छात्र ,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।
(हाल ही में सीमा पे भारत और चीन के बीच हुए मुठभेड़ में भारतीय सेना की शौर्य गाथा को दर्शाती हुई ये कविता और सवाल पूछने या सबूत मांगने वालों के मुंह पर कड़ा तमाचा।)
बलवान का सम्मान
मन व्यथित, विचार हैं खंडित, सवालों का सैलाब है,
इस देश में बलवानों का क्यों नहीं सम्मान हैं।
इंच-इंच पर मारते-मारते, जिन्होंने अपने शीश दिए,
मार-मार कर दुश्मन को ही, सीमा पार धकेल दिए।
बिन गोली न गोले से, जिन्होंने माँ की सुरक्षा की,
हाथ बंधे थे फिर भी ऐसे, शूरवीरों ने रक्षा की।
जहाँ आज वीर बलवानों का, होना गौरवगान हैं,
वहाँ आज सिर्फ राजनीत का, पूरा बोलबाला है।
जो आजतक ये न जानते, लद्दाख कहाँ ग़लवान कहाँ है
वे आज चिल्ला कर कहते, देखो कब्ज़ा वहाँ हुआ है।
सेना पर सवाल का प्रचलन, व्यवहार में नया निम्न हुआ,
जयचंदों की राजनीति में, अब कुछ और न बचा हुआ।
शर्म करों नादानों तुमको शौर्य का कुछ मोल नहीं,
दुर्ग के दरवाजों को क्यों, खोलने से फुर्सत नहीं ।
क्या लिखूं ऐसे लोगों पर, जिनके लिए कोई शब्द नहीं
बार-बार लौट आता हूँ ,क्या बलवानों का मोल नहीं ।
मेरे इन सवालों का, न कोई जायज़ उत्तर है,
आँख में आँसू हृदय में पत्थर, प्रलाप ही प्रलाप हैं।
द्रवित मन की उत्कंठा पर, एक ही मेरा जवाब हैं
इस देश में बलवानों का कहीं नहीं सम्मान हैं ।।
- गौरव राजमोहन नारायण सिंह (हृतिक सिंह)
Very nice brother
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद।
Deleteउत्तम 👍
ReplyDeleteआपका बहुत आभार सौरव जी।🌻♥️
Deleteबहुत बेहतरीन...
ReplyDeleteशुक्रिया दर्शन जी।
Deleteशानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद💪👍
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार सोमेश्वर जी।🌻♥️🇮🇳
Deleteअतिसुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका का।🌻
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका 🇮🇳
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है।
नमन।
दिल से आभार रजत जी।
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