Monday, May 26, 2025

आपरेशन सिंदूर: नीति, नीयत और निर्णायक क्षमता की त्रिवेणी

Today from the soil of Bihar, I say to the whole world, India will identify, track, and punish every terrorist and their backers. We will pursue them to the ends of the earth. The spirit of India will never be broken by terrorism. Terrorism will not go unpunished. Every effort will be made to ensure that justice is served. The entire nation stands firm in this resolve. Everyone who believes in humanity is with us. I thank the people of various countries and the leaders who have stood with us in these times.

उपरोक्त शब्द आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हैं जो उन्होंने बिहार के मधुबनी में अपने भाषण के दौरान कहा था। साफ संदेश था कि भारत उन आतंकियों को खोजेगा, सजा देगा, उन्हें समर्थन देने वालों को भी नहीं बख्शेगा। हुआ भी ऐसा ही की पूरा विश्व सन्न रह गया । 
इस इस्लामिक आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी था और भारत सरकार और सेना इसके लिए  प्रतिबद्ध है। इन इस्लामिक आतंकवादियों ने  मोदी को चुनौती दी थी कि पहलगाम में हमले में की "जाओ जाकर मोदी को बता देना"  इसका  बदला तो एयरफोर्स के "ऑपरेशन सिंदूर" से ही  बनता था।
मोदी ने आतंकियों को कल्पना से बड़ी सजा देने का वादा पूरा किया। छह-सात मई की आधी रात 1:5 से लेकर 1:30 बजे के बीच शुरू किए गए 'आपरेशन सिंदूर' ने अपने सौ फीसद लक्ष्यों को हासिल किया है।
भारत ने इन ठिकानों को लक्ष्य बनाया (तस्वीर ऊपर)
1. मरकज सुभान अल्लाह बहावलपुर, पाकिस्तान, 2. मरकज तैयबा, मुरीदके 3. सरजाल सियालकोट 4. मेहमोना जोया सियालकोट 5.बरनाला भिम्बर (पीओके) 6. अब्बास कोटली (पीओके) 7. गुलपुर कोटली (पीओके) 8. सवाई नाला मुजफ्फराबाद 9- सईदना बिल्ल मुजफ्फराबाद (पीओके)

हमला इतना जोरदार था कि सबूत गैंग की हिम्मत नहीं हुई सबूत मांगने की क्योंकि पाकिस्तानी इस बार खुद वीडियो बनाकर फोटो खींचकर सबूत दिए हैं।  हमला इतना ताबड़तोड़ और सटीक हुआ कि सभी आतंकी ठिकाने ध्वस्त हुए हैं। सैकड़ों आतंकी बहत्तर हूरों के पास पहुंचा दिए गए हैं।
जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने कबूल किया कि बहावलपुर में उसके संगठन के मुख्यालय पर भारतीय मिसाइल हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए हैं।

अजहर के हवाले से जारी एक बयान में कहा गया कि बहावलपुर में जामिया मस्जिद सुब्हानअल्लाह पर हमले में मारे गए लोगों में जैश सरगना की बड़ी बहन और उसका पति, एक भांजा और उसकी पत्नी, एक भांजी और परिवार के पांच अन्य बच्चे शामिल हैं। बयान में कहा गया कि हमले में अजहर के एक करीबी सहयोगी और उसकी मां तथा दो अन्य करीबी साथियों की भी जान चली गई। इसमें कहा गया कि क्रूरता के इस कृत्य ने सारी हदों को पार कर लिया है। अब दया की कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। अजहर को 1999 में विमान आइसी-814 के अपहृत यात्रियों की रिहाई के ऐवज में जेल से छोड़ा गया था। उसके बाद से बहावलपुर जैश का अड्डा बना हुआ था। संयुक्त राष्ट्र ने मई 2019 में अजहर को 'वैश्विक आतंकवादी' घोषित किया था। तब चीन ने जैश प्रमुख को आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर अपनी रोक को हटा लिया था। उस समय नई दिल्ली ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र से इस बाबत संपर्क किया था लोगों की जाने लेने वाला ये मजहबी कट्टरपंथी रो रहा था कि इस हमले में इसकी भी जान क्यों नहीं चली गई।
बात साफ है इस बार के हमले में प्यादे ही नहीं बल्कि बड़े बड़े कमांडर्स भी मारे गए हैं। इस्लामिक आतंकवाद की कमर तोड़नी है अगर तो ऐसे ही हमले होते रहने चाहिए। अधिकारियों के मुताबिक भारत ने पाकिस्तानी हवाई सीमा पार किए पीओजेके में इन नौ महत्त्वपूर्ण स्थलों पर बड़ी संख्या में आतंकवादी मौजूद थे। इन हमलों के दौरान बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय को निशाना बनाया गया।
स्रोत: अमर उजाला 
पाकिस्तानी सेना  और वहां की सरकार का चरित्र उजागर हुआ जो कहते थे आतंकवाद और आतंकियों से उनका कोई लेना देना नहीं है और उनके जनाजे में फातिहा पढ़ने निकल गए थे खुलेआम दुनिया के सामने है सब कुछ। बौखलाहट में पाकिस्तानी सेना लगातार दसियो दिनों तक सीजफायर का उल्लंघन करने में लगी हुई थी जब ये 9 ठिकानों पर हवाई हमला हुआ तो ये बौखला गए और इन्होंने आम नागरिकों पर हमला करना शुरू कर दिया ।भारतीय सेना ने इन सबका मुंह तोड़ जवाब भी दिया गया । जवाबी कार्रवाई में इनके लगभग चालीस सैनिक मार गिराए। 
विदेश सचिव विक्रम मिस्री (बीच में), भारतीय सेना अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी (बाएं) और भारतीय वायु सेना अधिकारी विंग कमांडर व्योमिका सिंह (दाएं) बुधवार, 7 मई, 2025 को नई दिल्ली में ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा पाकिस्तानी नियंत्रित क्षेत्र में कई स्थलों पर मिसाइलों से हमला करने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए। 

विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ एक मीडिया ब्रीफिंग में दो महिला अधिकारियों- सेना की सिग्नल कोर की कर्नल सोफिया कुरैशी और भारतीय वायुसेना की हेलिकाप्टर पायलट विंगड कमांडर व्योमिका सिंह ने बताया कि सशस्त्र बलों ने इन स्थानों पर संचालित हो रहे आतंकी शिविरों के बारे में "गुप्त खुफिया जानकारी" के आधार पर पाकिस्तान में 4 और पीओके में 5 स्थानों को चुना। पाकिस्तानी सशस्त्र बल के प्रवक्ता ने बीबीसी को दिए साक्षात्कार में पुष्टि की कि  भारतीय वायुसेना ने बहावलपुर और मुरीदके को निशाना बनाया। ऑपरेशन के दौरान लाहौर से लगभग 30 किलोमीटर दूर मुरीदके मुख्य ठिकाने  पर लगातार चार बार हमला किया गया। मुरीदके 1990 से आतंक का गढ़ है, जहां अजमल कसाब और नौ अन्य आतंकियों को मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले से पहले प्रशिक्षित किया गया था।

इसके अलावा, 26/11 हमले के आरोपी डेविड हेडली और तहव्वुर राणा भी वहां गए थे। अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में 2011 में मारे गए अल कायदा के आतंकवादी ओसामा बिन लादेन ने मुरीदके में एक अतिथिगृह के निर्माण के लिए 10 लाख रुपए का दान दिया था। हाफिज सईद के नेतृत्व में लश्कर-ए-तैयबा ने जम्मू-कश्मीर, बंगलुरु और हैदराबाद समेत देश के कई अन्य हिस्सों में भी आतंकवादी हमले किए है। मुरीदके में स्थित तैयबा के मरकज (केंद्र) को 'आतंक की फैक्ट्री' कहा जाता है, यह लश्कर-ए-तैयबा का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण केंद्र है। यहां भर्ती किए गए लोगों को बरगलाया और प्रशिक्षण दिया जाता है।

इस शिविर में विभिन्न पाठ्यक्रमों के लगभग 1,000 छात्र नामांकित हैं। दूसरा बड़ा लक्ष्य बहावलपुर था, जो 1999 में आइसी-814 के अपहृत यात्रियों के बदले मसूद अजहर की रिहाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद का केंद्र बन गया था। यह समूह भारत में कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है, जिसमें 2001 में संसद पर हमला, 2000 में जम्मू कश्मीर विधानसभा पर हमला, 2016 में पठानकोट में भारतीय वायुसेना के अड्डे पर हमला और 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमला शामिल है। अधिकारियों ने बताया कि वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जा चुके अजहर को अप्रैल 2019 के बाद से सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है। अजहर ने जनवरी 2000 में आतंकवादी संगठन शुरू किया था और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आइएसआइ), अफगानिस्तान में तत्कालीन तालिबान नेताओं, बिन लादेन और पाकिस्तान में सुन्नी सांप्रदायिक संगठनों से उसे सहायता मिली थी। बहावलपुर में मरकज सुब्हानअल्लाह वह जगह है जहां जैश-ए-मोहम्मद अपने लड़ाकों को

प्रशिक्षित करता है और उन्हें अपने विचारों से प्रेरित करता है। अधिकारियों ने बताया कि फरवरी 2019 में पुलवामा में हुए आतंकी हमले की योजना इसी शिविर में बनाई गई थी जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत हुई थी।

अधिकारियों ने कहा कि पाकिस्तान के पंजाब के नारोवाल जिले के सरजाल तेहरा कलां में जैश-ए-मोहम्मद का शिविर आतंकी समूह का केंद्रीय ठिकाना था और इसका संचालन एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से किया जा रहा था, जिसकी देखरेख शिविर का वास्तविक प्रमुख अब्दुल रऊफ असगर करता था। जम्मू के सांबा सेक्टर से सिर्फ छह किलोमीटर दूर स्थित इस जगह का उपयोग स्थानों की पहचान करने, घुसपैठ के लिए सीमा पार सुरंग खोदने और सीमा पार हथियार व नशीले पदार्थ भेजने के ड्रोन के संचालन के लिए किया जाता है। अधिकारियों के अनुसार, पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने के लिए बुधवार को किए गए आपरेशन के तहत निशाना बनाए गए अन्य ठिकानों में कोटली में मरकज अब्बास और पीओजेके के मुजफ्फराबाद में सैयदना बिलाल शिविर (सभी जैश-ए-मोहम्मद के शिविर) शामिल हैं। इसके अलावा, बरनाला में मरकज अहले हदीस और मुजफ्फराबाद में शवावाई नाला शिविर (सभी लश्कर-ए-तैयबा से संबंधित) और कोटली में मरकज राहिल शाहिद और सियालकोट में (प्रतिबंधित हिज्बुल मुजाहिदीन के) महमूना जोया को भी निशान बनाया गया।

पीओजेके के मुजफ्फराबाद में शवाई नाला शिविर एक महत्त्वपूर्ण लश्कर शिविर है, जहां 26/11 के हमलावरों को प्रशिक्षण दिया गया था।

2000 में शुरू हुए इस शिविर में पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ के अधिकारी अक्सर आते रहते हैं, जहां एक समय में 200-250 आतंकवादी रह सकते हैं। इन शिविरों से आतंकवादी मुख्य रूप से दक्षिणी कश्मीर में घुसपैठ करते हैं। पीओजेके के कोटली में स्थित मरकज अब्बास शिविर को इसलिए चुना गया क्योंकि इसका नेतृत्व असगर का करीबी सहयोगी कारी जरार कर रहा हैं और यहां जैश-ए-मोहम्मद के 100-125 आतंकवादी मौजूद हैं। एनआइए ने जरार को वांछित घोषित कर रखा है। अधिकारियों के अनुसार, मुजफ्फराबाद में स्थित मरकज सैयदना बिलाल के नाम से मशहूर जैश-ए-मोहम्मद के एक और शिविर में 50-100 आतंकवादी मौजूद हैं।
भारत को तमाम देशों से आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए समर्थन मिला है।  तुर्की ने खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन किया है। जिसका खामियाजा तो तुर्की को भुगताना ही है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जियान लिन जियान ने कहा था चीन हर तरह के आतंकवाद का विरोध करता है। बाद में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार से बातचीत में कहा था कि बीजिंग “पाकिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता” का समर्थन करता रहेगा" बात ये है कि चीन के भी डिफेंस सिस्टम की पोल खुल गई है एक तरह से जैसे तुर्की साथ ही CPEC को चीन की चिंता सब जानते हैं । खैर हमले के बाद तो चीन ,रूस , कतर और संयुक्त राष्ट्र ने संयम बरतने की बात की थी तो ब्रिटेन और ईरान ने मध्यस्थता की पेशकश की। अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तनाव के जल्द खत्म होने की उम्मीद जताई। उन्होंने यहां तक कह दिया कि दोनों देश 'कई दशकों और सदियों से लड़ रहे हैं। मैं बस यही उम्मीद करता हूं कि यह बहुत जल्दी खत्म हो जाए।'

