Friday, January 27, 2023

अरे बिहार के लोगो नमस्कार...!

लौरिया विधानसभा क्षेत्र के सुधि जनों
नमस्कार 

वैसे तो मैं इस विधानसभा क्षेत्र का टैक्सपेयर निवासी हूँ और कार्यक्षेत्र की व्यस्तताओं की वजह से आमतौर पर घर आना जाना कम ही हो पाता है किंतु इस वर्ष मकर संक्रांति के सुअवसर पर घर आना संभव हुआ है।
स्वयं को ईमानदार मैंने इसलिए भी नहीं कहा क्योंकि आज के आभासी सामाजिक प्रकटीकरण के भीषण दौर में मैं स्वघोषित ईमानदारी का ढ़ोल पीटता भीड़ का हिस्सा होना नहीं चाहता जहाँ हर शख्स स्वयं को अधिक ईमानदार घोषित कर अपनी बड़ाई सुनना चाहता है।
कल एक कार्यवश फतेहपुर चौक जाना हुआ और कुछ ऐसा दृश्य दृष्टिगोचर हुआ कि मैं उसपे लिखने से रोक नहीं पा रहा हूँ।

तो आप सबको और अधिक असमंजस की स्थिति में ना रखते हुये कल की वो घटना बताता हूँ जिसने ये पोस्ट करने के लिए मजबूर कर दिया।

तो हुआ यूँ कि मैं एक व्यक्तिगत कार्य से दोपहर में घर से फतेहपुर चौक जाने के लिए निकला। लंबे अवसर के बाद घर आया था तो सोचा आज साईकिल चलाने का आनंद लिया जाये वर्ना मेट्रोसिटी की भागमभाग में ये अवसर कहाँ प्राप्त होता है। अतः मैंने साईकिल निकाली और चल पड़ा। चहुँओर भारतीय गणराज्य के 74वें गणतंत्र दिवस तथा विद्यादायिनी माँ सरस्वती के पूजनोत्सव में जुटे हर्षोल्लासित बच्चे दिख रहे थे। सुबह की धुंध के बाद मौसम भी खुशगवार हो चुका था। मच्छरगावाँ बाज़ार होते हुये मैं फतेहपुर चौक तक पहुँचा। रास्ते में मुझे दिखा कि बाज़ार से चौक तक सड़क की स्थिति कुछ ठीक नहीं है हाँ बीच बीच में यत्र तत्र अव्यवस्थित तरीके से हुआ मरम्मत का कार्य भी दिखा। (ठीक तो वैसे बाजार से शनिचरी चौक तक की भी नहीं है किंतु उसकी बात फिर कभी)। 

जैसे ही मैं चौक पर पहुँचा वहाँ मुझे एक पहचान के मिश्रा जी और गफूर भाई मिल गये। दोनों किसी कार्य से बेतिया जाने हेतु बस का इंतजार कर रहे थे। बोले - "अरे *** जी बड़े दिनों बाद मिले हैं आइये पान खाया जाये।" मिश्रा जी थोड़े नाराज लग रहे थे और थोड़े बदले बदले से भी वहीं गफूर भाई का मिज़ाज भी थोड़ा उखड़ा हुआ था। 
इन बातों से अनभिज्ञ मैंने महज उत्सुकतावश पूछ लिया कि "आपलोगों को पता है कि ये सड़क की हालत इतनी जर्जर क्यों है? और ये मरम्मत का कार्य इतने अव्यवस्थित तरीके से क्यूँ हुआ है?" 
मेरा इतना कहना था कि मिश्रा जी भड़क गये। बोले - "*** जी आप कैसे आदमी हैं जो इतनी बड़ी अभूतपूर्व खगोलीय घटना में कमी निकाल रहे हैं? कुछ शर्म वर्म है कि नहीं? इस अखिल विश्व के अभी तक ज्ञात देशों में से सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के निवासी आप पे लानत है। बिना मामले की गंभीरता एवं कार्य संपादित कराने वाले की दूरदर्शिता को जाने आपकी ऐसी ओछी टिप्पणी उचित नहीं है। आप ऐसा कर कैसे सकते हैं?" 
मिश्रा जी के यूँ धिक्कारने के पश्चात अपनी अनभिज्ञता पर मन ही मन स्वयं को कोसते हुये बड़े ही शर्म के साथ मैंने तनिक धीरे से कहा - "मिश्रा जी आप तो जानते हैं कि मैं यहाँ नहीं रहता और घर परिवार तथा दोस्तों के लिये ही मुश्किल से समय निकाल पाता हूँ। वो तो मैंने यूँ ही उत्सुकतावश पूछ लिया था और आप इतने नाराज़ हो गये जैसे मैंने ये पूछ लिया हो कि डोनाल्ड ट्रंप चुनाव क्यों हार गया। और इसमें लोकतंत्र की बात कैसे?"
मेरे इस प्रकार विनती करने के पश्चात मिश्रा जी ने अपने गुस्से को उदरस्थ करते हुये मुझे बताया (हालांकि उनकी नाराज़गी उनके ललाट पर लालिमा के रूप में अभी भी परिलक्षित हो रही थी) - "आप जाने कहाँ रहते हैं जो आपको कुछ पता नहीं होता है। और लोकतंत्र की बात मैंने इसलिए की थी क्योंकि लोकतंत्र ने राजनीति नामक एक ऐसा सर्प दिया है जो देश के विकास पर कुंडली मारे बैठा है। अभी कुछ दिनों पहले ही यहाँ के एक करूणहृदय न्यायप्रिय अतिलोकप्रिय सत्तासीन माननीय विधायक जी से सड़क की स्थिति देखी नहीं गई और उन्होंने इसकी मरम्मत कराई है और आप हैं कि उसमें भी कमी निकाल रहे हैं। लालू जी ने बसंती के गाल जैसी सड़क की बात की थी उससे अच्छे तो हमारे विधायक जी हैं जिन्होंने बसंती की इज्ज़त का पूरा सम्मान करते हुये चिकनी सड़क नहीं बनावाई एवं एक कुशल रफूगर जैसे सिर्फ फटी हुई जगह पर रफू करता है वैसा ही सड़क के साथ किया है। कदाचित् प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का उद्देश्य यही है। पूर्व में ऐसा ही अभूतपूर्व कार्य इन्होंने शनिचरी जाने वाली सड़क पर भी कराया था। क्या करें बेचारे इतने सज्जन आदमी हैं कि सज्जनता भी हर सुबह शाम इनको अष्टांग दण्डवत प्रणाम करके जाती है। जनता का दुख इनसे देखा नहीं जाता इतने सहृदय व्यक्ति हैं और न्यायप्रिय इतने कि अपने घर के बगल में स्थित सरकारी विद्यालय के बगल की सड़क इन्होंने तीन बार बनवाई जब तक निर्माण कार्य से संतुष्ट नहीं हो गये।"(ये लाइन कहते हुये मिश्रा जी के मुखमंडल पर एक अजीब सी ना समझ में आने वाली मुस्कान थी)

