जैसे वैश्या के पैरों में पायल
घुटन महसूस होती है
तड़प तड़प कर कट रहा जीवन
शांति की बात और शीतल पवन
बहुते शर्म आती है
भारत माता टुकड़े टुकड़ों में बट जाती है
अरे वाह देखो कैसे आजादी की मिठाई बाटी जाती है..
हर्षों उल्लास मनाया जाता है मां के टुकड़े करकर
क्या ये वही भारत है जिसके कण कण में शंकर ...
क्या मिला आजाद को गोली खाकर ?
भगत सिंह के सपनो का भारत
बन गया फांसी चढ़कर ?
लाल किले से आई आवाज
सहगल ढिल्लो शाहनवाज,
तीनों की उम्र हो दराज ।
'लाल किले को तोड़ दो,
आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो।'
नेताजी कहा गए ?
उनको देता रहता हू आवाज
गुमनामी में जीवन बिता
क्यों कहते हो की उनको खा
गया हवाई जहाज...
आजाद हिंद फौज ने दिया बलिदान
फिर भी हो गया "चरखा" महान
वाह! रे.. हिंदुस्तान...
इनके बलिदानों की तुलना चरखो से की जाती है
हो भी क्यों ना जब जवानी कापुरुषता के क्रोड़ में सो जाती है...
काला पानी का काल कूट पीकर
वीर सावरकर का चेहरा और निखर जाता है
दुख तब होता है जब गलफत के नींद में पड़ा बेखबर
कोई युवा "कायर" कह जाता है...
भारत माता के टुकड़े कर
अपनी अपनी सरकार बनाई जाती है
एक जिहाद फैलाता है
एक शांति का श्वेत कबूतर उड़ाता है
खंडित भारत की तस्वीर
मेरे मन को नहीं भाता है
तन में आग लग जाता है
फिर अटल जी के शब्दो को
मुख बार बार दोहराता है_
"दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे।
उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥"
~शिवम कुमार पाण्डेय