हवाई हमले के तुरंत बाद तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तैयप अर्देआन ने पाकिस्तान के प्रति समर्थन जताया तो वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे 'अफसोसजनक' कहा। इस बीच इस्राइल ने कहा कि वो भारत के साथ है।

ड्रोन और मिसाइल हमले

सात मई के बाद से ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से सटी नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बढ़ा दी और भारत ने कहा कि इस गोलाबारी में उसके 16 नागरिक मारे गए जबकि कई लोग भायल हो गए। आठ मई की रात सीमाई इलाकों में भारी गोलाबारी के बीच लोगों की रात गुजरी। पाकिस्तान से सटे भारत के सीमावर्ती इलाकों में रात को सायरन गूंजे और व्यापक पैमाने पर ब्लैक आउट रहा।
भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा, 'जम्मू पठानकोट और उधमपुर के मिलिट्री बेस पर पाकिस्तान की ओर से ड्रोन और मिसाइल अटैक किए गए। इन हमलों को नाकाम कर दिया गया।' यहां तक कि इस दौरान धर्मशाला में चल रहे आईपीएल मैच के बीच ही फ्लड लाइट्स को बंद कर दिया गया और मैच रोक दिया गया।
नौ मई को भारत के विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग में कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि आठ मई की रात भारत के सैन्य बुनियादी ढांचे को पाकिस्तान ने 300 से 400 ड्रोन्स के जरिए निशाना बनाया। इस दौरान स्थानीय मीडिया में मिसाइलों से हमले की खाबरें आईं। कर्नल सोफिया ने कहा कि आठ मई की रात पाकिस्तान ने 36 स्थानों पर ड्रोन से घुसपैठ की कोशिश की थी। 

हालांकि बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों के कुछ देर बाद ही बीबीसी से बात करते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इन हमलों से इनकार किया था। लेकिन विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बीते 24 घंटों में पाकिस्तान की ओर से की गई कार्रवाई का जवाब देने की बात कही। भारतीय सेना ने भी कहा कि बीती रात हुए पाकिस्तानी मिसाइल और ड्रोन हमलों को निष्क्रिय किया गया।
शुरुआती जांच में यह सामने आया कि ये ड्रोन तुर्किये के थे जिन्हें भारतीय सेनाओं ने नष्ट कर दिया

विदेश सचिव विक्रम सचिव ने साथ ही कहा कि पाकिस्तान नागरिक उड़ानों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। मिसरी, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे।
• इस दौरान कर्नल सोफिया ने बताया कि पाकिस्तान ने अपनी गैर जिम्मेदाराना हरकतें नहीं छोड़ी हैं। उन्होंने बताया कि सात मई को पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र नागरिक विमानों के लिए बंद नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इन उड़ानों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने इसे लेकर एक उड़ान का ब्योरा भी दिया। कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि आठ-नौ मई की मध्यरात्रि को पाकिस्तानी सेना ने सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के इरादे से पूरी पश्चिमी सीमा पर भारतीय वायुक्षेत्र का कई बार उल्लंघन किया। पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पर भारी हथियारों से गोलीबारी भी की।
मिसरी ने कहा कि इन हमलों का पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक और स्पष्ट रूप से हास्यास्पद खंडन उसके कपट का उदाहरण है। 
कर्नल सोफिया ने बताया कि पाकिस्तान ने रात साढ़े आठ बजे मिसाइल और ड्रोन हमला किया और उस दौरान अपना 'एअर स्पेस' बंद नहीं किया और नागरिक उड़ानों का इस्तेमाल ढाल के लिए किया।
उन्होंने बताया कि पंजाब सेक्टर में उच्च हवाई सुरक्षा सतर्कता के दौरान हमारा 'एअर स्पेस' नागरिक उड़ानों के लिए बंद है, लेकिन पाकिस्तान के इलाके में नागरिक उड़ानें चल रही थीं। पाकिस्तान का नागरिक विमान दमम से उड़ान भरकर लाहौर तक गया। भारतीय वायुसेना ने अपनी प्रतिक्रिया में संयम दिखाया और अंतरराष्ट्रीय नागरिक विमान सेवा की सुरक्षा तय की।

कर्नल सोफिया ने बताया कि रात में पाकिस्तान के सशस्त्र मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) ने बठिंडा सैन्य स्टेशन को निशाना बनाने की कोशिश भी की जिसे नष्ट कर दिया गया। इस हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान में चार हवाई रक्षा स्थलों पर सशस्त्र ड्रोन से हमले किए। इनमें से एक ड्रोन एडी रडार को नष्ट करने में सक्षम रहा। कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के तंगधार, उरी, पुंछ, मेंढर, राजौरी, अखनूर और उधमपुर में भारी कैलिबर आर्टिलरी गन और सशस्त्र ड्रोन का उपयोग करके नियंत्रण रेखा के पार गोलीबारी भी की। इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना के कुछ जवान हताहत हुए और घायल हुए। भारतीय जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया गया है।

तनाव चरम पर
10 मई को जी-7 देशों ने भारत और पाकिस्तान से संयम रखने और सीधी बातचीत करने का आग्रह किया था। शनिवार को पाकिस्तानी फौज के जनसंपर्क विभाग ने ऐलान किया कि उन्होंने भारत के खिलाफ जवाबी हमला शुरू कर दिया है। पाकिस्तान ने भारत पर उसके तीन सैन्य हवाई अड्‌डों को निशाना बनाने का आरोप लगाया था। पाकिस्तान ने जिन ससैन्य हवाई अड्डों को निशाना बनाए जाने का दावा किया उनमें से एक रावलपिंडी का नूर खान है जो कि पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 10 किलोमीटर दूर है।

पाकिस्तान की फौज के जनसंपर्क विभाग आईएसपीआर के मुताबिक, पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई को 'ऑपरेशन बुनयान मरसूस' का नाम दिया। एक समय लग रहा था कि हालात और बिगड़ने जा रहे हैं, लेकिन इसी बीच शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सोशल मीडिया पोस्ट आया जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की जानकारी दी गई थी। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इसहाक डार और भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से इस खबर की पुष्टि की गई। हालांकि भारतीय सेना ने सीजफायर की घोषणा के साथ ही कहा, 'सेना सीजफायर को लेकर बनी सहमति का पालन करेगी, लेकिन भारत की संप्रभुता बनाए रखने के लिए सेना 'सतर्क' रहेगी। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा है कि शनिवार शाम पांच बजे से दोनों देश सैन्य कार्रवाई और फायरिंग को बंद करने पर सहमत हुए हैं, और दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस 12 मई को फिर से बात हुई।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया 'दोनों देश पूर्ण और तत्काल सीजफायर के साथ किसी निष्पक्ष जगह व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर रजामंद हो गए है।' हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बातचीत की रूपरेखा क्या होगी।
संघर्ष विराम के घोषणा के बाद भी पाकिस्तानी सेना का हमला जारी रहा जिसका उचित कार्रवाई से भारतीय सेना ने दिया।
स्रोत:  अमर उजाला 11मई 2025

ट्रंप अब तक छ अलग अलग बयान दे चुके हैं और अपनी खिल्लियां उड़वा चुके हैं न इससे पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस किसी भी तरह के दखल से इनकार किया था।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता संबंधी बयान को लेकर सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आलोचना की। साथ ही कहा कि वह किसी भी बात का श्रेय लेने के इच्छुक नेता हैं। थरूर ने यह भी कहा कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच गलत तुलना की। उनके द्वारा एक पीड़ित और एक अपराधी को समान बताया जाना चौंकाने वाली बात है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने कहा था कि अगर वे श्रेय लेना चाहते हैं तो उन्हें लेने दें, लेकिन हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि शांति पाकिस्तान के डीजीएमओ के अनुरोध के बाद हुई। भारतको हां कहने में ज्यादा देर नहीं लगी क्योंकि हम कभी लंबा युद्ध नहीं चाहते थे। तिरुवनंतपुरम से सांसद ने कहा कि हमने सात मई को यह स्पष्ट कर दिया था कि हमने पहलगाम हमले के बदले में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। अब देखा जाए शशि थरूर एक डिप्लोमेटिक व्यक्ति हैं देश के लिए इनकी नीतियां काम देती हैं बाकी कांग्रेसी और विपक्षी नेताओं का क्या वो हर जगह अपनी सड़ी हुई राजनीति में लगे रहते हैं।

भोलारी एयरबेस पर बमबारी में स्क्वाड्रन लीडर उस्मान यूसुफ और 4 वायुसैनिकों सहित 50 से अधिक मारे गए। कई पाकिस्तानी लड़ाकू विमान भी नष्ट कर दिए गए।
ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की तीनों सेनाओं ने मीडिया ब्रीफिंग की। इस ब्रीफिंग में एयर मार्शल एके भारती ने बताया, पाकिस्तान के जम्मू, उधमपुर, पठानकोट, नाल, डलहौजी, फलौदी में भारतीय सेना ने हमला किया और टार्गेट ध्वस्त किए। उन्होंने कहा कि हमारे ट्रेंड क्रू ने पाकिस्तानी एयर डिफेंस सिस्टम से तबाह कर दिया। जबकि हमारी जमीन पर उनके लगातार हमलों से कोई नुकसान नहीं पहुंचा। उनके एयरबेस और पोस्ट पर लगातार हमले कर हमने उन्हें जवाब दिया। एयरमार्शल एके भारती ने आगे कहा कि, हमने वहां हमला किया जहां उन्हें सबसे ज्यादा दर्द हो। 

कुछ प्रमुख बातें:

डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने कहा, "पिछले 3-4 दिनों से जो गतिविधियां चल रही हैं, वो किसी युद्ध से कम नहीं हैं। सामान्य परिस्थितियों में एक-दूसरे देशों की वायुसेनाएं हवा में उड़कर एक-दूसरे पर हमला नहीं करतीं...सामान्य परिस्थितियों में नियंत्रण रेखा के पार घुसपैठ आतंकवादियों द्वारा की जाती है। हमारे पास सूचना है कि नियंत्रण रेखा के पार घुसपैठ में पाकिस्तानी सेना भी शामिल हो सकती है, जो हमारी चौकियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है..."
एयर मार्शल एके भारती ने कहा कि हमारा काम टार्गेट को ध्वस्त करना था, न कि लाशें गिनना। एयर मार्शल ने कहा, "हमने जो भी तरीके और साधन चुने, उनका दुश्मन के ठिकानों पर वांछित असर हुआ। कितने लोग हताहत हुए? कितने घायल हुए? हमारा उद्देश्य हताहत करना नहीं था, लेकिन अगर हुए हैं, तो उन्हें गिनना उनका काम है। हमारा काम लक्ष्य को भेदना है, शवों की गिनती करना नहीं।'
एयर मार्शल भारती ने कहा, 'भय बिनु होय ना प्रीति। हमारी लड़ाई आतंकवादियों के साथ है। हमारी लड़ाई पाकिस्तानी मिलिट्री के साथ नहीं है। पाकिस्तान की सेना ने आतंकियों का साथ दिया, तो हमने उसका जवाब दिया। अपनी सेना के नुकसान के लिए वह खुद जिम्मेदार है।'
• DGMO लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने साफ किया  कि अगर पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन किया तो सेना माकूल जवाब देगी। घई ने बताया कि हमारा उद्देश्य आतंकी शिविरों को ठिकाना बनाना था और बाद की हमारी कार्रवाई सिर्फ पाकिस्तान के उकसावे के जवाब में थी। इस वजह से पाकिस्तान के डीजीएमओ से उनकी पहल पर बातचीत की गई। हालांकि, अपेक्षित रूप से पाकिस्तान ने 10 मई को कुछ ही घंटों में संघर्ष विराम का उल्लंघन कर दिया। अगली बार संघर्ष विराम का उल्लंघन होने पर सेना के कमांडरों को जवाब देने की खुली छूट दी गई है।
डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने कहा, "मैंने नियंत्रण रेखा पर 35-40 पाकिस्तानी जवानों के मारे जाने का उल्लेख किया है और कृपया याद रखें कि जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया था, तो पाकिस्तानी सेना की प्रतिक्रिया भी भारतीय सेना या भारतीय सशस्त्र बलों के बुनियादी ढांचे पर थी। हमारे लक्ष्य आतंकवाद था और बाद में, जब उन्होंने हमारे बुनियादी ढांचे पर हवाई घुसपैठ और हवाई अभियान शुरू किए, तो हमने भारी हथियारों का इस्तेमाल किया। इसमें लोग हताहत हुए होंगे, लेकिन उनका अभी भी आकलन किया जा रहा है।"
• मीडिया ब्रीफिंग के दौरान वाइस एडमिरल एएन प्रमोद ने कहा कि भारतीय नौसेना की जबरदस्त ताकत देख पाकिस्तान को युद्ध विराम के लिए मजबूर होना पड़ा। बता दें कि भारत ने कराची को निशाने पर रखते हुए अरब सागर में INS विक्रांत को तैनात कर दिया है। वाइस एडमिरल ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस बार अगर पाकिस्तान कोई कार्रवाई करने की हिम्मत करता है, तो पाकिस्तान जानता है कि हम क्या करने जा रहे हैं। 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र को संबोधन
12 मई रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र को संबोधित किया था जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। इस 22 मिनट में भाषण में मोदी जी वो सबकुछ जो लोग सुनना चाहते थें। कुछ महत्वपूर्ण  बिंदु :

