Saturday, March 20, 2021

युद्ध अभी जारी है...


फाँसी पर लटकाये जाने से 3 दिन पूर्व - 20 मार्च, 1931 को - भगतसिंह. सुखदेव और राजगुरु ने पंजाब के गवर्नर को यह पत्र भेजकर माँग की थी कि उन्हें युद्धबन्दी माना जाये तथा फाँसी पर लटकाये जाने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये।

हमें फाँसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये।

20 मार्च, 1931 प्रति, गवर्नर पंजाब, शिमला

महोदय,

उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में रख रहे हैं भारत की ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वायसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यन्त्र अभियोग की सुनवायी के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित किया था, जिसने 7 अक्टूबर, 1930 को हमें फाँसी का दण्ड सुनाया। हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि हमने सम्राट जॉर्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है। न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं- पहली यह कि अंग्रेज़ जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरे यह कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है, अतः हम युद्धबन्दी हैं।

यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया है, तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया है। पहली बात के सम्बन्ध में हम तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं। हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रूप में ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई है। हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या है? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक सन्दर्भ में समझाना चाहते हैं।

                    युद्ध की स्थिति

हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति और अंग्रेज़ या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता । यदि आपकी सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के मुखियों पर प्रभाव जमाने में सफल हो जायें, कुछ सुविधाएँ मिल जायें, अथवा समझौते हो जायें, इससे भी स्थिति नहीं बदल सकती, तथा जनता पर इसका प्रभाव बहुत कम पड़ता है। हमें इस बात की भी चिन्ता नहीं कि युवकों को एक बार फिर धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नहीं है कि हमारे राजनीतिक नेता पथ-भ्रष्ट हो गये हैं और वे समझौते की बातचीत में इन निरपराध, बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गये हैं, जिन्हें दुर्भाग्य से क्रान्तिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता है। हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु समझते हैं, क्योंकि उनके विचार में वे हिंसा में विश्वास रखते हैं। हमारी वीरांगनाओं ने अपना सबकुछ बलिदान कर दिया है। उन्होंने अपने पतियों को बलिवेदी पर भेंट किया, भाई भेंट किये, और जो कुछ भी उनके पास था सब न्योछावर कर दिया। उन्होंने अपनेआप को भी न्योछावर कर दिया। परन्तु आपकी सरकार उन्हें विद्रोही समझती है। आपके एजेण्ट भले ही झूठी कहानियाँ बनाकर उन्हें बदनाम कर दें और पार्टी की प्रसिद्धि को हानि पहुँचाने का प्रयास करें, परन्तु यह युद्ध चलता रहेगा।


                   युद्ध के विभिन्न स्वरूप

हो सकता है कि यह लड़ाई भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे। किसी समय यह लड़ाई प्रकट रूप ले ले, कभी गुप्त दशा में चलती रहे, कभी भयानक रूप धारण कर ले, कभी किसान के स्तर पर युद्ध जारी रहे और कभी यह घटना इतनी भयानक हो जाये कि जीवन और मृत्यु की बाज़ी लग जाये चाहे कोई भी परिस्थिति हो, इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा। यह आपकी इच्छा है कि आप जिस परिस्थिति को चाहें चुन लें, परन्तु यह लड़ाई जारी रहेगी। इसमें छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं दिया जायेगा। बहुत सम्भव है कि यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले। पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढाँचा समाप्त नहीं हो जाता, प्रत्येक में परिवर्तन वस्तु या क्रान्ति समाप्त नहीं हो जाती और मानवी सृष्टि में एक नवीन युग का सूत्रपात नहीं हो जाता।


                       अन्तिम युद्ध

निकट भविष्य में अन्तिम युद्ध लड़ा जायेगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है और हम अपने पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा। हमारी सेवाएँ इतिहास के उस अध्याय में लिखी जायेंगी जिसको यतीन्द्रनाथ दास और भगवतीचरण के बलिदानों ने विशेष रूप में प्रकाशमान कर दिया है । इनके बलिदान महान हैं। जहाँ तक हमारे भाग्य का सम्बन्ध है, हम जोरदार शब्दों में आपसे यह कहना चाहते हैं कि आपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है । आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त है। परन्तु इस प्रकार आप जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धान्त ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध हैं। हमारे अभियोग की सुनवाई इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते। हम आपसे केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है इस स्थिति में हम युद्धबन्दी हैं, अंत: इस आधार पर हम आपसे माँग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबन्दियों जैसा ही व्यवहार किया जाये और हमें फाँसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाये।

