Saturday, September 30, 2023

कुआं हमारे पूर्वजों की धरोहर है

आज कल सब कुएं की बात कर रहे है मेरे घर में दो कुआ था। एक कुआ बाहर  द्वार पर है ठाकुर जी के मंदिर से सटा हुआ ये मंदिर भी हमारे घर का जिसका मन आए अपना पूजा पाठ करे। जिसका मन था अपना रस्सी लाता था पानी निकालता था चला जाता था... कभी किसी को पानी के लिए नही रोका हमने और तो हमारे पूर्वजों ने ऐसे दसियो कुएं खुदवा रखे थे गांव भर में...। शाम को बैठकी भी होती थी यहां तमाम विषयों को लेकर खासकर क्रिकेट से लेकर राजनीति तक कुछ भी नही छूटता था। बहुत  लोगो की अनगिनत यादें इससे जुड़ी हुई है।

अब मंदिर कुछ ऐसा दिखता है.... कुएं को पाटा नही गया है.. बाकी सबके घर के हैंडपंप लगा हुआ है हैंडपंप क्या होता है बटन दबाकर हर हर गंगे होता है..!
ये हमारा पंपू सेट मशीन... अंगिनत यादों को समेटे.. अब भले
खंडहर हो चला है लेकिन इसका भी एक जमाना था .. 70 के
दशक में इसे नीदरलैंड के इंजीनियर साहब लोग बनाए थे.... यहां से भी लोग आते थे बटन दबाते थे पानी ले जाते थे अपने मन का ..हमारे दादाजी कभी नहीं टोके किसी को भी ना ही किसी को टोकने देते थे पानी के लिए .. भले सामने वाले से मारा मारी हुआ हो लेकिन पानी हमेशा ऑन रहता था किसी भी समय... आजकल लोग घड़ी देखते हैं यहां कोई समय नहीं देखा जाता था.. जिसे बोल दिए पानी देंगे उसे दे ही देते थे भले अपना कल भराए खेत... पैसा रूपया कुछ नहीं जिसका मन में आया दे दे कुछ भी नही तो रहने दे।

मेरे दादाजी इस मशीन पर अकेले रात में सोते थे रात में.. नाग देवता लोग भी आते जाते रहते थे पर किसी की हिम्मत नही थी इन्हे कोई मारे दादाजी मना किए थे इन्हें कोई नही छुएगा एक बार इनके घर में ही इनके बड़े भाई साहब ने एक सांप को मार दिए थे तो नाराज हो गए थे....! बाकी यहां झुंड लगता था लोगो का नहाने के लिए जो यहां नहाए हैं बचपन में उनका एक अलग ही अनुभव रहा  होगा..। 

ये टैंक जिसे हौदा भी बोलते थे हम लोग इसमें डूबकर नहाने का एक अलग ही मजा था।



जस का तस का देखिए सब पड़ा हुआ है। मैंने सोचा हैं इसे बनवाऊंगा जल्द ही काम लगवाने वाला हु। 

2005_7 तक के बाद यहां का काम खत्म हो चला था। घर में कोई ऐसा नही था जो ये सब काम देखें। सब पढ़ लिखकर बाहर ही निकल गए। खेती बारी कौन देख ही रहा है आज के समय में। पहले की तरह खेती बारी भी नही रह गई हैं। जहा तक मुझे लगता है गांव के युवा जो बाहर जाकर मेहनत मजदूरी करते है उतना तो अपने यहां सब्जियां उगाकर कमा लेंगे साथ में 2 चार गाय भैंस पाल ले तो क्या ही कहना ..! लेकिन भेड़ चाल में सब निकल पड़े है गांव गलियों को छोड़कर खैर इसपर चर्चा फिर कभी करूंगा किसी और ब्लॉग में।
ये ठीक पंपु सेट मशीन के पीछे ही है हमारे। ये पूर्वजों की विरासत में से एक है "बिशुन बाबा" हर दिवाली यहां दीया बारा जाता है। सभी गांव वालो के लिए पूजनीय है। इसके बगल में एक और कुआ हैं इतना पुराना होने के बाद भी इसमें साफ जल बना हुआ है।
ये रहा काली माई का तीर्थ स्थल में .. मेरे पूर्वजों में  एक काली बाबा थे जो यहां तपस्या किए थे इसी नीम के पेड़ के नीचे काली माई स्थापित हो गई कोई हिला ना सका ये नया मंदिर बनवाया लोगो ने लेकिन माई पेड़ के नीचे ही रही जस की तस माई की महिमा अपरंपार है..!
जय हो माई सबका कष्ट हरिए माई। माई के यहां अलग ही सुकून मिलता है।
ये देखिए यहां भी एक कुआ है जो अब वक्त के साथ खंडहर हो चला है। गांव वालों को कम से कम साफ सफाई रखनी चाहिए इधर ये तरांव गांव में पड़ता है मेरे गांव से कुछ ही दूरी पर नदी उस पार।
ये मेरे देवकली गांव की गांगी नदी क्या ही कहना? इसे देखकर कौन कहेगा की पानी के लिए तरसा होगा कोई। भले अब पीने लायक नही रह है लेकिन है तो है खेती बारी में इस्तेमाल होता ही है। बाढ़ आने के बाद ये पुल डूब जाता हैं। लेकिन घबराने की कोई बात नहीं रहती है एक दूसरा रास्ता भी है जो सबके लिए आराम दायक है।
ये पुल है जो नया नया बना है इसकी तवस्वीर सही से नही ले पाया मैं, बाढ़ में इसी का इस्तेमाल होता है। तराव वालों के लिए ये एक वरदान ही समझिए पहले जब बाढ़ आता था तो ये सबसे कट जाते थे। देवकली वालो को ये दिक्कत की खेत खलिहान सबके लगभग इधर ही है नदी पार। 