आज, हर आतंकवादी हमारी बहनों और बेटियों के माथे से सिंदूर पोंछने के परिणामों को जानता है।
ऑपरेशन सिंदूर न्याय के लिए एक अटूट प्रतिज्ञा है
आतंकवादियों ने हमारी बहनों के माथे से सिंदूर पोंछने का साहस किया; इसीलिए भारत ने आतंक के मुख्यालय को ही नष्ट कर दिया।
 पाकिस्तान ने हमारी सीमाओं पर हमला करने की तैयारी की थी, लेकिन भारत ने उन्हें उनके मूल में मारा।
ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के खिलाफ लड़ाई को नए सिरे से परिभाषित किया है, एक नया मानदंड, एक नया सामान्य स्थापित किया है।
यह युद्ध का युग नहीं है, लेकिन यह आतंकवाद का युग भी नहीं है । आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस एक बेहतर दुनिया की गारंटी है।
 आतंक और बातचीत एक साथ नहीं रह सकते, आतंक और व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते और पानी और खून कभी साथ-साथ नहीं बह सकता।
 पाकिस्तान के साथ कोई भी बातचीत आतंकवाद और पीओके पर केंद्रित होगी
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अपना अभियान स्थगित किया है तथा इस अभियान का भविष्य पड़ोसी देश के बर्ताव पर निर्भर करेगा। भारत पर आतंकी हमला हुआ तो मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

उन्होंने आगे कहा कि भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने हमारे मंदिर, गुरुद्वारे, स्कूल, कालेज और सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाया। जिसके बाद उन्हें करारा जवाब दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत कोई भी परमाणु भयादोहन बर्दाश्त नहीं करेगा। परमाणु भयादोहन की आड़ में पनप रहे आतंकी ठिकानों पर भारत सटीक और निर्णायक प्रहार करेगा। उन्होंने कहा कि हमने पाकिस्तान के खिलाफ अभियान को केवल स्थगित किया है तथा भविष्य उनके व्यवहार पर निर्भर करेगा। 'आपरेशन सिंदूर' आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई नीति है तथा अब एक नई रेखा खींच दी गई है।
पंजाब के आदमपुर वायु सेना अड्डे से पाकिस्तान को कड़ा संदेश

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे ड्रोन और मिसाइलों के बारे में सोचकर तो पाकिस्तान को कई दिन तक नीद नहीं आएगी। मोदी ने कहा, आपरेशन सिंदूर कोई सामान्य सैन्य अभियान नहीं है। यह भारत की नीति, नीयत और निर्णायक क्षमता की त्रिवेणी है ।

ऑपरेशन सिंदूर से क्या हासिल हुआ?

1. नौ आतंकवादी शिविर नष्ट किये गये: भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद तथा हिजबुल मुजाहिदीन के ठिकानों को निशाना बनाकर नौ प्रमुख आतंकी लॉन्चपैडों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया।

2. सीमा पार सटीक हमले: भारत ने इंगेजमेंट के नियमों को पुनः परिभाषित किया, पाकिस्तान के अंदर घुस कर भीतर तक हमला किया, जिसमें पंजाब प्रांत और बहावलपुर भी शामिल हैं, जिन्हें कभी अमेरिकी ड्रोनों के लिए भी पहुंच से बाहर माना जाता था। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि आतंकवाद वहां से उत्पन्न होता है तो न तो नियंत्रण रेखा और न ही पाकिस्तानी क्षेत्र कार्रवाई से अछूता रहेगा।

3. एक नई रणनीतिक लाल रेखा: ऑपरेशन सिंदूर ने एक नई लाल रेखा खींच दी है- अगर आतंकवाद किसी देश की नीति है, तो इसका स्पष्ट और सशक्त जवाब दिया जाएगा। इसने निवारण से प्रत्यक्ष कार्रवाई की ओर बदलाव को चिह्नित किया।

4. आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के लिए समान दंड: भारत ने आतंकवादियों तथा उनके सहयोगियों के बीच कृत्रिम अलगाव को खारिज कर दिया और दोनों पर एक साथ प्रहार किया। इससे कई पाकिस्तानी आतंकवादियों को मिलने वाली दंडमुक्ति की सुविधा समाप्त हो गई।

5. पाकिस्तान की वायु रक्षा कमजोरियों का खुलासा: भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की चीनी आपूर्ति वाली वायु रक्षा प्रणालियों को दरकिनार कर दिया और उन्हें जाम कर दिया, राफेल जेट, एससीएएलपी मिसाइलों तथा हैमर बमों का उपयोग करके केवल 23 मिनट में मिशन पूरा किया गया, जिससे भारत की तकनीकी बढ़त का प्रदर्शन हुआ।
6. भारत की वायु रक्षा श्रेष्ठता प्रदर्शित: भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ने सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलों को मार गिराया। जिसमें स्वदेशी आकाशतीर प्रणाली भी शामिल है। इस बहुस्तरीय व्यवस्था ने उन्नत रक्षा प्रणालियों के निर्यात में भारत की बढ़ती क्षमताओं को भी प्रदर्शित किया।

7. बिना किसी प्रसार के सटीकता: भारत ने नागरिक या गैर-आतंकवादी सैन्य स्थलों को लक्ष्य बनाने से परहेज किया, जिससे आतंकवाद के प्रति उसकी शून्य-सहिष्णुता का प्रदर्शन हुआ और साथ ही स्थिति को शुद्ध रूप से युद्ध में बदलने से रोका गया।

8. प्रमुख आतंकवादी कमांडरों का खात्मा: भारत की मोस्ट वांटेड सूची में शामिल कई हाई-प्रोफाइल आतंकवादियों को एक ही रात में ढेर कर दिया गया, जिससे प्रमुख ऑपरेशनल मॉड्यूल चरमरा गए हैं।

9. पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों पर हवाई हमले: भारत 9-10 मई को एक ही ऑपरेशन में परमाणु हथियार संपन्न देश पाकिस्तान के 11 एयरबेसों पर हमला करने वाला पहला देश बन गया, जिससे पाकिस्तानी वायुसेना की 20% संपत्ति नष्ट हो गई। भूलारी एयरबेस को भारी नुकसान पहुंचा है, जिसमें स्क्वाड्रन लीडर उस्मान यूसुफ की मौत और प्रमुख लड़ाकू विमानों का नष्ट होना शामिल है।

10. समन्वित त्रि-सैन्य कार्रवाई – भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना ने पूर्ण समन्वय के साथ काम किया, जिससे भारत की बढ़ती संयुक्त सैन्य शक्ति का प्रदर्शन हुआ।

11. एक वैश्विक संदेश प्रसारित – भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि उसे अपने देशवासियों की रक्षा के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसने इस तथ्य को पुष्ट किया है कि आतंकवादी व उनके मास्टरमाइंड कहीं भी छिप नहीं सकते हैं और यदि पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करता है, तो भारत निर्णायक जवाबी हमले के लिए बिलकुल तैयार है।

12. व्यापक वैश्विक समर्थन – पिछले संघर्षों के विपरीत, इस बार कई वैश्विक नेताओं ने संयम बरतने का आह्वान करने के स्थान पर भारत का समर्थन किया। इस बदलाव ने भारत की बेहतर वैश्विक स्थिति और नैरेटिव कंट्रोल को दर्शाया है।

13. कश्मीर के कथानक को नए सिरे से गढ़ा गया – पहली बार भारत की कार्रवाइयों को पूरी तरह से आतंकवाद विरोधी नजरिए से देखा गया, जिसमें कश्मीर मुद्दे को पूरी तरह से हमले की विषय-वस्तु से अलग रखा गया। यह ऑपरेशन सिंदूर की सटीकता और स्पष्टता से ही संभव हुआ है।

ऑपरेशन सिंदूर ने दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक और सामरिक परिदृश्य को एक नया आकार दिया है। यह केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि भारत की संप्रभुता, संकल्प और वैश्विक प्रतिष्ठा का बहुआयामी प्रस्ताव था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व में भारत ने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसमें संयम के साथ सामर्थ्य और सटीकता के साथ उद्देश्य का मिश्रण देखने को मिलता है। भारत ने आतंकी नेटवर्क और उनके राष्ट्रीय प्रायोजकों को अभूतपूर्व स्पष्टता के साथ निशाना बनाकर एक कड़ा संदेश दिया है: आतंकवाद का त्वरित और आनुपातिक जवाब दिया जाएगा, चाहे सीमाएं या कूटनीतिक जटिलताएं कुछ भी हों।

(स्रोत : PIB , जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा, PTI,ANI रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय  आदि)

Tuesday, April 29, 2025

इस्लाम का धर्म ही आतंकवाद है !

कहीं आप घूमने जाए साल भर काम में व्यस्त रहने के बाद और वो पल आपके जीवन का आखिरी पल बन जाए। सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है न लेकिन ये अभी हाल ही में हुआ है। देश के विभिन्न स्थानों से लोग कश्मीर का नजारा देखने गए जैसे तैसे अपनी मेहनत की कमाई  के पैसे जोड़कर ।
कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया है। धर्म देखकर इस्लामिक कट्टर पंथियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी। कुछ लोग कहते हैं आतंकवाद का धर्म नहीं होता, सही में आतंकवाद का तो मजहब होता है। पूरे एजेंडे को कैसे बदला जाता है ये दो चार दिनों में देखने को मिला है.. कोई भी हमला होता है कुछ लोग लिखना शुरू कर देते हैं आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है फिर भी किसी आतंकी का जनाजा निकल जाए तो हजारों की भीड़ देखने को मिलती है। सिक्योरिटी में गड़बड़ी हुई है तभी ये हमला हुआ है ये भी सच है। यह एक ऐसी जगह है जहां किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है आंख मूंदकर.. इस जाहिल कौम के प्रति कोई नफरत नहीं है जो ये करते हैं बस वहीं बता देने में कुछ लोग नफरती समझने लगते हैं.. वो व्यक्ति ही क्या जिसे हत्यारों से नफरत ना हो..

"घोड़े वालों ने पहले पैसे मांगे फिर बताया मरने वालों के बारे में "  ऐसा कहना है शुभम द्विवेदी की दीदी का।

आतंकवादियों ने पहले शुभम द्विवेदी से 'कलमा' (इस्लामी आस्था की घोषणा) पढ़ने को कहा और ऐसा न करने पर उसके सिर में गोली मार दी। शुभम की हत्या करने के बाद एक आतंकवादी ने उसकी पत्नी की ओर मुड़कर कहा कि अपनी सरकार को बताओ कि हमने तुम्हारे पति के साथ क्या किया।
-शुभम द्विवेदी के चाचा मनोज द्विवदी 

खच्चर वाले जबरन शुभम् द्विवेदी और फैमिली को उस जगह ले गए, जहां वो जाने से मना कर रहे थे। लोकल पुलिस वाले खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। मौके पर मौजूद कश्मीरी पैसे मांग रहे थे परिजनों की लाश तक पहुंचाने का। अब क्या ही बोला जाए कश्मीरियत नीचता का दूसरा नाम है।

बैसरन की तरफ़ जाने की घटना का ज़िक्र करते हुए शुभम की बहन आरती बताती हैं कि उनके एक फ़ैसले की वजह से उनकी और परिवार के बाकी लोगों की जान बच गई।

वो बताती हैं, "हम ऊपर जा रहे थे, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे घोड़े पर बैठकर जाना पसंद नहीं है। इसलिए मैंने कहा कि मैं नहीं जाऊंगी."

आरती बताती हैं कि उनके इस फ़ैसले की वजह से परिवार के छह लोग वापस आ गए थे।

उन्होंने बताया, "हम लोग आधे रास्ते तक पहुंच गए थे. वहां से मैं पापा, अपने पति और कुछ लोगों को वापस ले आई."
आरती बताती हैं, "पता नहीं क्यों, लेकिन मैं डर रही थी. मैंने कहा कि मैं नहीं जाउंगी। मुझे अंदर से घबराहट हो रही थी और पसीना आ रहा था."

वो कहती हैं, "वहां मौसम ठंडा था और मैंने ज़्यादा कपड़े भी नहीं पहने थे, फिर भी मुझे पसीना आ रहा था। इसलिए मैंने कहा मैं नहीं जाऊंगी."

"लेकिन वो लोग (घोड़े वाले) कहने लगे कि आप क्यों डर रही हो, मैं लेकर चलूंगा। उन्होंने मेरे से 10 मिनट बहस की कि आप चलिए."

आरती बताती हैं, "मैंने उन्हें सीधा कहा कि मैं आपको पूरे पैसे दूंगी, आपका एक भी पैसा नहीं काटूंगी। लेकिन ये मेरी मर्जी है मैं नहीं जाउंगी."

