इज नोन इन इंग्लिस लैंग्वेज इण्डिया" को ड्राफ्टिंग कमेटी ने स्वीकार किया होता अथवा इस समय भी स्वीकार कर लेती तो वह भी हमारे हृदय को और हमारे गौरव को अधिक सम्मानित करता और हमें प्रसन्न्ता प्रदान करता । जब कोई देश पराधीन होता है तो वह अपना सब वुफछ खो देता है। एक हजार वर्षों की अपनी पराधीनता में हमारे इस देश ने भी अपना सब कुछ खो दिया। हमने अपनी संस्कृति खो दी, हमने अपना इतिहास खो दिया, हमने अपना सम्मान खो दिया, हमने अपनी मनुष्यता खो दी, हमने अपना गौरव खो दिया, हमने अपनी आत्मा खो दी और कदाचित् हमने अपना स्वरूप खो दिया तथा अपना नाम भी खो दिया। आज सहस्र वर्ष की पराधीनता के बाद स्वाधीन हुआ यह देश अपना नाम प्राप्त करेगा और हम आशा करते हैं कि अपनी संज्ञा लुप्त हुई संज्ञा प्राप्त करने के बाद वह अपना स्वरूप भी प्राप्त करेगा, अपना आकार भी प्राप्त करेगा और अपनी मूर्छित हुई आत्मा का उद्बोधन भी अनुभव करेगा कदाचित् वह संसार में अपना गौरवपूर्ण स्थान भी प्राप्त कर सकेगा।
सभापति जी, मुझे भारत के इस शब्द से बड़ा प्रेम है। यह एक ऐसा शब्द है जिसका उच्चारण करने मात्रा से हमें अपने देश की सहस्राब्दियों की संस्कृति क्षण मात्रा में सामने दिखाई पड़ने लगती है। मैं समझता हूं कि इस धरती पर कोई दूसरा ऐसा राष्ट्र नहीं है जिसके जीवन का इतिहास, जिसका सांस्कृतिक प्रवाह और जिसका नाम सहस्रों वर्षों से इसी प्रकार अब तक चला आता है, जैसा हमारे देश का चला आता है। धरती के अंक में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने इतने पद् दलन, इतने अपमान और इतनी लम्बी पराधीनता के बाद भी अपने नाम और अपनी आत्मा को किसी प्रकार रखने में सुरक्षित समर्थ हुआ हो ।
आज सहस्रों वर्षों के बीत जाने पर भी हमारा देश भारत कहा जाता रहा है। अब तक हमारे साहित्य में यह नाम प्रयुक्त होता रहा है। वेदों के युग से लेकर पुराणों में तो इस नाम की कितनी महिमा है। हमारे पुराण भारत के नाम और इस देश की महिमा का गुणगान करते रहे हैं। देवता स्वर्ग में इस देश के नाम का स्मरण करते रहे हैं "गायन्ति देवा खिल गीत कानी" पुराण कहते हैं कि इस देश का गुणगान देवता भी स्वर्ग में बैठे हुए करते हैं। देवताओं में यह कामना होती है कि वह भारत की पवित्र भूमि में उत्पन्न हों और जीवन उपभोग करवेफ अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर सके। हमारे लिये तो इस नाम में हमारी पवित्र स्मृति भरी हुई है। हमें स्मरण हो जाता है कि यह वह देश है जिसमें किसी युद्ध में बड़े-बड़े पुरुषों ने, बड़े-बड़े महर्षियों ने एक महान् संस्कृति को जन्म दिया था। जिस संस्कृति ने न केवल इस देश के कण-कण को प्रभावित किया वरन यहां की सीमा का उल्लंघन करके सुदूर पूर्व के कोने-कोने में पहुंची। हमें स्मरण होता है कि एक ओर वह संस्कृति भूमध्य सागर के तट तक पहुंची तो दूसरी ओर उसने प्रशान्त की लहरियों का भी स्पर्श किया। हमें स्मरण होता है कि इस देश के हमारे नायकों ने, हमारे विचारकों ने, सहस्राब्दियों पूर्व एक महान् राष्ट्र को जन्म दिया था जिसने अपनी संस्कृति को सारे संसार में फैलाया और एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। जब हम इस शब्द "भारत" का उच्चारण करते हैं तो हमें हमारे महर्षियों के मुंह से निकले हुए ऋग्वेद के उन मन्त्रों की याद आ जाती है जिसमें उन्होंने अपने सत्य और अन्तर्ज्ञान से उत्पन्न अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें उपनिषद् के वह वाक्य याद आ जाते हैं जिसकी वीर वाणी समस्त मानव जाति को आमन्त्रित करती हुई कहती है कि "उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो।"
