कहा तक टिक सकूंगा
ये सोचना जरूर
मेरे राम जैसा नग्न पैरो से चलना
पग पग पैरो से रक्त निकलना
उस रक्त से काटो की जगह
फूल पंखुड़ियों और
औषधियों का पनपना....!
आह धन्य हो गई धरती भी
प्रभु के चरण स्पर्श से...
कर दिया मुक्त देवी अहिल्या को
शीला से सुंदर स्त्री बन गई
मात्र इस दिव्य आत्मा के
चरणों के धूल स्पर्श से....
(१)
रख मान सम्मान निकले
राज पाट को त्याग कर
"रघुकुल रीति सदा चली आई
प्राण जाई पर वचन न जाई"
सिद्ध किया इस कथन को
पांव छू माता कैकयी के
साथ में सीता लक्ष्मण
निकले वनवास को..!
पिता ने प्राण त्याग दिया
दुख से व्यथित पुत्र मोह में
हाय रे दशा मेरे राम की
ना हाथी घोड़ा ना पालकी
पैदल ही निकल पड़े
वचन निभाने को...!
(२)
भरत खोजने निकले
बड़े भ्राता को वन में
बुद्धि मारी गई माता की
फस गई थी मंथरा के जतन में..!
देख भरत को वन में
लिया हाल चाल राम ने
भरत ने कहा लौट चलो
भैया राज पाट तुम्हारा है
पिता ने भी प्राण त्याग दिया
अब कौन आपके सिवाय हमारा है...!
सुन समाचार पिता का
दुख से व्याकुल हो गए
राम ने पिता का पिंड दान कर
भरत को लौट जाने का आदेश दिया..
कुलगुरु वसिष्ठ के साथ
माताएँ भी आ गईं
जिद पर अड़े भरत चलो भईया
हा लौट चलो राम कहती मईया..
कुलगुरु वसिष्ठ ने भी बोला-
बड़े पुत्र का धर्म निभाओ राम
वापस लौट चलो अयोध्या
कुल परंपरा को निभाओ
देखो राज पाट का काम...!!
रघुनाथ का मन नही माना
पिता के वचन को तोड़कर
कैसे आखिर लौटे चले
चौदह वर्ष के वनवास को छोड़कर...
बोले भरत जाओ संभालो
अयोध्या का ताना बाना
मुझको है महाराज का वचन निभाना..!!
लिया वचन भरत से
माता कैकेयी के प्रति
कोई दुर्भाव ना रखना
भरत बोले-
देदो भईया अपनी चरण पादुका
यही हकदार है राज सिंहासन का..!
फिर परस्पर प्रेम से मिल कर
सबने आपस में विदा लिया।।
क्या है कोई इस धरा पर मेरे राम सा
टिक सकेगा अगर संघर्ष हो मेरे राम सा !!
शिवम कुमार पाण्डेय