अब यह सिद्ध करना आपका काम है कि आपको उस निर्णय में विश्वास है जो आपकी सरकार के एक न्यायालय ने किया है । आप अपने कार्य द्वारा इस बात का प्रमाण दीजिये। हम विनयपूर्वक आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अपने सेना-विभाग को आदेश दे दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए एक सैनिक टोली भेज दी जाये।

भवदीय,

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव


Friday, March 19, 2021

संकल्प सिद्धि से बदल गया यूपी

आत्मनिर्भरता के पथ पर तेजी से आगे बढ़ता हुआ यह वही उत्तर प्रदेश आ है जिसके बारे में लोगों ने धारणा बना रखी थी कि इसका कुछ नहीं हो सकता है। उन्नति की अनत सभावनाओं वाले भारत के सबसे बड़े राज्य की 24 करोड़ जनाकाक्षाओं को साकार करने का हमारा व्रत आज चार वर्ष पूर्ण कर रहा है। लक्ष्य अत्योदय, प्रण अंत्योदय, पथ अंत्योदय के सकल्प को आत्मसात करते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा करते चार वर्ष कैसे बीते इसका क्षण भर भी भान न हो सका, और अब यह विश्वास और दृढ़ हो चला है कि साफ नीयत और नेक इरादे से किए गए सद्प्रयास सुफलित अवश्य होते हैं। इस प्रयास से लोगों की धारणा बदलने में मदद मिल रही है।

कोविड-19 की विभीषिका से संघर्ष का एक वर्ष बीत चुका है। मुझे याद आता है जनता कप का वह दिन जब कोरोना के गहराते सकट के बीच महामहिम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति महोदय ने फोन पर बातचीत कर मुझसे प्रदेश की तैयारी के सबंध में जानकारी ली थी। उन्हें चिता थी कि कमजोर हेल्थ इफ्रास्ट्रक्चर, सघन जनघनत्व व भू-क्षेत्रीय विविधता और बड़े क्षेत्रीय विस्तार वाला उत्तर प्रदेश इस महामारी का सामना कैसे करेगा? मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि उत्तर प्रदेश इस आपदा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा और अतत हुआ भी यही हमने आदरणीय प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी जी के टैस्टिंग और ट्रेसिंग के मत्र को आत्मसात किया और इसे व्यावहारिक धरातल पर उतारने की चुनौती को स्वीकार किया, इसका नतीजा यह है कि सरकार ने लोगों के जीवन और जीविका दोनों को सरक्षित करने में सफलता प्राप्त की। निवासी हों या प्रवासी सबका ध्यान रखा गया। दूसरे प्रदेशों में रह रहे उत्तर प्रदेश के लोगों की कोई समस्या हो, बाहर से आए श्रमिकों व कामगारों की चुनौतिया अथवा प्रदेश में निवासरत लोगों की जरूरतें, सब पर सीधी नजर रखी गई। मुझे आज यह कहते हुए आत्मिक संतोष की अनुभूति हो रही है कि समाज के हर तबके ने एकजुट होकर इस महामारी से लड़ाई लड़ी। उत्तर प्रदेश के कोविड प्रबधन की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई।निसंदेह इस आपदाकाल में राष्ट्रीय पटल पर एक नया उत्तर प्रदेश उभर कर आया है। प्रधानमंत्री जी देश को पाच ट्रिलियन यूएस डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का महान लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। उन्होंने हमें आत्मनिर्भरता का मंत्र दिया है।

उत्तर प्रदेश इस लक्ष्य का संधान कर उनके स्वप्न को साकार करने में अग्रणी भूमिका निभाने को अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। बुदेलखड में महिलाओं के सतत प्रयासों से निर्मित बलनी मिल्क प्रोड्यूसर्स समूह ने दुग्ध उत्पादन में जिस प्रकार से 46 करोड़ वार्षिक का टर्नओवर कर दो करोड़ रुपए का लाभ प्राप्त किया है, वह वास्तव में प्रेरणास्पद है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं और महिलाओं द्वारा किए जा रहे ऐसे अनेक नवाचारी प्रयास 'आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश' के स्वप्न को साकार करने की आधारशिला बन रहे हैं। कहा भी जाता है  "उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः"।