इस शब्द का उच्चारण करने से हमें भगवान तथागत की याद आ जाती है जिन्होंने ललकार कर संसार से कहा था कि "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लोकानुवंफपाय" जीवन का संचालन करो और देवताओं और मनुष्यों के हित के लिये उठो, जागो और संसार को ज्ञान वेफ मार्ग का प्रदर्शन कराओ। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें शंकराचार्य का स्मरण हो आता है जिन्होंने संसार को एक नई दृष्टि प्रदान की। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान राम की उन विशाल भुजाओं का स्मरण हो जाता है जिसमें धनुष की प्रत्यंचा के टंकार से इस देश के आसमुद्र हिमाचल अंतरिक्ष को गुंजारित कर दिया था। हमें प्रसन्नता है और हम डाक्टर साहब को इस बात के लिये बधाई देते हैं कि उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया है। यह बात कितनी अच्छी होती अगर वह श्री कामत के संशोधन को भी स्वीकार कर लेते जिसमें कहा गया है 'Bharat as is known in English language' इससे देश के गौरव की रक्षा होगी। भारत शब्द को रखने से, इसको ग्रहण करने से हम इस देश को एक स्वरूप प्रदान कर सकेंगे। इस देश को उसकी खोई हुई आत्मा को दे सकेंगे। इस देश की रक्षा कर सकेंगे। भारत एक महान् राष्ट्र हो जायेगा जो संसार के रंगमंच पर मानव जाति की सेवा कर सकेगा।
श्री हरगोविन्द पन्त (यूपी):
सभापति जी, इस परिषद् के प्रारम्भिक अवस्था में ही मैंने एक संशोधन भेजा था जिसका अभिप्राय यह था कि इण्डिया शब्द के स्थान में भारत या भारतवर्ष का प्रयोग किया जाये। मुझे हर्ष है कि इस संबंध में थोड़ी कुछ बदलफेर तो स्वीकार कर ली गई है। परन्तु यह जो भारतवर्ष शब्द है उसका जो गौरवपूर्ण स्थान स्वीकार किया जा रहा है, सीधे क्यों नहीं इस देश के नाम के लिये ग्रहण कर लिया जाता है, यह बात तो मेरी समझ में नहीं आती। मैं उन बातों को दोहराना नहीं चाहता हूं जो कि अन्य सदस्यों ने इस महान् शब्द के प्रयोग के लिये यहां पर कही हैं। मैं सिर्फ दो एक बात इस संबंध में कहना चाहता हूं।
भारतवर्ष या भारत यह नाम तो हमारे दैनिक धार्मिक संकल्प में कहा जाता है जो नित्य स्नान में भी काम में आता है: "जम्बू द्वीपे भरत खण्डे आर्यावर्ते" यही नहीं, इस नाम को जगत् प्रसिद्ध महाकवि कालीदास ने अपने दो प्रसिद्ध पात्र राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के आख्यान में भी प्रयुक्त किया है। राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के पुत्र का नाम भरत था उनका राज्य भारत कहलाया। इस आख्यान को सभी लोग अच्छी तरह जानते हैं। तो फिर मेरी समझ में यह बात नहीं ती कि क्यों न इस नाम को खुले दिल से ग्रहण किया जाता है। रहा इण्डिया नाम, इस शब्द से न जाने क्यों हमारी ममता सी हो गई है, यह नाम इस देश को विदेशियों ने दिया है। यह नामकरण भी विदेशियों ने ही किया है और उनको इस देश के वैभव का हाल सुन लालच हुआ था और अपनी लालसा को पूरी करने के लिये उन्होंने हमारी स्वाधीनता पर आक्रमण किया था। अगर हम इण्डिया शब्द को अब भी अपने हृदय से लगाये रखें तो इसके माने यह होते हैं कि हमको इस नाम से, जो हमारे लिये अपमानजनक है, जिस नाम को विदेशियों ने हमारे ऊपर थोपा है और जिसका नामकरण उन्होंने किया है, उससे हमको कोई दुःख नहीं है। मेरी समझ में यह बातें नहीं आतीं कि क्यों कर हम इस नाम को अपने पास रख रहे हैं। भारतवर्ष और भारत हमारे नाम हैं और यह नाम हमारे प्राचीन इतिहास और प्राचीन परम्परा से चले आ रहे हैं और हम लोगों को बड़ा उत्साह और बड़ी वीरता देने वाले हैं। इसलिये मैं तो कहूंगा कि इस नाम को अपनाने में हमें बिलकुल भी संकोच नहीं करना चाहिये। अगर हम इस नाम को नहीं रखा और इसकी जगह में किसी दूसरे शब्द को स्थान दिया तो यह हमारे लिये एक लज्जा का विषय होगा। मैं भारत के उस उत्तर प्रान्त के रहने वाले 18 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व यहां पर करता हूं, जिस उत्तर प्रान्त में श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, श्री जागेश्वर, श्री बागेश्वर और मानसरोवर आदि स्थान हैं। वहीं की जनता की अभिलाषा मैं आपके सामने रखना चाहता हूं और मैं आपसे कहूंगा कि वहां की जनता यह चाहती है कि इस देश का नाम भारतवर्ष हो न कि और कुछ.
जय हिन्द
स्त्रोत: Parliament Digital Library
[आश्चर्यजनक और दुखद बात है कि जनता का इच्छा होते हुए और इतने तार्किक वक्तव्यों के बाद भी अत में वोटिंग द्वारा ये संशोधन अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि बहुमत जिनका था उनमें से बहुत सारे अभी भी अंग्रजों की चाटुकारिता करने में पीछे नहीं रहना चाहते थे।]
Very nice and Informative blog!
ReplyDeleteKeep it up 💯
धन्यवाद सत्यम जी।
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