लेखक:- शिवम कुमार पाण्डेय
ये क्या हो रहा है? कौन इतना हल्ला हूं क्यों मचा हुआ है? तू तू मै - मै कर के बात हो रही है। ऐसे तू तड़ाक कय के कौन बतियाता है भाई? अरे! किसी ने टेलीविज़न चला रखा है। सब समाचार देख रहे है। तीखी बहस हो रही है चिल्ला चिल्लाकर। सब टीआरपी का खेल है भैया नहीं तो कौन इतना गला फाड़ता है। कवनो समाचार चैनल लगाइए सब अपना एजेंडा चलाए जा रहे है। जनता को क्या देखना है ये जनता नहीं ये खुद तय करते है डंके की चोट पर। बहस के दौरान स्टूडियो में हाथापाई तक हो जाती है और गाली गलौज तो आम बात हो चुकी है आजकल के नेताओ के लिए। पत्रकार कहता है ये मेरा न्यूज चैनल मेरी मर्जी जो मन तो दिखाऊं मुझे कोई रोक नहीं सकता है। न्यूज़ दिखाते दिखाते वक्त हर चैनल एक ही बात दोहराता है "सबसे पहले हमारे चैनल ने इस खबर को दिखाया है।" कोई ख़बर दिखाते हुए आराम से बोलता तक नहीं है इतनी हड़बड़ी मची रहती हैं मानो इनसे बड़ा कोई सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नहीं है। "हम सिर्फ सच दिखाते है झूठ नहीं" के वाले चोचले भी चलते रहते हैं। हर खबर पर हमारी नजर , अफवाहों से रहे दूर, सनसनी, आर पार की जंग कर देंगे बेनकाब और मच गया दंगल मानो मीडिया जगत है पूरा का पूरा जंगल।पत्रकारिता यही तक सीमित नहीं रहती है कुछ शांतिप्रिय पत्रकार भी हैं जो अपने आपको बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी समझते हैं। इनका काम आतंकियों और नक्सलियों के घर जाकर संवेदना व्यक्त करना होता है। वे कहा तक पढ़े है और कौन सी डिग्री हासिल किए है बताकर उनका महिमा मंडन करना होता है। इन जिहादी आतंकियों को भटका हुआ नौजवान बताकर इनके एनकाउंटर पर सवाल खड़ा करते है। हद तब और हो जाती है जब क्रूर नक्सलियों को ये लोग "क्रांतिकारी" बताने लग जाते हैं। न्यूज चैनलों पर बैठकर देश विरोधी एजेंडा चलाते है और कुछ मुट्ठी भर राजनीतिक पार्टियां इनका समर्थन करती है। टीआरपी लेने की ऐसी होड़ मची रहती हैं मानो दो कुत्ते आपस में मांस के टुकड़े के लिए छीना झपटी कर रहे हो। रात को 9 बजे सबका शो चलता है "प्राइम टाइम" यहां बाजी मारने के लिए टीवी की स्क्रीन तक काली कर दी जाती है और कहा जाता है आज का अंधेरा ही सच्चाई है। किसी मुद्दे को ऐसा तोड़ - मरोड़ के पेश किया जाता है कि मुख्य जानकारी से जतना अनिभिज्ञ रह जाती है और ये अपना एजेंडा फैलाने में कामयाब हो जाते है। अब उदाहरण के तौर पर नागरिकता संशोधन कानून को ही ले लीजिए इसको लेकर धड़ल्ले से भ्रामक फैलाया जा रहा था। झूठ कपास बोलना आजकल के पत्रकारों ने भी सीखा लिया है खैर आजकल यही ख़बरें तो धूम मचा रही है।
माइक ,कैमरा और एक्शन! लीजिए आप बन गए पत्रकार अब उड़ाइए अफवाह सरेआम बाज़ार। अब तो पत्रकारिता ऐसा व्यासाय बन गया है जो अफवाह उड़ाने, दंगा भड़काने , देश को तोड़ने आदि का कार्य कर रहा है। ऐसे संकीर्ण मानसिकता वाले पत्रकारों का बहिष्कार करना अनिवार्य हो गया हैं। ये पत्रकार नहीं चाटुकार हो गए है जो जनता को भक्त और चमचा की संज्ञा देने लग जाते हैं पर कही ना कहीं मूर्ख तो ये मुट्ठी भर लोग इसी जनता में ही निकलेंगे जो खुद को भक्त और चमचा कहलवाने में गौरांवित महसूस करते होंगे। बिना तथ्यो के तर्क - कुतर्क किए हुए इन लोगो का मन नहीं भरता है। फिर कहते है हमारा चैनल है
नंबर वन ! आपको रखे आगे।
ekdm sahi baat🔥
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद रजत जी
DeleteBhut khub likhe bhai
Deleteजी धन्यवाद आपका।
Deleteकहते सब एक दूसरे को चोर है पर सचाई तो यह है कि "चोर चोर मौसेरे भाई" वाली कहानी है।सब के सब चोर ही है।
ReplyDeleteहा,बिल्कुल सही कहा पर ये सब बंद होना चाहिए इसी में सबकी भलाई है।
Deleteबिल्कुल सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद शांतनु जी।
Deleteबेहतरीन👌
ReplyDeleteधन्यवाद पांडेय जी🌻
Deletelikhwat toh kaafi achhi hai lekin hum yeh baat jodna awashya chahenge ki aap thode aur chalchitrao ko prayog mein laye. uske alwa baaki sab kaafi achha hai.
ReplyDeleteजी अवश्य मै इसपर ध्यान दूंगा। बाकी प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद।🌻
Deleteलजवाब अभिव्यक्ति शिवम् जी। आजकल की पत्रकारिता केवल एक दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए की जा रही है।
ReplyDeleteशुक्रिया सिद्धार्थ जी। बाकी एक अच्छा पत्रकार होने के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रवादी होना जरूरी है।
Deleteऔर शायद यही भारत का दुर्भाग्य है
ReplyDeleteजी हां, कुछ कलम के गद्दारों ने बहुत भसण मचा के रखा है।
Deleteशानदार लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद कृष्णा जी।
DeleteBahut badhiya lekh hai..
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर लेख।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया शैलेश जी।
Deleteआपका प्रबंध सामायिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है, प्रचार माध्यम में वास्तविक घटनाओं का बेबाकी से विश्लेषण होना अपनी जगह जितना ज़रूरी है उतना ही राष्ट्रवादी सिद्धांतों को अक्षुण्ण बनाया रखना भी। लेकिन ये भी सच है कि कोई भी विधा क्यों न हो उसे मानवतावादी होना चाहिए, बिना राष्ट्रहित को नुकसान पहुंचाए। सार्थक आलेख - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद एवं आभार। काफी महत्वपूर्ण टिप्पणी है आपकी।
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