आत्मनिर्भरता के पथ पर तेजी से आगे बढ़ता हुआ यह वही उत्तर प्रदेश है जहा मात्र चार वर्ष में 40 लाख परिवारों को आवास मिला, एक करोड़ 38 लाख परिवारों को बिजली कनेक्शन मिला, हर गांव की कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया गया तथा गांव-गांव तक ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। हम विश्वस्तरीय कनेक्टिविटी स्थापित कर विकास को रफ्तार देकर आत्मनिर्भर प्रदेश बनाने की दिशा में अग्रसर है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस, पारदर्शी एवं स्पष्ट कार्य संस्कृति, सुदृढ़ कानून-व्यवस्था से व्यवसाय व विकास के लिए अनुकूल माहौल तैयार हुआ है। इस बदलते वातावरण का परिणाम है कि आज निवेशकों की पहली पसंद उत्तर प्रदेश है। चार साल के भीतर ' ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की राष्ट्रीय रैंकिंग में 12 पायदान ऊपर उठकर नम्बर दो पर आना कोई सरल कार्य नहीं था, पर हमने यह कर दिखाया। यह वही प्रदेश है जहां वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 47,116 रुपए थी, जबकि आज यह 94,495 रुपए है। जीएसडीपी के आधार पर यह देश की दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है।

चार वर्ष पूर्व अन्नदाता किसान के ऋण माफी से वर्तमान सरकार की लोक कल्याण की यात्रा प्रारंभ हुई थी। राज्य सरकार ने अपनी पहली ही कैबिनेट में लघु व सीमान्त किसानों के लिए ऋणमाफी का निर्णय लिया। आज प्रदेश में किसान उन्नत तकनीक से जुड़ कर कृषि विविधीकरण की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उनकी लागत को कम करने और आय को दोगुनी करने की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। प्रदेश सरकार ने दशकों से लबित पड़ी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का कार्य किया है। किसान के प्रति यह हमारी प्राथमिकता और प्रतिबद्धता ही है कि प्रदेश में अब तक 1 27 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड गन्ना मूल्य भुगतान किसानों को किया जा चुका है। किसानों की उम्मीद और खुशहाली हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है और हम इस पर पूरी तरह खरे उतरने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं।

"आस्था और अर्थव्यवस्था दोनों के प्रति हमारा समदर्शी भाव है। हमारी नीतियों में दोनों भाव समानातर गति करते हैं। बीते चार वर्षों में उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जो ज्योति प्रज्वलित हुई है, उसने हर सनातन आस्थावान व्यक्ति के हृदय को आलोकित किया है । 'गंगा यात्रा के माध्यम से आस्था और आर्थिकी दोनों के उद्देश्य पूरे हुए। श्रीराम जन्मभूमि पर सकल आस्था के केंद्र प्रभु श्रीराम के भव्य-दिव्य मंदिर के निर्माण के शिलान्यास की सदियों पुरानी बहुप्रतीक्षित साधना वर्ष 2020 में पूरी हुई। वर्तमान राज्य सरकार अयोध्या को वैदिक और अधुनातन सस्कृति के समन्वित नगर की प्रतिष्ठा से विभूषित करने के लिए नियोजित प्रयास कर रही है। प्रभु श्रीराम के आशीष से हमारा यह प्रयास भी अवश्य सफल होगा।

प्रधानमंत्री जी ने हमें 'सबका साथ-सबका विकास सबका विश्वास का पाथेय प्रदान किया है। आज जबकि वर्तमान प्रदेश सरकार चार वर्ष पूरे कर रही है तो मुझे व्यक्तिगत प्रसन्नता है कि हम इसी पाथेय के अनुरूप अपनी नीतियों को क्रियान्वित करने में सफल रहे हैं। हमारे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इस बात को मानते हैं कि बीते चार सालों में एक भी ऐसी योजना नही शुरू हुई जो किसी जाति, धर्म, पथ, मजहब के आधार पर विभेद करती हो। कुछ समय पूर्व जब हम उत्तर प्रदेश को संभावनाओं वाला प्रदेश कहते थे तो कुछ लोग कहते थे यहा कुछ नहीं हो सकता, लेकिन लोक कल्याण के सकल्प की शक्ति के बूते आज उतर प्रदेश के सपने साकार हो रहे हैं। पिछले चार साल में नए भारत के नए उत्तर प्रदेश का सृजन हुआ है। चार साल पहले जिस प्रदेश को देश और दुनिया में बीमारू कहा जाता था, जहां युवा पलायन को मजबूर था, आज उसकी प्रगति और उसकी नीतिया अन्य राज्यों के लिए उदहारण बन रही हैं। राज्य वही है, संसाधन वही हैं, काम करने वाले वही हैं, बदली है तो बस कार्यसंस्कृति। यही प्रतिबद्धतापूर्ण, समर्पित भावना वाली पारदर्शी कार्यसस्कृति इस नए उतर प्रदेश की पहचान है।

