सब टक्कर है टीआरपी की न कहा बीस - बीस सालों से न्यूज चैनल अचानक से एक पत्रकार दो तीन सालों में अपना न्यूज चैनल खड़ा कर देता है और पूरी टीआरपी अपनी ओर खींच लेता है तो जलन होगी न तमाम बड़े तथाकित न्यूज चैनलो को। नया दौर के हिसाब से आप भी चैनल में बदलाव कीजिए और जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कीजिए। लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं कि आप पत्रकारिता के क्षेत्र से होकर किसी पत्रकार का समर्थन ना करे जब उसके साथ किसी किस्म ज्यातिकी और बदसलूकी हो रही हो। इस समय सभी पत्रकारों एकजुट होना चाहिए क्योंकि जो हो रहा है या हुआ वो कल को इनके साथ भी हो सकता है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सामने अर्णब की गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हुआ। दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने ऑप इंडिया को दिए बयान में कहा कि आज कल सोशल मीडिया पर नया ट्रेंड चल रहा है पत्तलकार यानी जो पत्तल लेकर बैठे रहते है कि कोई सरकार उनके पत्तल में कुछ दाने डाल दे इस इंतजार में बैठे रहते है तो देखिए जो आज नहीं निकले वो मैं मानता हूं दरअसल वो पत्तलकार है क्योंकि वो सरकारों के दम पर सरकारों के पैसों से, सरकारों कि जो सहानभूति थी और सरकारों से फेवर लेकर पलते रहे है। उन्होंने आगे कहा कि , आप ये सोचिए की पुलिस वालें एक हो जाते है अगर एक पुलिस वाले पर हमला होता है तो , वकील एक हो जाते है अगर एक वकीलो पर हमला होता है तो , जज एक हो जाते है जब जजो पर हमला हो जाता है सबकी कौम हो जाती है लेकिन पत्रकारों की कौम क्यों नहीं होती क्योंकि पत्रकारों की कौम सबसे ज्यादा अगर कह सकते है तो सबसे ज्यादा हिन्दुस्तान में सरकारों का कोई फेवर लेकर रही तो पत्रकारों की कौम रही है। लुटियंस लॉबी कौन नहीं जानता? ये खान मार्केट गैंग क्या है? ये सब वही लोग है जो सरकारो से फेवर लेकर जिंदा रहे है। इसीलिए आज इनको लगता है कि महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ बोलेंगे कल को अगर केंद्र में सोनिया या राहुल गांधी की सरकार आ गई, अगर कांग्रेस समर्थित सरकार आ गई तो हम विरोध में बोलेंगे तो कल को हमें बंगले कैसे मिलेंगे? हमे विदेश यात्राएं जो मिलती वो कैसे मिलेंगे या हमे जो फेवर मिलते है वो कैसे मिलेंगे? ये दलाली करते है इसलिए खामोश बैठे। जो घर बैठे है इसीलिए वास्तव में मैंने इन्हें पत्रकार मानता नहीं। वो यही नहीं रुके ऑप इंडिया के अजित भारती से बात करते वक्त प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और एडिटर्स गिल्ड पर निशानाा साधते कहा की पत्रकारिता सेे जुड़ी हर बड़ी संस्था अब बेकार हो चुकी है। प्रेस क्लब की भूमिका क्या है? प्रेस क्लब की भूमिका बहुत बड़ी भूमिका है। प्रेस क्लब आजकल चुनाव लड़ने का इंजॉय करने का अड्डा बन के रह गया है। अर्नब गोस्वामी को छोड़िए इससे पहले भी बहुत से हजारों पत्रकारों की गिरफ्तारी हो चुकी है उस वक्त तो प्रेस क्लब आगे नहीं आया। एडिटर्स गिल्ड के ऊपर भी जमकर बरसते हुए बोले कि हमारा एक कैमरा पर्सन साहू छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की गोली का शिकार हुआ था उस वक्त जो एडिटर्स गिल्ड ने जो बयान जारी किया था हमारे जो कैमरा पर्सन साहू है उनका नाम तक नहीं था। इतना शर्मनाक स्टेटमेंट पत्रकार के मौत होने पर और दूसरी तरफ बर्मा में यानी म्यांमार कुल 4 पत्रकार गिरफ्तार हुए थे इन चारों पत्रकारों का बकायदा नाम देकर उसका विरोध किया गया था। जो एडिटर्स गिल्ड एक पत्रकार की हत्या पर, नकल जब उसको मारते हैं उसके खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते हैं वह एडिटर्स गिल्ड किस काम के? यह बिकी हुई कलम के लोग हैं! वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने तथाकथित लोगों पर निशाना साधते हुए का की आकार पटेल, तीस्ता सीतलवाड़ यह कोई पत्रकार है क्या? ये सब अपने को पत्रकार कहते है। आप पूरे देश में पूछिए एडिटर्स गिल्ड के बारे में सबसे पूछिए ये लोग ढकोसले बाज लोग है सबको पता है इनमें से कोई भी असली पत्रकार नहीं रह गया है। 2-4 नाम होंगे इनमें से विरोध कर रहें है। आलोक मेहता का उदहारण देते हुए कहा कि उन्होंने ट्वीट का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे कुछ लोग है जिनकी रीड की हड्डी है जो लोग आवाज उठाते हैं। लेकिन बाकी एडिटर्स गिल्ड , ऑफ़ प्रेस क्लब या बाकी तमाम संस्थाएं हैं सब irrelevant हो चुकी है। इनका सिर्फ एक काम है कि सिर्फ मोदी का विरोध करना है और इनको किसी भी चीज कोई मतलब नहीं है क्योंकि मोदी ने इनकी दुकानदारी , दलाली बंद कर दी है ।
