विश्वविद्यालय में तो कहिए ही मत बहुत से छात्र अपने को क्रांतिकारी समझने लगते है जबतक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का क्लास चलता है। खुद को भगत सिंह समझने लग जाते हैं सब भले ही उनके बारे में कुछ ना पढ़े हो। वही सुनी सुनाई बातो पर विश्वास कर लेना एक बहुत बड़ी बीमारी है। एक लेख है भगत सिंह का "मैं नास्तिक क्यों हूं?" बस इसके बारे में सब जान गए और सब खुद को जी जान से नास्तिक बनाने में लग जाते है। कोई कह दिया भगत सिंह तो मार्क्सवादी थे तो फिर मार्क्सवादी बन गए। अरे भगत सिंह तो लेनिन की किताब पढ़ रहे थे हम भी लेनिन के सिद्धांतो पर चलेंगे और वामपंथी बनेंगे। इन मूर्खो को कौन बताए की भगत सिंह तो गीता और रामायण भी पढ़ते थे। कुछ अपने को माओ और चे ग्वेरा समझते है। स्टालिन बनने की ख्वाहिश में पूरा जिंदगी बर्बाद कर लेते है। ये सब के सब ज्ञान देते है दूसरो को की तुम सोए हुए युवा हो या नागरिक हो और खुद गांजा फूंकते हुए कैंपस में मिल जायेंगे।
अपना काम तो होता नहीं है इन लोगो से पर दुनिया भर का ज्ञान झाड़ते है। दो चार लेख और अखबारों को पढ़कर ये रक्षा
विशेषज्ञ बनते है। पूरा इतिहास और भूगोल का ऐसा ज्ञान देंगे की मानो इन्हे लड़ने के लिए भेज दिया जाए तो जीतकर आएंगे। वो अलग बात है कि सौ मीटर दौड़ने में हाफ जाते है। उलुल- जुलूल ज्ञान झाड़ना अलग बात है और काम करना अलग बात है। मुझे तो ये बात आजतक नहीं पता चला कि की इतना ज्ञान लाते कहा से है? गलत और अधूरी जानकारी को ये ग्रहण करके अपने सामने दूसरों को ये तुच्छ समझते हैं। इनकी जानकारी जाकारी और सामने वाले की महामारी!
हद है! दूसरो की सत्य बाते इनसे पचती कहा है? कुछ तो ऐसे इतिहास के जानकार मिलते है जिनका कहना है कि हिंदुओ ने भी नरसंहार किया है ! ज्ञान झाड़ने की इस लड़ाई में कोई किसी से पीछे नहीं रहता है। वाद-विवाद का एक अलग ही दौर चल पड़ा है इस इंटरनेट के जमाने में।कोई जानकारी लेनी है इंटरनेट पर आसानी से मिल जाता है कुछ एक क्षणों में। वही से दो चार लाइन जान जाते है और कोई मिल जाता है तो उसके सामने झाड़ने लग जाते हैं। सोशल मीडिया का नशा सबके सर चढ़ कर बोल रहा हैं जहा झूठ कपास और अफवाह सिवाय कुछ नही है। जो पक्ष में है वही सही है बाकी सब गलत है। एक दूसरे को ज्ञान देते देते बोल पड़ते हैं आप हमशे ज्यादा जानते हैं क्या? नही तू मुझसे ज्यादा जानता है! चल निकल यहां से! तुझे बोलने का शहूर नही है? जाओ पढ़ो लिखो बच्चे हो मेरे सामने! बच्चा किसको बोल रहे हो खड़े खड़े बेच दूंगा आपको! चलो जाओ रास्ता नापो अपना। बिना जानकारी के बहस नही करते!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी।
Deleteसदैव स्वागत है आपका ब्लॉग पर।
🌻
😀😀😀
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने शिवम जी,सार्थक लेखन ।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार जिज्ञासा जी।🌻
Deleteबहुत सुंदर लेख!
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद भाई।🙏♥️
Deleteबहुत सही कहा शिवम जी आपने!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सोमेश्वर जी आपका।🌻♥️
DeleteNice line
ReplyDeleteजी, आपका बहुत धन्यवाद।
Deleteबिल्कुल सुंदर लेख
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद सरिता जी।
Deleteये नेट का दौर ऐसा ही है ...
ReplyDeleteफिर पिछले ७० सालों से जो पढ़ाया है वो रगों में असर तो करेगा ...
आपका बहुत आभार दिगम्बर जी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए। बिल्कुल सही बात कही आपने।
Delete🌻
सुंदर लेख
ReplyDeleteशुक्रिया मनोज जी।
Deleteस्वागत है आपका ब्लॉग पर।
सर,बहुत ही सुंदर और उन लोगों के मुहं पर तमाचा है ये लेख जो आधी अधूरी जानकारी लिए खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी और सामने वाले को मूर्ख प्राणी समझते हैं
ReplyDeleteआपका बहुत आभार मनीषा जी।🌻
DeleteAapne to kafi achhe blog likhe hai
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद एवं आभार।
Deleteस्वागत हैं आपका राष्ट्रचिंतक ब्लॉग पर।🌻
साफ़ दिल सृजन - - नमन सह।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद एवं आभार शांतनु जी 🌻🙏
DeleteVaah😅😂
ReplyDeleteधन्यवाद रितेश जी😅
Deleteबेहतरीन लेख।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया सिद्धार्थ जी।
Deleteउम्दा लेख।
ReplyDeleteपढ़कर मजा आ गया😅
बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी।
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