चुनौतिया कितनी बड़ी क्यों न हों, मार्ग कितना भी दुष्कर क्यों न हो, लोक कल्याण के सकल्प पथ पर सिद्धि की ओर यह यात्रा इसी प्रकार गतिमान रहेगी।
सागर की अपनी क्षमता है
पर मांझी भी कब थकता है
जब तक सांसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है

मां भारती हमारा पथ प्रशस्त करे...

 -योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश

(यह लेख आज राष्ट्रीय सहारा अखबार में  प्रकाशित हुआ था)

Monday, March 8, 2021

शिक्षित महिलाओं में नया भारत रचने का माद्दा


लेखक- डॉ रमेश पोखरियाल "निशंक" 



सौभाग्य से विश्व के वृहदतम शिक्षा तंत्रों में से एक परिवारिक सदस्य होने के नाते संपूर्ण देश के शिक्षण संस्थाओं के दीक्षांत समारोहों में जाने का अवसर मिलता है। एक रुझान स्पष्ट रूप से सामने आता है कि हर क्षेत्र में हमारी बेटियां सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं। डिग्रियों की बात हो या फिर स्वर्ण पदक विजेताओं का विषय हो, औसतन साठ प्रतिशत से अधिक हमारी बेटियों का होता है। कहीं- कहीं यह प्रतिशत 70- 75 से अधिक हो जाता है। मैं इसे एक अत्यंत शुभ संकेत के रूप में देखता हूं। वस्तुतः विश्व के विकसित उन्नत राष्ट्रों ने अपना गौरवमयी स्थान अपने देश की महिलाओं को समुचित आदर प्रदान करके ही हासिल किया है। राष्ट्र निर्माण और विकास में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने नारी को पुरुष के समकक्ष बताते हुए कहा था कि 'जिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता, वह देश कभी भी उन्नति नहीं कर सकता'। मेरा सदैव से यह मानना रहा है कि पुरुष का सम्पूर्ण जीवन नारी पर आधारित रहता है। कोई भी पुरुष अगर सफल है, तो उसकी सफलता की निर्माणकत्री नारी है। जीवन के कल्याण - कल्याण, सुख - दुख, उत्थान-पतन, सफलता-असफलता, लाभ-हानि, उत्कर्ष-अपकर्ष की समूची कहानी महिलाओं से होकर गुजरती है। वैसे देखा जाए तो बच्चा जब इस संसार में आता है,तो किशोरावस्था तक प्रथम गुरु के रूप में मां से उसका सबसे अधिक संसर्ग होता है। माताओं के संस्कार श्रेष्ठ न हुए तो बच्चों का स्वभाव भी मलिन बनन लगता हैं। यही कारण है कि स्त्री शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। समाज को संस्कारवान बनाने के लिए महिला शिक्षा उपयोगी नहीं, अनिवार्य है।

