Thursday, March 30, 2023

कोई नही है मेरे राम सा..(भाग-1)

यदि राम सा संघर्ष हो तो 
कहा तक टिक सकूंगा 
ये सोचना जरूर
मेरे राम जैसा नग्न पैरो से चलना 
पग पग पैरो से रक्त निकलना
उस रक्त से काटो की जगह
फूल पंखुड़ियों और 
औषधियों का पनपना....!
आह धन्य हो गई धरती भी
प्रभु के चरण स्पर्श से...
कर दिया मुक्त देवी अहिल्या को
शीला से सुंदर स्त्री बन गई 
मात्र इस दिव्य आत्मा के
चरणों के धूल स्पर्श से....
         (१)

रख मान सम्मान निकले 
राज पाट को त्याग कर
"रघुकुल रीति सदा चली आई
प्राण जाई पर वचन न जाई"
सिद्ध किया इस कथन को
पांव छू माता कैकयी के
साथ में सीता लक्ष्मण
निकले वनवास को..!

पिता ने प्राण त्याग दिया
दुख से व्यथित पुत्र मोह में 
हाय रे दशा मेरे राम की
ना हाथी घोड़ा ना पालकी
पैदल ही निकल पड़े
वचन निभाने को...!
  
       (२)

 भरत खोजने निकले 
बड़े भ्राता को वन में
बुद्धि मारी गई माता की
फस गई थी मंथरा के जतन में..!
देख भरत को वन में
लिया हाल चाल राम ने
भरत ने कहा लौट चलो
भैया राज पाट तुम्हारा है 
पिता ने भी प्राण त्याग दिया
अब कौन आपके सिवाय हमारा है...!

सुन समाचार पिता का
दुख से व्याकुल हो गए 
राम ने पिता का पिंड दान कर
भरत को लौट जाने का आदेश दिया..

कुलगुरु वसिष्ठ के साथ 
माताएँ भी आ गईं
जिद पर अड़े भरत चलो भईया
हा लौट चलो राम कहती मईया..
कुलगुरु वसिष्ठ ने भी बोला-
बड़े पुत्र का धर्म निभाओ राम
वापस लौट चलो अयोध्या 
कुल परंपरा को निभाओ
देखो राज पाट का काम...!!

 रघुनाथ का मन नही माना 
पिता के वचन को तोड़कर
कैसे आखिर  लौटे चले
चौदह वर्ष के वनवास को छोड़कर...
बोले भरत जाओ संभालो 
अयोध्या का ताना बाना
मुझको है महाराज का वचन निभाना..!!
लिया वचन भरत से 
माता कैकेयी के प्रति 
कोई दुर्भाव ना रखना
भरत बोले-
देदो भईया अपनी चरण पादुका
यही हकदार है राज सिंहासन का..!
फिर परस्पर प्रेम से मिल कर 
सबने आपस में विदा लिया।।
 
क्या है कोई इस धरा पर मेरे राम सा
टिक सकेगा अगर संघर्ष हो मेरे राम सा !!

शिवम कुमार पाण्डेय

Wednesday, March 22, 2023

जमने जमाने की बात

          "चाय का ही जमाना चल रहा है आजकल"

वक्त और जमाना एक साथ चलते रहते है । वक्त के साथ जमाना भी बदल जाता है..! नया जमाना हो या पुराना जिसका किसी से जमा ही नही वो कहता फिरता है "जमाना हमसे है हम जमाने से नहीं.." जब प्रेमी प्रेमिका पीछे पड़ जाए तो प्रेमिका कहती है.. "ओहो हो छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा" तब प्रेमी कहता है "कोई कहे कहता रहे कितना भी हमको दीवाना हम है नए तो फिर अंदाज क्यों हो पुराना" राह चलते हुए बुजुर्ग कहते है एक हमारा जमाना था की साइकिल नही मिलती थी हमे जल्दी चलाने के लिए एक ये है आजकल नए लड़के जो  अभी माई के पेट से अभी निकले नहीं की  सीधा हीरो होंडा उड़ाते फिर रहे है..!  बीड़ी फूंकते हुए मजदूर अपने लड़के से कहता है पढ़ लो बचवा हम तो अपने जमाने में मास्टर साहब का मजा लेते थे  आज जिंदगी हमारा मजा ले रही है।  जमना जमाना तो चलता रहेगा पर ये मेरा जमाना तुम्हारा जमाना वाला भसड़ कभी खत्म नही होने वाला है। लोग भूल जाते है वक्त के साथ कितना परिवर्तन हुआ है।
इन सबके बीच तो एक बात तो ही भूल ही गए जो गांव देहात में स्टाइल मारने वाले हर लौंडे पर सटीक बैठता है " बाप जिए अंधेरा में लइका बने पॉवर हाउस" वाह रे जिंदगी का कवनो ठिकाना कब कौन बाजी मार जाय..! 

एक फिल्मबाज चचा मिल गए राह चलते हुए लगे अपनी कहानी बया करने की एक जमाना था जब सिनेमा हॉल में कवनो फिलम नही छोड़ता था आज देखो दो वक्त की रोटी के लिए जद्दो-जेहद करना पड़ रहा है। मास्टर जी कहते थे बेटा पढ़ लो लेकिन हमको हमारे बड़का घराने के होने का घमंड था लेकिन जमाना एक सा नही रहता बदल जाता है। हमहु बोले अरे चचा छोड़ो सब ना तो वो अब सिनेमा हाल ही रहा वो पार्टी का दफ्तर बन गया दुकान खुल गई  और और ना ही मास्टर साहब मास्टर रह गए मास्टर साहब तो अब प्रिंसिपल बन गए है। बाकी आप अपने बाप दादाओं की जायदाद पाकर अय्याशी किए जिंदगी भर और अभी कौन सा आप किसी से कम खेत परती छोड़कर और अधिया देकर नल्ले घूमेंगे तो भूखे ही मरेंगे न.... इतना कहना ही था कि चचा ताव में बोल पड़े का जमाना आ गया है आजकल का लड़का सब जबान लड़ाने लग गए है बात करने का लहजा भुला गए है..। अब सच तो कड़वा ही लगता है लोगो को चाहे इस जमाने के हो या उस जमाने के अपनी काली हकीकत सबको बुरी लगती है। चचा तो फिलमबाज थे पर आजकल के लौंडो को क्या हो गया है वो तो एक दम से "चिलमबाज" हो गये है और जाते फिरते है "दम मारो दम मिट गए हम, लगाओ सुबह शाम दस बोतल रम" जमाना है भइया जमाना क्या सकते है ..! एक जमाना तो "पुरब के ऑक्सफोर्ड" का भी था जब यहां से कलेक्टर निकलते थे लेकिन आज चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनने की होड़ लगी हुई है..! पहले कहा पीसीएस का फॉर्म भरना ही बेइज्जती मानते थे सब भरते भी तो तो छुप छिपाकर आईएएस से नीचे बात ही नही होती थी। लेकिन तब का ऑक्सफर्ड अब खस्ताहाल हो गया है। मरे हुए शहर की रंगत थी तो यूनिवर्सिटी से ही वर्तमान में तो विरान हो चला है। ये भी एक जमाना है जहां छात्रों को सिर्फ सरकारी नौकरी से ही कमाना है। हमारा क्या है हमे तो पहले से ही जमाने ने ठुकराया है बाकी बचा खुचा जो उससे था उसने भी औकात दिखा दी बोली दूर रहो मुझसे मैने भी कह दिया अगर तुम मिल जमाना छोड़ दूंगा मैं....!