ये भी मेरे पूर्वजों की धरोहर है ...: ब्रह्म बाबा का मंदिर.. बाबा जगदीशानंद हमारे पूर्वजों में से एक...  यहां लोगो आते जाते रहते है बाबा सबकी सुनते है.. ये कुंवरपुर गांव में है सैदपुर तहसील जिला गाजीपुर.. आप लोग भी इस देव स्थान पर आ सकते है.. खास बात क्या की प्रांगण दसियो बिस्सा में फैला हुआ है कुआ भी मिलेगा और तो और यहां कोई पंडा पुजारी वाला फालतू लफड़ा भी नही है..एक लोग हमारे खानदान के है जो बैठते है इधर देखते रहते है सब ब्राह्मण आदमी है तो पूजा पाठ छोड़ कहा जाएंगे... बाकी शांति भरपूर मिलेगी ... यहां की बात ही कुछ और है बाबा किसी को निराश नहीं होने देते है जो यहां जो आया है कष्ट उसके दूर ही हुए है... बाबा के बारे में दसियो कहनिया किस्से है लिखूंगा आराम से कभी....!
                        जय हो ब्रह्म बाबा 

खास बात का है  हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित किया गया जितना भी कुआ है सैकड़ों वर्ष तक पुराने है,सबमें पानी अभी तक है और सबके सब देव स्थल हैं .... अगल बगल के गांव में दूसरो के द्वारा अब तक बनवाया गया सब सुख गया है.....! यूंही नहीं ब्राह्मण घराने में हमारा परिवार/ खानदान बड़ा है और लोग इज्जत करते है।फिलहाल इतना ही आगे की कड़ी में सिर्फ गांव के मंदिरो के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करूंगा। 

यहां क्लिक कर पढ़े👇


Friday, September 15, 2023

भारत: विश्वगुरु से विश्व नेतृत्व की यात्रा

भारत में जी20 सम्मेलन होने से भारत का एक अलग ही माहौल बना है दुनिया भर में। विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कद वास्तव में पहले से कई गुना अधिक ऊंचा हुआ है। देश को विश्व गुरु बनाने की जो मुहिम छेड़ी है माननीय प्रधानमंत्री जी ने उसपर अमल भी किया हैं। सबसे बड़ी बात क्या मोदी जी के पट्टिका पर "भारत" लिखा गया गया था। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी जी की पहचान "भारत" का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर पेश की गई। सरकार ने जी 20 के कई आधिकारिक दस्तावेजो में देश के लिए "भारत" शब्द का  प्रयोग किया। मोदी जी ने जब शिखर सम्मेलन को संबोधित किया था , उस समय उनके सामने रखी नाम पट्टिका में "भारत" लिखा था। अर्थात एजेंडा तय है कि देश के अस्तित्व एकता और अखंडता संप्रभुता से कोई खिलवाड़ नही कर सकता है। जब बात भारत को उसकी खोई हुई विरासत और पहचान दिलाने की है तो सबसे पहले नाम पर ही काम करना जरूरी था।
मोदी जी ने आह्वान किया की विश्वास की कमी को "भरोसे" में बदले। अशांत वैश्विक अर्थव्यस्था,आतंकवाद तथा खाद्य,ईंधन एवं  उर्वरकों के प्रबंधन का ठोस समाधान को लेकर जोर दिया और आह्वान किया की इसका सामूहिक रूप  से समाधान निकाले। साथ ही साथ क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने का आह्वान हुआ। जी20 देशों के ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन' में शनिवार को कहा गया कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है और इसी के मद्देनजर घोषणापत्र में सभी देशों से क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान किया गया।
घोषणापत्र में कहा गया है कि संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के साथ-साथ कूटनीति और संवाद भी जरूरी है। इसमें कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध के संबंध में बाली में हुई चर्चा को याद किया गया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनाए गए प्रस्तावों को दोहराया गया।
यूक्रेन संघर्ष पर घोषणा पत्र की खास बातें :

■ आज का युग युद्ध का युग नहीं है
■ संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के साथ-साथ कूटनीति और संवाद भी जरूरी 
■ सभी देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करें 
■ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल या इस्तेमाल की धमकी देना अस्वीकार्य
■ जी20 आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है, भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों के समाधान का मंच नहीं
■ रूसी संघ और यूक्रेन से अनाज, खाद्य पदार्थों और उर्वरकों की तत्काल और निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का आह्वान

इसके साथ 55 देशों के सदस्यों वाले अफ्रीकन यूनियन को प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्थायी सदस्यता दिलवाई। अफ्रीकी संघ सात वर्ष से पूर्ण सदस्यता की मांग कर रहा था सभी लोग जानते है इस बात को , बाली में हुए सम्मलेन में प्रधामंत्री ने कहा था मोदी की गारंटी है चिंता मत करिए सदस्यता मिलकर रहेगी। इससे होगा क्या की ग्लोबल साउथ को आवाज को मजबूती मिलेगी। भले ही जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल कराने का श्रेय चीन और रूस भी ले रहे हों लेकिन दिल्ली शिखर सम्मेलन में इसका फैसला होने से यह उपलब्धि भारत के ही खाते में दर्ज की जायेगी। इससे ग्लोबल साउथ की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत में भारत का प्रभाव भी बढ़ेगा। 
जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने का फायदा अफ्रीका के 55 देशों को होगा। अफ्रीका के कई देशों में अभी भी उपनिवेश का प्रभाव है और तमाम देशों में ज्यादा विकास नहीं हुआ है। चीन इन देशों में अपना प्रभाव बनाना चाहता है, हालांकि इन देशों को भारत से नजदीकी बनाना अधिक अनुकूल लगता है। वजह साफ है कि भारत उन पर चीन की तरह अपनी शर्तें नहीं थोपता।
इस बात पर गौर करना होगा कि घाना, तंजानिया, कोंगो, नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देशों से भारत की पुरानी निकटता है और भारतीय वहां लंबे समय से रह भी रहे है। विशेषज्ञ कहते है कि अफ्रीकी देशों का अब इटली, फ्रांस और जर्मनी सरीखे देशों से मोह भंग हो गया है। वह भारत, चीन और जापान जैसे एशियाई देशों में संभावनाएं देख रहे है। चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अफ्रीकी देश सबसे ज्यादा कर्ज भी उसी से लेते हैं। वहीं रूस अफ्रीकी देशों का सबसे बड़ा हथियार प्रदाता है।
देखा जाए तो दुनिया को जिन संसाधनों की जरूरत है, उनमें अफ्रीकी देश बेहद समृद्ध है । अफ्रीकी महाद्वीप में विश्व की 60% नवीकरणीय ऊर्जा संपत्तियाँ और 30% से अधिक खनिज है जो नवीकरणीय और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण है। अफ्रीका के आर्थिक विकास पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट है कि अकेले कांगो में दुनिया का लगभग आधा कोबाल्ट है, जो लिथियम-आयन बैटरी के लिए आवश्यक धातु है। जी20 में अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने का सबसे बड़ा उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाना है।
अफ्रीकन संघ को इसका लाभ तो होगा ही। अफ्रीका के विकास को बढ़ावा मिलेगा, वैश्विक अर्थव्यवस्था में अफ्रीकी देशों की वास्तविक भागीदारी होगी और तो और तो अफ्रीकी देशों की आवाज बुलंद होगी..! जिसका श्रेय भारत को ही जाता है। इस जी20 सम्मलेन में प्रधामंत्री मोदी के बाद तो दो ही सबकी नजरें ज्यादा टिकी हुई थी वो है अफ्रीकन संघ के प्रमुख अजाली असोमानी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पास आकर गले लगना और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता। बाकी हमे इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी को भी नही भूलना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ हुई बैठको का नतीजा ही है जो इटली चीन के बेल्ट रोड परियोजना(BRI) से बाहर निकलने का फैसला किया।
सबसे बड़ी बात क्या की सबकी नजरें मोदी जी पर टिकी हुई थी चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के आने न आने का कोई फर्क नही पड़ा। हालांकि रूस ने भारत का समर्थन किया है घोषणा पत्र को लेकर। बाकी जो भी हो मोदी ने दुनियां को  मोदी ने दुनियां  को सबका "सबका साथ, सबका विकास , सबका विश्वास, सबका प्रयास का" मंत्र दिया। यह जी20 सम्मलेन भारत की एक ऐतिहासिक सफलता है। जिसे आने वाले समय में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। वैश्विक स्तर पर मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने जो पहचान बनाई उसको आने वाले समय में भी बरकरार रखना है तभी देश विश्व गुरु बन पायेगा। 