उन्होंने आगे कहा -"आपको ये तो पता है कि विधायक जी एक राष्ट्रवादी राष्ट्रीय पार्टी के नेता हैं। जो पार्टी इतनी राष्ट्रवादी है कि पार्टीविरोधी बात करने वालों को राष्ट्रविरोधी बात करने वाला बता सीधा पाकिस्तान का वीजा दे देती है और यही नहीं उसके नेता वहाँ तक छोड़ के आने की बात भी कहते पाये जाते हैं ऐसी पार्टी के सत्तासीन विधायक पर आप अकर्मण्यता का आरोप लगा रहे हैं? शर्म आनी चाहिए आपको।"
मिश्रा जी के रौद्र रूप को देख मैं सहम सा गया। तभी गफूर भाई के हँसने की आवाज़ ने मेरा ध्यान उनकी ओर आकृष्ट किया। तब गफूर भाई ने मुझे समझाया कि मिश्रा जी Sarcasm के मोड में हैं और मेरे आने से पहले तक वे दोनों भी इसी विषय में बातचीत कर रहे थे।

तब मिश्रा जी गंभीर हो गये और मुझसे कहने लगे - "**** जी क्या बतायें इस क्षेत्र को जाने किसकी नजर लगी है जो हमें ऐसे दिन देखने को मिल रहे हैं। ये वो विधायक जी हैं जिनका विजन आजतक कभी स्पष्ट नहीं रहा कि ये राजनीति में करने क्या आये थे, कर क्या रहे हैं और भविष्य में क्या करेंगे? राम जाने उनको स्वयं को भी यह ज्ञात है अथवा नहीं? मैं दावे से कह सकता हूँ कि ऐसा अकर्मण्य विधायक इस क्षेत्र के इतिहास में आजतक नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी (हालांकि कुछ लोग इसको भारतीय जमात पार्टी भी कहते हैं) के एक अतिअतिरिक्त अतिउपेक्षित एवं थोथे विकासपुरूष के जीवंत परिचायक इस अल्पविकसित विधायक को एक वार्ड चलाने की समझ नहीं है और हम इनसे पूरे विधानसभा क्षेत्र की आस लगाये बैठे हैं तो हमसे बड़ा जाहिल और कौन होगा।
हमेशा अपने चरणलोलुपों द्वारा की जाने वाली चरणवंदना से आच्छादित रहने वाले नेताजी के लिए जनता की समस्याएं तो इनकी अधोजटाओं के घुंघराले बालों के त्याज्य गुच्छों के समान हैं। अपनी बिरादरी वालों को ठेकेदारी एवं अघोषित रौबदारी सौंपने की व्यस्तता के मध्य माननीय अपने अतिनिजी कार्यों के संपादन हेतु समय निकाल लेते हैं यही क्या कम है अन्यथा अगर कार्य प्राकृतिक नहीं होता तो अधोजटाओं सी मोहिनी मूरत वाले उनके चरणचुंबक स्वयं संपादित कर आगामी ठेकेदारी के लिये अपनी कर्तव्यपरायणता सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।"
इतना बोलते बोलते मिश्रा जी की साँस फूलने लगी फिर मैंने और गफूर भाई ने जैसे तैसे उन्हें चुप कराया और पान थूकते हुये गफूर भाई ने पनवाड़ी से पानी की बोतल माँगी। हमने मिश्रा जी को पानी पिलाया। तभी बस आ गई और मिश्रा जी तथा गफूर भाई को जाना पड़ा। मिश्रा जी जाने के मूड में तो नहीं लग रहे थे शायद उनकी बात अधूरी रह गई थी। 
फिर मैंने भी अपना काम निपटाया और घर की ओर चल पड़ा।
वापस आते हुये मैं सोच रहा था कि कह तो मिश्रा जी ठीक ही रहे थे।

(लेखक पेशे से इंजीनियर है और राष्ट्रचिन्तक से जुड़े हुए है)