Saturday, June 27, 2020

उम्मीद की धुंधली किरण : अरुण जेटली

अरुण जेटली का यह लेख दैनिक जागरण में 13 फरवरी 2013 में छपा था तब वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे।अरुण जेटली (28 दिसंबर 1952- 24 अगस्त 2019) भारत के प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं राजनेता थे। वे भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री थे। 

हम निराशा और उम्मीद के युग में रह रहे हैं। जब हम अपने चारों और हताश करने वाला माहौल देखते हैं तो निराश होना स्वाभाविक है। हालांकि निराशा हताशा से उबरने में भारत में जबरदस्त हिम्मत भी दिखाई है और यहीं से आशा की किरण भी नजर आती है भारत में 60% आबादी आजिवका के लिए कृषि पर निर्भर है जबकि देश की जीडीपी में कृषि का योगदान में 16% ही है, जीडीपी में सेवा का क्षेत्र 60 फीसद है। सेवा के क्षेत्र में यह उछाल इसलिए देखने को मिला है क्योंकि यह ना तो सरकारी नीति पर निर्भर है और ना ही ढांचागत सुविधाओं पर हमारे सामने बड़ी समस्या कृषि के क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या का हल निकालना है।इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों को कृषि क्षेत्र से विनिर्माण या सेवा क्षेत्र में भेजने की जरूरत है एक संसदीय लोकतंत्र में राजनीति देश के जीवन को प्रभावित करती है नीतियां भारत की दिशा निर्धारित करती हैं इसमें राजनीति की शक्ति प्रत्यक्ष ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है अगर कुशासन के बावजूद भारत की जीडीपी एक समय 9% तक पहुंच सकती है तो सुशासन के शानदार नतीजों का सहज अनुमान ही लगाया जा सकता है गत दो दशकों से राजनीतिक दल निरंतर नीचे ही जा रहे हैं बड़ी संख्या में पार्टी परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई हैं कुछ दलों का तो जाति विशेष की जनाधार है इन दलों में दलीय लोकतंत्र का नितांत अभाव है वंश परंपरा के आधार पर उत्तराधिकारी तय किए जाते हैं। इसे राजनीति गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आ गई है पहचान की राजनीति का बोलबाला है इसके बावजूद उम्मीद के कारण मौजूद हैं। भारत का मध्य वर्ग विस्तारित हो रहा है अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से लोगों में बेचैनी है अकेला जनमत ही राजनीति की दिशा बदल सकता है।भारत के लोकतंत्र की असल शक्ति तब देखने को मिलेगी जब उपनाम और जातियों को योग्यता और ईमानदारी बेदखल कर देगी। सुशासन के लिए मजबूत नेतृत्व की जरूरत होती है मजबूत नेतृत्व ही सही फैसले ले सकता है अगर हम विश्व शक्ति बनना चाहते हैं तो अगले दशक तक कम से कम 2 फीसद तक की विकास दर हासिल करनी होगी निरंतर 9% की विकास दर से निवेश बढ़ेगा और रोजगार पैदा होंगे इसे सरकार की आय में वृद्धि होगी जाहिर है कि इस शक्ति राशि को विकास और सामाजिक कल्याण में लगाया जा सकेगा। इस प्रकार गरीबी उन्मूलन की रचनाओं को सिरहाने में कामयाबी हासिल होगी। दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों से शासन नीतिगत पक्षाघात का शिकार कर रहा है इस धरने में बदलाव लाना जरूरी है। 9% विकास दर हासिल करने के लिए हमें ढांचागत सुविधाओं पर जोर देना होगा संचार राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे क्षेत्रों में सफलता की दानापुर भ्रष्टाचार का ग्रहण लग गया है। विनिर्माण क्षेत्र में भी तेजी से लागू किए जाने चाहिए।हम ऐसे युग में रहते हैं जहां उपभोक्ताओं का सस्ती से सस्ती चीजें खरीदने पर जोर रहता है। सस्ती वस्तुओं का निर्माण सफलता की कुंजी है। ब्याज दरों में संतुलन ढांचागत सुविधाओं में सुधार ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों का प्रभावी क्रियान्वयन और उचित मूल्यों पर जनोपयोगी सेवा की उपलब्धता आज के समय की जरूरत है। भारत पर्यटन संभाव्यता के दोहन में भी विफल रहा है।