विकृतियां संस्कार की कमी से
एक सभ्य, विकसित श्रेष्ठ समाज का निर्माण उस देश के शिक्षित नागरिकों द्वारा होता है, और नारी इस कड़ी का न केवल एक महत्वपूर्ण आधार है, बल्कि अनिवार्य शर्त भी है। जिस तरह एक-एक कोशिका जीवन का निर्माण करती है, वैसे ही प्रत्येक परिवार की छोटी- छोटी इकाइयां मिलकर एक समाज का गठन करती हैं। सभी इकाइयों की ऊर्जा स्रोत और सम्पूर्ण परिवार की केंद्र बिंदु नारी होती है। यदि एक नारी शिक्षित होती है, तो दो परिवार शिक्षित होते हैं, और जब परिवार शिक्षित होता है, तो पूरा राष्ट्र शिक्षित होता है। यही कारण था कि महान विचारक रूसो ने कहा है कि "आप मुझे सौ आदर्श माताएं दें तो मैं आपको एक आदर्श राष्ट्र दूंगा"। अजर-अमर भारतीय संस्कृति हमें सिखाती है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता- अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। मां अर्थात माता के रूप में नारी धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में हैै। माता यानी जननी। मांं को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। चाहेे भगवान राम रहे हो यह गणेश/कार्तिकेय हो , कृष्ण हों, गुरुनानक हो, सदैव मां के रूप में कौशल्या, पार्वती, यशोदा और त्रिपता देवी की आवश्यकता पड़ती है। आज जब समाज में विभिन्न प्रकार की चुनौतियां यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सम्मुख हैं, तो ऐसे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है कि कैसे संस्कार देने में कमी रह गई है, जिस कारण समाज में विकृतियां आ रही है। वैदिक काल की बात करें तो घोषा, लोपमुद्रा,सुलभा, मैत्रेयी,गार्गी जैसी विदुषियो ने बौद्धिक और आध्यात्मिक पराकाष्ठा के नये आयाम स्थापित किए । नई शिक्षा नीति में हमारा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि हमारी बालिकाएं  कहीं भी पीछे नहीं रहे। भारत जब-जब पिछड़ा है, जब-जब अवनति हुई है, तब-तब हमने अपनी महिलाओं पर, उनकी शिक्षा पर, उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया।बच्चे सबसे अधिक माताओं के संपर्क रहा करते हैं। माताओं के संस्कारों, व्यवहारों व शिक्षा का प्रभाव बच्चों के मन-मस्तिष्क में उन समस्त संस्कारों के बीज बो सकती है, जो आगे चलकर अपने समाज,देश और राष्ट्र के उत्थान के लिए आवश्यक हैं।

सशक्त भागीदारी के लिए शिक्षा
नारी का कर्तव्य बच्चों का पालन-पोषण करने के अतिरिक्त अपने घर-परिवार की व्यस्था और संचालन करना भी होता है। एक शिक्षित और विकसित मन-मस्तिष्क वाली नारी अपनी परिस्थिति, घर के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता आदि का ध्यान रखकर उचित व्यवस्था व संचालन कर सकती हैं। जीवन रूपी गाड़ी चलाने के लिए महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सशक्त भागीदारी के महिला शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। समाज, राष्ट्र,विश्व की प्रगति नारी शिक्षा के बल पर ही चरम सीमा तक पहुंच सकी है। यदि नारी जाति अशिक्षित हो तो वह अपने जीवन को विश्व की गति के अनुकूल बनाने में सदा असमर्थ रहेगी। यदि वह शिक्षित हो जाए तो न केवल उसका पारिवारिक जीवन स्वर्गमय होगा,बल्कि देश,समाज और राष्ट्र की प्रगति के युग का सूत्रपात हो सकेगा। भारतीय समाज में शिक्षित माता गुरु से भी बढ़कर मानी जाती है क्योंकि वह अपने पुत्र को महान से महान बना सकती है।

भारत में नारी और पुरष के बीच जब भी फर्क आया तब-तब उस व्याप्त अंतर की बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ी।वास्तव में गंभीरता के साथ देखा जाए तो यही ज्ञात होता है कि भारत की समस्याओं का एक प्रमुख वजह नारियों की अशिक्षा रही हैं। इसका फल यह हुआ कि जो राष्ट्र विश्व गुरु था, वहीं आज अपना पुराना वैभव, गौरव पाने हेतु संघर्षरत हैं। भारत सरकार हमारी बेटियों के कल्याण के लिए कृत-संकल्पित है।महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलाई गई हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, महिला हेल्पलाइन योजना, उज्जवला योजना,सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन, स्टेप महिला शक्ति केंद्र, पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व देकर सरकार ने महिला सशक्तिकरण एवं विकास की नई इबारत लिखने की कोशिश की है। महिला शिक्षा हमारे राष्ट्र की सफलता और विकास की सीढ़ी है। महिला शिक्षा प्रत्येक परिवार, समाज, राष्ट्र के सामाजिक- आर्थिक विकास के लिए ना केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि परम आवश्यक भी है। महिला शिक्षा ऐसा सक्षम शस्त्र है, जो दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है। नवभारत के निर्माण का नया अध्याय लिखने के लिए आवश्यक है कि हमारी प्रत्येक बेटी पढ़े और इस कुशलता से पढ़ें कि वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके। बेटियों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सफल बनाने की मुहिम में सरकार पूरी तत्परता से उनके साथ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नव भारत के सामाजिक - आर्थिक विकास में महिला शिक्षा एक सक्षम उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती है।

(लेखक केंद्रीय शिक्षा मंत्री है, इनका यह लेख पिछले साल मार्च में राष्ट्रीय सहारा अखबार में छपा था)