Friday, June 26, 2020

एक हिन्दू की आवाज़

लेखक का नाम गौरव राजमोहन नारायण सिंह (हृतिक सिंह) 
छात्र ,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।

एक हिन्दू की आवाज़

सात दशक से दबते-दबते, देखों चला आया हूँ मैं....
समय-समय परिभाषित होता, देखों चला आया हूँ मैं।।

धर्म-जाति-संप्रदाय पर देखों, आज भी बटता आया हूँ...
हिंदुत्व कि अग्निपरीक्षा, देता-चला मैं आया हूँ।।

धर्मनिरपेक्षता कि सूली पर, देखों चढ़ता आया हूँ...
राजनीति के इस शतरंज का, मोहरा बनता आया हूँ।।

पर! देख सोच यह दुःख होता है, जिनके लिए संघर्ष किया...
उनकी-ही नज़रो में मेरा, आज मोल अब शुन्य हुआ।।

अरे! तुम भूले पर मैं ना भुला एक-एक बलिदान को...
उन वीरों की वीर कथा को, आज ज़रा तुम याद करो।।

परिवर्तन के महा-यज्ञ में, जिसने अपना सर्वस्व दिया...
उस, माह-तपस्वी, तेज-प्रतापी, हिन्दू को तुम याद करो।।

ये ना थे हिन्दू, ना थे मुस्लिम, वे थे एक धर्म-रक्षक...
इन दिव्य आत्माओं को-ही-तो, हिन्दू कि संज्ञा देते हैं।।

धर्म-जाति पर भिड़नेवाले, ये ज़रा-सा भूल जाते हैं...
कि, उनकी पृष्ठभूमि भी तो एक, हिंदुस्तानी सपूत की हैं।।

अरे! हिन्दू तो वह भवसागर है, जिसमें सब समाहित हैं...
इसमें हैं हिन्दू और हैं मुस्लिम, सिख-ईसाई भी तो है।।

अरे ! इसके अर्थ-को समझ लिया तो, समझ लिया ये हिन्द सारा...
अब इसकी रक्षा तुम्हरे जिम्मे, जिम्मे है ये हिन्द सारा।।

अरे! पाठक-श्रोता दोनों से ही,मेरा एक निवेदन है...
इसे प्रचारित और प्रसारित , करने की जिम्मेवारी हैं।।

जन-जन में भावना जगेगी, जगेगा एक संकल्प नया...
एक नई ऊर्जा, नई उमंग से, करे सृजन नए भारत का...करे सृजन नए भारत का...।।

( मधुशाला की गायन शैली से प्रेरित )

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