आरती कहती हैं कि वो जबरदस्ती अपने परिवार के कुछ लोगों के साथ वापस आ गईं।

वो कहती हैं। "अच्छा हुआ उनको लेकर आ गए. अगर नहीं आते तो ना मेरे पापा बचते, ना मेरे पति बचते, कोई नहीं बचता."
शुभम की बहन आरती बताती हैं कि वो किस स्थिति में हैं ये बता पाना बहुत मुश्किल है। उनका दिमाग़ सही से काम नहीं कर पा रहा है।

वो कहती हैं, "पता नहीं मेरे मां-बाप, भाभी और हम लोग उनके (शुभम) बिना कैसे रहेंगे? इस देश में ये सब चीजें क्यों हो रही हैं? लोग एक-दूसरे को मार रहे हैं."

आरती कहती हैं, "सबके अंदर इंसानियत होती है. अगर किसी अनजान को भी चोट लग जाए तो हम लोग उसके बारे में सोचते हैं."

"हम लोग जानवरों को इतना प्यार करते हैं, लेकिन यहां तो इस समय इंसान ही इंसान को मार रहा है, वो भी अपने ही देश में."

वो आगे कहती हैं, "हम कहीं बाहर नहीं गए हैं, ना ही पाकिस्तान या कोई अन्य मुस्लिम देश में गए कि हिंदू-मुस्लिम पूछ कर मार दिया गया हो हम हिंदुस्तान में ही हैं, अपने ही देश में मर गए."
घोड़े वाले से पुलिस तक के मिले होने का संदेह, शुभम के परिजनों ने सीएम योगी आदित्यनाथ। को दीं कई जानकारियां

स्रोत:अमर उजाला 

लिबरल लोगों का शोर देखो तो लोकल लोग बहुत अच्छे हैं प्यारे हैं .... ब्ला ब्ला ब्ला ...

" उन्होंने बोला हिन्दू अलग हो जाओ मुसलमान अलग हो जाओ, और मुसलमान अलग भी हो गए।"

(ANI से बात करते हुए मृतक शैलेश कलथिया के बेटे ने कहा) यही भाईचारा है....!
नक्श ने अपने पिता शैलेश कलथिया को मुखाग्नि दी


सुशील नथानियल की पत्नी और बेटे से फोन पर हमारी बात हुई है। उन्होंने हमें बताया कि आतंकियों ने नाम पूछकर सुशील को घुटनों के बल बैठने और फिर उनसे कलमा पढ़ने को कहा। जब सुशील ने कहा कि वह कलमा नहीं पढ़ सकते, तो आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी।
-सुशील नथानियल के ममेरे भाई संजय कुमरावत
अपने पिता पर गोलियां बरसते देख उनकी घबराई बेटी आकांक्षा  दौड़कर उनके पास पहुंची तो आतंकियों ने उसके पैर में गोली मार दी। कुमरावत ने बताया कि घायल आकांक्षा का जम्मू-कश्मीर में इलाज चल रहा है।

सुशील की पत्नी जेनिफर नैथनियल ने बताया कि शुरुआत में वह बच गए थे। उन्होंने कहा, 'हम वहां से लौटने ही वाले थे। तभी मेरे पति ने कहा कि उन्हें वॉशरूम जाना है। इसके बाद वह चले गए। जब लौटे तो अचानक तेज आवाज आई।' जेनिफर ने कहा, 'पहले हमें लगा कि रोपवे टूटा होगा। लेकिन फिर देखा कि एक आदमी गोली लगने से घायल हुआ है और उसके पास बैठी महिला रोकर कह रही थी कि उसे भी गोली मार दी जाए। सब लोग इधर-उधर भागने लगे।'
उन्होंने कहा, 'हम वॉशरूम के पीछे छिप गए। लेकिन फिर भी आतंकियों ने हमें ढूंढ लिया। आतंकियों ने मेरे पति से कलमा पढ़ने को कहा। उन्होंने कहा कि मैं ईसाई हूं, इसके बाद उन्हें गोली मार दी।' 
अपने पिता की मौत पर दुखी ऑस्टिन ने पीटीआई से कहा, 'आतंकवादियों में लगभग 15 साल के नाबालिग लड़के भी शामिल थे। जिनकी संख्या कम से कम चार थी. वे हमले के दौरान सेल्फी ले रहे थे और उनके सिर पर कैमरे लगे हुए थे.'
ऑस्टिन उर्फ गोल्डी ने खुलासा किया कि आतंकवादियों ने उनके पिता और मौके पर मौजूद अन्य लोगों से गोली मारने से पहले उनकी धार्मिक पहचान के बारे में पूछा था। 25 वर्षीय ऑस्टिन ने कहा कि यह पुष्टि करने के लिए कि कोई मुस्लिम है या गैर-मुस्लिम, उनसे 'कलमा' पढ़ने के लिए कहा गया था। ऑस्टिन ने कहा कि अगर कोई आतंकवादियों के निर्देश पर 'कलमा' पढ़ता था, तो बाद में उसे कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्होंने भयावह घटना का वर्णन करते हुए कहा, 'मैंने देखा कि आतंकवादियों ने मेरे सामने ही छह लोगों को गोली मार दी।

आतंकवादियों ने अचानक अपनी बंदूकें निकालीं और उनके नाम पूछे। फिर उन्होंने रामचंद्रन से कलमा पढ़ने को कहा। जब उसने कहा कि वह मुसलमान नहीं है, तो उन्होंने अगले ही पल उन्हें गोली मार दी। बंदूक रामचंद्रन की बेटी पर भी तान दी गई थी, लेकिन वह बच्चों के साथ भागने में सफल रही।
 -रामचंद्रन के पारिवारिक मित्र


आतंकवादियों ने मेरे पिता और अंकल को मार डाला.
आसावारी जगदाले ने बताया, 'हम बैसरन घाटी में मिनी स्विटजरलैंड कहे जाने वाली जगह पर 'फोटोशूट' कर रहे थे, तभी अचानक गोलियों की आवाज आई। हमने कुछ स्थानीय लोगों से पूछा, तो उन्होंने कहा कि स्थानीय लोग बाघों को भगाने के लिए गोलियां चलाते हैं। लेकिन जैसे ही हमने देखा कि लोग मारे जा रहे थे और कुछ लोग कलमा पढ़ रहे थे, हमें समझ में आ गया कि यह कुछ और था।' आसावारी ने बताया, 'एक आतंकवादी, जो करीब बीस साल का था, उसने मेरे पिता से खड़े होने को कहा। मेरे पिता ने उससे अपील की कि उन्हें नुकसान न पहुंचाए। उसने एकदम ठंडे लहजे में कहा कि वह हमें दिखाएगा कि उन्हें कैसे  मारना है। इतना कहकर उसने तीन गोलियां चलाईं, जिनमें से एक मेरे पिता के सिर में लगी, दूसरी कान के आर-पार हो गई और तीसरी उनकी छाती में लगी।' 
आसावारी ने मीडिया को आगे बताया कि उनके अंकल कौस्तुभ गणबोटे को सिर के पिछले हिस्से में गोली मारी गई जो उनकी आंख को भेदते हुए निकल गई। उसने बताया कि कुछ और पुरुषों को भी गोली मारी गई। आसावरी ने उन भयानक क्षणों का हृदयविदारक ब्योरा साझा किया जब एक ही सेकेंड में पर्यटकों की खुशी मातम में बदल गई। आसावारी ने कहा, 'आतंकवादियों ने लोगों से 'कलमा' पढ़ने को कहा। जो लोग पढ़ सकते थे, उन्होंने पढ़ा और जो नहीं पढ़ सकते थे, उन्होंने नहीं पढ़ा। मेरे पिता ने कहा कि वे जो भी कह रहे हैं, हम करेंगे, लेकिन इसके बावजूद आतंकवादियों ने मेरे पिता और अंकल को मार डाला।

आसावारी ने बताया कि एक आदमी को गोली तब मारी गई जब वह अपनी पत्नी और बेटे के लिए खाने का सामान लेने गया था जबकि उसकी पत्नी और बेटा 'फोटोशूट' कर रहे थे। आसावरी ने बताया, 'लड़के ने आतंकवादियों से उसे और उसकी मां को भी मार डालने के लिए कहा, लेकिन वे यह कहते हुए चले गए कि वे महिलाओं और बच्चों को नहीं मारेंगे। इस तबाही के बीच, मैंने हिम्मत जुटाई और मैं अपनी मां और आंटी के साथ निकलने में कामयाब रही।' उन्होंने बताया, 'नीचे उतरते समय मेरी मां के पैर में चोट लग गई। एक खच्चर वाले ने हमारी मदद की और हमें दिलासा दिया। उसने खच्चर पर बिठाकर हमें हमारे ड्राइवर तक पहुंचाया।' उन्होंने कहा, 'मैं अभी तक अपने पिता और अंकल की मौत को स्वीकार नहीं कर पाई हूं। यह पूरा घटनाक्रम भयानक था। आतंकवादियों की क्रूरता से साफ है कि वे इंसान नहीं, राक्षस थे। इंसान इतने निर्दयी नहीं हो सकते।'

असम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने बयां किया भयावह मंजर "पहलगाम में कलमा पढ़ने से बची मेरी जान"
वहां मौजूद लोगों की माने तो कलमा पड़ने वालों का पैंट उतारकर चेक किया जा रहा था आतंकियों द्वारा। प्रोफ़ेसर साहब की किस्मत कहे या कुछ और भगवान ही मालिक है।
 
मेरी बेटी ने मुझे फोन पर बताया कि गोलीबारी उसके सामने ही हुई। आतंकवादियों ने मेरे दामाद भारत भूषण की हत्या मेरी बेटी सुजाता और उसके बेटे के सामने हत्या की। जब सुजाता को पता चला कि भारत की मौत हो चुकी है तो उसने उनका पहचान पत्र उठाया और अपने बेटे के साथ वहां से भाग गई।
-भारत भूषण की सास विमला

भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की युवा पत्नी ने शादी के मात्र छह दिन बाद ही अपने पति को अलविदा कह दिया। भारतीय नौसेना में दो साल पहले कमीशन प्राप्त अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल अपनी पत्नी हिमांशी के साथ हनीमून पर थे, जब वे इस दुखद हमले में मारे गए। इस जोड़े ने 16 अप्रैल को शादी की थी।

खुफिया ब्यूरो के अधिकारी की भी गई जान

हमले में हैदराबाद में तैनात खुफिया ब्यूरो (आईबी) के अधिकारी मनीष रंजन की भी मौत हो गई। मनीष बिहार निवासी थे। वह छुट्टी मनाने के लिए परिवार के साथ पहलगाम गए थे। आईबी के सूत्रों से मिली प्राथमिक जानकारी के मुताबिक, उन्हें उनकी पत्नी और बच्चे के सामने गोली मारी गई। मनीष रंजन पिछले दो वर्षों से आईबी के हैदराबाद कार्यालय के मंत्री अनुभाग में कार्यरत थे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए 26 लोगों को श्रद्धांजलि दी। | फोटो साभार: पीटीआई
इस्लामिक आतंकी हमले में मारे गए मृतकों को की सूची।

इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के फ्रंटल संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है। यह समूह अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अंतरराष्ट्रीय जांच से बचने के लिए बनाया गया था।
तमाम लोग हैं जिनके बयान अभी तक सार्वजनिक नहीं हैं या वो उस स्थिति में नहीं रहे होंगे कि मीडिया के सामने बयान दे सके । सबको कहीं न कहीं बहुत गहरा सदमा लगा है। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के जांच सब खुलकर सामने वाला है।
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सेना का एक्शन जारी है। सेना लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक-एक आतंकवादी का घर उड़ा रही है। इसी के साथ ही बड़ी संख्या में कश्मीर से लोग भी हिरासत में लिए जा रहे हैं। हिरासत में लिए जाने वालों में ओवरग्राउंड वर्कर और पूर्व आतंकवादीभी शामिल हैं।


पहलगाम आतंकी हमलों में शामिल कई स्थानीय आतंकवादियों के घर ध्वस्त किए जा चुके हैं ...
और दिल्ली और तमाम जगहों पे बैठे बौद्धिक आतंकी बता रहे हैं कि लोकल कश्मीरी मुसलमानों का हाथ नहीं है।

ये सनकी कौम अपनी बहन बेटियों की शादी पाकिस्तान में कर रखा है फ़िर लोग कहते हैं इनकी देशभक्ति पर कोई सक न करें। पाकिस्तान विरोधी रैलियों से इन्हें दिक्कत होने लगती है, फिर भी ये शरीफ और मासूम हैं। जाने कितनी भारतीय औरतें सालों पहले पाकिस्तान में शादी करने के बाद पाकिस्तानी बच्चे पैदा करने के बाद भी ठसक से भारतीय बन के भारत सरकार की पूरी योजनाओं से लाभ ले रही थीं।