Thursday, September 14, 2023

स्वातंत्र्यवीर विनायकदामोदर सावरकर

स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर एक वीर स्वतंत्रता सेनानी, उत्साही समाज सुधारक, रचनात्मक लेखक, प्रबुद्ध वक्ता और समर्पित राष्ट्रवादी थे।

श्री सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के समीप भागुर गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने छह वर्ष की आयु में गांव के विद्यालय में प्रवेश लिया और उनका बचपन अपने पिता से रामायण और महाभारत की कहानियां और राष्ट्रवादी नेताओं के बारे में गाथागीत और बाखड़ सुनते हुए बीता। जन्म से ही प्रतिभावान सावरकर में कविता रचना की विलक्षण क्षमता थी और दस वर्ष की आयु में ही उनकी कविताएं सुप्रसिद्ध समाचारपत्रों में प्रकाशित हुई थीं।

बाल्यावस्था में भी विनायक लोगों की वेदनाओं के बारे में बहुत सचेत थे । वह अकाल और प्लेग जैसी महामारियों के कारण भावनात्मक रूप से द्रवित हो उठे। इसमें ब्रिटिश शासन के कटु व्यवहार और ज्यादतियों ने आग में घी का काम किया। ऐसे वातावरण में युवा सावरकर उद्वेलित हो उठे। उन्होंने अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से निकाल कर भारत को आजाद कराने के शहीदों के अधूरे लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपने परिजनों और मित्रों तक की कुर्बानी देने का प्रण किया। वर्ष 1899 में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही सावरकर ने 'मित्र मेला' नामक संगठन का गठन किया जिसका मूल उद्देश्य भारत की संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना था। बाद में इस संगठन का नाम बदलकर "अभिनव भारत" रख दिया गया।

सावरकर 1906 में लंदन के लिए रवाना हो गए और उन्होंने वहां अपना कार्य जारी रखा। उसी वर्ष उन्होंने 'फ्री इंडिया सोसाइटी' की शुरुआत की। उनके अनुसार मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु संघर्ष में स्वदेशी का पाठ और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार; राष्ट्रीय शिक्षा देना और क्रांतिकारी भावना उत्पन्न करना तथा सैन्य बलों में देशभक्ति की भावना जागृत करना अनिवार्य रूप से शामिल होना चाहिए। दिसम्बर 1908 में आयोजित सम्मेलन में स्वराज की मांग करने वाला एक संकल्प सर्वसम्मति से पारित हुआ । इसी सम्मेलन में तुर्किस्तान को गणराज्य बनने पर बधाई दी गई।

सावरकर संभवतः भारतीय नेताओं में पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के महत्व को महसूस किया । " अभिनव भारत" के भारतीय क्रांतिकारी रूस, आयरलैंड, मिस्र तथा चीन की क्रांतिकारी ताकतों से निरंतर सम्पर्क बनाए हुए थे। सावरकर ने न्यूयार्क के "गैलिक अमरीका में भारतीय मामलों से संबंधित लेख लिखे तथा इन्हें फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, पुर्तगाली और रूसी भाषाओं में अनुवाद करवाकर प्रकाशित करवाया।

सावरकर ने अपने राजनैतिक कार्य के साथ-साथ अपने शैक्षिक जीवन को भी आगे बढ़ाया। यद्यपि सावरकर 'ग्रे इन' की अंतिम परीक्षा में उत्तीर्ण हुए लेकिन 'इन' की बेंचों ने सावरकर को बार में बुलाने से इंकार कर दिया। वे चाहते थे कि सावरकर लिखित में वचन दें कि वह कभी भी राजनीति में भाग नहीं लेंगे। सावरकर ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। सावरकर की गतिविधियों के चलते अंततः मार्च 1910 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्हें भारत को प्रत्यर्पित किया जा रहा था, तो उनके जहाज के इंजन में गड़बड़ी आ गई और उसे फ्रांस के मार्सेल में लंगर डालना पड़ा। इस अवसर का लाभ उठाते हुए सावरकर ने भागने का दो बार प्रयास किया लेकिन वह असफल रहे। अंतत: वह अपने शरीर को सिकोड़कर जहाज के झरोखे से बड़े अनूठे ढंग से बाहर निकलकर बच निकले। फ्रांसीसी कानून का संरक्षण प्राप्त करने की दृष्टि से वह मार्सेल तट पर पहुंचे। तथापि, काफी कोशिशों के बाद अंग्रेजी पहरेदारों ने उन्हें पकड़ लिया और वापस जहाज पर पहुंचा दिया। 27 वर्ष की छोटी सी आयु में उन्हें दो बार काले पानी की सजा सुनायी गयी और अंडमान में कारागार में रखा गया। कारागार का जीवन (1911-1924) बेहद कठिनाइयों से भरा हुआ था। उन्हें कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था और यहां तक कि उन्हें निर्धारित मात्रा से अधिक पानी भी नहीं दिया जाता था। उनके साथ किए गए कठोर बर्ताव के कारण उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरता गया और उनका शरीर सूखकर कांटा हो गया।

