जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से। भारतीय स्वतंत्रता से पहले जम्मू और कश्मीर मुस्लिम बहुसंख्यक रियासत थी, जिस पर हरि सिंह का शासन था। राजा और प्रजा के बीच मधुर संबंध होने के कारण राज्य में शांत माहौल था। कांग्रेस की चार नीतियों ने कश्मीर को शांत राज्य में बदल दिया। पहला, कांग्रेस ने 1919 में खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया इस आंदोलन ने मुस्लिम लीग को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और जिन्ना महत्त्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति बन गए। जिन्ना ने उत्तरार्द्ध भारत के विभाजन और 'कश्मीर समस्या' को शुरू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरा, खिलाफत आंदोलन के बाद के वर्षों में कश्मीर में कई धड़े मुसलमानों के विभिन्न वर्गों के समर्थन में उभरे। प्राथमिक गुटों में हरि सिंह, जिन्ना के नेतृत्व में मुसलिम लीग, धार्मिक नेता मीरवाइज शाह के नेतृत्व में आजाद कांफ्रेंस, और शेख के अब्दुल्ला नेतृत्व में अखिल भारतीय जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय कांग्रेस शामिल थे। 1940 के दौरान नेहरू में 'कश्मीरियत' की भावना जागी। नेहरू ने शेख अब्दुल्ला का समर्थन किया और अन्य गुटों को अलग कर दिया। तीसरा, भारत छोड़ो आंदोलन 1945 तक जम्मू कश्मीर तक पहुंच गया था। भारत के अन्य हिस्सों में आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ था, वहीं कश्मीर में आंदोलन हरि सिंह के शासन के खिलाफ था। जिन्ना ने ऐसे समय में हरि सिंह का समर्थन किया। नेहरू के प्रति अविश्वास के कारण हरि सिंह को विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने में हिचक थी। नेहरू और हरि सिंह के कड़वे रिश्तों का ही नतीजा है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)। अंत में, नेहरू अपने मित्र शेख अब्दुल्ला की धारा 370 और 35ए की मांग पर सहमत हुए, जो कश्मीर को एक अलग संविधान, ध्वज और राज्य का प्रमुख प्रदान करता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सरकार धारा 370 के जरिए इस राज्य को मुख्यधारा में जोड़ने और शांति और सौहार्द से भरने में सक्षम रही है। पिछले सात दशकों से पाकिस्तान ने पीओके और बलूचिस्तान के अपने दावे को सही ठहराने के लिए लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और संगठनों से संपर्क किया है। भारत की आजादी से पहले बलूचिस्तान पर कलात के खान का शासन था। खान को जबरदस्ती बंदूक की नोंक पर कराची ले जाया गया और विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए गए। बलूचिस्तान राजशाही की नेशनल असेंबली के दोनों सदनों ने 12 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के खिलाफ मतदान किया। इस प्रकार से बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा अवैध है। बलूचिस्तान ने कई मौकों पर अपने अवैध कब्जेदारों को हटाने की कोशिश की है: 1958 का युद्ध, 1962 का युद्ध, 19731977 का युद्ध, और एक अब भी लड़ा जा रहा है। भले ही बलूचिस्तान पाकिस्तान के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले खनिजों वाला एक खनिज समृद्ध राज्य है, लेकिन बलूची लोग सबसे अधिक निरक्षर हैं। बलूचिस्तान पाकिस्तान का आधा भूभाग है। समय आ गया है कि बलूचिस्तान में राष्ट्रवादी समूहों- बलूचिस्तान नेशनल पार्टी, नेशनल पार्टी, जम्हूरी वतन पार्टी, बलूच हक तलवार, पश्तून खावा मिली अवामी पार्टी और बलूचिस्तान छात्र संगठन बलूचिस्तान को को समर्थन दिया जाए। बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के दक्षिण-एशिया में महत्त्वपूर्ण परिणाम होंगे क्षेत्र में चीन की आक्रामकता घटेगी, पाकिस्तान कमजोर होगा, तालिबान से प्रभावी रूप से लड़ा जा सकेगा, और ईरान और भारत के बीच तेल पाइपलाइन को पूरा किया जाएगा। वर्तमान में चीन, बलूचिस्तान के तटीय क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है, ताकि भारत पर बेहतर पकड़ बन सके। यदि भारत ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के कारणों का समर्थन करने का फैसला किया, तो नैतिक रूप से यह निर्णय सही होगा।
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