कुछ मुस्लिम महिलाओं को चिल्लाते हुए देखा उन्हें पाकिस्तान जाने की जल्दी थी क्योंकि उनके अब्बू ने उनका निकाह पाकिस्तान में कर दिया है.. अब सोचने वाली बात ये है कि जाने कितनी भारतीय औरतें सालों पहले पाकिस्तान में शादी करने के बाद पाकिस्तानी बच्चे पैदा करने के बाद भी ठसक से भारतीय बन के भारत सरकार की पूरी योजनाओं से लाभ ले रही थीं।
और ये केवल बॉर्डर एरिया में नहीं था।
इनकी वफादारी किधर होगी? इनके पति और इनके बच्चे पाकिस्तानी नागरिक हैं। पर इन्होंने भारतीय छोड़ दसियों साल में पाकिस्तानी नागरिकता क्यों न ली?
और बड़ी बात ये सब अरेंज मैरिज हैं, लव मैरिज नहीं।
ये आंखें खोलने वाला घटनाक्रम हैं, अटारी बॉर्डर पुरी तरह से सीज होने के बाद से हलचल सी मच गई है। भारत सरकार द्वारा हमले के तुरंत बाद वीजा रद्द करने वाला निर्णय नहीं लिया जाता तो ये बात उभरकर सामने आती भी नहीं।

इतने से सालों से भारत सरकार के नजर ये सब नहीं आया सोचने वाली बात है।  अवैध घुसपैठियों ने नरक मचाया हुआ है भारत में चाहे बांग्लादेशी हो पाकिस्तानी.. भारत सरकार इन पाकिस्तानियों को वीजा दे रही थी तो ठीक बात नहीं थी। खैर पाकिस्तान के लिए सार्क वीजा को रद्द कर दिया गया है और ये हमेशा के लिए रद्द ही रहे।घुसपैठियों को जल्द से जल्द भारत सरकार को मारकर खदेड़ना चाहिए। 
पहलगाम में हमला करने वाले इस्लामिक हैं और उन सभी का इस्लाम से नाता है, और उन्हें आतंक की प्रेरणा देने वाली पुस्तक भी है। जबतक खुलकर विरोध और कार्रवाई नहीं होगा इस्लामिक आतंकवाद पर तब तक कुछ नहीं होने वाला हैं। ।

हमला करने वाले इस्लामिक आतंकवादियों ने खुली चुनौती दी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिसका बदला लेना बहुत जरूरी हो गया है।  प्रधामंत्री ने कहा है "जिन्होंने भी यह हमला किया है उन आतंकियों को और इस हमले की साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी" 
पहलगाम में हमला करने वाले इस्लामिक हैं और उन सभी का इस्लाम से नाता है, और उन्हें आतंक की प्रेरणा देने वाली पुस्तक भी हैं। जबतक खुलकर विरोध और कार्रवाई नहीं होगा इस्लामिक आतंकवाद पर तब तक कुछ नहीं होने वाला हैं। 

(स्रोत: जनसत्ता ,राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला,PTI, बीबीसी हिंदी , दैनिक जागरण आदि)

Tuesday, April 15, 2025

विचारों का प्रस्फुटन

पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या

(1924 की बात है। पंजाब में भाषा-विवाद चल रहा था। पंजाबी भाषा की लिपि क्या हो, यह प्रश्न उठा हुआ था। उर्दू और हिन्दी के पक्षघर खूब बहस कर रहे थे। तरह-तरह के तर्क रखे जा रहे थे। भगत सिंह भी इस बहस पर अपने विचार बनाने लगे थे। पंजाब की भाषा और लिपि की समस्या पर यह लेख उन्होंने पंजाब हिन्दी साहित्य सम्मेलन की निबन्ध प्रतियोगिता में लिखा था और अव्वल मानकर सम्मेलन ने इस पर 50/- का इनाम भी दिया था।

यह लेख सम्मेलन के प्रधानमन्त्री श्री भीमसेन विद्यालंकार ने सुरक्षित रखा और भगत सिंह के बलिदान के बाद 28 फरवरी, 1933 के 'हिन्दी सन्देश' में प्रकाशित किया। सं.)

"किसी समाज अथवा देश को पहचानने के लिए उस समाज अथवा देश के साहित्य से परिचित होने की परमावश्यकता होती है, क्योंकि समाज के प्राणों की चेतना उस समाज के साहित्य में भी प्रतिच्छवित हुआ करती है।"

उपरोक्त कथन की सत्यता का इतिहास साक्षी है। जिस देश के साहित्य का प्रवाह जिस ओर बहा, ठीक उसी ओर वह देश भी अग्रसर होता रहा। किसी भी जाति के उत्थान के लिए ऊँचे साहित्य की आवश्यकता हुआ करती है। ज्यों-ज्यों देश का साहित्य ऊँचा होता जाता है, त्यों-त्यों देश भी उन्नति करता जाता है। देशभक्त, चाहे वे निरे समाज-सुधारक हों अथवा राजनैतिक नेता, सबसे अधिक ध्यान देश के साहित्य की ओर दिया करते हैं। यदि वे सामाजिक समस्याओं तथा परिस्थितियों के अनुसार नवीन साहित्य की सृष्टि न करें तो उनके सब प्रयत्न निष्फल हो जाएँ और उनके कार्य स्थायी न हो पाएँ।

शायद गैरीबाल्डी को इतनी जल्दी सेनाएँ न मिल पातीं, यदि मेजिनी ने 30 वर्ष देश में साहित्य तथा साहित्यिक जागृति पैदा करने में ही न लगा दिए होते। आयरलैंड के पुनरुत्थान के साथ गैलिक भाषा के पुनरुत्थान का प्रयत्न भी उसी वेग से किया गया। शासक लोग आयरिश लोगों को दबाए रखने के लिए उनकी भाषा का दमन करना इतना आवश्यक समझते थे कि गैलिक भाषा की एक-आध कविता रखने के कारण छोटे-छोटे बच्चों तक को दंडित किया जाता था। रूसो, वाल्टेयर के साहित्य के बिना फ्रांस की राज्यक्रान्ति घटित न हो पाती। यदि टॉल्स्टाय, कार्ल मार्क्स तथा मैक्सिम गोकी इत्यादि ने नवीन साहित्य पैदा करने में वर्षों व्यतीत न कर दिए होते, तो रूस की क्रान्ति न हो पाती, साम्यवाद का प्रचार तथा व्यवहार तो दूर रहा।

यही दशा हम सामाजिक तथा धार्मिक सुधारकों में देख पाते हैं। कबीर के साहित्य के कारण उनके भावों का स्थायी. प्रभाव दीख पड़ता है। आज तक उनकी मधुर तथा सरस कविताओं को सुनकर लोग मुग्ध हो जाते हैं।

ठीक यही बात गुरु नानकदेव जी के विषय में भी कही जा सकती है। सिक्ख गुरुओं ने अपने मत के प्रचार के साथ जब नवीन सम्प्रदाय स्थापित करना शुरू किया, उस समय उन्होंने नवीन साहित्य की आवश्यकता भी अनुभव की और इसी विचार से गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि बनाई। शताब्दियों तक निरन्तर युद्ध और मुसलमानों के आक्रमणों के कारण पंजान में साहित्य की कमी हो गई थी। हिन्दी भाषा का भी लोप-सा हो गया था। इस समय किसी भारतीय लिपि को ही अपनाने के लिए उन्होंने काश्मीरी लिपि को अपना लिया। तत्पश्चात् गुरु अर्जुन देव जी तथा भाई गुरु दास जी के प्रयत्न से आदि ग्रन्थ का संकलन हुआ। अपनी लिपि तथा अपना साहित्य बनाकर अपने मत को स्थायी रूप देने में उन्होंने यह बहुत प्रभावशाली तथा उपयोगी कदम उठाया था।

उसके बाद ज्यों-ज्यों परिस्थिति बदलती गई, त्यों-त्यों साहित्य का प्रवाह भी बदलता गया। गुरुओं के निरन्तर बलिदानों तथा कष्ट-सहन से परिस्थिति बदलती गई। जहाँ हम प्रथम गुरु के उपदेश में भक्ति तथा आत्म-विस्मृति के भाव सुनते हैं और निम्नलिखित पद में कमाल आजिज़ी का भाव पाते हैं:

नानक नन्हे हो रहे, जैसी नन्हीं दूब ।

और घास जरि जात है, दूब खूब की खूब

वहीं पर हम नवें गुरु श्री तेगबहादुरजी के उपदेश में पददलित लोगों की हमदर्दी तथा उनकी सहायता के भाव पाते हैं :

बाँहि जिन्हाँ दी पकड़िए, 
सिर दीजिए बाँहि न छोड़िए।
गुरु तेगबहादुर बोलया, 
धरती पै धर्म न छोड़िए ॥

उनके बलिदान के बाद हम एकाएक गुरु गोविन्द सिंह जी के उपदेश में क्षात्र धर्म का भाव पाते हैं। जब उन्होंने देखा कि अब केवल भक्ति-भाव से ही काम न चलेगा, तो उन्होंने चंडी की पूजा भी प्रारम्भ की और भक्ति तथा क्षात्र धर्म का समावेश कर सिक्ख समुदाय को भक्तों तथा योद्धाओं का समूह बना दिया। उनकी कविता (साहित्य) में हम नवीन भाव देखते हैं।

वे लिखते हैं :

जे तोहि प्रेम खेलण का चाव,
 सिर धर तली गली मोरी आव
जे इत मारग पैर धरीजै, 
सिर दीजै कांण न कीजे ॥

और फिर-

सूरा सो पहिचानिए, जो लड़े दीन के हेत। 
पुर्जा-पुर्जा कट मरै, कयूँ न छाँड़े खेत ॥

और फिर एकाएक खड्ग की पूजा प्रारम्भ हो जाती है:

खग खंड विहंड, खल दल खंड अति रन मंड प्रखंड।

भुज दंड अखंड, तेज प्रचंड जोति अभंड भानुप्रभं ॥

उन्हीं भावों को लेकर बाबा बन्दा आदि मुसलमानों के विरुद्ध निरन्तर युद्ध करते रहे, परन्तु उसके बाद हम देखते हैं कि जब सिक्ख संम्प्रदाय केवल अराजको का एक समूह रह जाता है और जब वे गैर-कानूनी (Out-law) घोषित कर दिए जाते हैं, तब उन्हें निरन्तर जंगलों में ही रहना पड़ता है। अब इस समय नवीन साहित्य की सृष्टि नहीं हो सकी। उनमें नवीन भाव नहीं भरे जा सके। उनमें क्षात्र-वृत्ति थी, वीरत्व तथा बलिदान का भाव या और मुसलमान शासकों के विरुद्ध युद्ध करते रहने का भाव था, परन्तु उसके बाद क्या करना होगा, यह वे भली-भाँति नहीं समझे। तभी तो उन वीर योद्धाओं के समूह (मिसलें) आपस में भिड़ गए। यहीं पर सामयिक भावों की त्रुटि बुरी तरह अखरती है। यदि बाद में रणजीत सिंह जैसा वीर योद्धा और चालाक शासक न निकल आता, तो सिक्खों को एकत्रित करने के लिए कोई उच्च आदर्श अथवा भाव शेष न रह गया था।

इन सबके साथ एक बात और भी खास ध्यान देने योग्य है। संस्कृत का सारा साहित्य हिन्दू समाज को पुनर्जीवित न कर सका, इसीलिए सामयिक भाषा में नवीन साहित्य की सृष्टि की गई। उस सामयिक भाव के साहित्य ने अपना जो प्रभाव दिखाया वही हम आज तक अनुभव करते हैं। एक अच्छे समझदार व्यक्ति के लिए क्लिष्ट संस्कृत के मन्त्र तथा पुरानी अरबी की आयतें इतनी प्रभावकारी नहीं हो सकतीं जितनी कि उसकी अपनी साधारण भाषा की साधारण बातें।

ऊपर पंजाबी भाषा तथा साहित्य के विकास का संक्षिप्त इतिहास लिखा गया है। अब हम वर्तमान अवस्था पर आते हैं। लगभग एक ही समय पर बंगाल में स्वामी विवेकानन्द तथा पंजाब में स्वामी रामतीर्थ पैदा हुए। दोनों एक ही ढर्रे के महापुरुष थे। दोनों विदेशों में भारतीय तत्त्वज्ञान की धाक जमाकर स्वयं भी जगत्-प्रसिद्ध हो गए, परन्तु स्वामी विवेकानन्द का मिशन बंगाल में एक स्थायी संस्था बन गया, पर पंजाब में स्वामी रामतीर्थ का स्मारक तक नहीं दीख पड़ता। उन दोनों के विचारों में भारी अन्तर रहने पर भी तह में हम एक गहरी समता देखते हैं। जहाँ स्वामी विवेकानन्द कर्मयोग का प्रचार कर रहे थे, वहाँ स्वामी रामतीर्थ भी मस्तानावार गाया करते थे :
 हम रूखे टुकड़े खाएँगे, भारत पर वारे जाएँगे। हम सूखे चने चबाएँगे, भारत की बात बनाएँगे।
 हम नंगे उमर बिताएँगे, भारत पर जान मिटाएँगे

वे कई बार अमेरिका में अस्त होते सूर्य को देखकर आँसू बहाते हुए कहा करते थे-"तुम अब मेरे प्यारे भारत में उदय होने जा रहे हो। मेरे इन आँसुओं को भारत के सलिल सुन्दर खेतों में ओस की बूँदों के रूप में रख देना।" इतना महान देश तथा ईश्वर-भक्त हमारे प्रान्त में पैदा हुआ हो, परन्तु उसका स्मारक तक न दीख पड़े, इसका कारण साहित्यिक फिसड्डीपन के अतिरिक्त क्या हो सकता है?