1924 में जेल से छूटने के बाद सावरकर समाज सुधार का कार्य पूरी गंभीरता से करने लगे। उन्होंने जातिवाद और अस्पृश्यता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा और अंतरजातीय विवाह, समुद्र यात्रा और पुन: धर्म परिवर्तन से जुड़ी वर्जना के खिलाफ जम कर लिखा। वह अस्पृश्य बच्चों के लिए न्यायसंगत, नागरिक, मानवीय और वैध अधिकारों को सुनिश्चित कर पाए और उन्होंने पब्लिक स्कूलों में अस्पृश्य बच्चों को उच्च जाति के हिन्दू बच्चों के साथ बिठाया। सावरकर ने सच्चे दिल से 'अस्पृश्यों' की मुक्ति के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के संघर्ष का समर्थन किया।

वर्ष 1937 में सावरकर अहमदाबाद अधिवेशन में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। तत्पश्चात् पांच अनुवर्ती वर्षों के लिए उन्होंने महासभा अधिवेशन की अध्यक्षता की। जब स्वतंत्रता मिलने वाली थी, तब सावरकर ने विभाजन का कड़ा विरोध किया। सावरकर की भारत की संकल्पना ऐसी थी जहां सभी नागरिकों के जाति, वंश, प्रजाति या धर्म का भेदभाव किए बिना समान अधिकार और कर्तव्य हों बशर्ते वे देश के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखें। अल्पसंख्यकों की भाषा, धर्म, संस्कृति इत्यादि को सुरक्षित रखने के लिए प्रभावी रक्षोपाय किए जाएं। सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति, अंतरात्मा, पूजा-अर्चना, संगठन की स्वतंत्रता इत्यादि मूलभूत अधिकार समान रूप से दिए जाएं। कोई प्रतिबंध लागू करते समय, सार्वजनिक शांति और व्यवस्था के हित या राष्ट्रीय आपातस्थिति, इसके लिए मार्गदर्शी सिद्धांत रहें। संयुक्त मतदाता वर्ग और 'एक व्यक्ति एक मत' सामान्य नियम हों। नौकरियां केवल योग्यता के आधार पर ही मिलें। प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क एवं अनिवार्य हो। 'नागरी' राष्ट्रीय लिपि हो, हिंदी जनभाषा और संस्कृत देवभाषा हो ।

सावरकर ने अर्थव्यवस्था के महत्व को समझा और आर्थिक नीति के लिए कुछ मुख्य सिद्धांतों के सुझाव दिए जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ कृषक वर्ग, श्रमिक वर्ग और गांवों को पुनः सक्रिय बनाने हेतु प्रयास करना, कुछ प्रमुख उद्योगों अथवा विनिर्माण इकाइयों का राष्ट्रीयकरण करना और विदेशी प्रतिस्पर्धा से राष्ट्रीय उद्योगों की रक्षा करने के लिए राज्य द्वारा उठाये जाने वाले कदम भी शामिल थे।

सावरकर की साहित्यिक कृतियां जोश, उत्कृष्टता और आदर्शवाद से परिपूर्ण थीं। जोसेप मैजिनी के दर्शन से अत्यधिक प्रभावित होकर सावरकर ने उनकी आत्मकथा का मराठी में अनुवाद किया जो चालीस वर्ष तक प्रतिबंधित रही। अंडमान जेल में लेखन सामग्री के अभाव में उन्होंने जेल की अपनी कोठरी की दीवारों पर अपनी कविताएं लिखीं। उनके कविता संग्रह को ठीक ही 'जंगली फूल' (वाइल्ड फ्लावर) का शीर्षक दिया गया है। यद्यपि ये रचनाएं अपने आप में पूर्ण हैं, तथापि 'कमला', 'गोमांतक', 'सप्तऋषि', 'विरहोच्छ्वास' और 'महासागर' अपूर्ण महाकाव्य के भाग हैं। उनकी अन्य कविताएं 'चेन', 'सेल', 'चैरियेट फेस्टिवल ऑफ लार्ड जगन्नाथ', 'ओह स्लीप' तथा 'ऑन डेथबेड' दार्शनिकता पर आधारित हैं।

सावरकर की प्रसिद्ध कृतियां 'हिन्दुत्व' तथा 'हिन्दू - पद - पादशाही' मराठा उपनाम से रत्नागिरी जेल में लिखी गई थीं। इस पुस्तक में हिंदू राष्ट्रवाद के सिद्धांतों की विस्तृत व्याख्या की गयी थी। 1907 1908 के दौरान लंदन में उन्होंने 'फर्स्ट इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस, 1857 नामक पुस्तक की रचना की थी जो कई क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही। 'सिक्स ग्लोरियस इपॉक ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में लगभग एक हजार संदर्भ हैं। उन्होंने 'माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ', 'हिन्दू राष्ट्र दर्शन' और 'एन इको फ्रॉम अंडमान' की भी रचना की। मराठी कविताओं में 'वैनायक' नामक मुक्त छंद की शुरुआत सावरकर के महत्वपूर्ण योगदानों में से एक थी। उन्होंने मराठी भाषा की शुद्धता के लिए भी आंदोलन चलाया।

जीवन के अंतिम काल में सावरकर का स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा और वह बिस्तर पर ही रहे। 3 फरवरी 1966 को उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया। चिकित्सकों को आश्चर्य था कि बिना दवा के तथा प्रतिदिन मात्र 5-6 चम्मच पानी पीकर भी वे 22 दिनों तक जीवित रहे। अंतत: 26 फरवरी 1966 को 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

वीर सावरकर के निधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने कहा था कि " सावरकर हमारे देश की स्वतंत्रता के एक कर्मठ और जुझारू कार्यकर्ता थे, युवाओं के लिए उनका जीवन एक मिसाल है" ।

तत्कालीन उप-राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि "वह एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने हमारी मातृभूमि की मुक्ति के लिए अनेक युवाओं को कार्य करने हेतु प्रेरित किया" ।

