1853: हिन्दुओं का आरोप है कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा
1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिन्दुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी
1885 : मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी।
1934 : अयोध्या में एक बार फिर दंगे हुए और मस्जिद के कुछ हिस्सों को नुकसान भी पहुंचाया गया। बाद में राज्य सरकार के खर्च पर मस्जिद में सुधार कर दिया गया।
1949: विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गई।
1950: रामालला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।
1950: परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।
1959: निर्मोही अखाड़ा ने जमीन अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।
1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।
1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्म स्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।
1 फरवरी 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के लिए हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।
विरोध में बाबरी एक्शन कमेटी का गठन।
1989: भाजपा का वीएचपी को औपचारिक समर्थन जुलाई में भगवान " रामलला विराजमान" नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल।
1989: राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद या नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
14 अगस्त 1989 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
सितंबर,1990: लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। सांप्रदायिक दंगे हुए । नवंबर में आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लिया।
अक्टूबर,1991: कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में लिया।
6 दिसंबर 1992: हजारों में की संख्या में कर सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। एक अस्थायी राम मंदिर का निर्माण किया..!
16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़ फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन।
3 अप्रैल 1993: विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने 'अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून' पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। इनमें इस्माइल फारूकी की याचिका भी शामिल। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।
24 अक्टूबर 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।
जनवरी 2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में एक अयोध्या विभाग शुरू किया जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए दोनो पक्षों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।
मार्च -अगस्त,2003: 13 मार्च को न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा, अधिग्रहित स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले।
जुलाई ,2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी
30 सितम्बर 2010 : उच्चतम न्यायालय ने 2:1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
9 मई 2011: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।
21 मार्च 2017: सीजेआई जेएस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।
7 अगस्त 2017 : उच्चतम न्यायालय ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जिसने 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।
8 फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की।
20 जुलाई 2018 : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
27 सितम्बर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इनकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नई पीठ द्वारा किए जाने की बात कहीं।
29 अक्टूबर 2018: उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेंगी।
24 दिसम्बर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने सभी मामलों पर चार जनवरी 2019 को सुनवाई करने का फैसला किया।
4 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी।
8 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने की। इसमें न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे।
10 जनवरी 2019 : न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नई पीठ के समक्ष तय की।
25 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर शामिल थे।
29 जनवरी 2019 : केंद्र ने विवादित स्थल के आसपास 67 एकड़ अधिग्रहीत भूमि मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। 26 फरवरी
2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा।
8 मार्च 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएम आई कलीफुल्ला बनाए गए।
9 अप्रैल 2019: निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केन्द्र की याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
10 मई 2019: मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 15 अगस्त तक की समय सीमा बढ़ाई।
11 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने 'मध्यस्थता की प्रगति' पर रिपोर्ट मांगी।
18 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिए कहा।
1 अगस्त 2019 : मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई। 2 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया।
6 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की। 4 अक्टूबर 2019: अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवम्बर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा।
16 अक्टूबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।
19 नवम्बर 2109: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन राम लला को दी, जमीन का कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए एक मुनासिब स्थान पर पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया।
स्रोत: राष्ट्रीय सहारा अखबार, बीबीसी हिंदी, पीटीआई आदि
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