यह बात हम पद-पद पर अनुभव करते हैं। बंगाल के महापुरुष श्री देवेन्द्र ठाकुर तथा श्री केशवचन्द्र सेन की टक्कर के पंजाब में भी कई महापुरुष हुए हैं, परन्तु उनकी वह कद्र नहीं और मरने के बाद वे जल्द ही भुला दिए गए, जैसे गुरु ज्ञान सिंह जी इत्यादि। इन सबकी तह में हम देखते हैं कि एक ही मुख्य कारण है, और वह है साहित्यिक रुचि जागृति का सर्वथा अभाव।

यह तो निश्चय ही है कि साहित्य के बिना कोई देश अथवा जाति उन्नति नहीं कर सकती, परन्तु साहित्य के लिए सबसे पहले भाषा की आवश्यकता होती है और पंजाब में वह नहीं है। इतने दिनों से यह त्रुटि अनुभव करते रहने पर भी अभी तक भाषा का कोई निर्णय न हो पाया। उसका मुख्य कारण है हमारे प्रान्त के दुर्भाग्य से भाषा को मज़हबी समस्या बना देना। अन्य प्रान्तों में हम देखते हैं कि मुसलमानों के प्रान्तीय भाषा को खूब अपना लिया है। बंगाल के साहित्य-क्षेत्र में कवि नज़र-उल-इस्लाम एक चमकते सितारे हैं। हिन्दी कवियों में लतीफ हुसैन 'नटवर' उल्लेखनीय हैं। इसी तरह गुजरात में भी हैं, परन्तु दुर्भाग्य है पंजाब का। यहाँ पर मुसलमानों का प्रश्न तो अलग रहा, हिन्दू-सिक्ख भी इस बात पर न मिल सके।

पंजाब की भाषा अन्य प्रान्तों की तरह पंजाबी ही होनी चाहिए थी, फिर क्यों नहीं हुई, यह प्रश्न अनायास ही उठता है, परन्तु यहाँ के मुसलमानों ने उर्दू को अपनाया। मुसलमानों में भारतीयता का सर्वथा अभाव है, इसीलिए वे समस्त भारत में भारतीयता का महत्त्व न समझकर अरबी लिपि तथा फारसी भाषा का प्रचार करना चाहते हैं। समस्त भारत की एक भाषा और वह भी हिन्दी होने का महत्त्व उनकी समझ में नहीं आता। इसलिए वे तो अपनी उर्दू की रट लगाते रहे और एक ओर बैठ गए।

फिर सिक्खों की बारी आई। उनका सारा साहित्य गुरुमुखी लिपि में है। भाषा में अच्छी-खासी हिन्दी है, परन्तु मुख्य पंजाबी भाषा है। इसलिए सिक्खों ने गुरुमुखी लिपि में लिखी जानेवाली पंजाबी भाषा को ही अपना लिया। वे उसे किसी तरह छोड़ न सकते थे। वे उसे मज़हबी भाषा बनाकर उससे चिपट गए।

इधर आर्य समाज का आविर्भाव हुआ। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने समस्त भारतवर्ष में हिन्दी प्रचार करने का भाव रखा। हिन्दी भाषा आर्य समाज का एक धार्मिक अंग बन गई। धार्मिक अंग बन जाने से एक लाभ तो हुआ कि सिक्खों की कट्टरता से पंजाबी की रक्षा हो गई और आर्य समाजियों की कट्टरता से हिन्दी भाषा ने अपना स्थान बना लिया।

आर्य समाज के प्रारम्भ के दिनों में सिक्खों तथा आर्य समाजियों की धार्मिक सभाएँ एक ही स्थान पर होती थीं। तब उनमें कोई भिन्न भेदभाव न था, परन्तु पीछे 'सत्यार्थ प्रकाश' के किन्हीं दो-एक वाक्यों के कारण आपस में मनोमालिन्य बहुत बढ़ गया और एक-दूसरे से घृणा होने लगी। इसी प्रवाह में बहकर सिक्ख लोग हिन्दी भाषा को भी घृणा की दृष्टि से देखने लगे। औरों ने इसकी ओर किंचित् भी ध्यान न दिया।

बाद में, कहते हैं कि आर्य समाजी नेता महात्मा हंसराज जी ने लोगों से कुछ परामर्श 'किया था कि यदि वह हिन्दी लिपि को अपना लें, तो हिन्दी लिपि में लिखी जानेवाली पंजाबी भाषा यूनिवर्सिटी में मंजूर करवा लेंगे, परन्तु दुर्भाग्यवश वे लोग संकीर्णता के कारण और साहित्यिक जागृति के न रहने के कारण इस बात के महत्त्व को समझ ही न सके और वैसा न हो सका। खैर! तो इस समय पंजाब में तीन मत हैं। पहला मुसलमानों का उर्दू सम्बन्धी कट्टर पक्षपात, दूसरा आर्य समाजियों तथा कुछ हिन्दुओं का हिन्दी सम्बन्धी, तीसरा पंजाबी का।

इस समय हम एक-एक भाषा के सम्बन्ध में कुछ विचार करें, तो अनुचित न होगा। सबसे पहले हम मुसलमानों का विचार रखेंगे। वे उर्दू के कट्टर पक्षपाती हैं। इस समय पंजाब में इसी भाषा का जोर भी है। कोर्ट की भाषा भी यही है, और फिर मुसलमान सज्जनों का कहना यह है कि उर्दू लिपि में ज्यादा बात थोड़े स्थान में लिखी जा सकती है। यह सब ठीक है, परन्तु हमारे सामने इस समय सबसे मुख्य प्रश्न भारत को यह राष्ट्र बनाना है। एक राष्ट्र बनाने के लिए एक भाषा होना आवश्यक है, परन्तु यह एकदम हो नहीं सकता। उसके लिए कदम-कदम चलना पड़ता है। यदि हम अभी भारत की एक भाषा नहीं बना सकते तो कम-से-कम लिपि तो एक बना देनी चाहिए। उर्दू लिपि तो सर्वांगसम्पूर्ण नहीं कहला सकती, और फिर सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसका आधार फारसी भाषा पर है। उर्दू कवियों की उड़ान, चाहे वे हिन्दी (भारतीय) ही क्यों न हों, ईरान से साकी और अरब की खजूरों को जा पहुँचती है। काज़ी नज़र-उल-इस्लाम की कविता में तो धूरजटी, विश्वामित्र और दुर्वासा की चर्चा बार-बार है, परन्तु हमारे पंजाबी हिन्दी-उर्दू कवि उस ओर ध्यान तक भी न दे सके। क्या यह दुख की बात नहीं? इसका मुख्य कारण भारतीयता और भारतीय साहित्य से उनकी अनभिज्ञता है। उनमें भारतीयता आ ही नहीं पाती, तो फिर उनके रचित साहित्य से हम कहाँ तक भारतीय बन सकते हैं? केवल उर्दू पढ़नेवाले विद्यार्थी भारत के पुरातन साहित्य का ज्ञान नहीं हासिल कर सकते। यह नहीं कि उर्दू जैसी साहित्यिक भाषा में उन ग्रन्थों का अनुवाद नहीं हो सकता, परन्तु उसमें ठीक वैसा ही अनुवाद हो सकता है, जैसा कि एक ईरानी को भारतीय साहित्य सम्बन्धी ज्ञानोपार्जन के लिए आवश्यक हो।

हम अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में केवल इतना ही कहेंगे कि जब साधारण आर्य और स्वराज्य आदि शब्दों को आर्या और स्वराजिया लिखा और पढ़ा जाता है तो गूढ़ तत्त्वज्ञान सम्बन्धी विषयों की चर्चा ही क्या? अभी उस दिन श्री लाला हरदयाल जी एम. ए. की उर्दू पुस्तक 'कौमें किस तरह ज़िन्दा रह सकती हैं?' का अनुवाद करते हुए सरकारी अनुवादक ने ऋषि नचिकेता को उर्दू में लिखा होने से नीची कुतिया समझकर 'ए बिच ऑफ लो ओरिजिन' अनुवाद किया था। इसमें न तो लाला हरदयाल जी का अपराध था, न अनुवादक महोदय का। इसमें कसूर था उर्दू लिपि का और उर्दू भाषा की हिन्दी भाषा तथा साहित्य से विभिन्नता का।

शेष भारत में भारतीय भाषाएँ और लिपियाँ प्रचलित हैं। ऐसी अवस्था में पंजाब में उर्दू का प्रचार कर क्या हम भारत से एकदम अलग-थलग हो जावें? नहीं। और फिर सबसे बड़ी बात तो यह है कि उर्दू के कट्टर पक्षपाती मुसलमान लेखकों की उर्दू में फारसी का ही आधिक्य रहता है। 'ज़मींदार' और 'सियासत' आदि मुसलमान-समाचार पत्रों में तो अरबी का जोर रहता है. जिसे एक साधारण व्यक्ति समझ भी नहीं सकता। ऐसी दशा में उसका प्रचार कैसे किया जा सकता है? हम तो चाहते हैं कि मुसलमान भाई भी अपने मज़हब पर पक्के रहते हुए ठीक वैसे ही भारतीय बन जाएँ जैसे कि कमाल टर्क हैं। भारतोद्धार तभी हो सकेगा। हमें भाषा आदि के प्रश्नों को मार्मिक समस्या न बनाकर खूब विशाल दृष्टिकोण से देखना चाहिए।

इसके बाद हम हिन्दी-पंजाबी भाषाओं की समस्या पर विचार करेंगे। बहुत-से आदर्शवादी सज्जन समस्त जगत को एक राष्ट्र, विश्व राष्ट्र बना हुआ देखना चाहते हैं। यह आदर्श बहुत सुन्दर है। हमको भी इसी आदर्श को सामने रखना चाहिए। उस पर पूर्णतया आज व्यवहार नहीं किया जा सकता, परन्तु हमारा हर एक कदम, हमारा हर एक कार्य इस संसार की समस्त जातियों, देशों तथा राष्ट्रों को एक सुदृढ़ सूत्र में बाँधकर सुख-वृद्धि करने के विचार से उठना चाहिए। उससे पहले हमको अपने देश में यही आदर्श कायम करना होगा। समस्त देश में एक भाषा, एक लिपि, एक साहित्य, एक आदर्श और एक राष्ट्र बनाना पड़ेगा, परन्तु समस्त एकताओं से पहले एक भाषा का होना जरूरी है, ताकि हम एक-दूसरे को भली-भाँति समझ सकें। एक पंजाबी और एक मद्रासी इकट्ठे बैठकर केवल एक-दूसरे का मुँह ही न ताका करें, बल्कि एक-दूसरे के विचार तथा भाव जानने का प्रयल करें, परन्तु यह पराई भाषा अंग्रेजी में नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान की अपनी भाषा हिन्दी में। यह आदर्श भी, पूरा होते-होते अभी कई वर्ष लगेंगे। उसके प्रयत्न में हमें सबसे पहले साहित्यिक जागृति पैदा करनी चाहिए। केवल गिनती के कुछ एक व्यक्तियों में नहीं, बल्कि सर्वसाधारण मे। सर्वसाधारण में साहित्यिक जागृति पैदा करने के लिए उनकी अपनी ही भाषा आवश्यक है। इसी तर्क के आधार पर हम कहते हैं कि पंजाब में पंजाबी भाषा ही आपको सफल बना सकती है।

अभी तक पंजाबी साहित्यिक भाषा नहीं बन सकी है और समस्त पंजाब की एक भाषा भी वह नहीं है। गुरुमुखी लिपि में लिखी जानेवाली मध्य पंजाब की बोलचाल की भाषा को ही इस समय तक पंजाबी कहा जाता है। वह न तो अभी तक विशेष रूप से प्रचलित ही हो पाई है और न ही साहित्यिक तथा वैज्ञानिक ही बन पाई है। उसकी ओर पहले तो किसी ने ध्यान ही नहीं दिया, परन्तु अब जो सज्जन उस ओर ध्यान भी दे रहे हैं उन्हें लिपि की अपूर्णता बेतरह अखरती है। संयुक्त अक्षरों का अभाव और हलन्त न लिख सकने आदि के कारण उसमें भी ठीक-ठीक सब शब्द नहीं लिखे जा सकते, और तो और, पूर्ण शब्द भी नहीं लिखा जा सकता। यह लिपि तो उर्दू से भी अधिक अपूर्ण है और जब हमारे सामने वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर निर्भर सर्वांगसम्पूर्ण हिन्दी लिपि विद्यमान है, फिर उसे अपनाने में हिचक क्या? गुरुमुखी लिपि तो हिन्दी अक्षरों का ही बिगड़ा हुआ रूप है। आरम्भ में ही उसका उ काउ, अ काउ बना हुआ है और म ट ठ आदि तो वे ही अक्षर हैं। सब नियम मिलते हैं फिर एकदम उसे ही अपना लेने से कितना लाभ हो जाएगा? सर्वांगसम्पूर्ण लिपि को अपनाते ही पंजाबी भाषा उन्नति करना शुरू कर देगी। और उसके प्रचार में कठिनाई ही क्या है? पंजाब की हिन्दू स्त्रियाँ इसी लिपि से परिचित हैं। डी. ए. वी. स्कूलों और सनातन धर्म स्कूलों में हिन्दी ही पढ़ाई जाती है। ऐसी दशा में कठिनाई ही क्या है? हिन्दी के पक्षपाती सज्जनों से हम कहेंगे कि निश्चय ही हिन्दी भाषा ही अन्त में समस्त भारत की एक भाषा बनेगी, परन्तु पहले से ही उसका प्रचार करने से बहुत सुविधा होगी। हिन्दी लिपि के अपनाने से ही पंजाबी हिन्दी की-सी बन जाती है। फिर तो कोई भेद ही नहीं रहेगा और इसकी जरूरत है, इसलिए कि सर्वसाधारण को शिक्षित किया जा सके और यह अपनी भाषा के अपने साहित्य से ही हो सकता है। पंजाबी की यह कविता देखिए-