सावरकर को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि सावरकर समकालीन भारत के महान नेता थे जिनका नाम साहस और देशभक्ति का प्रेरणास्रोत है। वह महान क्रांतिकारी के सांचे में ढले ऐसे व्यक्तित्व थे जिनसे अनगिनत लोगों ने प्रेरणा ली।

(लेख का स्रोत : लोक सभा सचिवालय नई दिल्ली  द्वारा 2019 में प्रकाशित )

Sunday, September 10, 2023

भारतीय संविधान सभा में देश का नाम "भारत" रखने पर हुई चर्चा के कुछ अंश

भारतीय संविधान सभा में देश का नाम "भारत" रखने पर हुई चर्चा के कुछ अंश, लंबा पोस्ट है किंतु धैर्य रखते हुए पूरा पढ़ने का प्रयास करें।

वाद-विवाद का समय: (रविवार, 18 सितंबर, सन् 1949)

श्री एच.वी. कामतः

मैं प्रस्ताव पेश करता हूं। अपने प्रथम संशोधन सं. 220 को पहले लेते हुए, संसार के अधिकांश व्यक्तियों में यह प्रथा है कि नवजात का नामकरण संस्कार अथवा नाम रखने का उत्सव मनाया जाये। गणराज्य के रूप में भारत का शीघ्र ही जन्म होने वाला है अतः समाज के कई वर्गों में लगभग सभी वर्गों में यह आन्दोलन हो रहा है कि इस नये गणराज्य के जन्म पर नामकरण संस्कार भी होना चाहिये। इस प्रकार के कई सुझाव दिये गये है कि भारतीय गणराज्य के इस नवजात शिशु का समुचित नाम क्या हो। मुख्य चुनाव ये हैं- भारत, हिन्दुस्तान, हिन्द, भरतभूमि, भारतवर्ष तथा अन्य इसी प्रकार के नाम । इस समय यह वांछनीय होगा, और शायद लाभदायक भी हो, कि इस विषय को ले लिया जाये कि भारतीय गणराज्य के रूप में नवजात शिशु के जन्म पर कौन सा नाम सबसे अधिक उपयुक्त होगा । कुछ लोग कहते हैं शिशु का नाम क्यों रखा जाये? इण्डिया पर्याप्त है। ठीक है । यदि नामकरण संस्कार की आवश्यकता न होती तो इण्डिया को ही बनाये रखते, पर जब हम यह मान चुके हैं कि इस शिशु का कोई नया नाम होना चाहिये तो यह प्रश्न उठता है कि इसका क्या नाम रखा जाये?

जो लोग भारत, भरतभूमि या भारतवर्ष के पक्ष में हैं, उन लोगों का तर्क इस तथ्य पर आश्रित है कि इस देश का यह बहुत ही प्राचीन नाम है। इतिहास लेखकों और भाषा वैज्ञानिकों ने इस देश के नाम के विषय में विशेषकर "भारत" नाम की व्युत्पत्ति पर गहन विचार किया है। परन्तु भारत नाम किस प्रकार पड़ा इस पर सब एकमत नहीं हैं। कुछ लोग इसका संबंध दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्रा से जोड़ते हैं जो 'सर्वदमन' अर्थात् सर्वविजयी के नाम से भी प्रसिद्ध था और जिसने इस प्राचीन देश में अपना अधिपत्य तथा राज्य स्थापित किया। उनके नाम पर यह देश भारत नाम से विख्यात हुआ । गवेषणा करने वाले विद्वानों की एक और विचारधारा वेफ अनुसार भारत वैदिक काल से.

...

श्री एच.वी. कामतः

मैं केवल आयरलैण्ड के संविधान की ओर निर्देश करना चाहता हूं जिसको बारह वर्ष पूर्व स्वीकार किया गया था। इस अनुच्छेद के खण्ड (1) में वाक्य की जो रचना प्रस्थापित की गई है उससे उसमें भिन्न रचना है। मैं समझता हूं कि "इंडिया अर्थात् भारत" इस पद का अर्थ "इंडिया जिसको भारत कहा जाता है" है। मैं समझता हूं कि संविधान में यह कुछ भद्दा सा है। यदि इस पद का एक अधिक सांविधानिक मान्य रूप में और मैं तो यह कहूंगा कि एक अधिक कलात्मक तथा निश्चय ही अधिक सही रूप में रूपभेद कर दिया जाये तो अधिक अच्छा होगा। इस सभा में उपस्थित मेरे माननीय मित्र यदि 1937 में पारित किये गये आयरलैण्ड वके संविधान को देखने का कष्ट करें तो उनको यह विदित हो जायेगा कि आयरलैण्ड का स्वतन्त्र राज्य आधुनिक संसार के उन कुछ देशों में से है जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के पश्चात् अपने नाम बदले और उसके संविधान का चतुर्थ अनुच्छेद उनके देश के नाम परिवर्तन के संबंध में है। आयरलैण्ड स्वतन्त्र राज्य के संविधान का वह अनुच्छेद इस प्रकार है: "राज्य का नाम एयर अथवा अंग्रेजी भाषा में आयरलैण्ड है। "

मैं समझता हूं कि "इंडिया अर्थात् भारत" एक भद्दी पदावली है और मैं नहीं समझ पाता हूं कि मसौदा समिति ने इस प्रकार की रचना क्यों की है और एक ऐसी भूल की है जो मुझे एक सांविधानिक भूल दिखाई देती है। डॉ. अम्बेडकर पहले अपनी कई भूलें स्वीकार कर चुके हैं और मैं आशा करता हूं कि इस भूल को भी वे स्वीकार करेंगे और इस खण्ड की रचना का पुनरीक्षण करेंगे।

सेठ गोविन्द दासः

सभापति जी, नामकरण हमारे देश में एक बड़े महत्व की चीज मानी जाती थी और आज भी मानी जाती है। हम सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि नामकरण शुभ मुहूर्त में हो और जो नाम हम रखें वह नाम सुन्दर से सुन्दर हो। मुझे यह देख कर बड़ा हर्ष होता है कि हमारे देश का जो प्राचीनतम नाम है, वह हम रख रहे हैं परन्तु वह जिस सुन्दर तरीके से रखा जाना चाहिये था, डाक्टर अम्बेडकर साहिब मुझे क्षमा करेंगे, उस तरह से नहीं रखा जा रहा है। "इंडिया देट इज भारत" यह बहुत सुन्दर तरीका नाम रखने का नहीं है। हमें नाम रखना चाहिये था "भारत जिसे बाहर विदेशों में इण्डिया भी कहा जाता है" वह नाम ठीक नाम होता। जो कुछ हो कम से कम एक बात से हमें संतोष कर लेना चाहिये कि भारत नाम आज हम अपने देश का रख रहे हैं।