पर्यटन से जुड़े उद्योगों पर करो कि निम्न धरे हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों की दशा में सुधार और सस्ते होटलों की उपलब्धता से इस क्षेत्र को संजीवनी मिलेगी। कुछ कराधान एक अल्पकालिक नीति है जिससे कभी दीर्घकालिक लाभ नहीं उठाया जा सकता।करो किधर है कम से कम रखी जानी चाहिए हाल के कुछ वर्षों में शिक्षा तंत्र सूचना प्रौद्योगिकी टेलीकॉम फार्म ऑटो राजमार्ग आवास आदि क्षेत्रों में हमने बेहतर प्रदर्शन किया है इस संबंध में जो नीतियां बने हुए क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देने वाली हो ना कि अवरुद्ध करने वाली।
भ्रष्टाचार विकास को निकल रहा है। इससे निवेशक हताश होते हैं तो लागत बढ़ती है और काम की गुणवत्ता में गिरावट आती है। 1991 में बनी अवधारणा ध्वस्त हो चुकी है कि लाइसेंस राज के खाते में के साथ ही भ्रष्टाचार भी खत्म हो जाएगा। जमीनी सौदों और प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन में भारी भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं। प्रभावी लोकपाल की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही है इसी के साथ भ्रष्टाचार संबंधी कानूनी प्रावधानों को और कड़ा किया जाना चाहिए सीबीआई की स्वायत्तता भी बहस का बड़ा मुद्दा बनी हुई है। हमें ऐसे कानून बनाने होंगे कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी स्वतंत्र और निष्पक्ष रुप से काम करें सके। जाति और धर्म के आधार पर सामाजिक तनाव मिटाने की जरूरत है। इसके लिए दोनों समुदायों के बीच सतत वार्ता की जरूरत है।राजनीतिक और धार्मिक नेताओं को बेहद संजीदगी और गंभीरता के इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करनी चाहिए और पांच और पंथिक व जातीय मुद्दों के राजनीतिकरण से हर सूरत में दूर रहना चाहिए। महिलाओं, दलितों और आदिवासियों के हितों की सुरक्षा पर भी खास जोर रहना चाहिए। इसके अलावा भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का ढर्रा चल पड़ा है।किसी भाषण या फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन के आधार पर उसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
भारत बाहरी और अंदरूनी खतरों से जूझ रहा है। देश के विभाजन के बाद से ही कश्मीर पाकिस्तान का अधूरा एजेंडा बना हुआ है। परंपरागत युद्धों में मात खाने के बाद इसलिए तीन दशकों से वह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में जुटा है। पाकिस्तान को अहसास होना चाहिए कि भौगोलिक सीमाओं का पुननिर्धारण अब बीते कल की बात हो चुका है। पाकिस्तान संसद और मुंबई पर आतंकी हमले और हाल ही में भारतीय सैनिकों के सिर काटने जैसी जगह ने हरकतों का जिम्मेदार है। पाकिस्तान को समझना होगा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है हमने कश्मीर के संदर्भ में कुछ ऐतिहासिक भोले की हैं। अब जरूरत इस बात की है कि हम आतंक और विद्रोह के खिलाफ जांच के लिए खुद को मजबूत रखें और कश्मीरी लोगों को अपनी तरफ रखें हमारी नीति जनता के समर्थन और अलगाववादियों के विरोध की होनी चाहिए। इसके अलावा माओवाद देश के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। करीब 200 जिले इसकी चपेट में आ चुके हैं। आदिवासी इलाकों में इन्हें अपेक्षाकृत अधिक समर्थन हासिल है। इनसे निपटने के लिए विकास और प्रकार के नीति अपनाई जानी चाहिए यह हमारे समय की कुछ बड़ी चुनौतियां हैं। मुझे जरा भी संदेह नहीं है कि अगर हम इस योजना पर काम करें और संसाधनों का भरपूर दोहन करें तो निराशा को आशा में बदलने में अधिक समय नहीं लगेगा।

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