ओ राहिया राहे जान्दया, सुन जा गल मेरी, 
सिर ते पग तेरे वलैत दी, इहनूँ फूक मआतड़ा ला ॥

और इसके मुकाबले में हिन्दी की बड़ी-बड़ी सुन्दर कविताएँ कुछ प्रभाव न कर सकेंगी, क्योंकि वह अभी सर्वसाधारण के हृदय के ठीक भीतर अपना स्थान नहीं बना सकी हैं। वह अभी कुछ बहुत पराई-सी दीख पड़ती हैं। कारण कि हिन्दी का आधार संस्कृत है। पंजाब उससे कोसों दूर हो चुका है। पंजाबी में फारसी ने अपना प्रभाव बहुत कुछ रखा है। यथा, चीज का जमा 'चीज़ें' न होकर फारसी की तरह 'चीज़ाँ' बन गया है। यह असूल अन्त तक कार्य करता दिखाई देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि पंजाबी के निकट होने पर भी हिन्दी अभी पंजाबी-हृदय से काफी दूर है। हाँ, पंजाबी भाषा के हिन्दी लिपि में लिखे जाने पर और उसके साहित्य बनाने के प्रयत्न में निश्चय ही वह हिन्दी के निकटतर आ जाएगी।

प्रायः सभी मुख्य तर्कों पर तर्क किया जा चुका है। अब केवल एक बात कहेंगे। बहुत-से सज्जनों का कथन है कि पंजाबी भाषा में माधुर्य, सौन्दर्य और भावुकता नहीं है। यह सरासर निराधार है। अभी उस दिन-

लच्छीए जित्थे तू पानी डोलिया 
ओत्थे उग पए सन्दल दे बूटे

वाले गाने के माधुर्य ने कवीन्द्र रवीन्द्र तक को मोहित कर लिया और वे झट अंग्रेजी में अनुवाद करने लगे- O Lachi, where there spilt water, where there spilt water...etc...etc...

और बहुत-से और उदाहरण भी दिए जा सकते हैं। निम्न वाक्य क्या किसी अन्य भाषा की कविताओं से कम है?-

पिपले दे पत्तया वे केही खड़खड़ लाई ऐ। 
पत्ते झड़े पुराने हूण रुत्त नवयां दी आई आ ॥

और फिर जब पंजाबी अकेला अथवा समूह बैठा हो तो 'गौहर' के यह पद जितना प्रभाव करेंगे, उतना कोई और भाषा क्या करेगी?

लाम लक्खां ते करोड़ों दे शाह वेखे 
न मुसाफिरां कोई उधार देंदा, 
दिने रातीं जिन्हां दे कूच डेरे न उन्हां
 दे थाईं कोई एतबार देंदा।
भौरे बहंदे गुलां दी वाशना ते 
ना सप्पा दे मुहां ते कोई प्यार देंदा 
 गौहर समय सलूक हन ज्यूँदया दे 
मोयां गियां नूं हर कोई विसार देंदा।
और फिर-

जीम ज्यूदियाँ नूं क्यों मारना ऐं, जेकर नहीं तूं मोयां नूं जिऔण जोगा घर आए सवाली नूं क्यों घूरना ऐं, जेकर नहीं तू हत्थीं खैर पौण जोगा मिले दिलां नूं क्यों बिछोड़ना ऐं, जेकर नहीं तू बिछड़यां नू मिलौण जोगा गौहरा बदीयां रख बन्द खाने, जेकर नहीं तू नेकी कमौण जोगा।

और फिर अब तो दर्द, मस्ताना, दीवाना बड़े अच्छे-अच्छे कवि पंजाबी की कविता का भंडार बढ़ा रहे हैं।

ऐसी मधुर, ऐसी विमुग्धकारी भाषा तो पंजाबियों ने ही न अपनाई, यही दुख है। अब भी नहीं अपनाते, समस्या यही है। हरेक अपनी बात के पीछे मज़हबी डंडा लिए खड़ा है। इसी अड़ंगे को किस तरह दूर किया जाए, यही पंजाब की भाषा तथा लिपि विषयक समस्या है, परन्तु आशा केवल इतनी है कि सिक्खों में इस समय साहित्यिक जागृति पैदा हो रही है। हिन्दुओं में भी है। सभी समझदार लोग मिलकर-बैठकर निश्चय ही क्यों नहीं कर लेते ! यही एक उपाय है इस समस्या के हल करने का। मज़हबी विचार से ऊपर उठकर इस प्रश्न पर गौर किया जा सकता है, वैसे ही किया जाए, और फिर अमृतसर के 'प्रेम' जैसे पत्र की भाषा को ज़रा साहित्यिक बनाते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी में पंजाबी भाषा को मंजूर करा देना चाहिए। इस तरह सब बखेड़ा तय हो जाता है। इस बखेड़े के तय होते ही पंजाब में इतना सुन्दर और ऊँचा साहित्य पैदा होगा कि यह भी भारत की उत्तम भाषाओं में गिनी जाने लगेगी।

(स्रोत- भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज़)

Saturday, April 12, 2025

वक्फ : इतिहास, विवाद और कानून

क्या है वक्फ का इतिहास
भारत में वक्फ प्रॉपर्टीज को प्रबंधन में सुधार और दुरूपयोग को रोकने के लिए विभिन्न कानूनों द्वारा शासित किया गया है, जिसकी शुरूआत मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम, 1913 से हुई जिसने पारिवारिक वक्फ को अंततः धर्मार्थ उपयोग के लिए अनुमति दी। 1923 और 1930 के अधिनियमों ने पारदर्शिता की शुरुआत की और कानूनी वैधता को मजबूत किया। वक्फ अधिनियम, 1954 ने राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद (1964) का गठन किया, जिसे बाद में व्यापक वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसने सिविल कोर्ट की शक्तियों के साथ वक्फ न्यायाधिकरणों की शुरुआत की। वक्फ(संशोधन) अधिनियम,2013 ने तीन  सदस्यीय न्यायाधिकरणों को अनिवार्य बना दिया जिसमें एक मुस्लिम कानून विशेषज्ञ, प्रत्येक बोर्ड में दो महिला सदस्य, वक्फ संपत्तियों की बिक्री या उपहार में देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पट्टे की अवधि को 30 वर्ष तक बढ़ा दिया गया। अब, सरकार के अनुसार, वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य वक्फ शासन को आधुनिक बनाना और कानूनी चुनौतियों का समाधान करना है। बयान में कहा गया है कि अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने और वक्फ भूमि पर वाणिज्यिक विकास को निधि देने के लिए कौमी वक्फ बोर्ड तरक्की योजना और शहरी वक्फ संपत्ति विकास योजना को लागू कर रहा है।

वक्फ बोर्ड के बारे में समझने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि वक्फ क्या है? वक्फ अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु या परोपकार के लिए दिया गया धन होता है। इसमें चल और अचल संपत्ति को शामिल किया जाता है। बता दें कि कोई भी मुस्लिम अपनी संपत्ति वक्फ को दान कर सकता है। कोई भी संपत्ति वक्फ घोषित होने के बाद गैर-हस्तांतरणीय हो जाती है।

क्या है वक्फ बोर्ड ?

वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का काम वक्फ बोर्ड करता है। यह एक कानूनी इकाई है। प्रत्येक राज्य में वक्फ बोर्ड होता है। वक्फ बोर्ड में संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य है। बोर्ड संपत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण करता है। राज्यों में बोर्ड का नेतृत्व अध्यक्ष करता है। देश में शिया और सुन्नी, दो तरह के वक्फ बोर्ड हैं।

कौन होता है वक्फ बोर्ड का सदस्य ?

वक्फ बोर्ड को मुकदमा करने की शक्ति भी है। अध्यक्ष के अलावा बोर्ड में राज्य सरकार के सदस्य, मुस्लिम विधायक, सांसद, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली को शामिल किया जाता है।

क्या करता है बोर्ड ?

वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के अलावा बोर्ड वक्फ में मिले दान से शिक्षण संस्थान, मस्जिद, कब्रिस्तान और रैन-बसेरों का निर्माण व रखरखाव करता है।

क्या है वक्फ एक्ट 1954?
देश में सबसे पहली बार 1954 में वक्फ एक्ट बना। इसी के तहत वक्फ बोर्ड का भी जन्म हुआ। इस कानून का मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को सरल बनाना था। एक्ट में वक्फ की संपत्ति पर दावे और रख-रखाव तक का प्रावधान हैं। 1955 में पहला संशोधन किया गया। 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना। इसके तहत हर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई। बाद में साल 2013 में इसमें संशोधन किया गया था।
क्या है केंद्रीय वक्फ परिषद ?

केन्द्रीय वक्फ परिषद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक सांविधिक निकाय है। परिषद को 1964 में वक्फ अधिनियम 1954 के प्रावधन के मुताबिक किया गया। इसे वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और ऑक्फ प्रशासन से संबंधित मामलों में केंद्र सरकार के सलाहकार निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। परिषद को केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राज्य वक्फ बोर्डों को सलाह देने का अधिकार है। परिषद का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री होता है।

इस पर विवाद क्यों?
वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 पर बहस छिड़ी है इसके तहत बोर्ड को रीजन टू बिलीव की शक्ति मिल मिल जाती है। अगर बोर्ड का मानना है कि संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वो खुद से जांच कर सकता है, और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है। अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज सकता है। ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। मगर यह प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है। दरअसल, कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ रहती है। इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं।अब सरकार ऐसे ही विवादों से बचने की खातिर संशोधन विधेयक लेकर आई है। विधेयक के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को भी बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा। 

सरकार और विपक्ष का तर्क

सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है। इसमें वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार मिले। 2013 में संशोधन करके बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफिया का कब्जा है।

सरकार का कहना है कि संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है। इससे मुस्लिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा। ओवैसी ने सरकार को मुसलमानों का दुश्मन बताया। कांग्रेस ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया तो वहीं मायावती ने कहा कि संकीर्ण राजनीति छोड़ राष्ट्रधर्म सरकार निभाए।

1. बोर्ड परिषद की सदस्यता

पहले- वक्फ बोर्ड की परिषद में सिर्फ मुस्लिम सदस्य की शामिल हो सकते

अब- वक्फ बिल पास होने के बाद परिषद में 2 महिलाएं और 2 गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनिवार्य होगा!