कुछ लोगों को यह भ्रम हो गया है कि इण्डिया इस देश का सबसे पुराना नाम है। हमारे सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद हैं और अब तो यह माना जाने लगा है कि वेद संसार के सबसे पुराने ग्रन्थ हैं, वेदों में इण्डिया नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ऋग्वेद में "ईडयम इड्डू और ईडेन्यः " ये शब्द आये हैं। यजुर्वेद में इडा शब्द आया है। परन्तु इनका इण्डिया से कोई संबंध नहीं है।
 
अध्यक्षः यह किसने कहा कि इण्डिया सबसे पुराना नाम है?

सेठ गोविन्द दासः

कुछ व्यक्तियों से यह सुना जाता है और इस घोषणा में एक पम्पफलेट भी निकला है जिसमें यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि इण्डिया भारत से भी पुराना नाम है। मैं चाहता हूं कि यह बात रिकार्ड में रहे कि यह गलत है। ईडयन और ईडे का अर्थ अग्नि है, ईडेन्यः का प्रयोग अग्नि के विशेषण वेफ रूप में हुआ है और ईडा वाणी का वाचक है।

श्री महावीर त्यागीः

क्या यह समझा जाये कि इण्डिया शब्द जो है वह इन्टरनेशनल फार्म का है?

सेठ गोविन्द दासः

इण्डिया शब्द हमारे किसी प्राचीन ग्रन्थ में न होकर उस समय से प्रयोग में आने लगा जब से यूनानी भारत में आये। यूनानियों ने हमारी सिन्ध नदी का नाम इंडस रखा और इंडस कहने के साथ इण्डिया शब्द आया। यह बात एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी लिखी है। उसके विपरीत यदि हम देखें तो हमको मालूम होता है कि वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मण ग्रंथों के पश्चात् हमारा सबसे प्राचीन और महान् ग्रन्थ जो महाभारत है, उसमें हमको भारत का नाम मिलता है: "अथते कीर्ति पष्यामि, वर्ष भारत भारत" - भीष्म पर्व । विष्णु पुराण में भी हमें भारत नाम मिलता है। वह इस प्रकार है: "गायन्तिः देवा किल गीत कानि, धन्यास्तु ने भारत भूमि भागे" । ब्राह्मण्ड पुराण में भी हमें इस देश का नाम भारत ही मिलता है। - "भरणाच्य प्रजानावै मनुर्भरत उच्यते । निरुक्त वचनाचैव वर्ष तद्भारत स्मृतं।" चीनी यात्री इत्सिंग जब भारत आया तो उसने भी अपनी यात्रा के वृतान्त में इस देश का नाम भारत ही लिखा था।

श्री कल्लूर सुब्बा राव (मद्रास):

श्रीमान्, मैं भरत नाम का हार्दिक समर्थन करता हूं जो प्राचीन नाम है। भरत नाम ऋग्वेद (ऋग3, 4, 23.4) में है। उसमें यह कहा गया है 'इम इन्द्र भरतस्य पुत्रा' ऐ इन्द्र, ये भरत के पुत्र हैं। वायुपुराण में भरत की सीमायें में दी हुई हैं: 

'इदं तु मध्यमं चित्रां शुभाशुभ फलोदयम्। 
उतरं यत्समुद्रस्य हिम् वत् दक्षिणं च यत्।।
(वायुपुराण उ. 45-75)

इसका अर्थ यह है कि वह भूमि जो हिमालय के दक्षिण में है और समुद्र के उत्तर में है, भरत नाम से पुकारी जाती है। इस कारण भरत नाम बहुत प्राचीन है। इण्डिया नाम सिन्धु; इण्डस नदी के नाम पर पड़ा है और हम अब पाकिस्तान को हिन्दुस्तान कह सकते हैं क्योंकि सिन्धु नदी वहां पर है। सिन्द हिन्द हो गया क्योंकि संस्कृत के (स) का उच्चरण प्राकृत में (ह) हो जाता है। यूनानी हिन्द को इन्द कहते हैं। एतत्पश्चात् यह ठीक तथा उचित होगा कि हम इण्डिया का भरत के नाम से उल्लेख करें। सेठ गोविन्द दास और अन्य हिन्दी भाषा भाषी मित्रों से मैं निवेदन करूंगा कि भाषा का नाम भी वे भारती रखें। मैं समझता हूं कि हिन्दी के स्थान में भारती रखा जाये क्योंकि भारती का अर्थ सरस्वती है।

श्री रामसहाय (मध्य भारत संघ):
प्राचीन प्रथा के अनुसार तो नामकरण प्रारम्भिक जीवन में ही किया जाता है लेकिन आज आधुनिक सभ्यता के अनुसार जब हम किसी बिल या किसी कानून का विचार करते हैं तो पहली धारा को जो नाम की होती है उसे आखिर में लेते हैं। उसी प्रथा के अनुसार आज हम पहली धारा पर विधान की करीब-करीब सब धाराओं पर विचार करने के पश्चात् अन्त में विचार करते हुए इस भारतवर्ष का नाम भारत अपने विधान में रख रहे हैं। आज जितनी भी हमारी धार्मिक पुस्तके हैं और जितना हिन्दी साहित्य है उन सबमें ही करीब-करीब इस देश का नाम हमेशा भारत ही के नाम से प्रचलित रहा है। हमारे लीडर्स भी जब वह भाषण देते हैं तब वह इसे प्रायः भारत के ही नाम से पुकारते हैं। एक समय वह था कि जब यह समझा जाता था कि रियासतें अंग्रेजी राज्य को मजबूत बनाने के लिये कायम की गई हैं। यह, एक प्रकार का कलंक रियासती जनता पर भी था। आज से बहुत पहले हम उस कलंक को मिटा चुके हैं और भारतवर्ष का एक अंग बनकर ही हमने कांस्टीट्यूशन बनाने में भाग लिया है और सारे विधान का उपभोग हम अब प्रान्तीय जनता के समान उसके साथ करेंगे। मैं अधिक समय हाउस का न लेकर उस प्रस्ताव का समर्थन करता हूं।

