(एक काल्पनिक कहानी "बघवा")
हा, एक दिन ये स्वर्ण जैसी तेरी काया जल जाएगी कोई तेरे पास नहीं आएगा। सब दूर खड़े रोएंगे और तमाशा देखेंगे सब कुछ राख हो जाने तक। तब मै आऊंगा तेरी जलती हुई चिता से सिगरेट जलाऊंगा और उसके धुएं से तेरी तस्वीर बनाऊंगा और उसके सामने अपने दिल कि बात रखूंगा और उससे सवाल करूंगा। लेकिन इससे होगा क्या ? ये सब बातें नहीं जानता था कि कब हकीकत का रूप ले लेंगी..
अभी सोच ही रहा था कि पूरा शरीर एकदम झन्ना गया मानो जैसे उसकी आत्मा ने सिगरेट धुएं के जरिए मेरे अंदर प्रवेश कर गई हो। मेरा सम्पूर्ण शरीर मानो ऊर्जा से भर गया हो सारे कष्ट दूर हो गए.. ये इसी बात का संकेत था कि वो मुझे आज भी मरने के बाद भी चाहती है। हा वो मुझसे नाराज नहीं थी और ना ही वो मरने के बाद है। मुझे मेरे प्रश्नों का उत्तर मिल गया शायद उसकी आत्मा कह रही हो मुझसे उठ जा मै नहीं चाहती कि तू अपना पूरा जीवन मेरे खातिर बर्बाद कर। मै तेरा इंतेज़ार करूंगी स्वर्गलोक में तुझे वापिस मिलूंगी उसी रूप में। लौट जाओ इस श्मशान से बाहर तुमको और घमासान करना है। मै समझ गया उसे भी मेरे राष्ट्रवादी विचार और आदर्शों से कितना लगाव था फिर मेरा और उसका यही तक साथ था।
अब चिता जल के राख हो चुकी है अंतिम समय उसके राख को माथे पे लगाया और गंगा में स्नान किया और चल दिया उसका और मेरा सपना पूरा करने। अखंड भारत वो भी जानती थी कि ये बलिदान मांगता है...
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