अजीत भारती के अगले सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मैं भी अर्णब के चैनल पर जब रिपोर्टिंग देखा था उनके पत्रकार उछल कर रिपोर्टिंग करते थे मैंने कहा ये क्या हो रहा है? मैंने ट्विटर पर सार्वजनिक रूप से इसका विरोध किया है। मैंने कहा ये पत्रकारिता नहीं है लेकिन आज अर्णब को गिरफ्तार कर लिया गया तो मैं यह कहूंगा कि आपकी पत्रकारिता ऐसी है वैसी है। मैं राजदीप की पत्रकारिता को जानता हूं घनघोर विरोधी हूं मै रवीश की जो एकतरफा पत्रकारिता है उसका घनघोर विरोधी हूं। लेकिन जब राजदीप पर कुछ लोगों ने हमला किया था जब वो एक रेस्टोरेंट में गए थे मैंने उसका भी विरोध किया था क्योंकि मै ये मानता हूं पत्रकार चाहे लेफ्ट विंग का हो या राइट विंग का हो उसके ऊपर अगर हमल हो रहा हो तो आपको बोलना चाहिए। क्योंकि आप राइट और लेफ्ट इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपके पास डेमोक्रेसी है, संविधान की दी हुई ताकत है। मीडिया के पास आ जाती है इसीलिए आप लेफ्ट और राइट कर रहे हैं। अगर आपके पास आजादी ही नहीं होगी तो आप लेफ्ट क्या करोगे राइट क्या करोगे? आपको सिर्फ एक ही दिशा में चलना होगा वो होगा तानाशाही इसीलिए इसके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। कैबिनेट कुछ नहीं होता है जो लोग कैबिनेट लगा रहे है दरसअल वो किसी न किसी आड़ में छिपने कोशिश कर रहे हैं। उनका मन साफ नहीं वो अर्णब की तरक्की से जले हुए हैं। देखें बहुत सारे पत्रकार इसलिए भी परेशान है जो लोग आवाज नहीं उठा रहे हैं क्योंकि उनको लग रहा है कि अरे इतनी जल्दी उसने टीआरपी लेली, अरे इसने हमारी टीआरपी खत्म कर दी, अरे इतनी इतनी जल्दी इतना पैसा बना लिया, दो - दो चैनल खड़े कर दिए और 1 साल के अंदर इसके दोनों चैनलों ने सतरह - अट्ठारह 20 साल से खड़े चैनलों का बाजा बजा दिया। तो ये उस बात से भी परेशान है। अरे कंपटीशन है आप रहिए ना आप में दम है तो आप अर्णब से कंपटीशन कीजिए ना, आप टीआरपी में कंपटीशन कीजिए, अर्णब से बड़ा एम्पायर खड़ा कीजिए लेकिन आप नहीं खड़ा कर पाएंगे तो आप कहेंगे कि ये तो पत्रकारिता नहीं है। आप कौन होते हैं पर सर्टिफिकेट देने वाले? राजदीप पत्रकार है क्या? राजदीप जो कुछ करते रहे पत्रकार है, रवीश जो करते रहे हैं वह पत्रकारिता है क्या? पत्रकारिता का सर्टिफिकेट कोई दे नहीं सकता ! कोई माई का लाल ऐसा है नहीं हिंदुस्तान में जिसने घर में छापाखाना खोल रखा हो कि मैं पत्रकारो का सर्टिफिकेट दूंगा तो वो ही पत्रकार होगा। किसी के मां ने इतना दूध नहीं पिलाया है कि वह पत्रकारों को सर्टिफिकेट बांटे। मैं भी पत्रकार हूं आप भी पत्रकार हैं, अर्णब भी पत्रकार है और प्रदीप भंडारी भी पत्रकार है सब पत्रकार हैं। और हम सब को इसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए। हम किसी भी आड़ में छिपने की कोशिश कर रहे है तो हम सब डबल स्टैंडर्ड है, हम लोग दोगले लोग है।
देश कि जनता मूर्ख नहीं है उसे ही पता है कौन गलत है कौन सही है इसीलिए देश कि जनता गिरफ्तारी का विरोध कर रही है भारत के अनेक राज्यों में इसका पुरजोर विरोध हो रहा है। महाराष्ट्र सरकार में बैठे फासीवादी सोच के लोग सत्ता का दंभ भर रहे है। उछलते हुए ऐसा करेंगे कि फिर कभी उठ नहीं पाएंगे।
शानदार एवं उम्दा लेख। उद्धव ठाकरे जो कर रहे है वो बिल्कुल सही नहीं है उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद रजत जी।
DeleteAptly Written
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद हृतिक जी।
Deleteलाजवाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया शांतनु जी।
Deleteअब लोग नहीं कहेंगे, लोकतंत्र खतरे में है।
ReplyDeleteअरे कैसे कहेंगे अपने समय इनको सांप सूंघ जाता है न। दूसरो ऊपर आरोप लगाने ये "लोग" माहिर है इनको बस सत्ता से मतलब है इनके हाथ में है तो देश सुरक्षित, फिलहाल कोसो दूर है केंद्र में सत्ता से तो लोकतंत्र खतरे में।
Deleteअभिव्यक्ति की आजादी की बात करने लिबरल लोग महाराष्ट्र सरकार की तारीफ करते नहीं थक रहे है।
ReplyDeleteये वही लोग है जो दूसरों के फेके हुए जूठन पर पलते है।
Deleteशानदार लेख।
ReplyDeleteशुक्रिया जियो।
Deleteसही बात
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद सतीश जी। स्वागत है आपका राष्ट्रचिंतक ब्लॉग पर।
Deleteबेहतरीन लेख।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद हरी जी।
Deleteबिलकुल सत्य और सार्थक
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सौरभ जी।
Deleteबहुत बढ़िया लेख।
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
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