श्री कमलापति त्रिपाठी (यू.पी): 

आज इस देश का नामकरण करने का संशोधन हमारे सामने उपस्थित है। मुझे प्रसन्नता होती यदि ड्राफ्टिंग कमेटी ने जो संशोधन उपस्थित किया है उसका स्वरूप कुछ दूसरा रखा होता। "इण्डिया दैट इज भारत" के स्थान पर यदि दूसरे प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया होता तो मैं समझता हूं कि, अध्यक्ष महोदय, कि वह इस देश की परम्परा और गौरव के अनुकूल ही होता और कदाचित् इस विधान- परिषद् के लिये भी सौभाग्य की बात हुई होती। यदि दैट इज लगाना ही था तो 'भारत दैट इज इण्डिया' यदि स्वीकार किया गया होता और इस प्रकार का प्रस्ताव हमारे सामने आता तो वह अधिक उपयुक्त हुआ होता। मेरे मित्र कामत जी ने आपके सामने अपना संशोधन उपस्थित किया है कि "भारत एज इट इज नोन इन इंग्लिस लैंग्वेज इण्डिया" को ड्राफ्टिंग कमेटी ने स्वीकार किया होता अथवा इस समय भी स्वीकार कर लेती तो वह भी हमारे हृदय को और हमारे गौरव को अधिक सम्मानित करता और हमें प्रसन्न्ता प्रदान करता । जब कोई देश पराधीन होता है तो वह अपना सब वुफछ खो देता है। एक हजार वर्षों की अपनी पराधीनता में हमारे इस देश ने भी अपना सब कुछ खो दिया। हमने अपनी संस्कृति खो दी, हमने अपना इतिहास खो दिया, हमने अपना सम्मान खो दिया, हमने अपनी मनुष्यता खो दी, हमने अपना गौरव खो दिया, हमने अपनी आत्मा खो दी और कदाचित् हमने अपना स्वरूप खो दिया तथा अपना नाम भी खो दिया। आज सहस्र वर्ष की पराधीनता के बाद स्वाधीन हुआ यह देश अपना नाम प्राप्त करेगा और हम आशा करते हैं कि अपनी संज्ञा लुप्त हुई संज्ञा प्राप्त करने के बाद वह अपना स्वरूप भी प्राप्त करेगा, अपना आकार भी प्राप्त करेगा और अपनी मूर्छित हुई आत्मा का उद्बोधन भी अनुभव करेगा कदाचित् वह संसार में अपना गौरवपूर्ण स्थान भी प्राप्त कर सकेगा।
सभापति जी, मुझे भारत के इस शब्द से बड़ा प्रेम है। यह एक ऐसा शब्द है जिसका उच्चारण करने मात्रा से हमें अपने देश की सहस्राब्दियों की संस्कृति क्षण मात्रा में सामने दिखाई पड़ने लगती है। मैं समझता हूं कि इस धरती पर कोई दूसरा ऐसा राष्ट्र नहीं है जिसके जीवन का इतिहास, जिसका सांस्कृतिक प्रवाह और जिसका नाम सहस्रों वर्षों से इसी प्रकार अब तक चला आता है, जैसा हमारे देश का चला आता है। धरती के अंक में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने इतने पद् दलन, इतने अपमान और इतनी लम्बी पराधीनता के बाद भी अपने नाम और अपनी आत्मा को किसी प्रकार रखने में सुरक्षित समर्थ हुआ हो ।

आज सहस्रों वर्षों के बीत जाने पर भी हमारा देश भारत कहा जाता रहा है। अब तक हमारे साहित्य में यह नाम प्रयुक्त होता रहा है। वेदों के युग से लेकर पुराणों में तो इस नाम की कितनी महिमा है। हमारे पुराण भारत के नाम और इस देश की महिमा का गुणगान करते रहे हैं। देवता स्वर्ग में इस देश के नाम का स्मरण करते रहे हैं "गायन्ति देवा खिल गीत कानी" पुराण कहते हैं कि इस देश का गुणगान देवता भी स्वर्ग में बैठे हुए करते हैं। देवताओं में यह कामना होती है कि वह भारत की पवित्र भूमि में उत्पन्न हों और जीवन उपभोग करवेफ अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर सके। हमारे लिये तो इस नाम में हमारी पवित्र स्मृति भरी हुई है। हमें स्मरण हो जाता है कि यह वह देश है जिसमें किसी युद्ध में बड़े-बड़े पुरुषों ने, बड़े-बड़े महर्षियों ने एक महान् संस्कृति को जन्म दिया था। जिस संस्कृति ने न केवल इस देश के कण-कण को प्रभावित किया वरन यहां की सीमा का उल्लंघन करके सुदूर पूर्व के कोने-कोने में पहुंची। हमें स्मरण होता है कि एक ओर वह संस्कृति भूमध्य सागर के तट तक पहुंची तो दूसरी ओर उसने प्रशान्त की लहरियों का भी स्पर्श किया। हमें स्मरण होता है कि इस देश के हमारे नायकों ने, हमारे विचारकों ने, सहस्राब्दियों पूर्व एक महान् राष्ट्र को जन्म दिया था जिसने अपनी संस्कृति को सारे संसार में फैलाया और एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। जब हम इस शब्द "भारत" का उच्चारण करते हैं तो हमें हमारे महर्षियों के मुंह से निकले हुए ऋग्वेद के उन मन्त्रों की याद आ जाती है जिसमें उन्होंने अपने सत्य और अन्तर्ज्ञान से उत्पन्न अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें उपनिषद् के वह वाक्य याद आ जाते हैं जिसकी वीर वाणी समस्त मानव जाति को आमन्त्रित करती हुई कहती है कि "उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो।"