2. संपत्ति पर दावा

पहले- वक्फ तोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा घोषित कर सकता है।

अब- वक्फ बोर्ड को किसी भी संपति पर मालिकाना हक ठोकने से पहले सत्यापन करना अनिवार्य होगा कि वो संपत्ति वास्तव में वक्फ बोर्ड की ही है।

3. सरकारी संपत्ति का दर्जा

पहले- वक्फ वोर्ड सरकारी संपत्ति पर भी दावा कर सकता है।

अब- सरकारी संपत्ति वक्फ से बाहर होगी और वक्फ बोर्ड को सरकारी संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं मिलेगा।

4. अपील का अधिकार

पहले - वक्फ बोर्ड के खिलाफ सिर्फ वक्फ ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया जा सकता था। वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी होता था, और इसे किसी अन्य न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

अब- वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को 90 दिनों  के भीतर हाई कोर्ट में चुनौती दी

5. प्रबंधन और निगरानी

पहले- वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई बार दुरुपयोग की शिकायते सुनने को मिलती रही हैं। कई लोगों का दावा है कि वक्फ उनकी सपत्ति पर जबरन दावा ठोक देता है।


अब-वक्फ बोर्ड की सभी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन जिला मुख्यालय में होगा। पहले वक्फ बोर्ड में सभी के लिए समान कानून थे।


6. विशेष समुदायों के अलग प्रावधान

 पहले-  वक्फ बोर्ड में सभी के लिए समान कानून थे।

अब-वोहरा और आगाखानी मुसलमानी के लिए अलग से वक्फ बोर्ड बनाया जाएगा।

7. वक्फ बोर्ड के सदस्य

पहले- वक्फ बोर्ड पर कुछ विशेष मुस्लिम समुदायों का कब्जा था।

अब- वक्फ बोर्ड में शिया और सुन्नी समेत पिछड़े वर्ग के मुस्लिम समुदायों से भी सदस्य बनेंगे।

8. तीन सांसदों की एंट्री

पहले- सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 3 सांसद (2) लोक सभा और 1 राज्य सभा) होते थे, और तीनों सासदी का मुस्लिम होना अरूरी था।

अब-  केंद्र सरकार तीन सासदों को सेंट्रल वक्फ काउंसिल में रखेगी और तीनों का मुस्लिम होना अनिवार्य नहीं है।

राज्यों के अनुसार, उत्तर प्रदेश (सुन्नी) 2.17 लाख वक्फ प्रॉपर्टीज के साथ सबसे आगे है, हालांकि कुल क्षेत्रफल के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। इसके बाद पश्चिम बंगाल (80,480 प्रॉपर्टीज), पंजाब (75.965). तमिलनाडु (66,092) और कर्नाटक (62,830) का स्थान है। 32 राज्यों के पास 8,72,328 प्रॉपर्टीज हैं, जिनका कुल एरिया 38,16,291.788 एकड़ है।

( स्त्रोत- राष्ट्रीय सहारा अखबार हस्तक्षेप अंक 12 अप्रैल 2025 शनिवार)

Wednesday, April 9, 2025

मोदी सरकार मार्च 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए संकल्पित है

नक्सलवाद की लड़ाई में सरकार तनिक भी पीछे नहीं हटी है। गृह मंत्री ने जो कहा था वो जमीनी स्तर पर दिख रहा है। नक्सलवाद ने देश का बहुत नुकसान किया है और इसकी वजह से देश के कुछ इलाके पिछड़े ही रह गए और विकास की राह ताकते रह गए। डेढ़ दो सालों से जो से जो एक्शन लिया जा रहा है सरकार द्वारा और सुरक्षा बलों ने जिस तरह से ऑपरेशन चलाया है निश्चिंत ही प्रशंसनीय है।  गृह मंत्री अमित शाह अगस्त 2024 और दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ के रायपुर और जगदलपुर आए थे। वे यहां अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग मंच से नक्सलियों को चेताते हुए कहा था कि हथियार डाल दों। हिंसा करोगे तो हमारे जवान निपटेंगे। वहीं, उन्होंने एक डेडलाइन भी जारी की थी कि 31 मार्च 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद का खात्मा कर दिया जाएगा। शाह की डेडलाइन जारी करने के बाद से बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन काफी तेज हो गए हैं।

अभी हाल ही में एक हुए एक ऑपरेशन में 18 नक्सली मारे गए जिसमें 11 महिला नक्सली शामिल थी। इन मारे गए नक्सलियों में एक 25 लाख इनामी नक्सली दरभा डिविजन सचिव कुड़हामी जगदीश उर्फ बधुरा भी शामिल है। नक्सली जगदीश एक दर्जन से अधिक घातक नक्सली घटनाओं में वांछित था, जिसमें 2013 का झीरम घाटी हमला भी शामिल है। इस घटना में कांग्रेस के कई नेता मारे गए थे।

नक्सलवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के चलते वर्ष 2025 में अब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में मुठभेड़ों में कम से कम 130 नक्सली मारे गए हैं। इनमें से 110 से ज्यादा बस्तर संभाग में मारे गए, जिसमें बीजापुर और कांकेर समेत सात जिले शामिल हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से 105 से अधिक नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 2025 में अब तक 164 ने आत्मसमर्पण कर दिया है। वहीं इससे पहले वर्ष 2024 में 290 नक्सलियों को न्यूट्रलाइज़ किया गया था, 1090 को गिरफ्तार किया गया और 881 ने आत्मसमर्पण किया था। अभी तक कुल 15 शीर्ष नक्सली नेताओं को न्यूट्रलाइज़ किया जा चुका है। 


सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अभी कोई विरोध प्रदशर्न देखने को नहीं मिला उन तमाम वामपंथी संगठनों और लोगों का जो इनके समर्थन  में लिखते और बोलते हुए दिख जाते थे। अर्बन नक्सल ने युवाओं को प्रभावित तो किया ही है पर इस समय सब शांत हो चले हैं। कुछ भी बोले तो लेने के देने पड़ जाएंगे। आज के समय में इनका प्रोपोगेंडा पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। मोदी सरकार रुथलैस अप्रोच के साथ वामपंथी उग्रवाद के पूरे इकोसिस्टम को ध्वस्त कर रही है।  नक्सलवाद की एक ही विचारधारा है - विध्वंस और हिंसा।  मानव अधिकार के आड़ में अपने लिए ही संवेदना बटोरना नक्सलियों की रणनीति रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हिंसा के शिकार इन लोगों के जख्म नक्सलवाद की अमानवीयता और क्रूरता के जीवंत प्रतीक हैं।

साफ संदेश है नक्सलवाद को की क्रांति तुम्हारे खून से होगी बंदूक छोड़ दो वरना दौड़ा दौड़ा कर ठोके जाओगे। देखा जाय तो पूरी प्लानिंग के तहत जवाबी कार्रवाई हुई है। जब से विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने हैं तब से बहुत कुछ बदलाव देखने को मिला है। इतनी तेजी से भारी मात्रा नक्सलियों का सफाया कभी नहीं हुआ था। आमने- सामने की लड़ाई पुरी से तरह सुरक्षाबल हावी  दिखे हैं। पहले केवल हमारे जवानो की जाने जाती थी लेकिन अब इसके उलट हो रहा है कारण मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति बिना इसके ये असंभव था । प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के कुशल नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में एक नया इतिहास रचा जा रहा है। सबसे पहले देखने वाली बात है कि ऑपरेशन सीधा गृह मंत्रालय से ऑपरेट किया जा रहा हैं केंद्रीय सुरक्षा बलों के नेतृत्व में वो भी और साथ में डीआरजी भी शामिल है। उन्हें सबकुछ दिया जा रहा जिसकी वो मांग करते आए थे। मेरे ख्याल से  सिर्फ वहीं लोग ऑपरेशन में शामिल हैं जो जंगल  ट्रेनिंग और वारफेयर में बेस्ट हैं।  

छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अपनी नई आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के तहत कई प्रोत्साहन शुरू किए हैं, जैसे आत्मसमर्पण करने वालों को आर्थिक सहायता, नौकरी और शिक्षा की सुविधाएं प्रदान करना। इस नीति का असर दिख रहा है, क्योंकि हाल के महीनों में आत्मसमर्पण की संख्या में वृद्धि हुई है।
बस्तर संभाग में नक्सलवाद के खिलाफ अभियानों के साथ-साथ विकास कार्यों पर भी जोर दिया जा रहा है। सड़कें, स्कूल, अस्पताल और बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं। सरकार का मानना है कि विकास और सुरक्षा के संयुक्त प्रयासों से नक्सलवाद को जड़ से खत्म किया जा सकता है। शाह के दौरे से स्थानीय लोगों में भी उम्मीद जगी है कि बस्तर जल्द ही नक्सल मुक्त होकर एक नई पहचान बनाएगा।

मां दंतेश्वरी की कृपा से बस्तर नक्सलवाद के दंश से उबर रहा है, पूर्ण विश्वास है कि मां ऐसा भी दिन दिखाएंगी जब बस्तर नक्सलवाद के गढ़ के रूप में नहीं बल्कि अद्वितीय आदिवासी संस्कृति और रमणीय प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाएगा।
मेरी प्रभु राम से भी यह प्रार्थना है कि उनका ननिहाल नक्सलवाद के दंश से अविलंब मुक्त हो।
जय श्री राम
जय मां दंतेश्वरी।।

Tuesday, February 11, 2025

कुंभ एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम है न कि राजनीतिक


भारत में इस समय कुंभ चल रहा है। दुनिया भर के लोग यहां पहुंचे छोटे से लेकर बड़े तक। लाखों करोड़ों की भीड़ उत्साह से भरी हुई । इस बीच एक दुखद घटना भी घटी जो कि नहीं घटनी चाहिए थी । इस लेकर बहुत राजनीति भी हुई । वो भी राजनीति करने लगे जिन्होंने कुंभ मेले का प्रबन्धक एक मुस्लिम को बना रखा था जिनके कार्यकाल में भगदड़ मची थी रेलवे का पुल टूटा था और दो लाख से ज्यादा तो गुमशुदा हुए। और भी न जाने क्या क्या हुआ? जिन्हें सैफई महोत्सव से फुरसत नहीं मिला वो क्या कोई धार्मिक आयोजन करवाएंगे होंगे... बस माहौल बिगाड़ने आता है। 
आजकल कुकुरमुत्तों की तरह पत्रकार हो गए हैं। जिसे देखो वही माइक कैमरा लेकर पत्रकार बना हुआ है। गिद्ध पत्रकारों जमावड़ा लगा हुआ है जिनका  काम सिर्फ कुंभ खिलाफ नकारात्मक प्रचार प्रसार करना है। 
जया बच्चन प्रयागराज में नहीं रहती। उत्तर प्रदेश में ही नहीं रहती। गंगा जी में कुंभ मेले में मरे लोगों की लाशें फेंके जाने का कोई साक्ष्य नहीं है। फिर भी जुबान दराजी कर रही हैं और उत्तर प्रदेश को बदनाम कर रही हैं। रामगोपाल यादव ने भी कहा  कि लाशों को बालू में दफना दिया गया है  अब क्या बोला जाए दो कौड़ी के समाजवादियों को। इनके अध्यक्ष जी खुद फालतू बयान देने में लगे रहते हैं जिससे अराजकता फैलती है।

कांग्रेस बड़े नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि "गंगा में डुबकी लगाने के लिए इन लोगों में कंपीटिनशन लगा रखा है। लेकिन गंगा में स्नान करने से गरीबी दूर होती है क्या, भूखे पेट को रोटी मिलती है क्या? मैं किसी की आस्था पर चोट करना नहीं चाहता। अगर किसी को दुख हुआ तो माफी चाहता हुं। लेकिन हजारों रुपए खर्च करके डुबकियां मार रहे हैं और जब तक टीवी पर अच्छे नहीं आता तबतक डुबकी मारते रहते हैं।"
भाजपा के विरोध में सनातन धर्म एवं संस्कृति का मजाक बनाकर रख दिया है इन लोगों ने जो कही से भी ठीक नहीं है।

तब में और अब में बहुत अंतर है ... आज के समय में निजी और सार्वजनिक दोनों साधन आसानी से उपलब्ध हैं। सड़के चौड़ी और बेहतरीन बन चुकीं हैं जिससे काफी समय बचता है, ट्रेनों में बढ़ोतरी हुई है कई सारी चल रही हैं पहले के मुकाबले, जहां एक लेन की पटरी थी दो लेन हो चुकी है। पहले लोगों को सोचना पड़ता था आने जाने में अब नहीं सोचता है कोई भी। लोगों के पास जब मोबाइल फोंस आए हैं सबकुछ आसान सा हो चुका है। ऐसा नहीं है कि सब पहले बहुत ज्यादा अमीर और पैसे वाले हो चुके हैं पर लोगों का थोड़ा बहुत लाइफ स्टैंडर्ड तो बढ़ा ही है..लोग अपने निजी वाहनों से निकल ले रहे हैं।
सोशल मीडिया पर फोटो वीडियो सबको डालने का शौक है ... खास मौके का सब इंतजार करते हैं.. कुंभ तो बहुत बड़ा मौका है। जमकर प्रचार प्रसार हुआ है खासकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म का बहुत बड़ा योगदान है। वैसे इससे पहले भी लोग आते ही थे लेकिन इतने बड़े स्तर पर कभी नहीं।

व्यवस्था की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार और प्रशासन की बनती है। इस आधुनिकता के दौर में तमाम तरह के भ्रामक खबरों को लेकर एक्शन लेना सरकार का काम है और किसी भी तरह की हुड़दंगई ना हो ये भी सुनिश्चित करना सरकार का काम है। आप इससे पीछे नहीं हट सकते हैं। प्रशंसा होगा तो आलोचना भी होगा।

पुरा भारत एक ही विशेष दिन कुंभ नहाले ये भी संभव नहीं है । लगभग सभी अपने गांवों शहरों से इक्कठे निकल ले रहे हैं। नियंत्रित करना आसान नहीं है पर अराजकता रोकना शासन प्रशासन का काम है। कुछ लोग भगदड़ में मरने वालों को कह रहे हैं उन्हें मोक्ष मिला है तो थोड़ा वाणी पर संयम रखे। कोई वहां मरने नहीं गया था। अब सबकुछ बढ़िया से निकले यही सब चाहते हैं। व्यस्था में थोड़ी चूक हुई लेकिन समय रहते सब संभाल लिया गया। ढंग से जांच होना बनता है जैसा प्रत्यक्ष दर्शियों ने बताया है ।