लेखक:- शिवम कुमार पाण्डेय
क्या कह रहे हो तुम्हारी आवाज दबाई जा रही है, तुम पर जुल्म किया जा रहा है।इसीलिए जुलूस निकाल रहे हो तभी मैं कहा इतनी भीड़ क्यों है। पर ये भगत सिंह की तस्वीर का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो? ओ क्रांति का दूसरा नाम भगत सिंह है! सड़को पर क्रांति होगी तोड़ - फोड़ की जाएगी , वाहनों को फूंका जाएगा रेलवे ट्रैक उखाड़ा जाएगा सबकुछ अस्त - व्यस्त कर दिया जाएगा, और डीजे लगा के नाच गाना किया जाएगा। इसी को छात्र , बेरोजगारों और किसानों का आंदोलन बोला जाएगा। वाह यार वाह गजब की क्रांति है यार पर ट्रैक्टर जो किसानों का मदद करता है उसको फूंक कर भगत सिंह जिंदाबाद के नारे लगाकर उनका अपमान करना क्या यही विचार है?
भगत सिंह के नाम पर फलनवा - ढिकनवा मोर्चा संगठन बनाके लोगो को भड़काना, महौल खराब बिगाड़ना आदि करना आम बात हो गई है। हद तो तब हो जाती है जब किसी आतंकवादी या नक्सल गतिविधियों में शामिल व्यक्ति की तुलना शहीद भगत सिंह से कर दी जाती है चंद मुट्ठी भर नेताओ और बुद्धिजीवियों द्वारा।
कोई उनका ऐसा पोस्टर लगाता है मानों ये कोई क्रांतिकारी नहीं गुंडा या माफिया हो ! मतलब एक कट्टा खोस दिया जाता है उनके जेबा में । अरे भाई थोड़ा तो रहम करो इनपर ये कोई मामूली व्यक्ति नहीं है ये वही हैं जिसने कहा था "सामाजिक परिवर्तन सदा ही ताकत और विशेष सुविधाएं मांगने वालो के लिए भय पैदा करता है। क्रांति एक ऐसा करिश्मा हैं जिसे प्रकृति स्नेह करती है और जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती - न प्रकृति में और न ही इंसानी कारोबार में। क्रांति निश्चय ही बिना सोची - समझी हत्याओं और आगजनी की दरिंदा मुहिम नहीं है और न ही यहां - वहां चंद बम फेंकना और गोलियां चलाना है; और न ही यह सभ्यता के सारे निशान मिटाने तथा समायोचित न्याय और समता के सिद्धांत को खत्म करना हैं। क्रांति कोई मायूसी से पैदा हुआ दर्शन भी नहीं और न ही सरफरोशों का कोई सिद्धांत हैं। क्रांति ईश्वर विरोधी हो सकती हैं लेकिन मनुष्य विरोधी नहीं।"
असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और दत्त द्वारा बांटे गए पर्चे में लिखा था "बहरो को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज़ की आवश्यकता। होती हैं," प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलीयां के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं। देखा जाए तो बम को वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया था और उसे खाली जगह फेंका गया था ताकि किसी को हानि ना पहुंचे नहीं अगर ऐसा नहीं होता तो कोई जिंदा ही नहीं बचता इस पर्चे को पढ़ने के लिए।
भूख हड़ताल का भी ढकोसला आजकल बहुत चलता है भारतीय राजनीति में युवा लोग भी कोई दूध के धुले नहीं है इस मामले को लेकर आज भूख हड़ताल शुरू होती है किसी मुद्दे को लेकर और अगले दिन अनार के जूस के साथ खत्म हो जाती है। सोचिए 114 दिन के भूख हड़ताल में कितनी यातनाएं झेलनी पड़ी होंगी शहीद भगत सिंह और उनके साथियों को।
आजकल के युवा पीढ़ी को चाहिए कि भगत सिंह के बारे में अच्छे से जाने पढ़े और समझे की कोशिश करे किसी के बहकावे आने की जरूरत नहीं है। शहीद भगत सिंह का "युवक" और "विद्यार्थी और राजनीति" नामक लेख काफी लोकप्रिय और प्रसिद्ध है जिसको एक बार अच्छे से जरूर पढ़ना चाहिए।
कितनो को तो ये भी नहीं पता होगा की 23 मार्च, 1931 को शाम सात बजे भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देकर उनकी लाशों के टुकड़े - टुकड़े किए गए।फिर फिरोजपुर , सतलुज नदी में बहाया गया। सब बहुत जल्दबाजी में किया गया। टुकड़े करने और अधजली हालत का प्रमाण 24 मार्च ,1931 को शहीद भगत सिंह की बहिन बीबी अमर कौर व अन्य देशवासियों द्वारा खून - सने पत्थर ,रेत और तेज धार हथियार से कटी अधजली हड्डियां हैं, जिन्हें आजकल खटकड़कलां गांव में प्रदर्शित किया गया है।भगत सिंह पर बनी तमाम फिल्मों में इस सच्चाई को कभी दर्शाया नहीं गया और युवाओं के बीच में भी कई तरह के भ्रम उत्पन्न किए गए। इतिहास हमसे मांग करता है कि हम अपनी सूझ बूझ से बलिदानी शहीदों को समझे और संकीर्णता का शिकार होने से बचें । युवाओं को शहीद भगत सिंह का यह कथन गांठ बांध लेना चाहिए - "पढ़ो ,आलोचना करो , सोचो व इसकी (इतिहास की) सहायता से अपने विचार बनाने का प्रयत्न करो।"
सारगर्भित लेख ।
ReplyDeleteजी आपका बहुत - बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु।🌻
Deleteबहुत खूब !!!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी। स्वागत है आपका ब्लॉग पर..🌻
DeleteAdbhut.
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद सिद्धार्थ जी।
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार।
Deleteशानदार लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद शांतनु जी🌻
Deleteवाह!बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद रजत जी।
Deleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद शैलेश जी।
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