इस शब्द का उच्चारण करने से हमें भगवान तथागत की याद आ जाती है जिन्होंने ललकार कर संसार से कहा था कि "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लोकानुवंफपाय" जीवन का संचालन करो और देवताओं और मनुष्यों के हित के लिये उठो, जागो और संसार को ज्ञान वेफ मार्ग का प्रदर्शन कराओ। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें शंकराचार्य का स्मरण हो आता है जिन्होंने संसार को एक नई दृष्टि प्रदान की। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान राम की उन विशाल भुजाओं का स्मरण हो जाता है जिसमें धनुष की प्रत्यंचा के टंकार से इस देश के आसमुद्र हिमाचल अंतरिक्ष को गुंजारित कर दिया था। हमें प्रसन्नता है और हम डाक्टर साहब को इस बात के लिये बधाई देते हैं कि उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया है। यह बात कितनी अच्छी होती अगर वह श्री कामत के संशोधन को भी स्वीकार कर लेते जिसमें कहा गया है 'Bharat as is known in English language' इससे देश के गौरव की रक्षा होगी। भारत शब्द को रखने से, इसको ग्रहण करने से हम इस देश को एक स्वरूप प्रदान कर सकेंगे। इस देश को उसकी खोई हुई आत्मा को दे सकेंगे। इस देश की रक्षा कर सकेंगे। भारत एक महान् राष्ट्र हो जायेगा जो संसार के रंगमंच पर मानव जाति की सेवा कर सकेगा।

श्री हरगोविन्द पन्त (यूपी):

सभापति जी, इस परिषद् के प्रारम्भिक अवस्था में ही मैंने एक संशोधन भेजा था जिसका अभिप्राय यह था कि इण्डिया शब्द के स्थान में भारत या भारतवर्ष का प्रयोग किया जाये। मुझे हर्ष है कि इस संबंध में थोड़ी कुछ बदलफेर तो स्वीकार कर ली गई है। परन्तु यह जो भारतवर्ष शब्द है उसका जो गौरवपूर्ण स्थान स्वीकार किया जा रहा है, सीधे क्यों नहीं इस देश के नाम के लिये ग्रहण कर लिया जाता है, यह बात तो मेरी समझ में नहीं आती। मैं उन बातों को दोहराना नहीं चाहता हूं जो कि अन्य सदस्यों ने इस महान् शब्द के प्रयोग के लिये यहां पर कही हैं। मैं सिर्फ दो एक बात इस संबंध में कहना चाहता हूं।

भारतवर्ष या भारत यह नाम तो हमारे दैनिक धार्मिक संकल्प में कहा जाता है जो नित्य स्नान में भी काम में आता है: "जम्बू द्वीपे भरत खण्डे आर्यावर्ते" यही नहीं, इस नाम को जगत् प्रसिद्ध महाकवि कालीदास ने अपने दो प्रसिद्ध पात्र राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के आख्यान में भी प्रयुक्त किया है। राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के पुत्र का नाम भरत था उनका राज्य भारत कहलाया। इस आख्यान को सभी लोग अच्छी तरह जानते हैं। तो फिर मेरी समझ में यह बात नहीं ती कि क्यों न इस नाम को खुले दिल से ग्रहण किया जाता है। रहा इण्डिया नाम, इस शब्द से न जाने क्यों हमारी ममता सी हो गई है, यह नाम इस देश को विदेशियों ने दिया है। यह नामकरण भी विदेशियों ने ही किया है और उनको इस देश के वैभव का हाल सुन लालच हुआ था और अपनी लालसा को पूरी करने के लिये उन्होंने हमारी स्वाधीनता पर आक्रमण किया था। अगर हम इण्डिया शब्द को अब भी अपने हृदय से लगाये रखें तो इसके माने यह होते हैं कि हमको इस नाम से, जो हमारे लिये अपमानजनक है, जिस नाम को विदेशियों ने हमारे ऊपर थोपा है और जिसका नामकरण उन्होंने किया है, उससे हमको कोई दुःख नहीं है। मेरी समझ में यह बातें नहीं आतीं कि क्यों कर हम इस नाम को अपने पास रख रहे हैं। भारतवर्ष और भारत हमारे नाम हैं और यह नाम हमारे प्राचीन इतिहास और प्राचीन परम्परा से चले आ रहे हैं और हम लोगों को बड़ा उत्साह और बड़ी वीरता देने वाले हैं। इसलिये मैं तो कहूंगा कि इस नाम को अपनाने में हमें बिलकुल भी संकोच नहीं करना चाहिये। अगर हम इस नाम को नहीं रखा और इसकी जगह में किसी दूसरे शब्द को स्थान दिया तो यह हमारे लिये एक लज्जा का विषय होगा। मैं भारत के उस उत्तर प्रान्त के रहने वाले 18 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व यहां पर करता हूं, जिस उत्तर प्रान्त में श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, श्री जागेश्वर, श्री बागेश्वर और मानसरोवर आदि स्थान हैं। वहीं की जनता की अभिलाषा मैं आपके सामने रखना चाहता हूं और मैं आपसे कहूंगा कि वहां की जनता यह चाहती है कि इस देश का नाम भारतवर्ष हो न कि और कुछ.

जय हिन्द 

स्त्रोत: Parliament Digital Library

[आश्चर्यजनक और दुखद बात है कि जनता का इच्छा होते हुए और इतने तार्किक वक्तव्यों के बाद भी अत में वोटिंग द्वारा ये संशोधन अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि बहुमत जिनका था उनमें से बहुत सारे अभी भी अंग्रजों की चाटुकारिता करने में पीछे नहीं रहना चाहते थे।]

Thursday, September 7, 2023

कृष्ण एक विद्रोही थे

कृष्ण कोई ईश्वर नही थे एक विद्रोही मनुष्य थे। 
विद्रोही जो स्वर्ग की सत्ता के विरुद्ध, 
उंगली पर पर्वत उठाए खड़ा हो गया था। 
विद्रोही जो कंश के अत्याचारों के विरुद्ध
 उसके ही नगर में जाकर खड़ा हो गया था।
 विद्रोही जो स्त्रियों की मुक्ति के लिए 
जरासंध के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
 विद्रोही जो स्त्री के सम्मान के लिए 
कुरु साम्राज्य के विरुद्ध खड़ा हो गया था। 
विद्रोही जो प्रेम के लिए सामाजिक 
रूढियों के विरुद्ध खड़ा हो गया था। 
विद्रोही जो मटकियां फोड़ता था 
नगर जाते गांव के दुग्ध को रोकने के लिए।

विद्रोही नही जाते हैं वन में 
वर्षों तप करके किसी 
रहस्य को जानने के लिए 
विद्रोही समाज मे रहकर ही ख
ड़े हो जाते हैं उसके सुधार के लिए।